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सत्ता के लिए बीजेपी क्या-क्या करेगी...

    • आदर्श तिवारी
    • Updated: 10 अप्रिल, 2016 05:02 PM
  • 10 अप्रिल, 2016 05:02 PM
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बीजेपी ने अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश ,कर्नाटक, तेलंगाना, और पंजाब के अपने नए प्रदेश अध्यक्षों के नामों की घोषणा कर दी है. इन पांचो राज्यों में बीजेपी ने बड़ी चतुराई से उन नेताओं के का चयन किया है जो या तो बड़ी चर्चा में रहें है या जिसका अनुमान किसी को नही था...

सभी कयासों को विराम लगाते हुए भारतीय जनता पार्टी से आखिरकार पांच राज्यों में अपने नए प्रदेश अध्यक्षों को न्युक्त कर दिया. इनमें उत्तर प्रदेश ,कर्नाटक, तेलंगाना, पंजाब और अरुणाचल प्रदेश शामिल है. इन पांचो राज्यों में बीजेपी ने बड़ी चतुराई से उन नेताओं के का चयन किया है जो या तो बड़ी चर्चा में रहें है या जिसका अनुमान किसी को नही था.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने शिमोगा ने सांसद येदियुरप्पा को कर्नाटक, फूलपुर से सांसद केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश, होशियारपुर से सांसद विजय सांपला को पंजाब, तापिर गाओ को अरुणाचल प्रदेश तथा के.लक्ष्मण को तेलंगाना की कमान सौंपी है. गौरतलब है कि 2017 में पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं जबकि 2018 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस घोषणा के होते ही पांच राज्यों के कार्यकर्ताओं को अपना नया छत्रप मिला है लिहाजा उनमें खुशी का माहौल है. किंतु इस सूचि में दो नाम ऐसें है जो राष्ट्रीय पटल पर सबसे ज्यादा चर्चा मे हैं. इसमें पहला नाम उत्तर प्रदेश के लिए चुने गये अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य जबकि दुसरा कर्नाटक के लिए चुने गये येदियुरप्पा हैं.

मौर्या पर दंगे फैलाने, हत्या, धोखाधड़ी ,सरकारी कर्मचारियों को घमकी देने जैसे गंभीर मुकदमें चल रहें हैं जबकि येदियुरप्पा के दामन पर पहले से ही भ्रष्टाचार का दाग लगा हुआ है. ऐसे में अलग साफ-सुथरी और चरित्र की राजनीति करने का दावा करनें वाली बीजेपी ने सिद्ध कर दिया कि राजनीति में ये सब बातें केवल कहने के लिए होती हैं. हकीकत में इन सब बातों का कोई मतलब नहीं होता. वर्तमान दौर की राजनीति इतनी दूषित हो चुकी है कि सत्ता तक पहुचनें के लिए राजनीतिक दल अपने विचारों,अपने सिद्धांतों को तिलांजलि देने से नही चुकते.

यह भी पढ़ें- एक बड़ा मौका मिस कर रहे हैं मोदी

मुख्य लक्ष्य तो...

सभी कयासों को विराम लगाते हुए भारतीय जनता पार्टी से आखिरकार पांच राज्यों में अपने नए प्रदेश अध्यक्षों को न्युक्त कर दिया. इनमें उत्तर प्रदेश ,कर्नाटक, तेलंगाना, पंजाब और अरुणाचल प्रदेश शामिल है. इन पांचो राज्यों में बीजेपी ने बड़ी चतुराई से उन नेताओं के का चयन किया है जो या तो बड़ी चर्चा में रहें है या जिसका अनुमान किसी को नही था.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने शिमोगा ने सांसद येदियुरप्पा को कर्नाटक, फूलपुर से सांसद केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश, होशियारपुर से सांसद विजय सांपला को पंजाब, तापिर गाओ को अरुणाचल प्रदेश तथा के.लक्ष्मण को तेलंगाना की कमान सौंपी है. गौरतलब है कि 2017 में पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं जबकि 2018 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस घोषणा के होते ही पांच राज्यों के कार्यकर्ताओं को अपना नया छत्रप मिला है लिहाजा उनमें खुशी का माहौल है. किंतु इस सूचि में दो नाम ऐसें है जो राष्ट्रीय पटल पर सबसे ज्यादा चर्चा मे हैं. इसमें पहला नाम उत्तर प्रदेश के लिए चुने गये अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य जबकि दुसरा कर्नाटक के लिए चुने गये येदियुरप्पा हैं.

मौर्या पर दंगे फैलाने, हत्या, धोखाधड़ी ,सरकारी कर्मचारियों को घमकी देने जैसे गंभीर मुकदमें चल रहें हैं जबकि येदियुरप्पा के दामन पर पहले से ही भ्रष्टाचार का दाग लगा हुआ है. ऐसे में अलग साफ-सुथरी और चरित्र की राजनीति करने का दावा करनें वाली बीजेपी ने सिद्ध कर दिया कि राजनीति में ये सब बातें केवल कहने के लिए होती हैं. हकीकत में इन सब बातों का कोई मतलब नहीं होता. वर्तमान दौर की राजनीति इतनी दूषित हो चुकी है कि सत्ता तक पहुचनें के लिए राजनीतिक दल अपने विचारों,अपने सिद्धांतों को तिलांजलि देने से नही चुकते.

