• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

सरकारों ने जो पकड़े, वे आतंकवादी नहीं हिंदू और मुस्लिम थे?

    • अभिषेक पाण्डेय
    • Updated: 14 मई, 2016 05:48 PM
  • 14 मई, 2016 05:48 PM
offline
इस देश में राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए कई निर्दोषों के खून से अपने हाथ रंगने वाले बम धमाकों के दोषियों और आरोपियों को बचाने का खेल करते आए हैं, जानिए इनकी हकीकत.

मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा को एनआईए द्वारा दायर की गई अपनी सप्लींमेंट्री फाइनल रिपोर्ट में क्लीन चिट दिए जाने के बाद राजनीतिक तूफान उठ खड़ा हुआ हैं. कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं और उनका कहना है कि दोषियों को बचाने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया जा रहा है. महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को हुए धमाकों में 6 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 101 लोग घायल हो गए थे.

जहां तक धमाकों और चर्चित मामलों के राजनीतिकरण की बात है तो साध्वी प्रज्ञा का मामला इसका अकेला उदाहरण नहीं है. इस देश में वोट बैंक के लिए ये खेल काफी पहले से होता आया है. फिर चाहे वह अब साध्वी प्रज्ञा की रिहाई का विरोध कर रही कांग्रेस हो या उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार या पंजाब की शिरोमणि अकाली दल सरकार या तमिलनाडु की जयललिता सरकार, ये सभी दल कभी न कभी चर्चित मामलों के दोषियों और आरोपियों को बचाने की कोशिशें करते आए हैं. आइए जानें इस देश में वोट बैंक के नाम पर होने वाले इस खेल को.

यूपी की सपा सरकार ने की वाराणसी और फैजाबाद ब्लास्ट के आरोपियों की रिहाई की कोशिशः

राज्य और सरकारें भले बदल जाएं लेकिन धमाकों के दोशियों और आरोपियों को राजनीतिक लाभ के लिए बचाने का खेल नहीं बदलता है. कुछ ऐसी ही कोशिशें 2012 में सत्ता में आई समाजवादी पार्टी के नेता और राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी की थी.

समाजवादी पार्टी की सरकार ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था कि सत्ता में आने पर वह उन तमाम केसों की समीक्षा करेगी जिनमें मुस्लिम युवकों को विभन्न आतंकी वारदातों के लिए मायावती के शासनकाल में गिरफ्तार किया गया था. अपने उसी वादे को पूरा करते हुए अखिलेश सरकार ने फैजाबाद, गोरखपुर और वाराणसी ब्लास्ट के दो आरोपी मुस्लिम युवकों की रिहाई का फरमान जारी किया था. लेकिन हाईकोर्ट ने बिना केंद्र की अनुमति के जारी किए गए इन आदेशों पर रोक लगा दी थी.

अखिलेश सरकार की ये कोशिशें...

मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा को एनआईए द्वारा दायर की गई अपनी सप्लींमेंट्री फाइनल रिपोर्ट में क्लीन चिट दिए जाने के बाद राजनीतिक तूफान उठ खड़ा हुआ हैं. कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं और उनका कहना है कि दोषियों को बचाने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया जा रहा है. महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को हुए धमाकों में 6 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 101 लोग घायल हो गए थे.

जहां तक धमाकों और चर्चित मामलों के राजनीतिकरण की बात है तो साध्वी प्रज्ञा का मामला इसका अकेला उदाहरण नहीं है. इस देश में वोट बैंक के लिए ये खेल काफी पहले से होता आया है. फिर चाहे वह अब साध्वी प्रज्ञा की रिहाई का विरोध कर रही कांग्रेस हो या उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार या पंजाब की शिरोमणि अकाली दल सरकार या तमिलनाडु की जयललिता सरकार, ये सभी दल कभी न कभी चर्चित मामलों के दोषियों और आरोपियों को बचाने की कोशिशें करते आए हैं. आइए जानें इस देश में वोट बैंक के नाम पर होने वाले इस खेल को.

यूपी की सपा सरकार ने की वाराणसी और फैजाबाद ब्लास्ट के आरोपियों की रिहाई की कोशिशः

राज्य और सरकारें भले बदल जाएं लेकिन धमाकों के दोशियों और आरोपियों को राजनीतिक लाभ के लिए बचाने का खेल नहीं बदलता है. कुछ ऐसी ही कोशिशें 2012 में सत्ता में आई समाजवादी पार्टी के नेता और राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी की थी.

समाजवादी पार्टी की सरकार ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था कि सत्ता में आने पर वह उन तमाम केसों की समीक्षा करेगी जिनमें मुस्लिम युवकों को विभन्न आतंकी वारदातों के लिए मायावती के शासनकाल में गिरफ्तार किया गया था. अपने उसी वादे को पूरा करते हुए अखिलेश सरकार ने फैजाबाद, गोरखपुर और वाराणसी ब्लास्ट के दो आरोपी मुस्लिम युवकों की रिहाई का फरमान जारी किया था. लेकिन हाईकोर्ट ने बिना केंद्र की अनुमति के जारी किए गए इन आदेशों पर रोक लगा दी थी.

