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सियासत

मुस्लिम मरे तो साम्प्रदायिक हत्या और हिंदू मरे तो...??

    • शुभम गुप्ता
    • Updated: 29 जून, 2017 10:59 PM
  • 29 जून, 2017 10:59 PM
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अगर वाकई देश में मुसलमनों पर अत्याचार हो रहा है तो मुस्लमान इन लोगों के साथ क्यों नहीं होते ? क्यों नहीं देश भर में आंदोलन होने लगता है ? ये बुद्धिजीवी लोग सिर्फ इन हत्याओं को हिन्दू मुस्लिम हत्या बनाना चाहते हैं.

हमारे देश की राजनीति ही अलग है. अलग से मेरा मतलब राजनीति के निचले और गिरे हुए स्तर से है. हाल ही में ट्रैन में एक शख्स यानी जुनैद की हत्या कर दी गई. मगर इस हादसे में मरने वाला मुस्लिम है और मारने वाला हिन्दू है. बीजेपी की सरकार है. संघ का दबदबा है, तो हर मुस्लमान की हत्या संघ या बीजेपी या उससे जुड़े संगठन ने की है.

हमारे देश में एक बड़ा बुद्धिजीवी तबका मोदी विरोधी है. अगर आप मोदी को दिनभर गाली देते हैं तो आप सर्वश्रेष्ठ पत्रकार हैं. मगर आपने लिख दिया कि हर मुस्लिम की हत्या को मोदी से क्यों जोड़ा जाता है ? इसपर वे आपको गोदी पत्रकार की संज्ञा दे देंगे.

आखिर क्यों इन बुद्धिजीवी लोगों को सिर्फ मुसलमान के मरने पर देश में असहिषुणता नजर आती है ? अवार्ड वापसी इन्हें तब ही क्यों याद आती है ? आप इन लोगों को समझिये, ये वे लोग है जो व्यक्तिगत रूप से नरेंद्र मोदी से नफरत करते हैं. इन्हें सिर्फ मौका चाहिए कि देश में कोई मुस्लमान कहीं भी मरे और ये कहे कि हां मोदी राज में मुस्लमान सुरक्षित नहीं.

मैं इस साल ईद पर दिल्ली की जामा मस्जिद गया था. मैंने कोई मुस्लिम दोस्तों से बात की. मैंने पूछा- आप लोगों को कोई डर लगता है क्या, मोदी से ? या किसी से भी ? उन्होंने कहा की डर कैसा ? हमारे देश की राजनीति खराब है. इन लोगों को हम सपोर्ट नहीं करते. मैं बड़ा प्यार से रहा. सेवईं भी खाकर आया.

आप खुद एक बात सोचिए. अगर वाकई देश में मुसलमनों पर अत्याचार हो रहा है तो मुसलमान इन लोगों के साथ क्यों नहीं होते ? क्यों नहीं देश भर में आंदोलन होने लगता है ? ये बुद्धिजीवी लोग सिर्फ इन हत्याओं को हिन्दू मुस्लिम हत्या बनाना चाहते हैं.

हमारे देश की राजनीति ही अलग है. अलग से मेरा मतलब राजनीति के निचले और गिरे हुए स्तर से है. हाल ही में ट्रैन में एक शख्स यानी जुनैद की हत्या कर दी गई. मगर इस हादसे में मरने वाला मुस्लिम है और मारने वाला हिन्दू है. बीजेपी की सरकार है. संघ का दबदबा है, तो हर मुस्लमान की हत्या संघ या बीजेपी या उससे जुड़े संगठन ने की है.

हमारे देश में एक बड़ा बुद्धिजीवी तबका मोदी विरोधी है. अगर आप मोदी को दिनभर गाली देते हैं तो आप सर्वश्रेष्ठ पत्रकार हैं. मगर आपने लिख दिया कि हर मुस्लिम की हत्या को मोदी से क्यों जोड़ा जाता है ? इसपर वे आपको गोदी पत्रकार की संज्ञा दे देंगे.

