• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

उत्तरप्रदेश विधान सभा चुनाव एवं ‘गधा’ आख्यान

    • फाल्गुनी तिवारी
    • Updated: 03 मार्च, 2017 10:58 PM
  • 03 मार्च, 2017 10:58 PM
offline
चुनावी जुमलेबाजी की गहमा-गहमी में अचानक गधे जैसे निरीह प्राणी ने केन्द्रीय भूमिका धारण कर ली है. उ.प्र. विधान सभा चुनाव प्रचार में ‘शब्द लाघव’ की एक रोचक समीक्षा.

उ.प्र. विधान सभा का चुनाव अब ‘गधामय’ हो गया है. लोकसभा चुनाव 2014 में अमर सिंह ने आगरा में अवश्य प्रचार के दौरान ‘भैसों’ को प्रणाम करके अपने प्रबल शत्रु आज़म खान पर छींटाकशी की थी, परन्तु जो टी.आर.पी. विधान सभाई चुनाव में गधे को अनायास ही मिल गयी, वह अविश्वसनीय किन्तु सत्य है. मिलनी भी थी, क्योंकि गधा ठहरा गुजरात का. ऐसे पाठकों के लिए जो गधे एवं उ.प्र. के विधान सभाई चुनाव को गम्भी‍रता से नहीं लेते हैं, एक बार घटनाक्रम का संक्षेप में वर्णन किया जाना आवश्यक है.

रायबरेली में एक चुनावी सभा में उ.प्र. के मुख्यामंत्री एवं समाजवादी पार्टी के नये मुखिया अखिलेश यादव ने इस सदी के महानायक अमिताभ बच्चयन से गुजारिश की कि वे ‘गुजरात के गधों’ का प्रचार करना बन्द कर दें. अखिलेश ने गुजरातियों का उपहास सा उड़ाते हुए व्यंग किया कि गुजराती तो गधे का भी प्रचार करते हैं. फिर अखिलेश ने जनता से पूछा कि भाईयों–बहनों भला कोई गधों का भी प्रचार करता है’     

रहिमन जिहवा बावरी कहि गई सरग पताल।

आपु तो कह भीतर भई, जूता खात कपाल।।

सम्भव है कि अखिलेश ने रहीम को उतनी गंभीरता से न पढ़ा हो. अगर पढ़ा भी हो तो शायद गधे का आंकलन करने में उनसे चूक हो गई. गधा वो भी गुजराती. ऐसा नहीं है कि गधे पंचतंत्र के गधे की तरह केवल मूर्ख ही होते हैं. विश्‍व ख्याति प्राप्त कथाकार कृष्ण चन्दर के रचना संसार में तो गधे की ही अहम भूमिका है. ‘एक गधे की आत्मकथा’ एवं ‘एक गधे की वापसी’ और फिर ‘एक गधा नेफा में’ की त्रयी में कृष्ण चन्द्र जी ने इस निरीह से समझे जाने वाले प्राणी के इर्द-गिर्द एक भरा-पूरा रचना संसार ही रच डाला था.

कृष्ण चन्दर का गधा बाराबंकी का था. बकौल कृष्ण...

उ.प्र. विधान सभा का चुनाव अब ‘गधामय’ हो गया है. लोकसभा चुनाव 2014 में अमर सिंह ने आगरा में अवश्य प्रचार के दौरान ‘भैसों’ को प्रणाम करके अपने प्रबल शत्रु आज़म खान पर छींटाकशी की थी, परन्तु जो टी.आर.पी. विधान सभाई चुनाव में गधे को अनायास ही मिल गयी, वह अविश्वसनीय किन्तु सत्य है. मिलनी भी थी, क्योंकि गधा ठहरा गुजरात का. ऐसे पाठकों के लिए जो गधे एवं उ.प्र. के विधान सभाई चुनाव को गम्भी‍रता से नहीं लेते हैं, एक बार घटनाक्रम का संक्षेप में वर्णन किया जाना आवश्यक है.