अखिलेश सरकार की ये कोशिशें यूपी के 20 फीसदी मुस्लिम वोटर्स को अपनी ओर खींचने की थी, जिन्होंने 2012 के चुनावों में पार्टी की जीत में अहम भूमिका निभाई थी. हैरानी की बात ये है कि साध्वी प्रज्ञा को क्लीन चिट दिए जाने का विरोध कर रही कांग्रेस ने यूपी में धमाके के आरोपियों को सपा द्वारा रिहा किए जाने का बिल्कुल भी विरोध नहीं किया था क्योंकि ये कांग्रेस के लिए राजनीतिक फायदे का सौदा था. जिस समुदाय के लोगों को रिहा किया जा रहा था वे कांग्रेसी वोटबैंक का प्रमुख हिस्सा हैं, इसलिए देश की सुरक्षा का मसला होते हुए भी राजनीतिक लाभ के लिए कांग्रेस ने इन युवकों की रिहाई का विरोध न करना ही ठीक समझा.

पंजाब सरकार ने भुल्लर को परोल पर छोड़ाः

दिल्ली में 1993 में हुए बम ब्लास्ट के दोषी और उम्र कैद की सजा काट रहे खालिस्तानी आतंकी देवेंदर पाल सिंह भुल्लर को 28 दिन के परोल में रिहा किया गया है. भुल्लर को परोल पर रिहा करने वाली प्रकाश सिंह बादल की शिरोमणि अकाली दल पहले भी राष्ट्रपति से भुल्लर की सजा माफ किए जाने की अपील कर चुकी है. 1993 में दिल्ली में इस ब्लास्ट में 9 लोगों की मौत हो गई थी और 31 लोग घायल हो गए थे. 2001 में टाडा अदालत ने भुल्लर को मौत की सजा सुनाई थी.

बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भुल्ल की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था. इस वर्ष अप्रैल में प्रकाश सिंह बादल सरकार ने भुल्लर को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए 28 दिन की परोल पर रिहा किया है. पंजाब में अगले वर्ष चुनाव होने हैं और बादल सरकारी की ये कोशिशें इन चुनावों में राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिशों का हिस्सा हैं.

एनआईए ने अपनी सप्लीमेंट्री फाइनल रिपोर्ट में साध्वी प्रज्ञा को मालेगांव ब्लास्ट मामले में क्लीन चिट दे दी है

जयललिता ने की राजीव गांधी के हत्यारों को रिहा करने कोशिशः

1991 में देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में दोषी करार दिए गए उनके हत्यारों को जयललिता ने रिहा करने की कई कोशिशें की हैं. इस मामले में 2014 में मौत की सजा पाए तीन दोषियों संतन, मुरुगन और पेरारिवलन की मौत की सजा को सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया था. इसके बाद तमिलनाडु में सत्ता पर काबिज जयललिता सरकार ने इन तीनों के अलावा मामले के चार अन्य दोषियों सहित कुल सात दोषियों को समय से पहले ही रिहा करने के आदेश जारी कर दिए.

जया सरकार ने रिहाई का ये फैसला 2014 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए लिया था और उसका उद्देश्य इसका राजनीतिक लाभ उठाना था. लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने जया सरकार के इस फैसले पर रोक लगाते हुए इन सातों दोषियों की रिहाई पर रोक लगा दी थी. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तमिलनाडु सरकार के इस फैसलो को निराशाजनक बताते हुए कहा था कि मेरे पिता के हत्यारों को छोड़े जाने का फैसला निराशानजनक है. कांग्रेस ने इस रिहाई का जोरदार विरोध किया था.

हाल ही में जयललिता ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर एक बार फिर से इन दोषियों की रिहाई की मांग की है. इसके लिए जयललिता का तर्क है कि ये सभी दोषी 24 साल से ज्यादा की सजा काट चुके हैं, ऐसे में उनकी रिहाई पर विचार किया जाना चाहिए. तमिलनाडु में अभी विधानसभा चुनाव चल रहे हैं और जयललिता की ये कोशिश एक बार फिर से चुनावों से पहले वोट बैंक को अपनी ओर खींचने की कोशिशों का हिस्सा है.

वोट बैंक के लिए देश की सुरक्षा से खिलवाड़ः

इन उदाहरणों से साफ पता चलता है कि कैसे राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए कई निर्दोषों के खून से अपने हाथ रंगने वाले बम धमाकों के दोषियों और आरोपियों को बचाने का खेल करती हैं. इन पार्टियों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इससे देश की सुरक्षा को संकट में डाल रहे हैं.

उन्हें तो बस मतलब होता है तो अपने वोट बैंक को मजबूत करके चुनाव जीतने और सत्ता पर कब्जा जमाने से. इसीलिए कभी कांग्रेस आतंकवाद को भगवा रंग देती है तो कभी पीडीपी संसद हमलों के दोषी आतंकी अफजल गुरु को शहीद का दर्जा दे देती है, तो कभी अपने वोट बैंक के लिए धमाको के दोषी किसी धर्म विशेष के लोगों को समाजवादी पार्टी सरकार छोड़ने का फरमान जारी कर देती है. फिर कई वर्षों से किसी धमाके की मास्टरमाइंड (साध्वी प्रज्ञा) को एनआईए क्लीन चिट दे दती है और इस बार उंगलियां बीजेपी पर उठती हैं.

यानी कि पार्टी कोई भी और आंतकी किसी भी धर्म का हो, उसकी गिरफ्तारी और रिहाई पर राजनीति जारी रहती है. इस देश में जब तक सरकारें मासूमों की जान लेने वाले आंतकियों को न गिरफ्तार करके हिंदुओं और मुस्लिमों को गिरफ्तार करने की राजनीति करेंगी, आतंकवाद खत्म नहीं होगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