• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

एक परिवार एक टिकट कितना कारगर ?

    • राकेश चंद्र
    • Updated: 10 जनवरी, 2017 05:48 PM
  • 10 जनवरी, 2017 05:48 PM
offline
भारतीय राजनीति में एक परिवार एक टिकट का फॉर्मूला क्या कभी लग पाएगा? फिलहाल, इतिहास देखें तो ऐसा हुआ नहीं है कि भारतीय राजनैतिक परिवार सत्ता छोड़ने का साहस रखते हों.

एक परिवार एक टिकट पर प्रधानमंत्री से लेकर अमित शाह व उत्तराखंड में पीसीसी अध्यक्ष किशोर उपाधयाय भी कई बार कह चुके हैं कि पार्टी कार्यकर्ता (खासकर मंत्री) अपने रिश्तेदारों, भाई, भतीजों, बेटे, बेटियों के टिकट के लिए दवाब न बनाएं. लेकिन कितना कठिन है इसे लागू करना ये सभी जानते हैं. उत्तर प्रदेश में यदुवंश की कथा तो जगजाहिर थी ही, पंजाब में भी पिता पुत्र व रिश्तेदारों की सरकार के लिए जाना जाता हैं. परंतु जिस तरह से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, व  पंजाब में बीजेपी व कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता अपने पुत्र-पुत्रियों बहू के लिए लाइन में लगे हुए हैं उससे लगता है कि पार्टियों के बड़े नेता किस कदर परिवारवाद को बढ़ाना चाहते हैं. सवाल उठता है कि वो नेता कहाँ जाएं जिनके माता-पिता राजनीति में नहीं हैं, सब तो ऊपर ऊपर ही बट जाता है.

 क्या भारतीय राजनीति परिवारवाद से ऊपर उठ पाएगी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो शायद बीजेपी में एक परिवार एक टिकट को लागू कर सकते हैं, लेकिन क्या अन्य पार्टियां यह कर पाएंगी? निकट भविष्य में तो इसके आसार नहीं दिखते.

ये भी पढ़ें- राजनीतिक सुधार के संकेत?

उत्तराखंड में कौन कौन हैं लाइन में-

उत्तराखंड में हरीश रावत चाहते हैं की उनके पुत्र एवं पुत्री को टिकट मिल जाए,  तो खंडूरी की पुत्री भी टिकट चाहती हैं, इंदिरा ह्रदयेश व यशपाल आर्य भी यही चाहते हैं. वहीं, बीजेपी से सतपाल महाराज भी बीवी अमृता रावत के लिए टिकट की...

एक परिवार एक टिकट पर प्रधानमंत्री से लेकर अमित शाह व उत्तराखंड में पीसीसी अध्यक्ष किशोर उपाधयाय भी कई बार कह चुके हैं कि पार्टी कार्यकर्ता (खासकर मंत्री) अपने रिश्तेदारों, भाई, भतीजों, बेटे, बेटियों के टिकट के लिए दवाब न बनाएं. लेकिन कितना कठिन है इसे लागू करना ये सभी जानते हैं. उत्तर प्रदेश में यदुवंश की कथा तो जगजाहिर थी ही, पंजाब में भी पिता पुत्र व रिश्तेदारों की सरकार के लिए जाना जाता हैं. परंतु जिस तरह से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, व  पंजाब में बीजेपी व कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता अपने पुत्र-पुत्रियों बहू के लिए लाइन में लगे हुए हैं उससे लगता है कि पार्टियों के बड़े नेता किस कदर परिवारवाद को बढ़ाना चाहते हैं. सवाल उठता है कि वो नेता कहाँ जाएं जिनके माता-पिता राजनीति में नहीं हैं, सब तो ऊपर ऊपर ही बट जाता है.

 क्या भारतीय राजनीति परिवारवाद से ऊपर उठ पाएगी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो शायद बीजेपी में एक परिवार एक टिकट को लागू कर सकते हैं, लेकिन क्या अन्य पार्टियां यह कर पाएंगी? निकट भविष्य में तो इसके आसार नहीं दिखते.

ये भी पढ़ें- राजनीतिक सुधार के संकेत?

उत्तराखंड में कौन कौन हैं लाइन में-

उत्तराखंड में हरीश रावत चाहते हैं की उनके पुत्र एवं पुत्री को टिकट मिल जाए,  तो खंडूरी की पुत्री भी टिकट चाहती हैं, इंदिरा ह्रदयेश व यशपाल आर्य भी यही चाहते हैं. वहीं, बीजेपी से सतपाल महाराज भी बीवी अमृता रावत के लिए टिकट की दावेदारी कर रहे हैं.

उत्तर प्रदेश में कौन कौन हैं लाइन में-

देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह बेटे पंकज सिंह के लिए लखनऊ या ग़ज़िआबाद से टिकट चाहते हैं. तो इसी प्रकार कलराज मिश्र भी अपने पुत्र अमित के लिए लाइन में हैं. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रामप्रकाश गुप्ता के पुत्र डॉ राजीव लोचन भी लखनऊ पश्चिम से चुनाव लड़ना चाहते हैं. कल्याण सिंह (पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान में राजस्थान के राज्यपाल) ने भी अपने पोते की अर्जी लाइन में लगा रखी है, हाल ही में बीजेपी में शामिल हुई रीता बहुगुणा का बेटा अमित भी लाइन में है, सांसद बृजभूषण के बेटे प्रतीक भूषण भी टिकट की आस लगाए बैठे हैं. सांसद हुकुम सिंह की बेटी इसी सपने को देख रही हैं. पैट्रिक फ्रेंच के अनुसार भारत में पार्टियों में वंशवाद की कहानी कुछ इस प्रकार है...

ये भी पढ़ें- ये यूपी है भईया, यहां कैसे कोड ऑफ कंडक्ट?

- एनसीपी − 77.8 प्रतिशत 9 में से 7- बीजेडी − 42.9  प्रतिशत 14 में से 6- कांग्रेस − 37.5 प्रतिशत 208 में से 78- सपा − 27.3 प्रतिशत 22 में से 6- बीजेपी − 19 प्रतिशत 116 में से 22

कुछ खास परिवार जिन्होंने भारतीय राजनीति को वंशवाद में परिवर्तित किया - कांग्रेस में गाँधी परिवार, हरियाणा में देवीलाल परिवार, पंजाब में बादल परिवार, दक्षिण में करूणानिधि का परिवार, उत्तर प्रदेश में यादव परिवार, उत्तराखंड में बहुगुणा परिवार, मध्य प्रदेश में सिंधिया परिवार, बिहार में लालू परिवार, झारखण्ड में सोरेन परिवार, ऐसे कई परिवार हैं जो किसी न किसी प्रकार से देश की राजनीति में अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