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निर्भया के नाबालिग दुष्‍कर्मी को तो रिहा होना ही था

    • आईचौक
    • Updated: 21 दिसम्बर, 2015 04:11 PM
  • 21 दिसम्बर, 2015 04:11 PM
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अगर समय रहते सख्त प्रावधानों के साथ अगर कानून में संशोधन हो चुका होता तो नाबालिग अपराधी भी बाकी चार बलात्कारियों की तरह ताउम्र जेल में ही पड़ा होता क्योंकि उसे भी वयस्कों वाली सजा मिली होती.

2012 के 16 दिसंबर रेप केस में एक हमलावर ने खुदकुशी कर ली. चार जेल की सलाखों के पीछे हैं - और एक कानूनी सुधार प्रक्रिया में पास होकर आजाद हो चुका है.

सड़क पर गुस्सा

तीन साल बाद एक बार फिर लोग सड़क पर उतर आए हैं. जंतर मंतर से लेकर इंडिया गेट तक प्रदर्शन कर रहे हैं. लोग ज्योति के मां-बाप की आवाज को बुलंद कर रहे हैं. बार बार हिरासत में लिए और छोड़े जा रहे हैं. मां कहती है कि उसे शर्मिंदगी नहीं गुस्सा है - और वो चाहती है कि लोग बेटी को ज्योति के नाम से जानें, जिसे अब तक निर्भया और दामिनी जैसे नामों से संबोधित किया जाता रहा.

ताकि बदले कानून

नाबालिग अपराधी को रिहा किए जाने से खफा ज्योति की मां आशा देवी ने कहा, "मुझे मालूम था ऐसे ही कोई फैसला आने वाला है. महिला सुरक्षा के लिए कोई कुछ नहीं करेगा. लेकिन हमारी लड़ाई जारी रहेगी. अब हम कानून बदलवाने की लड़ाई लड़ेंगे."

फिर क्या होता

किशोर न्याय अधिनियम, 2000 के तहत पहले जघन्य अपराध में दोषी पाये जाने के बावजूद अगर किशोर 18 साल का हो जाता तो उसे रिहा कर दिया जाने का प्रावधान था. 2006 में इस कानून में संशोधन के बाद प्रावधान हुआ कि अगर कोई किशोर ऐसे अपराध में दोषी पाया जाता है तो उसे तीन साल की सजा काटनी ही होगी, भले ही उसकी उम्र 18 साल हो चुकी हो. पुरानी व्यवस्था के तहत तो ये नाबालिग अपराधी भी दो साल पहले छूट चुका होता.

हाल ही में बीजेडी सांसद वैजयंत जे पांडा ने राज्य सभा के अधिकारों की समीक्षा की बात कही थी. एक लेख में पांडा ने तर्क दिया था कि लोगों द्वारा चुन कर सत्ता में आई एक लोकप्रिय सरकार भी राज्य सभा पहुंच कर बेबस हो जा रही है, बावजूद इसके कि वहां जनता द्वारा खारिज दल का बहुमत बरकरार है. इस बात के लिए पांडा को नोटिस भी जारी किया जा चुका है.

खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी संसद में संविधान दिवस पर चर्चा के दौरान ऐसी मजबूरी का जिक्र किया था. मोदी ने कहा था, "आज हम एकआध कानून बनाते...

2012 के 16 दिसंबर रेप केस में एक हमलावर ने खुदकुशी कर ली. चार जेल की सलाखों के पीछे हैं - और एक कानूनी सुधार प्रक्रिया में पास होकर आजाद हो चुका है.

सड़क पर गुस्सा

तीन साल बाद एक बार फिर लोग सड़क पर उतर आए हैं. जंतर मंतर से लेकर इंडिया गेट तक प्रदर्शन कर रहे हैं. लोग ज्योति के मां-बाप की आवाज को बुलंद कर रहे हैं. बार बार हिरासत में लिए और छोड़े जा रहे हैं. मां कहती है कि उसे शर्मिंदगी नहीं गुस्सा है - और वो चाहती है कि लोग बेटी को ज्योति के नाम से जानें, जिसे अब तक निर्भया और दामिनी जैसे नामों से संबोधित किया जाता रहा.

