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तो क्या फूटी मिसाइलों से फूलेगा लालू का गुब्बारा ?

    • कन्‍हैया कोष्‍टी
    • Updated: 28 अगस्त, 2017 11:20 PM
  • 28 अगस्त, 2017 11:20 PM
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लालू की रैली में शामिल हुए सभी नेता फूटी मिसाइलें हैं. देखना दिलचस्प होगा कि क्या ये फूटी मिसाइलें लालू के गुब्बारे में हवा भर पाएँगी और उनको राजनीति में वो स्थान दिला पाएंगी जिनकी वो कामना कर रहे रहे हैं ?

पटना के गांधी मैदान में आज जनसैलाब उमड़ पड़ा. भारी भीड़ को देख कर लालू का सीना फूला नहीं समा रहा था, तो तेजस्वी जोश में थे, परंतु मंच कुछ और कहानी ही कह रहा था. कहने को यह रैली, रैला थी और उमड़ा जनसैलाब भी यही कह रहा था कि लालू की रैली नहीं, रैला था. लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि जिस उद्देश्य से इस रैली का आयोजन किया गया था, क्या वह उद्देश यह रैली पूरी कर पाएगी?

सब जानते हैं कि बिहार में पिछले माह तेजी से राजनीतिक घटनाक्रम बदला और दो दोस्त अचानक दुश्मन में बदल गए, तो राष्ट्रीय स्तर पर भी एक बड़ा झटका उस तथाकथित संभावित महागठबंधन को लगा कि जिसकी अगुवाई कदाचित नीतीश कुमार बेहतर कर सकते थे, परंतु हुआ सब-कुछ उल्टा-पुल्टा और अचानक लालू के दिन लद गए और भाजपा की बाँछें खिल गईं.

देखना दिलचस्प है कि क्या फूटी मिसाइलें लालू को दूर तक ले जा पाएंगी

नीतीश कुमार की कथित दगाबाजी के खिलाफ ही लालू ने पटना के गांधी मैदान में रैली का आयोजन किया. इस रैली के आयोजन पीछे जहाँ एक तरफ बिहार में लालू का पुनः अपना शक्ति प्रदर्शन करना था, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा-एनडीए के खिलाफ तमाम विपक्षी दलों को एकजुट करना भी था.  रैली में उमड़े रैले से यह लालू ने बिहार में अपनी शक्ति का परिचय तो दे दिया, लेकिन मंच पर विराजित विपक्षी दलों के नेताओं के जितने चेहरे दिखाई दिये, वे विपक्षी एकता के उद्देश्य को पूरा करने के लिए काफी नहीं दिख रहे थे.

जो हाजिर थे, उनका वजूद क्या ?

क्या लालू प्रसाद यादव की लोकसभा चुनाव 2019 में नरेन्द्र मोदी और भाजपा-एनडीए के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनाने की कवायद इस रैली से रंग लाएगी? रैली में मौजूद विपक्षी नेताओं की संख्या से तो शायद इस सवाल का जवाब आसान लगता है कि मुश्किल है, क्योंकि मंच पर...

पटना के गांधी मैदान में आज जनसैलाब उमड़ पड़ा. भारी भीड़ को देख कर लालू का सीना फूला नहीं समा रहा था, तो तेजस्वी जोश में थे, परंतु मंच कुछ और कहानी ही कह रहा था. कहने को यह रैली, रैला थी और उमड़ा जनसैलाब भी यही कह रहा था कि लालू की रैली नहीं, रैला था. लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि जिस उद्देश्य से इस रैली का आयोजन किया गया था, क्या वह उद्देश यह रैली पूरी कर पाएगी?

सब जानते हैं कि बिहार में पिछले माह तेजी से राजनीतिक घटनाक्रम बदला और दो दोस्त अचानक दुश्मन में बदल गए, तो राष्ट्रीय स्तर पर भी एक बड़ा झटका उस तथाकथित संभावित महागठबंधन को लगा कि जिसकी अगुवाई कदाचित नीतीश कुमार बेहतर कर सकते थे, परंतु हुआ सब-कुछ उल्टा-पुल्टा और अचानक लालू के दिन लद गए और भाजपा की बाँछें खिल गईं.

देखना दिलचस्प है कि क्या फूटी मिसाइलें लालू को दूर तक ले जा पाएंगी

नीतीश कुमार की कथित दगाबाजी के खिलाफ ही लालू ने पटना के गांधी मैदान में रैली का आयोजन किया. इस रैली के आयोजन पीछे जहाँ एक तरफ बिहार में लालू का पुनः अपना शक्ति प्रदर्शन करना था, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा-एनडीए के खिलाफ तमाम विपक्षी दलों को एकजुट करना भी था.  रैली में उमड़े रैले से यह लालू ने बिहार में अपनी शक्ति का परिचय तो दे दिया, लेकिन मंच पर विराजित विपक्षी दलों के नेताओं के जितने चेहरे दिखाई दिये, वे विपक्षी एकता के उद्देश्य को पूरा करने के लिए काफी नहीं दिख रहे थे.

जो हाजिर थे, उनका वजूद क्या ?

क्या लालू प्रसाद यादव की लोकसभा चुनाव 2019 में नरेन्द्र मोदी और भाजपा-एनडीए के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनाने की कवायद इस रैली से रंग लाएगी? रैली में मौजूद विपक्षी नेताओं की संख्या से तो शायद इस सवाल का जवाब आसान लगता है कि मुश्किल है, क्योंकि मंच पर मोजूद चेहरों में उत्साह तो था, लेकिन चर्चित चेहरे नदारद नजर आ रहे थे.

