• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

भारत को अमेरिका से है ये पांच बातें सीखने की जरूरत...

    • विनीत कुमार
    • Updated: 11 सितम्बर, 2015 09:23 AM
  • 11 सितम्बर, 2015 09:23 AM
offline
9/11 की घटना के बाद अमेरिका अपने यहां आतंक का सिर कुचलने में कामयाब रहा. अमेरिका ही क्यों कई दूसरे पश्चिमी देशों ने भी आतंक के खिलाफ ठोस कदम उठाए. लेकिन हम चूक गए. हम 9/11 से पहले भी आंतक के साये में थे और आज भी हैं....

11 सितंबर, 2001 की सुबह वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर जब विमान टकराया तो द्वितीय विश्व युद्ध की पर्ल हार्बर की घटना के बाद अमेरिका पर एक तरह से पहला सबसे बड़ा हमला था. लेकिन 9/11 के 14 वर्ष बाद जरूरी है कि हम एक बार फिर उन बीते हुए लम्हों से हो कर गुजरे.

गौर करें कि कैसे अमेरिका उस घटना के बाद कम से कम अपने यहां आतंक का सिर कुचलने में कामयाब रहा. अमेरिका ही क्यों कई दूसरे पश्चिमी देशों ने भी आतंक के खिलाफ ठोस कदम उठाए. लेकिन हम चूक गए. हम क्यों 9/11 से पहले भी आंतक के साये में थे और क्यों आज भी हैं. कहां ऐसी कमी रह गई जिसके कारण 9/11 के दो महीने बाद हमारे यहां संसद पर हमला हो जाता है. पिछले 14 सालों में कभी मुंबई के लोकल ट्रेनों में बम धमाके होते हैं तो कभी वारणसी, मालेगांव, अहमदाबाद, बेंगलुरू और दिल्ली में बम फटते हैं. फिर 2008 का मुंबई अटैक कौन भूल सकता है. चलिए, नजर डालते हैं कि कैसे अमेरिका ने 9/11 के बाद खुद को तैयार किया और हम कहां पिछड़ गए...

1. यूएसए पैट्रियट एक्ट (2001): यह कानून अमेरिका में हुए आतंकी हमले के महज डेढ़ महीने के अंदर अस्तित्व में आया. इसके तहत अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां बिना आपको जानकारी दिए आपके घर और बिजनेस की छानबीन कर सकती हैं. इसने एफबीआई (FBI) को और अधिकार दिए. FBI नेशनल सेक्यूरिटी लेटर्स जारी कर सकती है जिसके लिए उसे किसी अदालती आदेश की जरूरत नहीं है. उसे बस यह साबित करने की जरूरत होगी कि फलां मामला आतंकवाद से जुड़ा है और इसी आधाक पर FBI किसी भी बैंक, इंटरनेट प्रोवाइडर या किसी और संस्था को आपकी निजी जानकारी उसे सौंपने के लिए बाध्य कर सकती है.

भारत में भी टाडा और पोटा जैसे कानून बनाए गए जहां पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को कई अधिकार दिए. लेकिन विरोध और राजनीति के बीच यह कानून अपने असल मकसद को हासिल नहीं सके.

2. डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सेक्यूरिटी पॉलिसी: इसके तहत अमेरिकी सुरक्षाकर्मी बाहरी देशों से आ रहे किसी भी अमेरिकी नागरिकों के...

11 सितंबर, 2001 की सुबह वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर जब विमान टकराया तो द्वितीय विश्व युद्ध की पर्ल हार्बर की घटना के बाद अमेरिका पर एक तरह से पहला सबसे बड़ा हमला था. लेकिन 9/11 के 14 वर्ष बाद जरूरी है कि हम एक बार फिर उन बीते हुए लम्हों से हो कर गुजरे.

