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...तो क्या केवल चुनाव हारने के लिए मैदान में हैं मीरा कुमार?

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 24 जून, 2017 01:06 PM
  • 24 जून, 2017 01:06 PM
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अब मीरा कुमार को उतारने के बाद विपक्ष, सत्ता पक्ष के उस दावे का माकूल जवाब दे सकती है, जहां सत्ता पक्ष खुद को दलितों का शुभचिंतक दिखाने की कोशिश करेगी.

देश के चौदहवें राष्ट्रपति चुनने लिए अब चुनाव तय हो गया है. विपक्ष ने भी एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के खिलाफ पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को उतारने का निर्णय लिया है. ऐसे में अब अगला राष्ट्रपति चुनने के लिए 17 जुलाई को वोट डाले जायेंगे, जबकि 20 जुलाई को नतीजे घोषित किये जायेंगे. हालांकि राष्ट्रपति चुनाव के लिए आकंड़ों के गणित पर नजर डालें तो यह साफ हो जाता है कि यूपीए की मीरा कुमार चुनाव हारने के लिए ही मैदान में हैं.

एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को एनडीए में शामिल घटक दलों के अलावा एआईडीएमके, बीजेडी, टीआरएस, वाईएसआर और नीतीश कुमार ने भी सहयोग का भरोसा दिलाया है. इन सब का कुल वोट शेयर 60 फीसदी से ज्यादा का है, ऐसे में रामनाथ कोविंद कि जीत तय है. तो फिर आखिर विपक्ष ने अपनी संभावित हार को भांपते हुए भी उम्मीदवार को उतारने का जोखिम क्यों लिया?

यह सही है कि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार की हार तय है, लेकिन विपक्ष ने मीरा कुमार को उतार कर सत्ता पक्ष को एक बेहतर जवाब देने की कोशिश जरूर की है. सत्ता पक्ष ने रामनाथ कोविंद के रूप में एक दलित चेहरे को उतार कर न केवल सटीक निशाना साधा था, बल्कि विपक्ष की एकता में सेंध लगाने की भी भरसक कोशिश की थी.

दलित बनाम दलित का ये चुनाव किस करवट बैठैगा

कोई भी राजनीतिक पार्टी सीधे तौर पर एक साफ़ सुथरे छवि के दलित नेता का विरोध कर खुद को दलित विरोधी दिखाने से बचना चाहती थी, और इसी का नतीजा था कि मायावती जैसी धुर विरोधी भी एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में बोलती दिखी थी. साथ ही नीतीश कुमार ने भी विपक्ष को ठेंगा दिखा कर कोविंद को समर्थन देने की बात कही थी. ऐसे में पहले से ही कमजोर विपक्ष और टूटता नजर आ रहा था.

मगर अब एक दलित चेहरे के काट के रूप में विपक्ष ने मीरा कुमार के...

देश के चौदहवें राष्ट्रपति चुनने लिए अब चुनाव तय हो गया है. विपक्ष ने भी एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के खिलाफ पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को उतारने का निर्णय लिया है. ऐसे में अब अगला राष्ट्रपति चुनने के लिए 17 जुलाई को वोट डाले जायेंगे, जबकि 20 जुलाई को नतीजे घोषित किये जायेंगे. हालांकि राष्ट्रपति चुनाव के लिए आकंड़ों के गणित पर नजर डालें तो यह साफ हो जाता है कि यूपीए की मीरा कुमार चुनाव हारने के लिए ही मैदान में हैं.

एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को एनडीए में शामिल घटक दलों के अलावा एआईडीएमके, बीजेडी, टीआरएस, वाईएसआर और नीतीश कुमार ने भी सहयोग का भरोसा दिलाया है. इन सब का कुल वोट शेयर 60 फीसदी से ज्यादा का है, ऐसे में रामनाथ कोविंद कि जीत तय है. तो फिर आखिर विपक्ष ने अपनी संभावित हार को भांपते हुए भी उम्मीदवार को उतारने का जोखिम क्यों लिया?

यह सही है कि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार की हार तय है, लेकिन विपक्ष ने मीरा कुमार को उतार कर सत्ता पक्ष को एक बेहतर जवाब देने की कोशिश जरूर की है. सत्ता पक्ष ने रामनाथ कोविंद के रूप में एक दलित चेहरे को उतार कर न केवल सटीक निशाना साधा था, बल्कि विपक्ष की एकता में सेंध लगाने की भी भरसक कोशिश की थी.

दलित बनाम दलित का ये चुनाव किस करवट बैठैगा

कोई भी राजनीतिक पार्टी सीधे तौर पर एक साफ़ सुथरे छवि के दलित नेता का विरोध कर खुद को दलित विरोधी दिखाने से बचना चाहती थी, और इसी का नतीजा था कि मायावती जैसी धुर विरोधी भी एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में बोलती दिखी थी. साथ ही नीतीश कुमार ने भी विपक्ष को ठेंगा दिखा कर कोविंद को समर्थन देने की बात कही थी. ऐसे में पहले से ही कमजोर विपक्ष और टूटता नजर आ रहा था.

मगर अब एक दलित चेहरे के काट के रूप में विपक्ष ने मीरा कुमार के रूप एक दलित चेहरे को मैदान में उतारा है. इससे कम से कम यूपीए के घटक दल को दलित के नाम पर सत्ता पक्ष में जाने कि जरुरत नहीं पड़ेगी. मीरा कुमार एक सर्वमान्य नेता के रूप में विपक्षी दलों को भाएंगी. मीरा कुमार, रामनाथ कोविंद के मुकाबले ज्यादा चर्चित रहीं है. लोकसभा स्पीकर रहने के कारण भारत की ज्यादातर जनता उनसे भली भांति परिचित है, जो कि रामनाथ कोविंद के नाम को सुन कर एक बार के लिए चौंक गयी थी.

अब मीरा कुमार को उतारने के बाद विपक्ष, सत्ता पक्ष के उस दावे का माकूल जवाब दे सकती है, जहां सत्ता पक्ष खुद को दलितों का शुभचिंतक दिखाने की कोशिश करेगी. अब विपक्ष भी यह कह सकता है कि उसने भी एक दलित को देश के सर्वोच्च स्थान तक पहुंचाने की कोशिश की थी. विपक्ष इस उम्मीदवारी के द्वारा अपने मनोबल को भी ऊंचा रख सकती है, जो सत्ता पक्ष के उमीदवार के आगे हथियार डालने से टूट सकती थी.

हालांकि विपक्ष के इन फैसलों के बाद नीतीश कुमार की मुश्किल जरूर बढ़ जाएगी, जिन्होंने कोविंद को समर्थन देने के पीछे यह तर्क दिया था कि वो बिहार के गवर्नर हैं और दलित हैं. अब उन्हें बिहार कि बेटी और गवर्नर के बीच में एक का चुनाव करना होगा. तो कह सकते हैं कि विपक्ष इस उम्मीदवारी के बाद हार के बावजूद बहुत कुछ हासिल कर सकती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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