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आणंद में आनंदी की हार्दिक हार, कांग्रेस की कामयाबी

    • आईचौक
    • Updated: 03 दिसम्बर, 2015 06:40 PM
  • 03 दिसम्बर, 2015 06:40 PM
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नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस को पिछले 12 साल में हर बार शिकस्त मिलती रही. इस बार कांग्रेस को शहरों में भले ही पांव रखने की जगह नहीं मिली लेकिन गांवों में हाथ फैलाकर अपनी जड़ें जरूर मजबूत कर ली है.

ऐसे नतीजे कम ही देखने को मिलते हैं. चुनावी अखाड़े में उतरे दोनों पक्ष जीतें भी और हार भी जाएं. गुजरात के स्थानीय निकाय चुनाव में तकरीबन ऐसा ही हुआ. बीजेपी शहरों में जीती तो कांग्रेस गांवों में. बीजेपी गांवों में हारी तो कांग्रेस शहरी इलाकों में.

शहर में कमल, गांव में पंजा

नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस को पिछले 12 साल में हर बार शिकस्त मिलती रही. इस बार कांग्रेस को शहरों में भले ही पांव रखने की जगह नहीं मिली लेकिन गांवों में हाथ फैलाकर अपनी जड़ें जरूर मजबूत कर ली है.

शहरी इलाकों में बीजेपी ने अपना कब्जा बरकरार रखा लेकिन ग्रामीण इलाकों में उसकी पकड़ ढीली पड़ गई. बीजेपी को सभी छह महानगरपालिकाओं - अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत, राजकोट, जामनगर और भावनगर - के साथ साथ 52 में से 40 नगरपालिकाएं भी उसके हिस्से में आईं.

लेकिन 31 जिला पंचायत में से 21 पर कांग्रेस अप्रत्याशित रूप से काबिज हो गई और बीजेपी को महज 9 जिला पंचायतों में मिली जीत से संतोष करना पड़ा. पिछली बार 31 में से 30 जिला पंचायत में जीत दर्ज कर बीजेपी ने कांग्रेस को महज एक सीट पर समेट दिया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले ही साल आनंदी बेन को कुर्सी सौंपी थी और तब से अब तक उनकी ये सबसे बड़ी परीक्षा थी. अब सवाल ये है कि आनंदीबेन के इस इम्तिहान में कितने मार्क्स मिले?

आणंद में हारीं आनंदी

क्या आनंदीबेन अव्वल दर्जे से पास हुई हैं? या आनंदीबेन फेल हो गई हैं? या फिर, आनंदीबेन जैसे तैसे फेल होते होते बची भर हैं?

अगर शहरों के नतीजे कोई पैमाना हैं तो आनंदीबेन अव्वल दर्जे से पास मानी जाएंगी. अगर ग्रामीण इलाकों की बात करें तो आनंदीबेन को फेल भी कहा जा सकता है. इसी तरह पूरे नतीजे को देखें तो आनंदीबेन जैसे तैसे पास मानी जा सकती हैं.

चाहे वो आणंद हो या फिर लालकृष्ण आडवाणी का इलाका गांधी नगर बीजेपी की हार हुई है.

आनंदीबेन और उनकी मंत्रिमंडलीय सहयोगी रजनी पटेल के इलाके मेहसाणा...

ऐसे नतीजे कम ही देखने को मिलते हैं. चुनावी अखाड़े में उतरे दोनों पक्ष जीतें भी और हार भी जाएं. गुजरात के स्थानीय निकाय चुनाव में तकरीबन ऐसा ही हुआ. बीजेपी शहरों में जीती तो कांग्रेस गांवों में. बीजेपी गांवों में हारी तो कांग्रेस शहरी इलाकों में.

शहर में कमल, गांव में पंजा

नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस को पिछले 12 साल में हर बार शिकस्त मिलती रही. इस बार कांग्रेस को शहरों में भले ही पांव रखने की जगह नहीं मिली लेकिन गांवों में हाथ फैलाकर अपनी जड़ें जरूर मजबूत कर ली है.

शहरी इलाकों में बीजेपी ने अपना कब्जा बरकरार रखा लेकिन ग्रामीण इलाकों में उसकी पकड़ ढीली पड़ गई. बीजेपी को सभी छह महानगरपालिकाओं - अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत, राजकोट, जामनगर और भावनगर - के साथ साथ 52 में से 40 नगरपालिकाएं भी उसके हिस्से में आईं.

लेकिन 31 जिला पंचायत में से 21 पर कांग्रेस अप्रत्याशित रूप से काबिज हो गई और बीजेपी को महज 9 जिला पंचायतों में मिली जीत से संतोष करना पड़ा. पिछली बार 31 में से 30 जिला पंचायत में जीत दर्ज कर बीजेपी ने कांग्रेस को महज एक सीट पर समेट दिया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले ही साल आनंदी बेन को कुर्सी सौंपी थी और तब से अब तक उनकी ये सबसे बड़ी परीक्षा थी. अब सवाल ये है कि आनंदीबेन के इस इम्तिहान में कितने मार्क्स मिले?

आणंद में हारीं आनंदी

क्या आनंदीबेन अव्वल दर्जे से पास हुई हैं? या आनंदीबेन फेल हो गई हैं? या फिर, आनंदीबेन जैसे तैसे फेल होते होते बची भर हैं?

अगर शहरों के नतीजे कोई पैमाना हैं तो आनंदीबेन अव्वल दर्जे से पास मानी जाएंगी. अगर ग्रामीण इलाकों की बात करें तो आनंदीबेन को फेल भी कहा जा सकता है. इसी तरह पूरे नतीजे को देखें तो आनंदीबेन जैसे तैसे पास मानी जा सकती हैं.

चाहे वो आणंद हो या फिर लालकृष्ण आडवाणी का इलाका गांधी नगर बीजेपी की हार हुई है.

आनंदीबेन और उनकी मंत्रिमंडलीय सहयोगी रजनी पटेल के इलाके मेहसाणा में बीजेपी को शिकस्त मिली है.

इसी तरह वडोदरा, जहां से मोदी लोक सभा चुनाव लड़े थे, में भी कांग्रेस बीजेपी पर भारी पड़ी है.

तो क्या ये बीजेपी को बिहार में मिली शिकस्त का असर है. या, हार्दिक पटेल के खिलाफ आनंदीबेन सरकार के सख्त रवैये का असर है?

अगर इस नजरिये से देखा जाए तो हार्दिक पटेल के गांव वीरमगाम में बीजेपी को हार जाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

विश्लेषण के अलग अलग पैमाने हो सकते हैं. इनमें खुद आनंदीबेन का आकलन सबसे महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए. चुनाव नतीजों पर आनंदीबेन ने कहा, "हमने भले ही नगर निगमों और नगरपालिकाओं में अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन ये भी सच है कि जिला और तालुका पंचायतों के नतीजे अपेक्षा के हिसाब से नहीं रहे."

दिल्ली की भीषण हार के दो दिन बाद ही असम के कुल 743 वार्डों में से बीजेपी ने 340 वार्ड अपने नाम किए थे. बिहार से पहले कई पंचायत चुनावों में बीजेपी का परचम लहराया. अब गुजरात बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए नया सबक है. समझने की बात सिर्फ इतनी है कि हर नतीजा कुछ कहता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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