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कांग्रेस पार्टी की दुश्मन खुद कांग्रेस ही है

    • जगत सिंह
    • Updated: 20 मार्च, 2017 03:52 PM
  • 20 मार्च, 2017 03:52 PM
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कांग्रेस पार्टी की कमान इतनी ढीली पड़ी हुई है कि जब फैसले की घडी आती है तब बीजेपी सारे आकलन को अपने पक्ष में लेकर काम कर चुकी होती है. अब सवाल ये उठता है कि क्यों कांग्रेस अपनी राजनीतिक मौत की तरफ लगातार बढ़ते जाने को विवश है.

आज के हालात की चर्चा करें तो आईने की तरह साफ है कि कांग्रेस इस समय एक बहुत ही मुश्किल दौर से गुजर रही है. और कांग्रेस इसी गति से दौड़ती रही, तो बकौल उमर अब्दुल्ला अब 2019 की बात छोड़ दीजिये और 2024 की तैयारी कीजिये, या फिर लगातार विपक्ष में बैठकर अपने लगातार घटती सांसदों, और राज्य सरकारों की संख्या को धृतराष्ट्र की तरह बैठकर देखते हुए कांग्रेस अधोगति को प्राप्त हो जाने की विवशता से देखते रहिये. इसके लिए अगर कोई दोषी है तो वह है कांग्रेस के प्रधान सेनापति और खुद योद्धओं की विवशता. कमान इतनी ढीली पड़ी हुई है कि जब फैसले की घडी आती है तब फैसले लेने में इतनी देर हो चुकी होती है कि प्रतिपक्षी बीजेपी सारे आकलन को अपने पक्ष में लेकर काम कर चुकी होती है. अब सवाल ये उठता है कि क्यों कांग्रेस अपनी राजनीतिक मौत की तरफ लगातार बढ़ते जाने को विवश है.

गोवा में 13 सीट जीतने के बाद भी बीजेपी की सरकार बनने पर कांग्रेस ने राज्यसभा में जमकर हंगामा किया. कांग्रेस का आरोप था कि चुनाव परिणाम आने के बाद बीजेपी ने धनबल का प्रयोग करके बहुमत हासिल किया, लेकिन इसके पहले विश्वजीत राणे ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया, और दिग्विजय सिंह ने भी कांग्रेस के अन्तर्कलह को वर्तमान स्थिति के लिए जिम्मेवार बताया था. साथ ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने 2019 में नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए एक समान विचारधारा वाले दलों को एकजुट होने ही बात कही. कमोबेश यही हश्र कांग्रेस का मणिपुर में भी हुआ.

कांग्रेस सत्ता में हमेशा काबिज नहीं रह सकती है, पर विपक्ष में भी रहे तो मजबूती से, जो अब पार्टी के लिए दूर की कौड़ी लगती है, जो न केवल कांग्रेस पार्टी बल्कि देश के मजबूत लोकतंत्र पर भी बहुत बड़ा सवालिया निशान है. लगातार कमजोर होती कांग्रेस अब इस रोल में भी मिसफिट हो गयी है, चिंतन इस बात पर ज्यादा...

आज के हालात की चर्चा करें तो आईने की तरह साफ है कि कांग्रेस इस समय एक बहुत ही मुश्किल दौर से गुजर रही है. और कांग्रेस इसी गति से दौड़ती रही, तो बकौल उमर अब्दुल्ला अब 2019 की बात छोड़ दीजिये और 2024 की तैयारी कीजिये, या फिर लगातार विपक्ष में बैठकर अपने लगातार घटती सांसदों, और राज्य सरकारों की संख्या को धृतराष्ट्र की तरह बैठकर देखते हुए कांग्रेस अधोगति को प्राप्त हो जाने की विवशता से देखते रहिये. इसके लिए अगर कोई दोषी है तो वह है कांग्रेस के प्रधान सेनापति और खुद योद्धओं की विवशता. कमान इतनी ढीली पड़ी हुई है कि जब फैसले की घडी आती है तब फैसले लेने में इतनी देर हो चुकी होती है कि प्रतिपक्षी बीजेपी सारे आकलन को अपने पक्ष में लेकर काम कर चुकी होती है. अब सवाल ये उठता है कि क्यों कांग्रेस अपनी राजनीतिक मौत की तरफ लगातार बढ़ते जाने को विवश है.

