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क्या राजनीति में सफलता के लिए गाली गलौज में पारंगत होना भी जरुरी है ?

    • अशोक उपाध्याय
    • Updated: 10 अप्रिल, 2017 01:28 PM
  • 10 अप्रिल, 2017 01:28 PM
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क्या राजनीति में सफलता के लिए गाली गलौज में पारंगत होना भी जरुरी है? गायकवाड़, बग्गा एवं दयाशंकर - क्या युवा राजनेताओं के प्रेरणास्रोत हैं ?

एक बार एक टीवी डिबेट में मैंने अरविन्द केजरीवाल के साथ भारत के पहले मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह एवं पूर्व आईएएस अधिकारी अरुण भाटिया को बुलाया. उन दिनों अरविन्द केजरीवाल एक RTI एक्टिविस्ट थे एवं बहुत ही नपी तुली बात करते थे. उनकी भाषा संतुलित एवं मर्यादित हुआ करती थी. उस डिबेट में अरुण भाटिया ने वजाहत हबीबुल्लाह के लिए कई बार अमर्यादित शब्दों का इस्तेमाल किया. प्रोग्राम के समाप्ति पर आहत केजरीवाल ने मुझसे कहा कि आप अरुण भाटिया जैसे लोगों के साथ मुझे नहीं बुलाया करें. वहीं अरविन्द केजरीवाल जब अन्ना हज़ारे के साथ इंडिया अगेंस्ट करप्शन में शामिल हुए तो उनके शब्दों में काफी पैनापन आ गया. वो राजनेताओं पर धारदार वार करने लगे. पर, जब वो आम आदमी पार्टी बना के राजनीति में कूदे तो अपने वाद विवाद का स्तर राजनेताओं के समान, यानी की काफी निचले स्तर तक ले गए. किसी को कुछ भी कह देना, किसी पर कोई भी आरोप लगा देना लगभग उनकी फितरत बन गई.

दिल्ली विधानसभा के दो चुनावों में लगातार सफल रहे. दूसरी बार तो लगभग पुरे के पुरे विपक्ष का ही सफाया कर दिया. आखिर सम्मानित तरीके से बात करने वाले केजरीवाल क्यों गैर संसदीय शब्दों के इस्तेमाल से परहेज करना क्यों छोड़ दिए? क्या ये राजनीति की मजबूरी है? क्या सभ्य, सौम्य एवं सुसंस्कृत लोगों के लिए राजनीति में कोई जगह नहीं है? और अगर है भी तो क्या वो केवल हाशिये पर ही रह सकते हैं? हाल के तीन उदहरण से ऐसा ही लगता है की शब्दों की मर्यादा तोड़ देना, समय पड़ने पर मारपीट कर देना एवं गाली गलोज करना भी राजनीति में सफलता के कई आयामों या योग्यताओं में से से एक है.

शिवसेना सांसद रवींद्र गायकवाड़ ने एयर इंडिया के कर्मचारी के साथ मारपीट की. मारने के बाद उन्होंने अपने बयान में कहा, ‘मैंने उसे अपनी सैंडल से 25 बार मारा, क्योंकि वह बदतमीज़ी कर रहा था. मैं...

एक बार एक टीवी डिबेट में मैंने अरविन्द केजरीवाल के साथ भारत के पहले मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह एवं पूर्व आईएएस अधिकारी अरुण भाटिया को बुलाया. उन दिनों अरविन्द केजरीवाल एक RTI एक्टिविस्ट थे एवं बहुत ही नपी तुली बात करते थे. उनकी भाषा संतुलित एवं मर्यादित हुआ करती थी. उस डिबेट में अरुण भाटिया ने वजाहत हबीबुल्लाह के लिए कई बार अमर्यादित शब्दों का इस्तेमाल किया. प्रोग्राम के समाप्ति पर आहत केजरीवाल ने मुझसे कहा कि आप अरुण भाटिया जैसे लोगों के साथ मुझे नहीं बुलाया करें. वहीं अरविन्द केजरीवाल जब अन्ना हज़ारे के साथ इंडिया अगेंस्ट करप्शन में शामिल हुए तो उनके शब्दों में काफी पैनापन आ गया. वो राजनेताओं पर धारदार वार करने लगे. पर, जब वो आम आदमी पार्टी बना के राजनीति में कूदे तो अपने वाद विवाद का स्तर राजनेताओं के समान, यानी की काफी निचले स्तर तक ले गए. किसी को कुछ भी कह देना, किसी पर कोई भी आरोप लगा देना लगभग उनकी फितरत बन गई.