रायबरेली में एक चुनावी सभा में उ.प्र. के मुख्यामंत्री एवं समाजवादी पार्टी के नये मुखिया अखिलेश यादव ने इस सदी के महानायक अमिताभ बच्चयन से गुजारिश की कि वे ‘गुजरात के गधों’ का प्रचार करना बन्द कर दें. अखिलेश ने गुजरातियों का उपहास सा उड़ाते हुए व्यंग किया कि गुजराती तो गधे का भी प्रचार करते हैं. फिर अखिलेश ने जनता से पूछा कि भाईयों–बहनों भला कोई गधों का भी प्रचार करता है’     

रहिमन जिहवा बावरी कहि गई सरग पताल।

आपु तो कह भीतर भई, जूता खात कपाल।।

सम्भव है कि अखिलेश ने रहीम को उतनी गंभीरता से न पढ़ा हो. अगर पढ़ा भी हो तो शायद गधे का आंकलन करने में उनसे चूक हो गई. गधा वो भी गुजराती. ऐसा नहीं है कि गधे पंचतंत्र के गधे की तरह केवल मूर्ख ही होते हैं. विश्‍व ख्याति प्राप्त कथाकार कृष्ण चन्दर के रचना संसार में तो गधे की ही अहम भूमिका है. ‘एक गधे की आत्मकथा’ एवं ‘एक गधे की वापसी’ और फिर ‘एक गधा नेफा में’ की त्रयी में कृष्ण चन्द्र जी ने इस निरीह से समझे जाने वाले प्राणी के इर्द-गिर्द एक भरा-पूरा रचना संसार ही रच डाला था.

कृष्ण चन्दर का गधा बाराबंकी का था. बकौल कृष्ण चन्दर बाराबंकी के गधे बहुत प्रसिद्ध हैं. उक्त गधा बचपन से ही अखबार पढ़ने का लती था एवं लखनऊ के नामी बैरिस्टर करामत अली शाह की बाराबंकी में निर्माणाधीन कोठी में ईंटा ढोने के काम में लगा था. कृष्ण चन्दर का गधा भी ‘दिल्ली चलो’ के नारे से प्रभावित होकर पहले दिल्ली फिर बंबई पहुंचता है. ‘महालक्ष्मी रेस कोर्स’ में घुड़दौड़ में उसे रूस्‍तम सेठ ‘पीरू का घोड़ा’ बताकर घोड़ों की रेस में ‘गोल्डन स्टॉंर’ के नाम से दौड़ाते भी हैं एवं रेस भी जीतते हैं.

आज लखनऊ की राजनीति में गधे की फिर वापसी हुई है. इस बार ‘गुजराती जंगली गधे’ के तौर पर. 23 फरवरी को बहराइच की चुनावी सभा में तो प्रधानमंत्री मोदी को बैठे-बैठाए एक मुद्दा मिल गया. ‘गधा’ एक निष्ठावान सेवक है, जो अल्पाहारी भी है. रूखा-सूखा खाकर बिना किसी अवकाश या विश्राम के आधे-पेट भी दिन-रात सेवा करने के लिए तत्पर है. गधा भी प्रेरणादायक है. मालिक के प्रति वफादार होता है. प्रधानमंत्री ने अखिलेश को जबाब देते हुए कहा कि गधा ईमानदारी का प्रतीक है. उस पर चाहे ‘चूना’ लदा हो या ‘चीनी’, उसके लिए अपना कार्य उसी निष्ठा से करना होता है. प्रकारान्तर से प्रधानमंत्री मोदी ने जनता जनार्दन को मालिक एवं खुद को देश सेवा में दिन-रात चुपचाप रूखा-सूखा खाकर जुटा रहने वाला गधा तक बता डाला एवं खूब तालियां बटोरी. मोदी ने अखिलेश की भ्रष्टााचार एवं भेदभाव पूर्ण सरकार पर कटाक्ष किया कि वे जानवरों में भी जातिवाद का भेद करते हैं. अखिलेश के लिए भैंस, गधे से अधिक महत्वपूर्ण है.

उ.प्र. चुनाव के चार चरण पूर्ण हो चुके हैं. सपा, बसपा एवं भाजपा के मुख्य प्रचारक क्रमश: अखिलेश, मायावती एवं मोदी के प्रचार में चौथे चरण के आते-आते मुद्दे तो कमोबेश समाप्त हो चुके हैं. प्रचार जुमलों एवं नई शब्दावली के गढ़ने एवं परिभाषित करने तक सीमित है. ‘क’ से ‘कसाब’ है या कबूतर जैसी चुटकियों ने गम्भीर भाषण एवं प्रचार का स्थान ले लिया है. उ.प्र. की विशालता एवं क्षेत्रीय विविधता इस चुनाव प्रचार को सर्वाधिक प्रभावित करता दिख रहा है.

