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गांधी के उलट तो चलना ही है हार्दिक पटेल को

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 02 सितम्बर, 2015 03:35 PM
  • 02 सितम्बर, 2015 03:35 PM
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महात्मा गांधी की धरती पर आंदोलन खड़ा करनेवाले हार्दिक पटेल उनके विचारों से उतना इत्तेफाक नहीं रखते.

महात्मा गांधी ने पूरी दुनिया को अहिंसक आंदोलन की प्रेरणा दी. नेल्सन मंडेला से लेकर बराक ओबामा तक इसी बात के लिए गांधी के कायल रहे हैं. आंदोलन के इस स्वरूप में यकीन रखने वाले भी इसीलिए गांधीवादी माने जाते हैं - भले ही गांधी से उनके आंदोलन का सिर्फ ये पक्ष मेल खाता हो.

मगर, गांधी की धरती पर आंदोलन खड़ा करनेवाले हार्दिक पटेल उनके विचारों से उतना इत्तेफाक नहीं रखते.

तो क्या रिवर्स दांडी मांर्च के जरिए हार्दिक कोई नया संकेत देना चाह रहे हैं.

बिहार नहीं, यूपी पर नजर

आंदोलनों के जरिए राजनीति में अलग जगह बनाई जा सकती है - अरविंद केजरीवाल इसकी सबसे ताजा मिसाल हैं. संभव है हार्दिक भी केजरीवाल से प्रेरित हों - हालांकि, उन्होंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है. केजरीवाल और हार्दिक के आंदोलनों का मकसद एक भले हो लेकिन दोनों के मसले बिलकुल अलग हैं.

नीतीश कुमार और लालू प्रसाद ने पटना में बैठे बैठे फ्लाइंग सपोर्ट भी दिया. लेकिन हार्दिक की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया सामने नहीं आई.

संभव है वक्त कम होने के कारण बिहार उनके एजेंडे में शामिल न हो. हालांकि, बिहार चुनाव में जातीय समीकरण सारे मुद्दों पर हावी हैं.

लेकिन उत्तर प्रदेश में वो दस्तक देने वाले हैं. वजह भी है - यूपी में विधानसभा चुनाव होने में अभी दो साल बाकी हैं.

यूपी में करीब पांच फीसदी लोग पटेल समुदाय से हैं जिन्हें कुर्मी कहा जाता है - और ओबीसी में उनकी हिस्सेदारी तकरीबन 10 फीसदी है. उत्तर प्रदेश में अपना दल पटेलों का प्रतिनिधित्व करती है और लोक सभा चुनाव के दौरान उसका बीजेपी से गठबंधन भी हुआ - लेकिन सोनेलाल पटेल की ये पार्टी फिलहाल पारिवारिक झगड़े का शिकार हो गई है. इसमें मिर्जापुर से मौजूदा सांसद अनुप्रिया पटेल अलग थलग पड़ गई हैं - उनकी बहन पल्लवी पटेल ने मां कृष्णा पटेल के साथ मिल कर अनुप्रिया को बाहर कर दिया है.

निश्चित तौर पर हार्दिक को यूपी में पोटेंशियल दिख रहा होगा जहां पटेलों की खासी आबादी भी है और चुनाव में...

महात्मा गांधी ने पूरी दुनिया को अहिंसक आंदोलन की प्रेरणा दी. नेल्सन मंडेला से लेकर बराक ओबामा तक इसी बात के लिए गांधी के कायल रहे हैं. आंदोलन के इस स्वरूप में यकीन रखने वाले भी इसीलिए गांधीवादी माने जाते हैं - भले ही गांधी से उनके आंदोलन का सिर्फ ये पक्ष मेल खाता हो.

मगर, गांधी की धरती पर आंदोलन खड़ा करनेवाले हार्दिक पटेल उनके विचारों से उतना इत्तेफाक नहीं रखते.

तो क्या रिवर्स दांडी मांर्च के जरिए हार्दिक कोई नया संकेत देना चाह रहे हैं.

बिहार नहीं, यूपी पर नजर

आंदोलनों के जरिए राजनीति में अलग जगह बनाई जा सकती है - अरविंद केजरीवाल इसकी सबसे ताजा मिसाल हैं. संभव है हार्दिक भी केजरीवाल से प्रेरित हों - हालांकि, उन्होंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है. केजरीवाल और हार्दिक के आंदोलनों का मकसद एक भले हो लेकिन दोनों के मसले बिलकुल अलग हैं.

नीतीश कुमार और लालू प्रसाद ने पटना में बैठे बैठे फ्लाइंग सपोर्ट भी दिया. लेकिन हार्दिक की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया सामने नहीं आई.

संभव है वक्त कम होने के कारण बिहार उनके एजेंडे में शामिल न हो. हालांकि, बिहार चुनाव में जातीय समीकरण सारे मुद्दों पर हावी हैं.

लेकिन उत्तर प्रदेश में वो दस्तक देने वाले हैं. वजह भी है - यूपी में विधानसभा चुनाव होने में अभी दो साल बाकी हैं.

