• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

महागठबंधन पर जेडीयू का बयान नीतीश के मन की बात भी है क्या?

    • आईचौक
    • Updated: 30 जून, 2017 01:53 PM
  • 30 जून, 2017 01:53 PM
offline
ये सब क्या सिर्फ लालू और नीतीश के आपसी हितों के चलते हो रहा है? या कांग्रेस की भी इसमें कोई विशेष भूमिका है? वैसे भी कांग्रेस के छह विधायकों के राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग की खबर आ ही चुकी है.

जेडीयू नेता केसी त्यागी ने साफ कर दिया है कि एनडीए में बीजेपी के साथ उनका रिश्ता ज्यादा सहज था, बनिस्बत महागठबंधन में आरजेडी के मुकाबले. आरजेडी से रिश्ता कितना असहज हो चुका है ये तो लालू प्रसाद की इफ्तार पार्टी में ही चेहरे के भाव बता रहे थे. गले मिलने और राजनीतिक बयानों को छोड़ भी दें तो लालू और नीतीश कुमार बैठे तो अगल बगल ही थे, लेकिन नीतीश ज्यादातर अशोक चौधरी से ही मुखातिब देखे गये.

ये सब क्या सिर्फ लालू और नीतीश के आपसी हितों के चलते हो रहा है? या महागठबंधन को फाइनल टच देने का क्रेडिट लेने वाली कांग्रेस की भी इसमें कोई विशेष भूमिका है? कांग्रेस के छह विधायकों के राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग की खबर वैसे आ भी चुकी है.

नीतीश के 'मन की बात'

'मन की बात' वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं, लेकिन केसी त्यागी ने जो बयान दिया है वो कहीं नीतीश के मन की बात तो नहीं. कहीं तेजस्वी यादव के 'दिल की बात' को तो नीतीश एंड कंपनी ने दिल पर नहीं ले लिया है? तेजस्वी का कार्यक्रम भी मोदी के मन की बात से ही प्रेरित माना जाता है. दिल की बात में तेजस्वी ने कहा था, "अवसरवादी बर्ताव और राजनीतिक दांवपेच से तात्कालिक फायदे हो सकते हैं या सरकार बन-बिगड़ सकती है, लेकिन टेलीविजन एंकरों के उलट इतिहास इस बात की गवाही देगा कि जब प्रगतिशील राजनीति को मजबूत करने की जरूरत थी तो हमने दूसरा रास्ता चुना?" बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी ने बगैर किसी का नाम लिये अपनी बात कही, लेकिन समझा गया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही उनके निशाने पर थे. इफ्तार के मौके पर नीतीश ने भी कह ही दिया था - ऐतिहासिक भूल हो रही है तो होने दीजिए. छोड़ दीजिए.

दिल की बात बता देता है चेहरा...

अब केसी त्यागी का बयान है, "जेडीयू का बीजेपी के साथ...

जेडीयू नेता केसी त्यागी ने साफ कर दिया है कि एनडीए में बीजेपी के साथ उनका रिश्ता ज्यादा सहज था, बनिस्बत महागठबंधन में आरजेडी के मुकाबले. आरजेडी से रिश्ता कितना असहज हो चुका है ये तो लालू प्रसाद की इफ्तार पार्टी में ही चेहरे के भाव बता रहे थे. गले मिलने और राजनीतिक बयानों को छोड़ भी दें तो लालू और नीतीश कुमार बैठे तो अगल बगल ही थे, लेकिन नीतीश ज्यादातर अशोक चौधरी से ही मुखातिब देखे गये.

ये सब क्या सिर्फ लालू और नीतीश के आपसी हितों के चलते हो रहा है? या महागठबंधन को फाइनल टच देने का क्रेडिट लेने वाली कांग्रेस की भी इसमें कोई विशेष भूमिका है? कांग्रेस के छह विधायकों के राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग की खबर वैसे आ भी चुकी है.

नीतीश के 'मन की बात'

'मन की बात' वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं, लेकिन केसी त्यागी ने जो बयान दिया है वो कहीं नीतीश के मन की बात तो नहीं. कहीं तेजस्वी यादव के 'दिल की बात' को तो नीतीश एंड कंपनी ने दिल पर नहीं ले लिया है? तेजस्वी का कार्यक्रम भी मोदी के मन की बात से ही प्रेरित माना जाता है. दिल की बात में तेजस्वी ने कहा था, "अवसरवादी बर्ताव और राजनीतिक दांवपेच से तात्कालिक फायदे हो सकते हैं या सरकार बन-बिगड़ सकती है, लेकिन टेलीविजन एंकरों के उलट इतिहास इस बात की गवाही देगा कि जब प्रगतिशील राजनीति को मजबूत करने की जरूरत थी तो हमने दूसरा रास्ता चुना?" बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी ने बगैर किसी का नाम लिये अपनी बात कही, लेकिन समझा गया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही उनके निशाने पर थे. इफ्तार के मौके पर नीतीश ने भी कह ही दिया था - ऐतिहासिक भूल हो रही है तो होने दीजिए. छोड़ दीजिए.

दिल की बात बता देता है चेहरा...

अब केसी त्यागी का बयान है, "जेडीयू का बीजेपी के साथ गठबंधन सहज था. वैचारिक समस्या जरूर थी, लेकिन काम करने में कोई समस्या नहीं थी." मौके का फायदा उठाते हुए बीजेपी नेता सुशील मोदी ने भी नीतीश को बीजेपी के साथ हो जाने की सलाह दे डाली है. सुशील मोदी ने कहा है - 'सही बात है कि लालू प्रसाद और कांग्रेस के साथ नीतीश कुमार कभी सहज नहीं थे.'

