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ऐसा क्यों लग रहा कि 'आप' के 'अच्छे दिन' जाने वाले हैं?

    • आईचौक
    • Updated: 30 मार्च, 2017 06:55 PM
  • 30 मार्च, 2017 06:55 PM
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योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण का आप से बाहर होना तो महज ट्रेलर था, पिक्चर तो अब बन कर तैयार हुई लगती है. बस रिलीज होना बाकी है, खबरें तो यही जता रही हैं.

आम आदमी पार्टी के लिए अब तक का सबसे अच्छा दिन 10 फरवरी 2017 रहा. दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आये और मालूम हुआ कि आप 70 में से 67 सीटें अपने नाम कर चुकी है.

आप की ताजा मुश्किल है विज्ञापनों में खर्च 97 करोड़ रुपये की वसूली का फरमान, जिसके लिए दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने 30 दिन की डेडलाइन भी तय कर दी गयी है.

आप और एलजी की जंग नयी नहीं है, फिर भी ऐसा लगने लगा है जैसे आप के अच्छे दिन धीरे धीरे जाने लगे हैं.

सिर्फ दो साल बाद

पूर्व उप राज्यपाल नजीब जंग ने जाते जाते दिल्ली के मुख्यमंत्री की तारीफ जरूर की लेकिन उससे पहले शायद ही ऐसा कोई दिन बीता हो जब दोनों में बड़ी जंग न हुई हो. मौजूदा एलजी ने भी अब केजरीवाल को जोरदार झटका दिया है.

असल में केंद्र सरकार की ओर से बनायी गई तीन सदस्यों की कमेटी ने पाया था कि आप सरकार ने विज्ञापनों में सरकारी पैसे का दुरुपयोग किया है. आप सरकार द्वारा विज्ञापनों के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन का दोषी पाते हुए कमेटी ने ये रकम वसूले जाने की सिफारिश की. इसी सिफारिश पर एलजी अनिल बैजल ने मुख्य सचिव को वसूली का आदेश दिया है.

ओह, अच्छे दिन...

2015 के चुनाव से पहले भी दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराना आप नेता अरविंद केजरीवाल के लिए बड़ी उपलब्धि रही. लेकिन दिल्ली की 67 सीटों पर जीत तो आप के सफर में मील का पत्थर ही रहा.

दिल्ली के बाद आप नेताओं को गोवा और पंजाब में भी सरकार बना लेने की पूरी उम्मीद थी, लेकिन टूट गयी. वैसे देखा जाय तो गोवा और पंजाब दोनों के ही नतीजे लगभग एक जैसे ही हैं. ये पंजाब ही था जहां से आप को लोक सभा चुनाव में खाता खोलने का मौका मिला, गोवा में तो ऐसा कुछ था भी नहीं. केजरीवाल को गोवा में कोई खास...

आम आदमी पार्टी के लिए अब तक का सबसे अच्छा दिन 10 फरवरी 2017 रहा. दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आये और मालूम हुआ कि आप 70 में से 67 सीटें अपने नाम कर चुकी है.

आप की ताजा मुश्किल है विज्ञापनों में खर्च 97 करोड़ रुपये की वसूली का फरमान, जिसके लिए दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने 30 दिन की डेडलाइन भी तय कर दी गयी है.

आप और एलजी की जंग नयी नहीं है, फिर भी ऐसा लगने लगा है जैसे आप के अच्छे दिन धीरे धीरे जाने लगे हैं.

सिर्फ दो साल बाद

पूर्व उप राज्यपाल नजीब जंग ने जाते जाते दिल्ली के मुख्यमंत्री की तारीफ जरूर की लेकिन उससे पहले शायद ही ऐसा कोई दिन बीता हो जब दोनों में बड़ी जंग न हुई हो. मौजूदा एलजी ने भी अब केजरीवाल को जोरदार झटका दिया है.