अब प्रश्न उठता है कि इस चुनाव के मुद्दे क्या हैंॽ क्याा एंटी-इंकमबेंसी मुद्दा हैॽ यह सत्य है कि अखिलेश के प्रति जनता के मन में निजी तौर पर नाराजगी नहीं है. लेकिन 2012 में मायावती के प्रति भी कोई निजी नाराजगी नहीं थी. मायावती के शासन को भ्रष्टाचार ले डूबा था. अखिलेश की सरकार भी भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबी रही है. लोक सेवा आयोग हो या अन्य भर्तियां सभी घोटालों एवं विवादों से घिरी रही है. एक जाति विशेष के पक्ष में सभी नियुक्तियां, ठेका परमिट एवं दलाली, किसी तरह से अखिलेश के शासन को सुशासन नहीं बनाता है. अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण, टिकट बंटवारे में वोट बैंक बनाने का अति उत्सााह सपा के प्रति बहुसंख्यक मतदाताओं को निराश करता दिखता है.

सपा के प्रति एंटी-इंकमबेंसी की कमी का सबसे बड़ा खामियाजा बसपा को उठाना पड़ रहा है. मायावती की सरकार का सबसे बड़ा यूएसपी ‘कानून व्यवस्था’ ही था. मुद्दों के आभाव में कानून-व्यवस्था हाशिए पर चली गई है. अल्पसंख्यकों को टिकट बांटने में सपा से बढ़कर दिखने की होड़ में बसपा को निश्चित ही गैर जाटव दलित एवं अति पिछड़े मतदाताओं का नुकसान हुआ है. इसके अतिरिक्त बसपा के सवर्ण एवं पिछड़े वर्ग के उम्मीदवार अपने सजातीय मतदाताओं को लुभाने में उतने कामयाब नहीं रहे हैं. बसपा के लिए यह संतोष का विषय है कि आखिरी तीन चरणों में उसका प्रदर्शन पूर्व के चुनावों में बेहतर रहा है.

भाजपा का चुनाव मोदी फैक्टर पर निर्भर है. मोदी की विकास पुरूष की छवि है. नोटबंदी का असर सकारात्मक है या नकारात्मक, यह केवल अकादमिक चिंतन की विषयवस्तु रह गयी है. ए.टी.एम. के सामने खड़े होने की पीड़ा लोग कमोबेश भूल चुके हैं. नये नोटों की लोगों की आदत पड़ चुकी है. नोटबंदी आम लोगों के लिए शायद ‘आर्थिक निर्णय’ उतना नहीं है, जितना मोदी की जोखिम लेने एवं निर्णायक नेतृत्व दिखाने की क्षमता का प्रतीक है. उ.प्र. वर्षों से सपा-बसपा के शासन को देखता आया है. आम जन के मन में यह धारणा बैठ रही है कि प्रदेश की स्थिति शायद तभी बदलेगी जब दिल्ली एवं लखनऊ में एक ही पार्टी की सरकार हो. मोदी निश्चय ही ‘सपनों के सौदागर हैं’. अभी प्रदेश की जनता का मोदी मोह भंग नहीं हुआ है. यह सही है कि 2014 जैसी भाजपा की सुनामी प्रदेश में नहीं है. किन्तु  प्रदेश में बदलाव की बयार जरूर है. भाजपा महाराष्ट्र जैसे चमत्कार की उ.प्र. में अगर उम्मीाद करती है तो शायद गलत नहीं है.

और अन्तं में- उ.प्र. चुनाव के अंतिम तीन चरण पूर्वांचल के हैं. पूर्वांचल की दो कहावतें मशहूर हैं ‘’भगवान अपने गधे को भी जलेबी खिलाता है’’ तथा ‘गर खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान’. यह तो 11 मार्च को ही मालूम हो सकेगा कि ऊंट या ‘गधा’ किस करवट बैठता है. तब तक बकौल कृष्ण चन्दर (गालिब से क्षमा-याचना सहित) -

’बनाकर गधों का हम भेस गालिब, तमाशा–ऐ–अहले-करम देखते है.'

ये भी पढ़ें-

हां, मैं तो गधा हूं और मुझे इस पर गर्व है...

ये गदहे, ये खच्चर, ये घोड़ों की दुनिया..

Exclusive : नेता बने गधे का पहला इंटरव्यू

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