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कश्मीर में भी तो मुमकिन है नागालैंड जैसा समझौता

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 06 अगस्त, 2015 06:09 PM
  • 06 अगस्त, 2015 06:09 PM
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नागालैंड समझौते के बाद जम्मू कश्मीर में भी ऐसी ही पहल की उम्मीद की जाने लगी है. बात चली है नॉर्थ-ईस्ट से और पहुंच गई है कश्मीर की वादियों तक.

हर अच्छी पहल उम्मीदें बढ़ा देती है. नागालैंड समझौता भी इस हिसाब से खास हो गया है. यही वजह है कि जम्मू कश्मीर में भी ऐसी ही पहल की उम्मीद की जाने लगी है. बात चली है नॉर्थ-ईस्ट से और पहुंच गई है कश्मीर की वादियों तक.

कश्मीर में क्यों नहीं

जम्मू कश्मीर की सत्ता में बीजेपी की साझेदार पीडीपी के प्रवक्ता डॉ. महबूब बेग कश्मीर समस्या को भी नागालैंड जितनी ही पुरानी बताते हैं - और कहते हैं उसी तर्ज पर इसका भी हल निकाला जा सकता है. लगे हाथ बेग सलाह भी देते हैं कि समस्या को हल करने के लिए कश्मीरियों की भावनाओं का सम्मान करते हुए केंद्र को चाहिए कि वो सभी पक्षों को बातचीत की प्रक्रिया में शामिल करे. सभी पक्षों का मतलब हमेशा पाकिस्तान होता है. बेग भी आशय उसी से है.

अगले ही पल बेग राय देते हैं कि आगरा वार्ता के दौरान चर्चा में आए मुशर्रफ के चार सूत्री फार्मूले को शुरुआती आधार मानकर इस दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है. बेग जिस फॉर्मूले की बात कर रहे हैं उसमें सीमा पर तैनात भारत और पाकिस्तान के सैनिकों को हटाया जाना, नियंत्रण रेखा पर यथा स्थिति बनाए रखना, स्थानीय सरकारें और हरेक चीज पर निगरानी के लिए भारत, पाकिस्तान और कश्मीरियों की एक संयुक्त समिति बनाना शामिल है.

विधान सभा चुनावों के बाद बीजेपी और पीडीपी को सत्ता की दहलीज छूने में वक्त तो लगा लेकिन वे पहुंचने में कामयाब जरूर रहे. विपरीत राहों के मुसाफिर इन दोनों पार्टियों के बीच समझौता ऐतिहासिक रहा.

मसले अपनी जगह हैं, लेकिन सरकार चल रही है. मौजूदा हालात में ये भी कम नहीं माना जा सकता. तब भी और अब भी.

तस्वीर साफ नहीं

नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड [एनएससीएन-आईएम] के साथ केंद्र सरकार के समझौते के बारे में अब तक कोई विस्तृत जानकारी सामने नहीं आई है. गृह मंत्रालय के अधिकारियों को न तो पहले कोई जानकारी थी न अब ज्यादा जानकारी है. बेहद गोपनीय तरीके से तैयार किए गए इस समझौते के बारे तो कई अधिकारियों को तब पता चला जब आदेश...

हर अच्छी पहल उम्मीदें बढ़ा देती है. नागालैंड समझौता भी इस हिसाब से खास हो गया है. यही वजह है कि जम्मू कश्मीर में भी ऐसी ही पहल की उम्मीद की जाने लगी है. बात चली है नॉर्थ-ईस्ट से और पहुंच गई है कश्मीर की वादियों तक.

कश्मीर में क्यों नहीं

जम्मू कश्मीर की सत्ता में बीजेपी की साझेदार पीडीपी के प्रवक्ता डॉ. महबूब बेग कश्मीर समस्या को भी नागालैंड जितनी ही पुरानी बताते हैं - और कहते हैं उसी तर्ज पर इसका भी हल निकाला जा सकता है. लगे हाथ बेग सलाह भी देते हैं कि समस्या को हल करने के लिए कश्मीरियों की भावनाओं का सम्मान करते हुए केंद्र को चाहिए कि वो सभी पक्षों को बातचीत की प्रक्रिया में शामिल करे. सभी पक्षों का मतलब हमेशा पाकिस्तान होता है. बेग भी आशय उसी से है.

अगले ही पल बेग राय देते हैं कि आगरा वार्ता के दौरान चर्चा में आए मुशर्रफ के चार सूत्री फार्मूले को शुरुआती आधार मानकर इस दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है. बेग जिस फॉर्मूले की बात कर रहे हैं उसमें सीमा पर तैनात भारत और पाकिस्तान के सैनिकों को हटाया जाना, नियंत्रण रेखा पर यथा स्थिति बनाए रखना, स्थानीय सरकारें और हरेक चीज पर निगरानी के लिए भारत, पाकिस्तान और कश्मीरियों की एक संयुक्त समिति बनाना शामिल है.

विधान सभा चुनावों के बाद बीजेपी और पीडीपी को सत्ता की दहलीज छूने में वक्त तो लगा लेकिन वे पहुंचने में कामयाब जरूर रहे. विपरीत राहों के मुसाफिर इन दोनों पार्टियों के बीच समझौता ऐतिहासिक रहा.

मसले अपनी जगह हैं, लेकिन सरकार चल रही है. मौजूदा हालात में ये भी कम नहीं माना जा सकता. तब भी और अब भी.

तस्वीर साफ नहीं

नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड [एनएससीएन-आईएम] के साथ केंद्र सरकार के समझौते के बारे में अब तक कोई विस्तृत जानकारी सामने नहीं आई है. गृह मंत्रालय के अधिकारियों को न तो पहले कोई जानकारी थी न अब ज्यादा जानकारी है. बेहद गोपनीय तरीके से तैयार किए गए इस समझौते के बारे तो कई अधिकारियों को तब पता चला जब आदेश मिलने पर वे प्रधानमंत्री आवास पहुंचे.

इतना ही नहीं गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजु को तो अब तक इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई है और इसी के चलते उन्हें अपनी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस तक रद्द करनी पड़ी. विस्तृत जानकारी भले ही देर से आए, दुरूस्त आएगी ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए.

उममीदें और भी हैं...

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1985 में असम समझौता और 1986 में मिजोरम समझौता किया था. तीन दशक बाद नागालैंड समझौता हुआ है. त्रिपुरा में लागू आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर एक्ट भी हाल ही में हटा लिया गया है. अगर कुछ बाकी बचा है तो मणिपुर में इरोम शर्मिला का 15 साल से जारी संघर्ष.

नागालैंड समझौते से कश्मीरियों के साथ साथ इरोम को भी उम्मीद जगाए रखनी चाहिए. इतना हक तो बनता ही है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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