दिल्ली विधानसभा के दो चुनावों में लगातार सफल रहे. दूसरी बार तो लगभग पुरे के पुरे विपक्ष का ही सफाया कर दिया. आखिर सम्मानित तरीके से बात करने वाले केजरीवाल क्यों गैर संसदीय शब्दों के इस्तेमाल से परहेज करना क्यों छोड़ दिए? क्या ये राजनीति की मजबूरी है? क्या सभ्य, सौम्य एवं सुसंस्कृत लोगों के लिए राजनीति में कोई जगह नहीं है? और अगर है भी तो क्या वो केवल हाशिये पर ही रह सकते हैं? हाल के तीन उदहरण से ऐसा ही लगता है की शब्दों की मर्यादा तोड़ देना, समय पड़ने पर मारपीट कर देना एवं गाली गलोज करना भी राजनीति में सफलता के कई आयामों या योग्यताओं में से से एक है.

शिवसेना सांसद रवींद्र गायकवाड़ ने एयर इंडिया के कर्मचारी के साथ मारपीट की. मारने के बाद उन्होंने अपने बयान में कहा, ‘मैंने उसे अपनी सैंडल से 25 बार मारा, क्योंकि वह बदतमीज़ी कर रहा था. मैं सांसद हूं तो क्या गालियां खाऊं, मैं शिवसेना का सांसद हूं भाजपा का नहीं.’यानी की चोरी एवं सीनाजोरी भी. जब एयर इंडिया के साथ-साथ सारे विमान कंपनियों ने उनके उड़ान भरने पर रोक लगा दी तो उन्होंने अपने क्षेत्र में बंद भी करवाया. रवींद्र गायकवाड़ ने संसद में बोलते हुए खेद तो जताया लेकिन उन्होंने माफी नहीं मांगी. वहीं शिवसेना के नेता संजय राउत ने धमकी दी कि बैन न हटाए जाने पर शिवसेना मुंबई में उड़ानों के आवागमन पर रोक लगा देगी.

लोकसभा में सदन की कार्यवाही जब स्थगित हुई तो शिवसेना सांसदों ने नागरिक उड्डयन मंत्री अशोक गजपति राजू के खिलाफ नारे लगाए. इस दौरान दोनों पक्षों में धक्का-मुक्की तक की नौबत आ गई. स्थिति इतनी ख़राब हुई की राजनाथ सिंह और स्मृति ईरानी को बीच-बचाव करना पड़ा. आखिर सरकार को झुकना पड़ा. गायकवाड़ के खिलाफ लगा प्रतिबन्ध हटा लिया गया. पुरे घटनाक्रम का निचोड़ यह है की इस सांसद को कुछ तकलीफ तो हुई पर आज उनका राजनितिक कद पार्टी एवं देश में बहुत बढ़ गया. वो एक गुमनाम सांसद थे आज हर कोई उनको जानने लगा. अर्थात उनके व्यवहार के कारण उनको सजा मिलनी चाहिए पर पुरस्कार मिला.

पिछले महीने दिल्ली प्रदेश भाजपा ने तेजिंदर पाल सिंह बग्गा को दिल्ली प्रदेश इकाई में पार्टी का प्रवक्ता नियुक्त किया है. ये भगत सिंह क्रान्ति सेना नाम का संगठन चलाते हैं. 2011 में जाने माने अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कश्मीर में जनमत संग्रह करने का एक विवादस्पद बयान दिया था.