गौर करें कि कैसे अमेरिका उस घटना के बाद कम से कम अपने यहां आतंक का सिर कुचलने में कामयाब रहा. अमेरिका ही क्यों कई दूसरे पश्चिमी देशों ने भी आतंक के खिलाफ ठोस कदम उठाए. लेकिन हम चूक गए. हम क्यों 9/11 से पहले भी आंतक के साये में थे और क्यों आज भी हैं. कहां ऐसी कमी रह गई जिसके कारण 9/11 के दो महीने बाद हमारे यहां संसद पर हमला हो जाता है. पिछले 14 सालों में कभी मुंबई के लोकल ट्रेनों में बम धमाके होते हैं तो कभी वारणसी, मालेगांव, अहमदाबाद, बेंगलुरू और दिल्ली में बम फटते हैं. फिर 2008 का मुंबई अटैक कौन भूल सकता है. चलिए, नजर डालते हैं कि कैसे अमेरिका ने 9/11 के बाद खुद को तैयार किया और हम कहां पिछड़ गए...

1. यूएसए पैट्रियट एक्ट (2001): यह कानून अमेरिका में हुए आतंकी हमले के महज डेढ़ महीने के अंदर अस्तित्व में आया. इसके तहत अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां बिना आपको जानकारी दिए आपके घर और बिजनेस की छानबीन कर सकती हैं. इसने एफबीआई (FBI) को और अधिकार दिए. FBI नेशनल सेक्यूरिटी लेटर्स जारी कर सकती है जिसके लिए उसे किसी अदालती आदेश की जरूरत नहीं है. उसे बस यह साबित करने की जरूरत होगी कि फलां मामला आतंकवाद से जुड़ा है और इसी आधाक पर FBI किसी भी बैंक, इंटरनेट प्रोवाइडर या किसी और संस्था को आपकी निजी जानकारी उसे सौंपने के लिए बाध्य कर सकती है.

भारत में भी टाडा और पोटा जैसे कानून बनाए गए जहां पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को कई अधिकार दिए. लेकिन विरोध और राजनीति के बीच यह कानून अपने असल मकसद को हासिल नहीं सके.

2. डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सेक्यूरिटी पॉलिसी: इसके तहत अमेरिकी सुरक्षाकर्मी बाहरी देशों से आ रहे किसी भी अमेरिकी नागरिकों के दस्तावेज, उसके इलेक्ट्रोनिक उपकरणों को खंगाल सकते हैं. साथ ही एक ऐसी प्रशिक्षित टीम तैयार की गई जिसे पता है कि आतंकी हमलों जैसी स्थिति में तत्काल क्या कदम उठाए जाएं और उससे कैसे निपटा जाए. दरअसल, अमेरिका ने आतंकी हमले से सीख लेते हुए वह सभी कदम उठाए जो ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जरूरी थे. कई बार सुरक्षा मामलों में ज्यादा कड़ा रूख अपनाने के लिए अमेरिका की आलोचना भी हुई. लेकिन वहां की सरकार का एजेंडा साफ था. उन्होंने आम लोगों की सुरक्षा को ज्यादा महत्व दिया. यही कारण है कि जरा भी शक होने पर वहां के सुरक्षाकर्मी लोगों के कपड़े उतरवाने से भी नहीं हिचकते.

हमारे यहां अक्सर ऐसी बातों को कभी अल्पसंख्यक और गैर-अल्पसंख्यकों तो कभी आत्मसम्मान के विवाद से जोड़ दिया जाता है. लेकिन अमेरिकी सरकार ने ऐसे विवादों पर ध्यान नहीं दिया.

3. नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर: 9/11 हमले के बाद अमेरिका समेत यूरोपीय देशों ने अपनी सुरक्षा प्रणाली मजबूत की. अमेरिका ने नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर (एनसीटीसी) का गठन किया. मुंबई में 2008 में हुए आतंकी हमले के बाद भारत में भी ऐसी व्यवस्था अपनाए जाने की बात हो रही है लेकिन यहां राजनीति हावी है.

