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तो आखिर आ गए अच्छे दिन ! पेट्रोल-डीजल खरीदने वाले बने रईस

    • शुभम गुप्ता
    • Updated: 16 सितम्बर, 2017 08:23 PM
  • 16 सितम्बर, 2017 08:23 PM
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अगर सरकार अपने किये हुए वादों को भूल गई है तो कम से कम एक बार उन्हें लोकसभा के विज्ञापनों को ज़रुर देखना चाहिये. अपने इंटरव्यू में दिखाए गए विज़न को एक बार फिर से सुनना चाहिए.

तो मित्रों आखिरकार देश में अच्छे दिन आ गए हैं. देश के केंद्रीय पर्यटन राज्यमंत्री केजे अल्फोंस की मानें तो जो भी शख्स पेट्रोल–डीजल खरीद रहा है वो कोई गरीब नहीं... वो भूखा नहीं मर रहा... उससे तो सरकार टैक्स लेगी ही लेगी. यानी कि आपको पता भी नहीं चला और आप रईस बन गए. देश के केंद्रीय पर्यटन राज्यमंत्री केजे अल्फोंस से जब पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों को लेकर सवाल पूछा गया तो उनका जवाब था– “पेट्रोल और डीजल खरीदने वाले लोग भूख से नहीं मर रहे. जो लोग पेट्रोल और डीजल खरीदते हैं, उन्हें टैक्स देना ही होगा. पेट्रोल और डीजल कौन खरीदता है? जिनके पास पैसा होता है.. कार या बाईक होती है. यानी की वो आदमी भूख से नहीं मर रहा.”

ये कहना है मोदी सरकार के मंत्री का. यानी 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले गरीब आदमी ही पेट्रोल-डीजल खरीद रहा था. ज़रा ये भी बताईये कि इस पोस्टर का क्या मतलब? जैसे 15 लाख की बात को भाजपा अध्यक्ष जुमला बताते हैं. पेट्रोल और डीजल के दामों को कम करने के वादे को भी जुमला बता दीजिये. बोल दीजिये... चुनावों में तो ऐसी बातें होती रहती हैं. 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी का नारा देश के लगभग हर शहर के हर चौराहे पर दिखाई देता था. नारा था- ‘बहुत हुई जनता पर पेट्रोल-डीजल की मार, अबकी बार मोदी सरकार.' भाजपा को वोट दें. देश ने भाजपा को वोट भी दिया. इतना वोट की पूर्ण बहुमत की सरकार भी बन गई.

क्या हुुआ तेरा वादा?

मगर मोदी सरकार को अब तीन साल बीत चुके हैं. कच्चे तेल की कीमत मनमोहन सरकार की तुलना में आधी हो गई है. लेकिन मोदी सरकार में लगातार पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते ही जा रहे हैं. कुछ लोग कहेंगे की पेट्रेल-डीज़ल के दाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तय होते हैं. जब मोदी सरकार को भी ये पता था...

तो मित्रों आखिरकार देश में अच्छे दिन आ गए हैं. देश के केंद्रीय पर्यटन राज्यमंत्री केजे अल्फोंस की मानें तो जो भी शख्स पेट्रोल–डीजल खरीद रहा है वो कोई गरीब नहीं... वो भूखा नहीं मर रहा... उससे तो सरकार टैक्स लेगी ही लेगी. यानी कि आपको पता भी नहीं चला और आप रईस बन गए. देश के केंद्रीय पर्यटन राज्यमंत्री केजे अल्फोंस से जब पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों को लेकर सवाल पूछा गया तो उनका जवाब था– “पेट्रोल और डीजल खरीदने वाले लोग भूख से नहीं मर रहे. जो लोग पेट्रोल और डीजल खरीदते हैं, उन्हें टैक्स देना ही होगा. पेट्रोल और डीजल कौन खरीदता है? जिनके पास पैसा होता है.. कार या बाईक होती है. यानी की वो आदमी भूख से नहीं मर रहा.”