ताकि बदले कानून

नाबालिग अपराधी को रिहा किए जाने से खफा ज्योति की मां आशा देवी ने कहा, "मुझे मालूम था ऐसे ही कोई फैसला आने वाला है. महिला सुरक्षा के लिए कोई कुछ नहीं करेगा. लेकिन हमारी लड़ाई जारी रहेगी. अब हम कानून बदलवाने की लड़ाई लड़ेंगे."

फिर क्या होता

किशोर न्याय अधिनियम, 2000 के तहत पहले जघन्य अपराध में दोषी पाये जाने के बावजूद अगर किशोर 18 साल का हो जाता तो उसे रिहा कर दिया जाने का प्रावधान था. 2006 में इस कानून में संशोधन के बाद प्रावधान हुआ कि अगर कोई किशोर ऐसे अपराध में दोषी पाया जाता है तो उसे तीन साल की सजा काटनी ही होगी, भले ही उसकी उम्र 18 साल हो चुकी हो. पुरानी व्यवस्था के तहत तो ये नाबालिग अपराधी भी दो साल पहले छूट चुका होता.

हाल ही में बीजेडी सांसद वैजयंत जे पांडा ने राज्य सभा के अधिकारों की समीक्षा की बात कही थी. एक लेख में पांडा ने तर्क दिया था कि लोगों द्वारा चुन कर सत्ता में आई एक लोकप्रिय सरकार भी राज्य सभा पहुंच कर बेबस हो जा रही है, बावजूद इसके कि वहां जनता द्वारा खारिज दल का बहुमत बरकरार है. इस बात के लिए पांडा को नोटिस भी जारी किया जा चुका है.

खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी संसद में संविधान दिवस पर चर्चा के दौरान ऐसी मजबूरी का जिक्र किया था. मोदी ने कहा था, "आज हम एकआध कानून बनाते हैं उसमें एक शब्द रह जाए तो ठीक करने के लिए दूसरे ही सत्र में उसी कानून को वापस लाना पड़ता है. यह सदन का हमारा अनुभव है. हम भी परफेक्ट कानून नहीं बना पा रहे हैं यह हकीकत है."

संशोधन और वस्तुस्थिति

मई 2015 में लोक सभा में किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक 2014, पास हो गया था. इसमें जघन्य अपराध करने वाले 16-18 साल के किशोरों पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाए जाने का प्रावधान है. विपक्षी दलों और बाल अधिकार से जुड़े एक्टिविस्ट और एक्सपर्ट ने, हालांकि, इस कदम को घातक बताया था.

संसद में बिल पेश किये जाने के बाद चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा था, "कानून अक्सर अनपढ़ और गरीब बच्चों के परिवार तोड़ते हैं. ये वो लोग हैं, जिन्हें आप शिक्षा देने के बजाय दंडित करना चाहते हैं."

नए विधेयक में छोटे, गंभीर और जघन्य अपराधों को साफ तौर पर परिभाषित और क्लासिफाई किया गया है. इसके साथ ही हर कैटेगरी के अपराध के लिए अलग अलग प्रक्रियाओं को भी डिफाईन किया गया है. किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2014 मौजूदा किशोर न्याय अधिनियम, 2000 की जगह ले चुका होता, बशर्ते इसे राज्य सभा से भी पास कर दिया गया होता.

इस विधेयक को संसद की स्थाई समिति के पास भी भेजा गया था जिसने किशोर की उम्र 18 साल ही रखने की सिफारिश की थी. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो एक बार महिलाओं के खिलाफ ऐसे अपराधों में उम्र घटाकर 15 साल करने की वकालत की थी.

खैर, लोकसभा से पारित संशोधन विधेयक यदि राज्‍यसभा से भी पास हो गया होता तो भी वह निर्भया के नाबालिग दुष्‍कर्मी पर लागू नहीं होता. क्‍योंकि इस तरह का कोई भी कानून पुराने मामलों पर लागू नहीं होता. लेकिन, इतना जरूर हो जाता कि फिर और किसी नाबालिग के हैवान बन जाने पर 3 साल तक सुधार का नाटक नहीं चल पाता. उसे ताउम्र जेल या फांसी होकर रहती.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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