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मोदी-मुफ्ती पैक्ट: एक रिश्ता, जो टूटने के लिए बना...

    • धीरेंद्र राय
    • Updated: 27 फरवरी, 2015 02:57 PM
  • 27 फरवरी, 2015 02:57 PM
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दो पार्टियां. बीजेपी और पीडीपी. सैद्धांतिक रूप से एकदम विपरीत. लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजों ने दोनों को नजदीक ला खड़ा किया है. ये पहली बार है कि बीजेपी जम्मू-कश्मीर में सरकार का हिस्सा बनने जा रही है. कितना मजबूत रहेगा यह रिश्ता...

दो पार्टियां. बीजेपी और पीडीपी. सैद्धांतिक रूप से एकदम विपरीत. लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजों ने दोनों को नजदीक ला खड़ा किया है. ये पहली बार है कि बीजेपी जम्मू-कश्मीर में सरकार का हिस्सा बनने जा रही है. लेकिन उसकी 25 सीटों के मुकाबले पीडीपी 28 सीटें लेकर ड्राइविंग सीट पर है. शुक्रवार सुबह प्रधानमंत्री मोदी और पीडीपी के मुफ्ती मोहम्मद सईद के बीच मुलाकात हुई. और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर समझौता भी. जिस पर पीडीपी-बीजेपी सरकार काम करेगी. लेकिन क्या ऐसा संभव है-

1. धारा 370:

केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद सबसे पहली कंट्रोवर्सी धारा 370 पर ही हुई. पीएमओ के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने ऑफिस ज्वाइन करते ही कहा कि ये सरकार धारा 370 हटाने पर विचार करेगी. हालांकि, कुछ दिन पहले सरकार ने संसद में स्पष्ट किया है कि सरकार के पास इस धारा का हटाने का अभी कोई प्रस्ताव नहीं है. कुछ भी हो, लेकिन कश्मीर को विशेष दर्जा दिलाने वाली यह धारा बीजेपी और संघ को शुरू से खटकती रही है. इन सब बातों के उलट पीडीपी को कश्मीरियत से जुड़ी सबसे कट्टर पार्टी माना जाता है. कश्मीर में सरकार बनाने से पहले वह लिखित में स्पष्टीकरण मांगती रही है कि धारा 370 के मुद्दे पर उसका विचार क्या है.

2. AFSPA :

कश्मीर में सेना को आतंकियों पर कार्रवाई के लिए या औचक छानबीन का विशेषाधिकार देने वाले कानून AFSPA को लेकर तनाव रहा है. कश्मीर की सभी पार्टियां राजनीतिक जरूरत के हिसाब से इसे हटाने की मांग करती रही हैं. नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस के नेता इसे लेकर बयान देते रहे हैं. पीडीपी तो इसे लेकर ज्यादा ही मुखर रही है. वह तो इस बारे में पाकिस्तान से बातचीत की भी पक्षधर है. दबाव बीजेपी पर होगा. जो राज्य के हिंदू इलाकों से चुनकर आई है, जबकि आर्मी की कार्रवाई वहां मुस्लिम बहुल इलाकों में चलती है.

3. सरकार का स्वरूप: 

मोदी और मुफ्ती में अभी तो मुद्दों पर बात हुई है. या शायद सरकार में...

दो पार्टियां. बीजेपी और पीडीपी. सैद्धांतिक रूप से एकदम विपरीत. लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजों ने दोनों को नजदीक ला खड़ा किया है. ये पहली बार है कि बीजेपी जम्मू-कश्मीर में सरकार का हिस्सा बनने जा रही है. लेकिन उसकी 25 सीटों के मुकाबले पीडीपी 28 सीटें लेकर ड्राइविंग सीट पर है. शुक्रवार सुबह प्रधानमंत्री मोदी और पीडीपी के मुफ्ती मोहम्मद सईद के बीच मुलाकात हुई. और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर समझौता भी. जिस पर पीडीपी-बीजेपी सरकार काम करेगी. लेकिन क्या ऐसा संभव है-

1. धारा 370:

केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद सबसे पहली कंट्रोवर्सी धारा 370 पर ही हुई. पीएमओ के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने ऑफिस ज्वाइन करते ही कहा कि ये सरकार धारा 370 हटाने पर विचार करेगी. हालांकि, कुछ दिन पहले सरकार ने संसद में स्पष्ट किया है कि सरकार के पास इस धारा का हटाने का अभी कोई प्रस्ताव नहीं है. कुछ भी हो, लेकिन कश्मीर को विशेष दर्जा दिलाने वाली यह धारा बीजेपी और संघ को शुरू से खटकती रही है. इन सब बातों के उलट पीडीपी को कश्मीरियत से जुड़ी सबसे कट्टर पार्टी माना जाता है. कश्मीर में सरकार बनाने से पहले वह लिखित में स्पष्टीकरण मांगती रही है कि धारा 370 के मुद्दे पर उसका विचार क्या है.

2. AFSPA :

कश्मीर में सेना को आतंकियों पर कार्रवाई के लिए या औचक छानबीन का विशेषाधिकार देने वाले कानून AFSPA को लेकर तनाव रहा है. कश्मीर की सभी पार्टियां राजनीतिक जरूरत के हिसाब से इसे हटाने की मांग करती रही हैं. नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस के नेता इसे लेकर बयान देते रहे हैं. पीडीपी तो इसे लेकर ज्यादा ही मुखर रही है. वह तो इस बारे में पाकिस्तान से बातचीत की भी पक्षधर है. दबाव बीजेपी पर होगा. जो राज्य के हिंदू इलाकों से चुनकर आई है, जबकि आर्मी की कार्रवाई वहां मुस्लिम बहुल इलाकों में चलती है.

3. सरकार का स्वरूप: 

मोदी और मुफ्ती में अभी तो मुद्दों पर बात हुई है. या शायद सरकार में हिस्सेदारी को लेकर भी. लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि राज्य में बीजेपी का कोई मुख्यमंत्री भी होगा. यदि ऐसा होगा तो बाकी मंत्रिमंडल में बीजेपी को कितने और कौन-कौन से विभाग मिलेंगे. काम करने की कितनी छूट होगी.

4. केंद्र सरकार पर दबाव:

पीडीपी सरकार में आने के बाद मोदी सरकार पर ज्यादा से ज्यादा दबाव देने की कोशिश करेगी कि वह राज्य की जरूरतों को बढ़चढ़कर पूरा करें. मुख्यमंत्री होने के नाते सारा श्रेय उन्हें मिलेगा, इसलिए बीजेपी की स्थानीय लीडरशिप से खींचतान भी संभव है.

5. विपक्ष का दबाव:

विधानसभा में नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस को क्रमश: 15 और 12 सीटें मिली हैं. ये 27 विधायक चाहेंगे कि पीडीपी और बीजेपी की परस्पर विरोधी विचारधारा को सामने लाया जाए. दोनों पार्टियों के सामने धर्मसंकट खड़ा किया जाए. जैसे ही कोई आर्मी ऑपरेशन या एनकाउंटर होगा, वे पीडीपी का घेराव करेंगे कि AFSPA के बारे में वह प्रधानमंत्री से क्या बात करने जा रही है.

इसके अलावा मोदी सरकार के लिए साक्षी महाराज जैसे नेता जिस तरह परेशानी खड़ी करते हैं, वैसे ही पीडीपी के भी कुछ नेता बयान देने में बेलगाम हैं. कड़वाहट बढ़ने में देर नहीं लगेगी. देखना होगा, दोनों पार्टियों का ये सत्ता सुख कब तक कायम रहता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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