यूपी में करीब पांच फीसदी लोग पटेल समुदाय से हैं जिन्हें कुर्मी कहा जाता है - और ओबीसी में उनकी हिस्सेदारी तकरीबन 10 फीसदी है. उत्तर प्रदेश में अपना दल पटेलों का प्रतिनिधित्व करती है और लोक सभा चुनाव के दौरान उसका बीजेपी से गठबंधन भी हुआ - लेकिन सोनेलाल पटेल की ये पार्टी फिलहाल पारिवारिक झगड़े का शिकार हो गई है. इसमें मिर्जापुर से मौजूदा सांसद अनुप्रिया पटेल अलग थलग पड़ गई हैं - उनकी बहन पल्लवी पटेल ने मां कृष्णा पटेल के साथ मिल कर अनुप्रिया को बाहर कर दिया है.

निश्चित तौर पर हार्दिक को यूपी में पोटेंशियल दिख रहा होगा जहां पटेलों की खासी आबादी भी है और चुनाव में लंबा वक्त भी.

तो क्या गुजरात में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी को चुनौती देने के बाद हार्दिक यूपी में दस्तक देने वाले हैं.

वैसे भी माना जाता है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर गुजरता है.

गांधी नहीं ठाकरे

वैसे तो हार्दिक कहते हैं कि वो महात्मा गांधी और सरदार पटेल के विचारों से खासे प्रभावित हैं, लेकिन उसकी भी एक हद है. कोई ये न सोचे कि हार्दिक भी अपने आंदोलन को गांधीवादी बनाए रखेंगे, इसीलिए वो साफ भी कर देते हैं, "भारत और गुजरात क्रांतिकारियों की भूमि है. हम शांति में विश्वास रखते हैं और गांधी और सरदार पटेल के नक्शे कदम पर चलते हैं. लेकिन हम चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों से भी प्रभावित हैं और हिंसा का रास्ता चुनने से भी नहीं डरेंगे."

हाल के दिनों में आंदोलनों की प्रेरणा का नया स्रोत सिनेमा बना और अहिंसक आंदोलन अपने नए कलेवर गांधीगीरी के साथ सामने आया. अरसे से प्रेम के प्रतीक रहे गुलाब का फूल देकर लोग अपना विरोध जताने लगे.

हार्दिक ने भी अपने समर्थकों के साथ गांधीगीरी करने का एलान किया है. जल्द ही हार्दिक गुजरात विधानसभा के 55 विधायकों को गुलाब का फूल भेंट करने वाले हैं.

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने अहमदाबाद से दांडी तक पैदल मार्च किया था. ठीक 85 साल बाद 12 मार्च 2015 को कांग्रेस ने एक और 'दांडी' मार्च किया. दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कोयला घोटाले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सीबीआई के समन के विरोध में नेताओं के साथ पैदल मार्च किया.

अब पटेल समुदाय को आरक्षण देने की मांग को लेकर हार्दिक गांधी के उलट डांडी से अहमदाबाद तक की यात्रा करने जा रहे हैं.

हाल ही में हार्दिक ने शिवसेना के संस्थापक बाला साहब ठाकरे को अपना आदर्श बताया था. सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया तक हर जगह हार्दिक की एक तस्वीर प्रमुखता से नजर आती है जिसमें वो राइफल उठाए दिख रहे हैं.

बस यहीं आकर हार्दिक के आंदोलन का रास्ता गांधी से अलग नजर आता है.

क्या रिवर्स दांडी यात्रा आरक्षण आंदोलन को आगे ले जाने को लेकर हार्दिक की योजनाओं की दशा और दिशा का कोई संकेत है?

हार्दिक के आंदोलन को लेकर एक थ्योरी दी गई कि इसके पीछे आरएसएस का हाथ है. आरएसएस ने पाया है कि धर्म परिवर्तन के पीछे एक बड़ा कारण जाति व्यवस्था है. यानी जाति व्यवस्था खत्म करने के लिए आरक्षण को भी खत्म करना जरूरी है, लेकिन उसके रास्ते में तमाम राजनीतिक पेंच हैं.

हार्दिक पटेल का कहना है कि या तो पटेलों को भी आरक्षण दिया जाए या फिर हर किसी के लिए भी आरक्षण खत्म कर दिया जाए. कुछ दिनों से आरएसएस भी आरक्षण खत्म करने की मांग कर रहा है. हार्दिक का बयान भी आरएसएस की लाइन से मैच कर रहा है जिसका रास्ता सीधे ने आकर पीछे से होकर आ रहा है.

अन्ना की अगुवाई में केजरीवाल के आंदोलन में भी आरएसएस के हाथ होने की तोहमत लग रही थी. अगर वाकई हार्दिक के आंदोलन में आरएसएस का कोई रोल है तो वो तो गांधी से कतई मेल नहीं खा सकता. फिर भला गांधी के रास्ते हार्दिक के चलने का सवाल ही कहां उठता है?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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