भारतीय संविधान के अनुसार कानून व्यवस्था राज्य की जिम्मेदारी है. इसलिए, कुछ लोग एनसीटीसी की कल्पना को राज्य के अधिकारों के हनन से जोड़ कर देखते हैं तो कुछ इसके पक्ष में हैं. नतीजतन, मामल लटका पड़ा है.

4. आतंक के खिलाफ लड़ाई में आम लोगों को किया शामिल: 9/11 के बाद वहां के नेताओं से लेकर आम लोगों को आतंक के खिलाफ लड़ाई के लिए साथ लाने का काम अमेरिकी प्रशासन ने किया और साबित किया कि कड़े नियमों का पालन किया जा सकता है. कई यूनिवर्सिटी के कोर्स में भी बदलाव किए गए. आतंक से निपटने, उनकी पहचान और आतंकियों का मनोविज्ञान समझने से संबंधित कोर्स शामिल हुए. छात्रों को इससे जुड़ी जानकारी देने का काम शुरू हुआ.

भारत में हम आतंक पर इतनी बातें करते तो हैं लेकिन ऐसे ठोस कदम उठाने में हम नाकाम रहे.

5. प्रशिक्षत लोगों के जिम्मे सुरक्षा व्यवस्था: हमारे सामने आतंकवाद की बड़ी चुनौती है. इसके लिए जरूरी है कि स्कूल, सड़क, शॉपिंग मॉल, सिनेमा हॉल, मेट्रो स्टेशन जैसे सार्वजनिक स्थलों पर सुरक्षा सबसे ज्यादा कड़ी हो. लेकिन अफसोस कि ज्यादातर जगहों पर अप्रशिक्षित लोग ही हमारी सुरक्षा में जुटे हैं.

हमारे देश में सुरक्षा ऐसे लोगों के हाथों में है जिन्हें आतंकवादी हमले के दौरान एक्‍शन के लिए पर्याप्‍त ट्रेनिंग नहीं है.

एक रिपोर्ट के अनुसार 9/11 के बाद से अमेरिका ने 20 से ज्यादा बड़े आतंकी हमलों को नाकाम करने में सफलता पाई है. न्यूयॉर्क सिटी के पुलिस चीफ बिल ब्रैटन ने इसे स्वीकार किया है. ब्रैटन यह भी मानते हैं कि हाल के दिनों में आईएसआईएस की बढ़ती सक्रियता के कारण यह खतर और बढ़ा है लेकिन सुरक्षा एजेंसियों ने भी उस हिसाब से खुद को तैयार रखा है. हालांकि यह भी सही है कि अमेरिका को छोड़ दूसरे देशों जैसे ब्रिटेन, फ्रांस आदि में आतंकी हमले जरूर हुए है लेकिन इनकी संख्या ऊंगलियों पर गिनी जा सकती है.

अमेरिका सहित दूसरे पश्चिमी देशों के उदाहरण दिखाते हैं कि आतंक को लेकर हमें अपने घरों में सुरक्षा इंतजामों को और कड़ाई से लागू करना होगा. इस दुनिया में आतंकवाद 11 सितंबर 2001 से पहले भी था. विमानों को इससे पहले भी हाइजैक किया जाता रहा है. दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में विमान को मुक्त कराने को लेकर कमांडो ऑपरेशन भी हुए तो कुछ एक दफा आतंकी अपनी बात भी मनवाने में कामयाब रहे. लेकिन 11 सितंबर ने एक लकीर खींच दी. अब जब भी भविष्य में आतंकवाद की बात होगी उसे 11 सितंबर के इस पार या उस पार के नजरिये से देखना होगा. बेहतर होगा कि हम कम से कम आतंक के मामले में राजनीति को जगह न दें और तभी ऐसे नापाक हमलों को रोकने में भी कामयाब होंगे.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