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बीजेपी से डराने के लिए माया ने लपका आरक्षण का डबल बैरल हथियार

    • आईचौक
    • Updated: 21 जनवरी, 2017 05:04 PM
  • 21 जनवरी, 2017 05:04 PM
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आरक्षण पर मनमोहन वैद्य के बयान को लेकर बीजेपी चाहे जो भी गुणा-गणित कर रही हो, मायावती ने तो उसे लपक लिया है. मायावती के रिएक्शन से लगता है जैसे वो तो बस ऐसे मौके के इंतजार में बैठी हुई हों.

आरक्षण पर मनमोहन वैद्य के बयान को लेकर बीजेपी चाहे जो भी गुणा-गणित कर रही हो, मायावती ने तो उसे लपक लिया है. मायावती के रिएक्शन से लगता है जैसे वो तो बस ऐसे मौके के इंतजार में बैठी हुई हों. लालू प्रसाद ने भी भागवत की बात का फायदा उठाया था जिसके नतीजे जग जाहिर हैं.

डराओ... खूब डराओ!

मायावती कुछ दिनों से बीजेपी के प्रति लोगों में भय पैदा करने की कोशिश करती नजर आई हैं. जब वो लोगों के बीच होती हैं, खासकर मुस्लिम इलाकों में, तो वो कभी अयोध्या कांड का जोर देकर जिक्र करती हैं तो कभी दंगों की याद दिला कर जख्मों को कुरेद कर ताजा करने की कोशिश करती हैं. लोगों में डर पैदा कर मायावती ये जताने की कोशिश करती हैं कि अगर उन्होंने बीएसपी को वोट नहीं दिया तो बर्बादी से कोई नहीं बचा सकता. बीच बीच में ये भी सुनने को मिलता कि अगर मुस्लिम समुदाय के लोग बीएसपी को वोट नहीं दिये तो उनका वोट बेकार चला जाएगा.

इसे भी पढ़ें : अयोध्या कांड और दंगों का डर दिखाने से माया को नहीं मिलेगा वोट

अब उसी अंदाज में मायावती दलित वोटरों को डराने की कोशिश कर रही हैं. आखिर मायावती को क्यों लगता है कि जब तक लोग बीजेपी के सत्ता में आने की बात से डरेंगे नहीं उन्हें वोट नहीं करेंगे? ऐसा करके उनकी कोशिश है कि दलितों का वो तबका जो लोक सभा चुनाव में उनकी हाथ से खिसक गया था उसे अपने पास बुला लें.

आरक्षण के रखवाले

वैसे मायावती के ताजे तेवर से तो ऐसा ही लगता है जैसे उनके हाथ कोई डबल बैरल हथियार लगा हो. वैसे भी, एक तो वैद्य ने आरक्षण को खत्म करने की वकालत कर डाली ऊपर से उसे मुस्लिम समुदाय से जोड़ दिया.

आरक्षण पर मनमोहन वैद्य के बयान को लेकर बीजेपी चाहे जो भी गुणा-गणित कर रही हो, मायावती ने तो उसे लपक लिया है. मायावती के रिएक्शन से लगता है जैसे वो तो बस ऐसे मौके के इंतजार में बैठी हुई हों. लालू प्रसाद ने भी भागवत की बात का फायदा उठाया था जिसके नतीजे जग जाहिर हैं.

डराओ... खूब डराओ!

मायावती कुछ दिनों से बीजेपी के प्रति लोगों में भय पैदा करने की कोशिश करती नजर आई हैं. जब वो लोगों के बीच होती हैं, खासकर मुस्लिम इलाकों में, तो वो कभी अयोध्या कांड का जोर देकर जिक्र करती हैं तो कभी दंगों की याद दिला कर जख्मों को कुरेद कर ताजा करने की कोशिश करती हैं. लोगों में डर पैदा कर मायावती ये जताने की कोशिश करती हैं कि अगर उन्होंने बीएसपी को वोट नहीं दिया तो बर्बादी से कोई नहीं बचा सकता. बीच बीच में ये भी सुनने को मिलता कि अगर मुस्लिम समुदाय के लोग बीएसपी को वोट नहीं दिये तो उनका वोट बेकार चला जाएगा.

इसे भी पढ़ें : अयोध्या कांड और दंगों का डर दिखाने से माया को नहीं मिलेगा वोट

अब उसी अंदाज में मायावती दलित वोटरों को डराने की कोशिश कर रही हैं. आखिर मायावती को क्यों लगता है कि जब तक लोग बीजेपी के सत्ता में आने की बात से डरेंगे नहीं उन्हें वोट नहीं करेंगे? ऐसा करके उनकी कोशिश है कि दलितों का वो तबका जो लोक सभा चुनाव में उनकी हाथ से खिसक गया था उसे अपने पास बुला लें.

आरक्षण के रखवाले

वैसे मायावती के ताजे तेवर से तो ऐसा ही लगता है जैसे उनके हाथ कोई डबल बैरल हथियार लगा हो. वैसे भी, एक तो वैद्य ने आरक्षण को खत्म करने की वकालत कर डाली ऊपर से उसे मुस्लिम समुदाय से जोड़ दिया.

सोच लो, अपना वोट बचा लो...

निश्चित रूप से मायावती के लिए ये डबल फायदे की बात है. इसके चलते एक बार में ही मायावती दलितों और मुस्लिमों दोनों को अपनी बात समझा सकती हैं.

जिस तरह मुस्लिमों को मायावती अयोध्याकांड और दंगों के नाम पर बीजेपी से डराती हैं उसी तर्ज पर अब वो दलित समुदाय को डरा रही हैं. 'बीजेपी को वोट किया तो भुगतना...'

मायावती अब लोगों को समझा रही हैं कि अगर यूपी में बीजेपी की सरकार बन गई तो केंद्र के साथ मिल कर वो पूरी मनमानी करेंगे - और नतीजा ये होगा कि वो आरक्षण को पूरी तरह खत्म कर देंगे.

इसे भी पढ़ें : 2017 में यूपी को मिल सकता है मुस्लिम डिप्टी सीएम, अगर...

बिहार चुनाव के वक्त लालू प्रसाद और उनकी पार्टी के नेता भी अपने वोटरों को कुछ इसी अंदाज में डराने की कोशिश करते थे और उन्हें इसका फायदा भी मिला. मायावती भी करीब करीब वही फॉर्मूला अपना रही हैं.

दलितों पर एकाधिकार समझने वाली मायावती अब खुद को आरक्षण का अकेला रखवाला बता रही हैं. बड़ा सवाल ये है कि क्या दलितों की तरह मुस्लिम भी उनकी बात को वैसे ही लेंगे?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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