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मोदी के 'न्यू इंडिया' को मध्‍यकाल में धकेलने का काम शुरू

    • आलोक रंजन
    • Updated: 17 मार्च, 2017 01:06 PM
  • 17 मार्च, 2017 01:06 PM
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हाल की कुछ घटनाएं हमें शर्मिंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं कि हम मोदी जी के 'न्यू इंडिया' की और बढ़ रहे हैं या फिर मध्यकालीन मानसिकता की ओर, जहां कट्टरपंथी हावी रहे.

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में ऐतिहासिक जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विजयी भाषण में 'न्यू इंडिया' की बात की जिसमें उन्होंने समाज के लगभग सभी वर्गों के भारत का खाका खींचा. उनके भाषण में जीत की जिम्मेदारी का अहसास था और एक नये भारत के निर्माण के लिए सभी को साथ ले कर चलने का आग्रह था. उन्होंने भाषण में सभी की बेहतरी की बात की, एक नए विज़न को सामने रखा. उन्होंने 2022 तक भारत को नए मुकाम तक पहुंचाने का लक्ष्य प्रस्तुत किया जिससे देश खुशहाली के मार्ग में आगे बढ़ता जाये.

अब सवाल ये है कि क्या कुछ लोग मोदी के सपनों को साकार होने देंगे. मिसाल के तौर पर हाल की कुछ घटनाओं पर नजर डालते हैं, जो हमें शर्मिंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं कि हम मोदी जी के 'न्यू इंडिया' की और बढ़ रहे हैं या फिर मध्यकालीन मानसिकता की और जहां कट्टरपंथी लोग हावी हैं.

आज एक खबर आयी जो जो हमें सोचने पर मजबूर कर रही है कि हमारा समाज किस और जा रहा है. उत्तर प्रदेश में बरेली से करीब 70 किलोमीटर दूर एक गांव जियांगला में कुछ पोस्टर लगाए गए हैं. इन पोस्टर में कहा गया कि मुसलमानों को इस साल के अंत तक ये गांव छोड़ देना चाहिये. साथ ही पोस्टर में ये भी कहा गया है कि अमेरिका में जो ट्रम्प कर रहे हैं, वही यहां भी किया जायेगा. भारत में सभी धर्म के लोग हमेशा से सदभाव में रहते आए हैं. इस तरह का पोस्टर लगना कुछ लोगों की तालिबानी सोच को सामने रखता है.

इसी तरह की खबर असम से भी आयी थी जब इस्लामी धर्मगुरुओं ने फतवा जारी कर वहां की प्रतिभाशाली युवा गायिका नाहिद आफरीन को किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम में परफॉर्म करने से मना किया. हालांकि आफरीन ने कहा कि वह ऐसी किसी भी धमकी से डरने वाली नहीं हैं.

वहीं कोल्हापुर में कुछ लोगो ने 'पद्मावती' फिल्म के सेट में आग लगा दी, जिससे पूरा सेट...

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में ऐतिहासिक जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विजयी भाषण में 'न्यू इंडिया' की बात की जिसमें उन्होंने समाज के लगभग सभी वर्गों के भारत का खाका खींचा. उनके भाषण में जीत की जिम्मेदारी का अहसास था और एक नये भारत के निर्माण के लिए सभी को साथ ले कर चलने का आग्रह था. उन्होंने भाषण में सभी की बेहतरी की बात की, एक नए विज़न को सामने रखा. उन्होंने 2022 तक भारत को नए मुकाम तक पहुंचाने का लक्ष्य प्रस्तुत किया जिससे देश खुशहाली के मार्ग में आगे बढ़ता जाये.

अब सवाल ये है कि क्या कुछ लोग मोदी के सपनों को साकार होने देंगे. मिसाल के तौर पर हाल की कुछ घटनाओं पर नजर डालते हैं, जो हमें शर्मिंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं कि हम मोदी जी के 'न्यू इंडिया' की और बढ़ रहे हैं या फिर मध्यकालीन मानसिकता की और जहां कट्टरपंथी लोग हावी हैं.

आज एक खबर आयी जो जो हमें सोचने पर मजबूर कर रही है कि हमारा समाज किस और जा रहा है. उत्तर प्रदेश में बरेली से करीब 70 किलोमीटर दूर एक गांव जियांगला में कुछ पोस्टर लगाए गए हैं. इन पोस्टर में कहा गया कि मुसलमानों को इस साल के अंत तक ये गांव छोड़ देना चाहिये. साथ ही पोस्टर में ये भी कहा गया है कि अमेरिका में जो ट्रम्प कर रहे हैं, वही यहां भी किया जायेगा. भारत में सभी धर्म के लोग हमेशा से सदभाव में रहते आए हैं. इस तरह का पोस्टर लगना कुछ लोगों की तालिबानी सोच को सामने रखता है.

इसी तरह की खबर असम से भी आयी थी जब इस्लामी धर्मगुरुओं ने फतवा जारी कर वहां की प्रतिभाशाली युवा गायिका नाहिद आफरीन को किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम में परफॉर्म करने से मना किया. हालांकि आफरीन ने कहा कि वह ऐसी किसी भी धमकी से डरने वाली नहीं हैं.

वहीं कोल्हापुर में कुछ लोगो ने 'पद्मावती' फिल्म के सेट में आग लगा दी, जिससे पूरा सेट जलकर खाक हो गया. ये फिल्म रानी पद्मावती पर केंद्रित है. रानी पर शूट किए जा रहे कुछ दृश्यों से लोगों को आपत्ति है और शायद ऐसे ही नाराज लोगों ने फिल्म के सेट को आग लगा दी. नाराजगी चाहे जो हो इस तरह की हिंसा सभ्य समाज में निंदनीय है.

क्या इस तरह के घृणित और अमानवीय कृत्य प्रधानमंत्री मोदी के 'न्यू इंडिया' के सपने को साकार होने देंगें. मोदी जहां भारत को विश्व में अग्रणी राष्ट्र बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, वहीं इस तरह की घटनाएं हमें पीछे ढ़केलने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. कट्टरपंथी चाहे किसी भी धर्म और जाति के क्यों न हो, इन पर लगाम लगना जरुरी है और तभी मोदी जी का 'न्यू इंडिया' का विज़न पूरा हो सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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