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मोस्ट फेवरेट होकर भी सत्ता की रेस में मायावती पीछे क्यों हैं

    • आईचौक
    • Updated: 13 अक्टूबर, 2016 09:42 PM
  • 13 अक्टूबर, 2016 09:42 PM
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बीजेपी की ओर से चेहरा घोषित न होने से भले ही उसके नेता को सर्वे में तीसरा स्थान मिल रहा हो लेकिन सीटों के मामले में वो बीएसपी से आगे चल रही है.

इंडिया टुडे के सर्वे से पता चला है कि मायावती यूपी सीएम के लिए सबसे पसंदीदा उम्मीदवार हैं. लेकिन सत्ता की रेस में फिलहाल वो बीजेपी से पीछे हो गई हैं - इसकी बड़ी वजह सर्जिकल स्ट्राइक के कारण बीजेपी को मिल रहा फायदा हो सकता है. सर्वे में जब लोगों से पूछा गया कि सर्जिकल स्ट्राइक से मोदी कितने ताकतवर हुए हैं, तो 91 फीसदी लोगों ने 'हां' में जवाब दिया.

माया मोस्ट फेवरेट

सर्वे में शामिल 27 फीसदी लोग जहां मौजूदा सीएम अखिलेश यादव को दोबारा कुर्सी पर बिठाना चाहते हैं, वहीं उनके मुकाबले 4 फीसदी ज्यादा यानी 31 फीसदी लोग अगली बार मायावती को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. इस लिस्ट में 18 फीसदी लोगों की पसंद के साथ राजनाथ सिंह तीसरे नंबर पर जबकि चौथे नंबर रहीं शीला दीक्षित को महज 1 फीसदी लोगों ने अपना पसंदीदा उम्मीदवार बताया है.

इसे भी पढ़ें: अयोध्या कांड और दंगों का डर दिखाने से माया को नहीं मिलेगा वोट

बीजेपी की ओर से चेहरा घोषित न होने से भले ही उसके नेता को तीसरा स्थान मिल रहा हो लेकिन सीटों के मामले में वो बीएसपी से आगे चल रही है. बीएसपी को जहां 115-124 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है वहीं बीजेपी के खाते में 170-183 सीटें दिख रही हैं. इस रेस में समाजवादी पार्टी पिछड़ कर तीसरे स्थान पर पहुंच रही है.

जहां तक सर्वे की बात है तो ये 5 सितंबर से 5 अक्टूबर तक यानी महीने भर चला है. इसी दौरान पाकिस्तान के खिलाफ सरहद पार सर्जिकल स्ट्राइक भी हुआ है.

इंडिया टुडे के सर्वे से पता चला है कि मायावती यूपी सीएम के लिए सबसे पसंदीदा उम्मीदवार हैं. लेकिन सत्ता की रेस में फिलहाल वो बीजेपी से पीछे हो गई हैं - इसकी बड़ी वजह सर्जिकल स्ट्राइक के कारण बीजेपी को मिल रहा फायदा हो सकता है. सर्वे में जब लोगों से पूछा गया कि सर्जिकल स्ट्राइक से मोदी कितने ताकतवर हुए हैं, तो 91 फीसदी लोगों ने 'हां' में जवाब दिया.

माया मोस्ट फेवरेट

सर्वे में शामिल 27 फीसदी लोग जहां मौजूदा सीएम अखिलेश यादव को दोबारा कुर्सी पर बिठाना चाहते हैं, वहीं उनके मुकाबले 4 फीसदी ज्यादा यानी 31 फीसदी लोग अगली बार मायावती को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. इस लिस्ट में 18 फीसदी लोगों की पसंद के साथ राजनाथ सिंह तीसरे नंबर पर जबकि चौथे नंबर रहीं शीला दीक्षित को महज 1 फीसदी लोगों ने अपना पसंदीदा उम्मीदवार बताया है.

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बीजेपी की ओर से चेहरा घोषित न होने से भले ही उसके नेता को तीसरा स्थान मिल रहा हो लेकिन सीटों के मामले में वो बीएसपी से आगे चल रही है. बीएसपी को जहां 115-124 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है वहीं बीजेपी के खाते में 170-183 सीटें दिख रही हैं. इस रेस में समाजवादी पार्टी पिछड़ कर तीसरे स्थान पर पहुंच रही है.