गोवा में 13 सीट जीतने के बाद भी बीजेपी की सरकार बनने पर कांग्रेस ने राज्यसभा में जमकर हंगामा किया. कांग्रेस का आरोप था कि चुनाव परिणाम आने के बाद बीजेपी ने धनबल का प्रयोग करके बहुमत हासिल किया, लेकिन इसके पहले विश्वजीत राणे ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया, और दिग्विजय सिंह ने भी कांग्रेस के अन्तर्कलह को वर्तमान स्थिति के लिए जिम्मेवार बताया था. साथ ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने 2019 में नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए एक समान विचारधारा वाले दलों को एकजुट होने ही बात कही. कमोबेश यही हश्र कांग्रेस का मणिपुर में भी हुआ.

कांग्रेस सत्ता में हमेशा काबिज नहीं रह सकती है, पर विपक्ष में भी रहे तो मजबूती से, जो अब पार्टी के लिए दूर की कौड़ी लगती है, जो न केवल कांग्रेस पार्टी बल्कि देश के मजबूत लोकतंत्र पर भी बहुत बड़ा सवालिया निशान है. लगातार कमजोर होती कांग्रेस अब इस रोल में भी मिसफिट हो गयी है, चिंतन इस बात पर ज्यादा होना चाहिए, न कि अपनी गलती और कमजोरी का ठीकरा बीजेपी पर फोड़ने कि कवायद पर. जरूरत यहां ये है कि बीजेपी के रणनीतिक हथियार से ही बीजेपी का सफाया करने के लिए कमर कसनी पड़ेगी,  इसके पूर्व विपक्षी पार्टियों ने EVM के दुरुपयोग होने की बात कही. लेकिन इन तमाम आरोपों का लब्बोलुआब ये है कि कांग्रेस अपने घर पे आई मुसीबतों की अनदेखी कर रही है और दोष भाजपा पर मढ़कर अपने कर्तव्यों को पूरा होने के मुगालते में जीने को अभिशप्त हो गयी है.

कब तक कांग्रेस विधवा विलाप करती रहेगी, केवल पंजाब की जीत का जश्न मनाने से काम नहीं चलेगा, बीजेपी की तर्ज पर चार राज्यों में जीत पर बड़ा जश्न नहीं मनाया गया, बल्कि और बड़ी राणनीति के तहत 2019 की तैयारी के साथ दक्षिण के राज्यों का किला फतह कैसे होगा की रणनीति पर काम शुरू किये जाने का संकल्प और कार्यक्रम का निर्देश निर्गत किया गया. हर सांसद, विधायक, केंद्रीय मंत्रियों के साथ तमाम कार्यकर्ताओं को जोश के साथ अगले मिशन पर लग जाने का आवाहन कर दिया गया है. अब गेंद कांग्रेस के पाले में है, क्या कांग्रेस पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को महा जनसंपर्क को प्रेरित करेगी, क्या अपने पार्टी के अंतरकलह को खत्म करने की कोशिश करेगी, क्या अपनी पार्टी में अंदरूनी प्रजातंत्र लागू करेगी, जहां जमीनी कार्यकर्ताओं की बात भी सुनी जा सकेगी, क्या युवा नेतृत्व को काम करने की आजादी मिलेगी, क्या भविष्य की राजनीति के लिए दूरदर्शी कार्यक्रम तय किए जायेंगे, क्या लोगों के मुद्दों से पार्टी को जोड़ पायेगी.

आत्ममंथन के साथ कांग्रेस के सेनापति और मुख्य रणनीतिकारों को भविष्य की नीति और ठोस कार्यक्रम तय करने पड़ेंगें और गलतियों को फिर से न दुहराया जाय इसकी व्यवस्था करनी पड़ेगी, नहीं तो कांग्रेस भविष्य में कांग्रेस का दुश्मन बन कर और इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जयेगी, फैसले और उसपर अमल करने की घड़ी आ गयी है क्योंकि काल का घूमता पहिया किसी का इंतजार नहीं करता.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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