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मुख्य लक्ष्य तो सत्ता है उसे हथियाने के लिए भले ही अपने उसूलो, विचारों को ताक पर रखना पड़े. जम्मू कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी गठबंधन इसका ताजा उदाहरण है. बहरहाल, केशव प्रसाद मौर्य की राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो वर्तमान में फूलपुर से सांसद है. मौर्य काफी समय से विश्व हिन्दू परिषद और राम जन्मभूमि आंदोलन में सक्रिय रहें है. दिलचस्प बात ये है कि मौर्य ने भी दावा किया है कि प्रधानमंत्री मोदी की तरह उन्होंने बचपन में चाय व अखबार बेचें हैं. खैर ,केशव मौर्य पिछड़ी समुदाय से आतें है. ऐसे मे बीजेपी की रणनीति साफ दिखाई दे रही है.

 केशव प्रसाद मौर्य

एक तरफ जातिय समीकरण को साधने की कोशिश तो दूसरी तरफ हिंदुत्ववादी चेहरा. सवाल उठता है कि इन दोनों का समिश्रण क्या बीजेपी को यूपी में वापसी करा पायेगी? उत्तर प्रदेश का चुनाव अगले साल होना है किंतु सभी दलों ने अभी से सियासी बिसाद बिछाने लगें है. दरअसल देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश का चुनाव बीजेपी तथा मोदी सरकार ने लिए सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा होगी. 2017 में होनें वाले यूपी विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की जनता मोदी सरकार को कथित विकास की कसौटी पर कसने से परहेज नही करेगी.

गौरतलब है कि बीजेपी लोकसभा चुनाव में विकास के मुद्दे पर वोट मांगा था और यूपी की जनता ने सभी जातिय समीकरणों को पीछे छोड़ते हुए 80 लोकसभा सीटों में से 73 सीट एनडीए गठबंधन की झोली में डाल दिया. बीजेपी ने पिछले ढेढ़ दशक से यहाँ सत्ता का स्वाद नही चखा है. पिछले कुछ वर्षों में यहां की राजनीति ने ऐसा करवट लिया है जिसमें लोगो के मन में ये बात बैठ गई है कि यहाँ क्षेत्रीय दलों का ही प्रभुत्व रहेगा. पिछले दो-तीन चुनावों में हमनें देखा है कि सत्ता बसपा सुप्रीमों मायावती और सपा के हाथों घुमती रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मौर्य बीजेपी को सत्ता तक पहुंचा पाएंगे?

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इस सवाल की तह में जाएं तो बीजेपी को सत्ता तक पहुंचना टेढ़ी खीर के समान है. यहाँ के जातिय समीकरण विधानसभा चुनाव में पूरी तरह हावी रहतें है. ऐसे में मुलायम और मायावती जैसे सरीखे नेता जातिवाद का झंडा बुलंद किये हुए हैं. मायावती दलितों व पिछड़े समुदाय को अपना वोटबैंक समझती तो मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी यादव, भूमिहार तथा मुसलमान समेत अन्य पिछड़ी जातियों पर अपना वर्चस्व बनाएं हुए है. ऐसे में मौर्य के सामनें इन दोनों पार्टियों के वोटबैंक मे सेंध लगानें की बड़ी चुनौती होगी. भले ही केशव मौर्य पिछड़ी समुदाय ने आतें हैं लेकिन उनके पास किसी जाति विशेष का कोई बड़ा समर्थन नहीं है.

मौर्य के सामने फिलहाल दो बड़ी चुनौतियाँ सामने हैं. मौर्य की सबसे बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश की राजनीति में खुद की पहचान बनाना होगा तथा दूसरी चुनौती की बात करें तो पार्टी की यूपी इकाई को गुटबाजी से बचाना होगा. साथ ही सभी नेताओं को एक साथ लेकर चलना होगा ताकि पार्टी कोई विद्रोह की स्थिति न बनें और सबके सहयोग से आने वालें चुनाव में सत्ता तक पहुँच सकें. बहरहाल,बीजेपी ने जिस एजेंडे के तहत केशव को सेनापति बनाया है, वो एजेंडा कितना सफल होगा ये समय ही बताएगा. लेकिन उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव होने में अभी सयम है. ऐसे में मौर्य के पास भी चुनाव की तैयारी करनें का पर्याप्त समय हैं.

हाल में आये एक सर्वेक्षण के मुताबिक यूपी में इस बार हवा मायावती के पक्ष में है. बीजेपी भी इस बात को बखूबी जानती है कि अगर यूपी का किला फतह करना है तो मायावती की काट ढूंढनी होगी. मायावती की काट खोजे बगैर यूपी में बीजेपी का वनवास खत्म नही होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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