इसके बाद बग्गा और उनके साथियों ने सुप्रीम कोर्ट परिसर में घुसकर प्रशांत भूषण के कमरे में उनकी पिटाई की तथा उनके कपड़े फाड़े. इस पिटाई के बाद बग्गा ने ट्विटर पर इसकी जिम्मेदारी ली थी और कहा था, "वो मेरे देश को तोड़ना चाह रहा है, मैंने उसके सिर को तोड़ने की कोशिश की." प्रशांत भूषण पर हमले के अलावा बग्गा और उनके संगठन जानी मानी लेखिका अरुंधति राय, स्वामी अग्निवेश पर भी हमले की कोशिश कर चुके हैं.

इनके इन 'पराक्रमी कार्यों' के लिए भाजपा ने उनको पुरस्कार स्वरूप दिल्ली प्रदेश के प्रवक्ता पद पर बैठा दिया. ये अब पार्टी के एक सम्मानित चेहरे बन गए हैं. उनके ट्विटर प्रोफाइल पर इनके दो फोटो हैं, एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एवं दूसरा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ.

2016 के जुलाई महीने में तब के उत्तर प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने बसपा प्रमुख की तुलना एक वैश्या से की और कहा कि एक वेश्या भी किसी से पैसा ले लेती है तो कमिटमेंट पूरा करती है लेकिन मायावती किसी को 1 करोड़ में टिकट दे भी दें और 2 करोड़ देने वाला मिल जाए तो उससे टिकट वापस लेकर ज्यादा पैसा देने वाले को दे देती हैं. उनके इस बयान से भाजपा को काफी शर्मसार होना पड़ा. राज्यसभा में पार्टी के नेता अरूण जेटली ने कहा की मैं व्यक्तिगत रूप से आहत हूं. दयाशंकर सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया.

वो फरार हो गए एवं कुछ दिनों के बाद उत्तर प्रदेश के पुलिस के द्वारा पकडे गए. हालांकि भाजपा ने प्रत्यक्ष रूप से इनको पार्टी से निकाल दिया था पर परोक्ष रूप से उनके साथ खड़ी रही. तीन महीने के अंदर उनकी पत्नी स्वाति सिंह को प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा का अध्यक्ष बना दिया गया. विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उनको टिकट दिया और चुनाव जितने के बाद आज वो प्रदेश में मंत्री हैं. यही नहीं दयाशंकर सिंह को तो अब पार्टी ने पुनः अपने साथ ले लिया है. उनकी घर वापसी हो चुकी है.

कुछ समय के लिए, दिखावे के लिए ही सही, भाजपा आहत थी. पर आज वो पार्टी के एक कद्दावर एवं सम्मानित नेता हैं. मायावती प्रकरण के बाद उनका राजनितिक कद अप्रत्यासित रूप से बढ़ा. ऐसा नहीं हैं की केवल भाजपा एवं शिव सेना में ही गाली गलोज एवं मार पिट कर राजनितिक कद बढ़ने की परम्परा रही है. ये भारतीय राजनीति का ऐसा मंत्र है जो लगभर हर राजनितिक पार्टी में सफलता पूर्वक काम करता है.

भोला पांडेय नामक एक व्यक्ति, इंदिरा गांधी के गिरफ्तारी के विरोध में विमान का ही अपहरण कर लिया. परिणाम वो पार्टी के विधायक एवं राष्ट्रीय सचिव हो गए. एक टोल प्लाजा पर रोके जाने पर बंदूक तानने की घटना की वजह से विवादों के घेरे में रहे विट्ठल भाई रातो रात राष्ट्रीय पटल पर आ गए. तब वो कांग्रेस के सांसद थे एवं भाजपा ने उनकों गुंडा कहा था. आप वो भाजपा के सम्मानित सांसद हैं.

कुछ अपवाद को छोड़ कर भारतीय राजनीति में सफल होने के लिए कुछ जरुरी परिस्थितियां जरुरी हैं जैसे राजनितिक परिवार से आना, पूंजीपति या धनाढ्य होना या आपराधिक पृष्‍ठभूमि होना. पर इनके अलावा अगर कोई गाली गलोज, मार-पीट एवं अमर्यादित भाषा के इस्तेमाल में पारंगत है तो उसके लिए भी अवसर की कमी नहीं है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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