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कश्मीर में चल रहा महा तलाशी अभियान वि‍फल हो जाएगा, क्‍योंकि...

    • अशरफ वानी
    • Updated: 05 मई, 2017 08:32 PM
  • 05 मई, 2017 08:32 PM
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स्थानीय लोगों का जो समर्थन आतंकियों को अब हासिल है वह 20 साल पहले नहीं था और ये क्रैकडाउन के वक्त साबित भी हुआ जब महिलाओं समेत कई लोग सुरक्षा बालों पर पत्थर फेंकने लगे.

गरुवार सुबह दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले में सुरक्षा बलों ने करीब 20 गांवों की घेराबंदी करके आतंकियों के खिलाफ एक बड़ा तलाशी अभियान शरू किया. सेना सीआरपीएफ और जम्मू कश्मीर पुलिस के 4000 जवान और अफसर इस बड़े तलाशी अभियान का हिस्सा थे. यूं तो सुरक्षा बलों की तरफ से कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ छापेमारी या तलाशी अभियान रोज की बात है, लेकिन इस तरह का तलाशी अभियान कश्मीर में करीब 20 साल के बाद हुआ है और यह बात भी अब कहीं न कहीं यही सवाल खड़े करती है कि क्या कश्मीर में आतंकवाद के ऐसे ही हालात बन गए हैं जैसे 1990 के बाद थे.

जब घाटी के करीब 40 हज़ार युवा सीमा पार करके पाकिस्तानी कब्ज़े वाले कश्मीर में प्रशिक्षण और हथियार लेकर घाटी में दाखिल हो गए थे. हर मोहल्ले और हर गांवो में आतंकवादियों की ही चलती थी, सरकार के नाम पर कुछ नहीं था और जम्मू कश्मीर में फ़ारूक़ अब्दुल्लाह ने सरकार छोड़कर दिल्ली में शरण ली थी. इतना ही नहीं करीब 22 आतंकी संघठनों का गठन हुआ था और इसी दौर में पाकिस्तान में ही लश्कर भी बना और जैश भी, जो कश्मीर में जिहाद के लिए सैकड़ों की तादाद में पहुंच चुके थे, तब कश्मीर में न ही सेना की और न ही सुरक्षा बालों की इतनी तैनाती थी जितनी आज है.

कश्मीर में 1990 में हुए क्रैकडाउन का एक दृश्य

यहां तक कि नियंत्रण रेखा पार करना किसी सैर सपाटे की तरह लगता था. पाकिस्तानी कब्ज़े वाले कश्मीर से जम्मू कश्मीर में दाखिल होना बहुत आसान था, लेकिन फिर धीरे-धीरे सुरक्षा बलों और सेना ने कश्मीर में पकड़ बढ़ाई और उसका एक तरीका क्रैक्डाउन ही था जहां सेना और सुरक्षा बल एक बड़े इलाके को घेरे में लेते थे और फिर तलाशी अभियान चलाते हुए न सिर्फ हथियार बल्कि आतंकवादियों को ज़िंदा पकड़ते थे.

ज़िंदा पकड़े गए आतंकी सुरक्षा बलों के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद साबित...

गरुवार सुबह दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले में सुरक्षा बलों ने करीब 20 गांवों की घेराबंदी करके आतंकियों के खिलाफ एक बड़ा तलाशी अभियान शरू किया. सेना सीआरपीएफ और जम्मू कश्मीर पुलिस के 4000 जवान और अफसर इस बड़े तलाशी अभियान का हिस्सा थे. यूं तो सुरक्षा बलों की तरफ से कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ छापेमारी या तलाशी अभियान रोज की बात है, लेकिन इस तरह का तलाशी अभियान कश्मीर में करीब 20 साल के बाद हुआ है और यह बात भी अब कहीं न कहीं यही सवाल खड़े करती है कि क्या कश्मीर में आतंकवाद के ऐसे ही हालात बन गए हैं जैसे 1990 के बाद थे.

जब घाटी के करीब 40 हज़ार युवा सीमा पार करके पाकिस्तानी कब्ज़े वाले कश्मीर में प्रशिक्षण और हथियार लेकर घाटी में दाखिल हो गए थे. हर मोहल्ले और हर गांवो में आतंकवादियों की ही चलती थी, सरकार के नाम पर कुछ नहीं था और जम्मू कश्मीर में फ़ारूक़ अब्दुल्लाह ने सरकार छोड़कर दिल्ली में शरण ली थी. इतना ही नहीं करीब 22 आतंकी संघठनों का गठन हुआ था और इसी दौर में पाकिस्तान में ही लश्कर भी बना और जैश भी, जो कश्मीर में जिहाद के लिए सैकड़ों की तादाद में पहुंच चुके थे, तब कश्मीर में न ही सेना की और न ही सुरक्षा बालों की इतनी तैनाती थी जितनी आज है.

कश्मीर में 1990 में हुए क्रैकडाउन का एक दृश्य

यहां तक कि नियंत्रण रेखा पार करना किसी सैर सपाटे की तरह लगता था. पाकिस्तानी कब्ज़े वाले कश्मीर से जम्मू कश्मीर में दाखिल होना बहुत आसान था, लेकिन फिर धीरे-धीरे सुरक्षा बलों और सेना ने कश्मीर में पकड़ बढ़ाई और उसका एक तरीका क्रैक्डाउन ही था जहां सेना और सुरक्षा बल एक बड़े इलाके को घेरे में लेते थे और फिर तलाशी अभियान चलाते हुए न सिर्फ हथियार बल्कि आतंकवादियों को ज़िंदा पकड़ते थे.

ज़िंदा पकड़े गए आतंकी सुरक्षा बलों के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद साबित होते गए जो थोड़ी सी मारपीट पर न सिर्फ और आतंकियों को पकड़वाते थे बल्कि उनमें कई सेना के लिए मुखबिर भी बन गए. लेकिन गरुवार को 20 साल बाद शोपियां में क्रैकडाउन के दौरान सुरक्षा बलों के हाथ कुछ नहीं लगा, उल्टा क्रैकडाउन जब खत्म हुआ तो आतंकियों ने घात लगाकर सेना की एक टुकड़ी पर गोलीबारी की जिसमें सेना के 2 जवानों के घायल होने के साथ-साथ वाहन चला रहे एक सिविल ड्राइवर की मौत हो गई.

सुरक्षा एजेंसी के अनुसार घाटी में इस वक्‍त करीब 200 के करीब आतंकी हैं और सुरक्षा बलों की तादाद लाखों में है फिर भी आतंकवाद के खिलाफ सुरक्षा बलों को कम सफलताएं क्यों मिल रही हैं, यह सबसे बड़ा सवाल है. जवाब साफ है कि स्थानीय लोगों का जो समर्थन आतंकियों को अब हासिल है वह 20 साल पहले नहीं था और वह कल तब भी साफ हुआ जब शोपियां में ही महिलाओं समेत कई लोग सुरक्षा बालों पर पत्थर फेंकने लगे और प्रदर्शनकारियों पर पुलिस को आंसू गैस के गोले दागने पड़े.

पिछले एक साल से जिस तरह कई मुठभेड़ वाली जगहों पर लोग आतंकियों को बचने के लिए सामने आए हैं उसने सुरक्षा एजेंसियों के साथ-साथ सरकार की चिंताए भी बढ़ाई हैं.

ज़ाहिर है आतंकवाद के खिलाफ कोई भी लड़ाई तब तक सफल नहीं रहती है जब तक आम लोगों का साथ न मिले. इसलिए सरकार को कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई से पहले आम लोगों के दिल जीतने होंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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