ये कहना है मोदी सरकार के मंत्री का. यानी 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले गरीब आदमी ही पेट्रोल-डीजल खरीद रहा था. ज़रा ये भी बताईये कि इस पोस्टर का क्या मतलब? जैसे 15 लाख की बात को भाजपा अध्यक्ष जुमला बताते हैं. पेट्रोल और डीजल के दामों को कम करने के वादे को भी जुमला बता दीजिये. बोल दीजिये... चुनावों में तो ऐसी बातें होती रहती हैं. 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी का नारा देश के लगभग हर शहर के हर चौराहे पर दिखाई देता था. नारा था- ‘बहुत हुई जनता पर पेट्रोल-डीजल की मार, अबकी बार मोदी सरकार.' भाजपा को वोट दें. देश ने भाजपा को वोट भी दिया. इतना वोट की पूर्ण बहुमत की सरकार भी बन गई.

क्या हुुआ तेरा वादा?

मगर मोदी सरकार को अब तीन साल बीत चुके हैं. कच्चे तेल की कीमत मनमोहन सरकार की तुलना में आधी हो गई है. लेकिन मोदी सरकार में लगातार पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते ही जा रहे हैं. कुछ लोग कहेंगे की पेट्रेल-डीज़ल के दाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तय होते हैं. जब मोदी सरकार को भी ये पता था तो फिर क्यों जनता से वादा किया गया?

पेट्रोल और डीजल की कीमत साल 2014 के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें तीन साल पहले के मुकाबले आधी रह गई हैं. बावजूद इसके देश में पेट्रोल, डीजल की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है.

मुंबई में तो पेट्रोल के दाम करीब 80 रुपये प्रति लीटर पहुंच गए. मोदी सरकार के आने के बाद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 53 फीसदी तक कम हो गए हैं. लेकिन पेट्रोल डीजल के दाम घटने के बजाय बेतहाशा बढ़ गए हैं. इसके पीछे असली वजह यह है की तीन सालों के दौरान सरकार ने पेट्रोल, डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 120 गुना बढ़ा दी है. सरकार का कहना है वो तो टैक्स किसी भी किमत पर वसुल करेगी. चाहे विपक्ष हंगामा करें या फिर पत्रकार.

किसानों के साथ कर्ज माफी को लेकर मजाक-

इन सब के बीच लोकसभा चुनाव में आपने कुछ ऐसे भी पोस्टर भी देखें होंगे जिसमें किसानों की बदहाली को बताया गया. ये विज्ञापन आपको किसी टीवी चैनल से लेकर किसी एंटरटेनमेंट चैनल तक दिखाई दिये होंगे. नारा था –‘बहुत हुआ किसान पर अत्याचार, अबकी बार मोदी सरकार.' किसानों को भी लगा चलो अब कुछ अच्छा होगा. अब आएंगे अच्छे दिन. कर्जा माफ होगा.

और कितने जुमले बचे हैं मोदी जी

मित्रों कर्जा माफ भी हुआ... मगर आंकड़े देखेंगे तो आप हैरान रह जाएंगे कि आखिर कितना कर्जा माफ हुआ? उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने फसल ऋण योजना के तहत किसी किसान के 9 पैसे तो किसी के 84 पैसे का क़र्ज़ माफ़ किया है. इस माफी के बाद कई लोगों ने इस पर चुटकी ली. लोगों का कहना था कि सरकार किसानों की आत्महत्याओं को रोक रही है. क्योंकि इतने में तो ना को ज़हर की बोतल आती है और ना ही फांसी लगाने के लिये रस्सी.

किसानों की गरीबी का ऐसा मजाक!

खैर ये मज़ाक की बात नहीं है. जिस किसान को लेकर भाजपा हमेशा ही अपना इमोशनल कार्ड खेलती है. जय जवान... जय किसान के नारे लगाती है... ऐसे में वो कैसे अन्नदाताओं के साथ इस तरह का मजाक कर सकती है.

अगर सरकार अपने किये हुए वादों को भूल गई है तो कम से कम एक बार उन्हें लोकसभा के विज्ञापनों को ज़रुर देखना चाहिये. अपने इंटरव्यू में दिखाए गए विज़न को एक बार फिर से सुनना चाहिए. जिसमें उन्होंने बताया था कि कैसे पेट्रोल के दाम कम किये जा सकते है और कैसे किसानों का लाखों रु. का कर्ज माफ.

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क्या मोदी राज में पेट्रोल-डीजल कभी सस्ता नहीं होगा ?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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