सभी जानते हैं कि लोकसभा चुनाव 2014 में अपने इतिहास में सबसे कम 44 सीटें जीतने वाली कांग्रेस अब भी मुख्य विपक्षी दल है, लेकिन मंच पर न कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी दिखीं और न यदाकदा मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल देने वाले राहुल गांधी दिखाई दिए. राहुल पटना की बजाए नॉर्वे की शैर कर रहे थे. यद्यपि कांग्रेस ने अपने प्रतिनिधियों को भेज कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान ली. क्या प्रतिनिधियों से विपक्षी एकजुटता दिखाई दे जाएगी, जैसी कि अपेक्षा की जा रही थी.

इस रैली में लालू ने भरसक प्रयास किये हैं कि वो सबको एकजुट कर सकें

अब रही बात मौजूद लोगों की. तो रैली मैं आरजेडी के नेता लालू प्रसाद यादव, उनके पुत्र तेजस्वी यादव और जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव के बाद कोई बड़ा और जनसमर्थन रखने वाला चेहरा था, तो वे थीं ममता बैनर्जी. अब बताइए भला, कहाँ बंगाल और बिहार तथा उत्तर भारत की राजनीति? दोनों में कोई मेल है भला? अब बताइए, ममता बैनर्जी का जनाधार पश्चिम बंगाल में है और उनकी लोकप्रियता अब भी शीर्ष पर है.

वहां की जनता ममता की दीवानी है. ऐसे में ममता बिहार से बाहर जाकर भ्रष्टाचार के कथित आरोपी के साथ भी मंच शेयर करें, तो बंगाल की जनता को क्या फर्क पड़ने वाला है? ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर ममता कोई बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाना भी चाहें, तो वह अपना योगदान केवल बंगाल तक ही सीमित रख सकती हैं, जो अभी पाँच-दस वर्ष आराम से बंगाल में अपनी अलख जगाए रखेंगी. इससे दिल्ली की सत्ता पर निशाना साधने में लालू के लिए ममता कितनी कारगर सिद्ध हो सकती हैं?

माया की दूरी, विरोधाभास तो देखिए !

नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते महागठबंधन की ऐसी कि तैसी कर दी. अब इसका राजनीति में सीधा संदेश यही गया कि नीतीश भ्रष्टाचार के बिल्कुल विरुद्ध हैं और ऐसे में लालू विरोधियों के पास सबसे बड़ा हथियार उनकी भ्रष्टाचारी छवि है. अब बताइए भला, जो लालू के साथ मंच साझा करेगा, विरोधी उस पर यही ताना कसेंगे कि वे भ्रष्टाचार के साथ हैं. कदाचित इसीलिए उत्तर प्रदेश से बसपा प्रमुख मायावती इस रैली से दूर ही रहीं.

इस रैली के लिए मायावती के प्रति भी फिक्रमंद दिखे लालू

बात विपक्षी एकता की हो रही है और विरोधाभास देखिए. रैली में ममता बैनर्जी शामिल हुईं, तो बंगाल में उनके घोर विरोधी वाम मोर्चे के नेता भी शामिल हुए. इसी तरह यूपी में सपा-बसपा कट्टर विरोधी दल हैं. रैली में शायद इसीलिए मायावती नहीं आईं. लालू राज्यों के इन विरोधियों को कैसे एकत्र कर पाएँगे? अभी दक्षिण के राज्यों की तो बात ही नहीं है, जबकि एनडीए दक्षिण में अपने पैर फैला चुका है.

अकेले शरद से पार पड़ेगी ?

देश बचाओ-भाजपा भगाओ रैली के मुख्य चेहरे थे शरद यादव, जो नीतीश कुमार के खिलाफ हो गए हैं. अब अकेले शरद से बेड़ा पार हो जाएगा लालू का.  वे शरद, जिनका बिहार के बाहर कोई जनाधार नहीं है, वे राष्ट्रीय स्तर पर भला कैसे मोदी-एनडीए को चुनौती दे सकेंगे.

फूटी मिसाइलें

चलिए अब बात कर लेते हैं रैली में उपस्थित लोगों की. तो रैली में सबसे बड़ी सहभागी पार्टी थी कांग्रेस. जरा कांग्रेस की देश में दशा और दिशा के बारे में सोच कर देख लीजिए. कांग्रेस के पास देश में एकमात्र कर्नाटक सबसे बड़ा राज्य है. ताजा सर्वे में भी कांग्रेस कहीं दिखाई नहीं देती. सोनिया और राहुल को छोड़ कर कांग्रेस में एक भी बड़ा चेहरा बता दीजिए, जो पार्टी की अपनी नैया पार लगा सकता हो. अरे, सोनिया-राहुल खुद अपनी अधर में फंसी नैया कैसे पार लगाएँ, इस झंझट में उलझे हुए हैं. लोकसभा चुनाव 2014 के बाद भी अनेक चुनाव कांग्रेस हार चुकी है.

एकमात्र बिहार में जैसे-तैसे सत्ता का थोड़ा-सा सुख मिला था, वह भी हाथ से निकल गया. यूपी में अखिलेश के साथ जाकर अखिलेश को ही पटखनी दिलवा दी. रैली में कांग्रेस के अलावा ममता बैनर्जी सबसे बड़ा चेहरा थीं, जिनके बारे में हम पहले ही बात कर चुके हैं. इसके अलावा रैली में जो छोटे-छोटे दल शामिल हुए, उनका अपने राज्यों में भाजपा के विरुद्ध क्या हाल है? यह लालू अच्छी तरह जानते होंगे. कुल मिला कर रैली में शामिल हुए नेताओं में लगभग तमाम फूटी मिसाइलें हैं. अब बताइए जरा... ये फूटी मिसाइलें लालू के गुब्बारे में हवा भर पाएँगी?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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