आखिर क्यों इन बुद्धिजीवी लोगों को सिर्फ मुसलमान के मरने पर देश में असहिषुणता नजर आती है ? अवार्ड वापसी इन्हें तब ही क्यों याद आती है ? आप इन लोगों को समझिये, ये वे लोग है जो व्यक्तिगत रूप से नरेंद्र मोदी से नफरत करते हैं. इन्हें सिर्फ मौका चाहिए कि देश में कोई मुस्लमान कहीं भी मरे और ये कहे कि हां मोदी राज में मुस्लमान सुरक्षित नहीं.

मैं इस साल ईद पर दिल्ली की जामा मस्जिद गया था. मैंने कोई मुस्लिम दोस्तों से बात की. मैंने पूछा- आप लोगों को कोई डर लगता है क्या, मोदी से ? या किसी से भी ? उन्होंने कहा की डर कैसा ? हमारे देश की राजनीति खराब है. इन लोगों को हम सपोर्ट नहीं करते. मैं बड़ा प्यार से रहा. सेवईं भी खाकर आया.

आप खुद एक बात सोचिए. अगर वाकई देश में मुसलमनों पर अत्याचार हो रहा है तो मुसलमान इन लोगों के साथ क्यों नहीं होते ? क्यों नहीं देश भर में आंदोलन होने लगता है ? ये बुद्धिजीवी लोग सिर्फ इन हत्याओं को हिन्दू मुस्लिम हत्या बनाना चाहते हैं.

ये लोग कहते हैं कि हमें डर लगता है अब देश में. यानी इससे पहले कभी हिन्दू-मुस्लिम विवाद हुआ ही नहीं. तो आपने कभी मनमोहन सिंह को दोष क्यों नहीं दिया ? उस वक्त भी ये बुद्धिजीवी लोग संघ को या किसी और दल को ही दोष देते थे.

यानी मंशा साफ है. इन लोगों ने 2014 में भी प्रधानमंत्री मोदी का खूब विरोध किया. ये बताने की कोशिश की गई कि अगर ये शख्स प्रधानमंत्री बनता है तो देश में मुसलमनों का कत्ले आम हो जाएगा. मुसलमानों की हत्या कर दी जाएगी. मगर जिस हिसाब से मोदी जीते. इन लोगों को वो जीत हजम नहीं हुई. इन्हें देश में कोई तरक्की नजर नहीं आती. ये वो लोग हैं जो गूगल पर सर्च करते हैं कि देश में कहां मुस्लमान की हत्या हुई है ? आपको यकीन न हो तो इन्हें मेल या पत्र भेजना कि हमारे इलाके में एक हिन्दू ने मुस्लिम को मर डाला. ये लोग तुरंत आ जाएंगे आपके पास.

इन लोगों को अख़लाक की हत्या नजर आती है, जुनैद की हत्या नजर आती है, मगर केरल में जब 26 वर्ष के सुजीत की हत्या दिन दहाड़े उसके बूढ़े माता-पिता की आंखों के सामने कर दी गयी, तब ? 29 जनवरी, 2014 को देश की राजधानी दिल्ली में एक हत्या हुई. अरूणाचल प्रदेश के नीडो तानियाम को पहले नस्लवादी गाली दी गई फिर उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. मोदी सरकार के रहते ही 2016 में बैंगलोर में प्रशांत पुजारी और आगरा में अरूण माहौर की हत्या कर दी गई. दोनों ही अहिंसक प्रवृत्ति के गोभक्त थे, कभी हिंसा नहीं की थी. मगर किसी पत्रकार को, किसी लेखक को देश में कोई असहिषुणता नजर नहीं आई. आप उनके लिये क्यों नहीं लड़े ? क्यों नहीं मार्च निकाला गया ? क्यों किसी ने कोई पुरस्कार वापिस नहीं किया ?

आप इन लोगों के झांसे में न आएं. हिन्दू हो, मुस्लिम या सिख हो या फिर दलित ही क्यों न हो, जब हत्या होती है तो उसके कई कारण होते हैं. कई बार रंजिशें होती हैं. कई बार गुस्से-गुस्से में भीड़ ये हत्या कर देती है. उस भीड़ को तो ये भी नहीं पता होता कि इसे क्यों मार रहे हैं. वो भीड़ न हिन्दू देखती है और न ही मुस्लिम. अब बस आप लोगों को इनके बहकावे में नहीं आना है क्योंकि इनका अपना स्वार्थ है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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