जेडीयू सबसे ज्यादा खफा कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के बयान से है जिसमें उन्होंने नीतीश कुमार के सिद्धांतों पर सवाल उठाया है. इस पर भी केसी त्यागी ने अपनी बात रखी है, "हम बिहार में महागठबंधन पांच साल चलाना चाहते थे. लेकिन ऐसे बयान बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे, जिसमें किसी पार्टी के आला नेताओं के ही खिलाफ बात कही जा रही हो."

कहीं ऐसा तो नहीं कि महागठबंधन में खटपट सिर्फ लालू और नीतीश की आपसी वजह न रह कर अब इसमें कांग्रेस का रोल भी बढ़ गया हो. कुछ कारण तो ऐसे हैं ही जो ऐसे कयासों का सपोर्ट करते हैं.

कांग्रेस का कितना रोल

माना जा रहा है कि बिहार कांग्रेस के कुछ विधायक क्रॉस वोटिंग का रास्ता अख्तियार कर सकते हैं. सूत्रों के हवाले से इकनॉमिक टाइम्स ने खबर दी है कि जेडीयू नेतृत्व ने कांग्रेस के छह विधायकों से इस बारे में संपर्क किया है. अखबार ने इन विधायकों के नाम भी बता दिये हैं - बरबीघा के विधायक सुदर्शन कुमार, भागलपुर से अजीत शर्मा, बेतिया से मदनमोहन तिवारी, बिक्रम से सिद्धार्थ, बहादुरगंज से तौसीफ आलम और कस्बा के अफाक आलम. ये विधायक कांग्रेस सहित 17 विपक्षी दलों की उम्मीदवार मीरा कुमार की जगह एनडीए के रामनाथ कोविंद को वोट दे सकते हैं. हालांकि, कांग्रेस नेताओं ने ऐसी किसी भी संभावना से इंकार किया है.

नीतीश कुमार पर सबसे बड़ा हमला कांग्रेस की ओर से गुलाम नबी आजाद ने बोला है. आजाद ने आरोप लगाया है कि 'बिहार की बेटी' की हार पर सबसे पहले फैसला तो नीतीश ने ही लिया है. नीतीश के बारे में आजाद का कहना है कि जो लोग एक सिद्धांत में भरोसा रखते हैं वो एक फैसला लेते हैं और जो लोग कई सिद्धांतों में यकीन रखते हैं वो अलग-अलग फैसले लेते हैं.

नीतीश समर्थकों के ये बहुत नागवार गुजरा है. वे इसे नीतीश कुमार का चरित्रहनन करार दे रहे हैं - और किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करने की बात कर रहे हैं.

राष्ट्रपति चुनाव में नीतीश के स्टैंड से कांग्रेस नेतृत्व किस हद तक गुस्से में है इसे समझा जा सकता है. कहीं इस गुस्से का खामियाजा महागठबंधन को तो नहीं भुगतना पड़ेगा? वैसे ये कांग्रेस नेतृत्व ही रहा जिसके दबाव में लालू ने नीतीश को नेता घोषित किया और महागठबंधन को फाइनल शेप मिला. हाल ही में लालू के एक बयान में इसी बात पर जोर दिखा कि नीतीश को मुख्यमंत्री उन्होंने ही बनाया.

नीतीश का सोनिया के भोज को छोड़ कर प्रधानमंत्री मोदी के साथ लंच करना, मीरा कुमार को सपोर्ट करने के लिए फैसला न बदलना और अब कांग्रेस विधायकों को क्रॉस वोटिंग के लिए तैयार करने की खबर - ये तो बता ही रहे हैं कि कांग्रेस के मन की बात क्या हो सकती है.

कहीं कांग्रेस लालू पर गठबंधन तोड़ने का दबाव तो नहीं बढ़ा रही? क्योंकि लालू की मजबूरी ऐसी है कि वो फिलहाल महागठबंधन छोड़ना नहीं चाहेंगे. एक बात और. सूत्रों के ही हवाले से एक खबर आ रही है कि एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को नीतीश के समर्थन के बाद से ही शरद यादव के फोन की घंटी लगातार बज रही है. चर्चा ये है कि पार्टी के कई नेता नीतीश के फैसले से खुश नहीं हैं. चर्चा तो ये भी है कि राष्ट्रपति चुनाव में जेडीयू का स्टैंड शरद यादव को तो न निगलते, न उगलते बन रहा है. जेडीयू का एक धड़ा शरद यादव का मुहं देख रहा है.

लालू के घर इफ्तार के मौके पर नीतीश ने कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष को 2019 के लिए फिर से कमर कसने और 2022 में बिहार की बेटी को जिताने की सलाह दी थी. इतना ही नहीं जेडीयू ने ये भी साफ किया है कि राष्ट्रपति चुनाव के बाद किसानों के मुद्दे पर वो गैर-बीजेपी पार्टियों के साथ खड़ा मिलेगा.

इन्हें भी पढ़ें :

नीतीश कुमार ने कोविंद को समर्थन देकर निशाना कहीं और लगाया है

सोनिया-लालू को नीतीश का नया चैलेंज, ठान लें तो 2022 में जीतेगी ही बिहार की बेटी

...तो क्‍या मोदी के सामने नीतीश ने घुटने टेक दिये हैं

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