असल में केंद्र सरकार की ओर से बनायी गई तीन सदस्यों की कमेटी ने पाया था कि आप सरकार ने विज्ञापनों में सरकारी पैसे का दुरुपयोग किया है. आप सरकार द्वारा विज्ञापनों के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन का दोषी पाते हुए कमेटी ने ये रकम वसूले जाने की सिफारिश की. इसी सिफारिश पर एलजी अनिल बैजल ने मुख्य सचिव को वसूली का आदेश दिया है.

ओह, अच्छे दिन...

2015 के चुनाव से पहले भी दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराना आप नेता अरविंद केजरीवाल के लिए बड़ी उपलब्धि रही. लेकिन दिल्ली की 67 सीटों पर जीत तो आप के सफर में मील का पत्थर ही रहा.

दिल्ली के बाद आप नेताओं को गोवा और पंजाब में भी सरकार बना लेने की पूरी उम्मीद थी, लेकिन टूट गयी. वैसे देखा जाय तो गोवा और पंजाब दोनों के ही नतीजे लगभग एक जैसे ही हैं. ये पंजाब ही था जहां से आप को लोक सभा चुनाव में खाता खोलने का मौका मिला, गोवा में तो ऐसा कुछ था भी नहीं. केजरीवाल को गोवा में कोई खास बैंडविथ नजर आई हो तो अलग बात है. आप नेताओं को संसद भेजना पंजाब चुनाव में उतरने का सबसे बड़ा आधार रहा होगा - क्योंकि लोक सभा में योगेंद्र यादव की हार के बाद केजरीवाल ने हरियाणा विधानसभा का चुनाव न लड़ने का फैसला किया था.

गोवा से बिलकुल अलग, पंजाब में आप की हार का मामला काफी दिलचस्प लगता है. पंजाब में बादल सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी और लगता था कि आप को उसका पूरा फायदा मिलेगा. आप से उसी कांग्रेस ने जीत छीन ली जिसे केजरीवाल ने दो साल पहले दिल्ली विधानसभा में घुसने तक न दिया. दिल्ली में कांग्रेस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर केजरीवाल सीएम की कुर्सी तक पहुंचे. पंजाब के लोगों को केजरीवाल की बात पर आखिर आधा अधूरा ही यकीन क्यों हुआ?

बादल सरकार से ऊबे लोगों ने आखिर भ्रष्टाचार के खिलाफ अकेले जंग लड़ने का दावा करने वाले की जगह बहुमत ने कांग्रेस को क्यों चुना? आप के लिए ये सबसे अहम सवाल है और जल्द से जल्द इसका जवाब नहीं ढूंढा गया तो दिल्ली में जो कुछ सुनने को मिल रहा है वो तो कहीं से भी अच्छा संकेत नहीं है.

टूट की कगार पर आप

योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण का आप से बाहर होना तो महज ट्रेलर था, पिक्चर तो अब बन कर तैयार हुई लगती है. बस रिलीज होना बाकी है, खबरें तो यही जता रही हैं.

आप की इस पिक्चर में सियासत का शायद ही कोई ऐसा रंग हो जो देखने को न मिले. इसमें कुछ सीन आप विधायकों पर लगे आरोपों के तो कई मंत्रियों और कुछ विधायकों के जेल जाने के होंगे. संसदीय सचिवों की नियुक्ति और नियुक्तियां रद्द होने पर आप का हंगामा भी काफी देर तक छाया रह सकता है.

बवाना से आप विधायक वेद प्रकाश का बीजेपी मे जाना तो एक और सीन का महज शॉट भर है, क्योंकि अब खबरें आ रही हैं कि 30 से ज्यादा विधायक पाला बदलने को तैयार बैठे हैं. खबर तो चार आप विधायकों के कांग्रेस नेताओं से खास मुलाकात की भी है.

ऐसे में जब एमसीडी चुनाव में कुछ ही दिन बचे हैं, आप के अंदर इतना असंतोष वाकई गंभीर चिंता की बात है. यही सब देख कर लगने लगा है जैसे आप के 'अच्छे दिन' धीरे धीरे जाने लगे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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