जहां तक सर्वे की बात है तो ये 5 सितंबर से 5 अक्टूबर तक यानी महीने भर चला है. इसी दौरान पाकिस्तान के खिलाफ सरहद पार सर्जिकल स्ट्राइक भी हुआ है.

नेता नंबर 1, पार्टी नंबर 2

मायावती सर्वे रिपोर्ट से खासी खफा नजर आ रही हैं. मायावती ने चुनाव के दौरान सर्वे कराने वाली एजेंसियों को विरोधी दलों से मिला हुआ बताया है. मायावती के विरोधी दलों में जितनी बीजेपी है, उतनी ही समाजवादी पार्टी - और कांग्रेस भी. सर्वे में समाजवादी पार्टी जहां तीसरे नंबर पर लुढ़कती नजर आ रही है वहीं कांग्रेस फिर से फिसड्डी साबित होने जा रही है - यहां तक कि 25 दिनों तक चली राहुल गांधी की किसान यात्रा और खाट सभा का भी लोगों पर कोई असर नहीं दिख रहा.

सर्वे समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को लेकर जो नतीजे आये हैं उन्हें देख कर तो मायावती का बयान ही मजाक जैसा लग रहा है. क्या रेस में बीएसपी आगे रहती तो भी मायावती की यही प्रतिक्रिया होती? शायद नहीं, बल्कि प्रेस कांफ्रेंस में स्क्रिप्ट अलग होती.

बीएसपी नेताओं के साथ समीक्षा बैठक में मायावती कहा क‌ि यूपी में बीएसपी का मुकाबला ऐसी सरकारों (सूबे में समाजवादी पार्टी और केंद्र में बीजेपी) जो हर तरह के हथकंडे अपनाकर लोगों को बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं. मायावती ने बताया कि ये सारे हथकंडे बीएसपी का मनोबल गिराने के लिए अपनाये जा रहे हैं.

फिर भी पीछे क्यों...

मायावती के सर्वे रिपोर्ट से चिढ़ने की सबसे बड़ी वजह मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा समाजवादी पार्टी के खेमे में जाना हो सकता है. हाल के दिनों में बीएसपी की हर रैली में मायावती का पूरा जोर मुस्लिम वोट पर रहा. अभी अभी लखनऊ की रैली में तो उन्होंने यहां तक कहा कि मुसलमानों को अपना वोट समाजवादी पार्टी को देकर बर्बाद नहीं करना चाहिये. सहारनपुर की रैली में भी मायावती ने मुसलमानों को मुजफ्फरपुर दंगे और अयोध्या के मंदिर आंदोलन की याद दिला कर दहलाने की कोशिश की.

असल में, सर्वे में 58 फीसदी मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी का साथ देने की बात कही है. ले देकर सिर्फ 21 फीसदी मुसलमान ही मायावती के पाले में खड़े नजर आ रहे हैं - अगर ऐसा हुआ फिर तो मायावती का 'दम' (दलित-मुस्लिम) फैक्टर पूरी तरह बेदम साबित हो सकता है. मायावती के लिए बस अच्छी बात ये है कि उनका 71 फीसदी दलित वोटर चट्टान की मजबूती के साथ उनके समर्थन में डटा हुआ है.

इसे भी पढ़ें: रैलियों में भीड़ के बावजूद मायावती इतनी डिफेंसिव क्यों हो रहीं

वैसे देखा जाये तो सर्वे में भी वही बात है जैसी आशंका मायावती जता चुकी हैं. लखनऊ की रैली में मायावती ने समझाया कि अगर मुसलमान समाजवादी पार्टी को वोट देते हैं तो वो बेकार जाएगा और कहीं ऐसा न हो इसके चलते बीजेपी सत्ता में आ जाये. इसका मतलब तो यही हुआ कि मायावती भी मानती हैं कि मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी के ज्यादा करीब है, बनिस्बत बीएसपी और कांग्रेस के मुकाबले.

मायावती अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं से जो भी कहें लेकिन जन्नत की हकीकत उन्हें भी मालूम है, बेहतर होता सर्वे को कोसने की बजाये बीएसपी नेता जमीनी सच्चाई को स्वीकार करतीं और आगे की स्ट्रैटेजी अपनातीं - वैसे भी अभी चुनाव में इतना वक्त तो है कि कोई भी बाजी पलटी जा सकती है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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