• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

भाजपा के प्रति ममता का ये अंधविरोध उन्हें ही नुकसान पहुंचाएगा!

    • पीयूष द्विवेदी
    • Updated: 23 जुलाई, 2017 07:53 PM
  • 23 जुलाई, 2017 07:53 PM
offline
ये अंधविरोध की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है कि जो सरकार दुनिया की सबसे विश्वसनीय सरकार है, उसके शासन की तुलना ममता बनर्जी आपातकाल से कर रही हैं.

2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भाजपा के प्रति विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है. विशेष रूप से गत वर्ष हुई नवम्बर में हुई नोटबंदी के बाद से तो उनका भाजपा विरोध घृणा के स्तर तक पहुंचता नजर आ रहा है. भाजपा के प्रति वे अपने विरोध को जिस-तिस प्रकार से जाहिर करती रहती हैं. अब उन्होंने घोषणा की है कि आगामी 9 अगस्त से वे ‘बीजेपी भारत छोड़ो’ नामक आन्दोलन करने जा रही हैं.

ममता का 'बीजेपी भारत छोड़ो’ आंदोलन

इस आंदोलन की ज़रूरत उनको इसलिए लग रही है क्योंकि उनके हिसाब से फिलहाल देश में आपातकाल से भी बुरे हालात हैं. समझा जा सकता है कि ममता बनर्जी भाजपा के प्रति अंधविरोध की मानसिकता में किस कदर डूब चुकी हैं. ये अंधविरोध की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है कि जो सरकार दुनिया की सबसे विश्वसनीय सरकार है (फ़ोर्ब्स रिपोर्ट के अनुसार), उसके शासन की तुलना ममता बनर्जी आपातकाल से कर रही हैं. संभवतः उन्हें आपातकाल का अनुभव नहीं रहा या उन्होंने उसका इतिहास ढंग से नहीं पढ़ा, वर्ना ऐसा बचकाना बयान नहीं देतीं. ममता बनर्जी ने यह भी कहा है कि अरविन्द केजरीवाल, सोनिया गांधी, लालू आदि जितने भी लोग भाजपा के खिलाफ होंगे, वे उन सबके साथ खड़ी होंगी.

‘बीजेपी भारत छोड़ो’ आन्दोलन के नामपर विपक्ष को एकत्रित करके स्वयं को विपक्षी मोर्चे की राष्ट्रीय नेता के रूप में प्रस्तुत करने की जिस मंशा के तहत ममता बनर्जी यह सब कर रही हैं, वो मंशा इस तरीके से पूरी होने की कोई संभावना नहीं है. उल्टे ममता का यह दांव उनपर भारी ही पड़ सकता है.

भाजपा जो इस समय निर्विवाद रूप से देश की सर्वाधिक लोकप्रिय पार्टी है, जिसका प्रमाण लगातार चुनावों में हो रही उसकी बम्पर विजय है, के प्रति ‘भारत छोड़ो’ जैसा...

2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भाजपा के प्रति विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है. विशेष रूप से गत वर्ष हुई नवम्बर में हुई नोटबंदी के बाद से तो उनका भाजपा विरोध घृणा के स्तर तक पहुंचता नजर आ रहा है. भाजपा के प्रति वे अपने विरोध को जिस-तिस प्रकार से जाहिर करती रहती हैं. अब उन्होंने घोषणा की है कि आगामी 9 अगस्त से वे ‘बीजेपी भारत छोड़ो’ नामक आन्दोलन करने जा रही हैं.

ममता का 'बीजेपी भारत छोड़ो’ आंदोलन

इस आंदोलन की ज़रूरत उनको इसलिए लग रही है क्योंकि उनके हिसाब से फिलहाल देश में आपातकाल से भी बुरे हालात हैं. समझा जा सकता है कि ममता बनर्जी भाजपा के प्रति अंधविरोध की मानसिकता में किस कदर डूब चुकी हैं. ये अंधविरोध की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है कि जो सरकार दुनिया की सबसे विश्वसनीय सरकार है (फ़ोर्ब्स रिपोर्ट के अनुसार), उसके शासन की तुलना ममता बनर्जी आपातकाल से कर रही हैं. संभवतः उन्हें आपातकाल का अनुभव नहीं रहा या उन्होंने उसका इतिहास ढंग से नहीं पढ़ा, वर्ना ऐसा बचकाना बयान नहीं देतीं. ममता बनर्जी ने यह भी कहा है कि अरविन्द केजरीवाल, सोनिया गांधी, लालू आदि जितने भी लोग भाजपा के खिलाफ होंगे, वे उन सबके साथ खड़ी होंगी.

‘बीजेपी भारत छोड़ो’ आन्दोलन के नामपर विपक्ष को एकत्रित करके स्वयं को विपक्षी मोर्चे की राष्ट्रीय नेता के रूप में प्रस्तुत करने की जिस मंशा के तहत ममता बनर्जी यह सब कर रही हैं, वो मंशा इस तरीके से पूरी होने की कोई संभावना नहीं है. उल्टे ममता का यह दांव उनपर भारी ही पड़ सकता है.

भाजपा जो इस समय निर्विवाद रूप से देश की सर्वाधिक लोकप्रिय पार्टी है, जिसका प्रमाण लगातार चुनावों में हो रही उसकी बम्पर विजय है, के प्रति ‘भारत छोड़ो’ जैसा अतार्किक आन्दोलन जनता को रास नहीं आएगा. संभव है कि नोटबंदी का अनर्गलविरोध करने के बाद विपक्षी दलों की जो फजीहत हुई थी, इस आन्दोलन का भी वैसा ही कुछ परिणाम सामने आए. सीधे शब्दों में कहें तो राष्ट्रीय नेता बनने की जल्दबाजी में ममता अपना वर्तमान चौपट करने की ओर बढ़ रही हैं.

ममता बनर्जी को समझना चाहिए कि राष्ट्रीय नेता ऐसे अर्थहीन आंदोलनों से नहीं बना जाता, उसके लिए मिले प्राप्त अवसर के अनुसार बेहतर प्रदर्शन करके लोगों का विश्वास जीतना पड़ता है. जबकि फिलहाल तो स्थिति ये है कि बंगाल में ममता के शासन का स्तर बेहद खराब है. कानून-व्यवस्था जैसी कोई चीज राज्य में दूर-दूर तक नजर नहीं आती. अतः ममता बनर्जी को चाहिए कि वे केंद्र सरकार पर अनावश्यक दोषारोपण और भाजपा के अंधविरोध की बजाय अपने शासनाधीन बंगाल की क़ानून व्यवस्था को दुरुस्त करें.

देश इस बात को अच्छी तरह से देख और समझ रहा है कि कैसे ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति में फंसकर बंगाल सांप्रदायिक हिंसा का गढ़ बनता जा रहा है. अतः उचित होगा कि ममता बनर्जी देश की चिंता करने की बजाय बंगाल में कानून व्यवस्था सुधारें. राज्य की स्थिति बदहाल रहती है, तो राष्ट्रीय स्तर की नेता बनने की ममता की ये कवायदें उन्हें भारी नुकसान ही पहुंचाएंगी.

ये भी पढ़ें-

2018 में भी आम चुनाव के लिए TMC तैयार, लेकिन ममता को ऐसा लगता क्यों है

पश्चिम बंगाल में बवाल, बेपरवाह सरकार

ममता की तुष्टिकरण की राजनीति में जलता बंगाल

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