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महागठबंधन: बिहार में एक, यूपी में अनेक

    • सुजीत कुमार झा
    • Updated: 05 अक्टूबर, 2016 05:50 PM
  • 05 अक्टूबर, 2016 05:50 PM
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जिस उद्देश्‍य और ताकत के साथ बिहार में महागठबंधन बनाया गया था, यूपी के मदृेनजर वह अलग-थलग हो गया है. नीतीश कुमार और अजित सिंह के बीच गठबंधन होना इसी का संकेत है.

उत्तरप्रदेश में चुनाव जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है वैसे-वैसे राजनीतिक दलों की भावनाएं भी सामने आती जा रही हैं. हालांकि राजनीतिक दलों की फितरत है कि वो अपनी वोट बैंक के आधार पर ही गठबंधन बनाते हैं और चुनाव में जनता का समर्थन लेने के लिए व्याकूल रहते हैं. नहीं तो क्या कारण है कि जो महागठबंधन बिहार में चट्टानी एकता दिखता है या दिखाने की कोशिश करता है वो उत्तर प्रदेश में जाकर बिखर जाता है. हम बात कर रहें है बिहार में बने महागठबंधन की, जिसको बिहार जीते अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ है पर यूपी चुनाव में इस गठबंधन की चट्टानी एकता को ऐसा हथौडा लगा कि वो तीन टुकडों में बंट गया.

बिहार के चुनाव से कुछ महीने पहले जनता दल यू आरजेडी और कांग्रेस ने महागठबंधन बनाया और न सिर्फ बनाया बल्कि चट्टानी एकता दिखाते हुए बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को दिन में ही तारे दिखा दिए. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में सरकार भी चल रही है जिसमें आरजेडी और कांग्रेस भी शामिल है. बिहार में ये तीनों दल महागठबंधन का हिस्सा हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में इनकी चट्टानी एकता को क्या हो गया. तीनों तीन जगह खडे हैं. ये बात इसलिए है कि यूपी में चुनावी बिसात पर अब स्थिति लगभग स्पष्ट होने लगी है.

ये भी पढ़ें- नीतीश सरकार कार्यकाल पूरा करेगी या 2019 तक भी नहीं टिकेगी?

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बडौत में हुई रैली से बहुत कुछ साफ हो गया है. यूपी में जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय लोक दल यानि अजित सिंह की पार्टी के साथ गठबंधन हो रहा है. तो कांग्रेस अकेले ही राहुल गांधी की बदौलत चुनाव मैदान में खाट लेकर उतर चुकी है. रही बात लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी की तो आरजेडी तो चुनाव मैदान में नहीं उतर नहीं रही है लेकिन...

उत्तरप्रदेश में चुनाव जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है वैसे-वैसे राजनीतिक दलों की भावनाएं भी सामने आती जा रही हैं. हालांकि राजनीतिक दलों की फितरत है कि वो अपनी वोट बैंक के आधार पर ही गठबंधन बनाते हैं और चुनाव में जनता का समर्थन लेने के लिए व्याकूल रहते हैं. नहीं तो क्या कारण है कि जो महागठबंधन बिहार में चट्टानी एकता दिखता है या दिखाने की कोशिश करता है वो उत्तर प्रदेश में जाकर बिखर जाता है. हम बात कर रहें है बिहार में बने महागठबंधन की, जिसको बिहार जीते अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ है पर यूपी चुनाव में इस गठबंधन की चट्टानी एकता को ऐसा हथौडा लगा कि वो तीन टुकडों में बंट गया.

बिहार के चुनाव से कुछ महीने पहले जनता दल यू आरजेडी और कांग्रेस ने महागठबंधन बनाया और न सिर्फ बनाया बल्कि चट्टानी एकता दिखाते हुए बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को दिन में ही तारे दिखा दिए. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में सरकार भी चल रही है जिसमें आरजेडी और कांग्रेस भी शामिल है. बिहार में ये तीनों दल महागठबंधन का हिस्सा हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में इनकी चट्टानी एकता को क्या हो गया. तीनों तीन जगह खडे हैं. ये बात इसलिए है कि यूपी में चुनावी बिसात पर अब स्थिति लगभग स्पष्ट होने लगी है.

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उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बडौत में हुई रैली से बहुत कुछ साफ हो गया है. यूपी में जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय लोक दल यानि अजित सिंह की पार्टी के साथ गठबंधन हो रहा है. तो कांग्रेस अकेले ही राहुल गांधी की बदौलत चुनाव मैदान में खाट लेकर उतर चुकी है. रही बात लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी की तो आरजेडी तो चुनाव मैदान में नहीं उतर नहीं रही है लेकिन उत्तरप्रदेश में वो अपने छोटे भाई नीतीश कुमार की मदद करने के बजाए अपने समधी मुलायम सिंह की पार्टी समाजवादी पार्टी के समर्थन में खडे हैं. लालू यादव पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि आरजेडी उत्तरप्रदेश में चुनाव नहीं लडेगी. लेकिन वो समाजवादी पार्टी के चुनाव प्रचार करने के लिए मैदान में उतरेगे. इस तरह बिहार के महागठबंधन के दल उत्तर प्रदेश में अलग-अलग एक दुसरे के खिलाफ चुनाव लडेंगे.

लालू यादव नीतीश कुमार की मदद करने के बजाए अपने समधी मुलायम सिंह का समर्थन कर रहे हैं

एक दौर वो भी था जब जनता दल यू, आरजेडी और समाजवादी पार्टी समेत कई समान विचारधारा की पार्टियां विलय करने पर आमदा थीं. खैर विलय का सपना तो पहले ही टूट गया. नीतीश कुमार के तमाम कोशिशों के बावजूद विलय तो नहीं हो सकता. लेकिन मुलायम सिंह के नेतृत्व में महागठबंधन के जरिए एकजुटता दिखाने की कोशिश जरूर हुई थी. लेकिन चुनाव के ऐन मौके पर मुलायम सिंह महागठबंधन से अलग हो गए. और बिहार में उनकी पार्टी ने महागठबंधन के खिलाफ चुनाव लडा. खैर इसके बावजूद बिहार में महागठबंधन की जीत हुई.

पर सवाल उत्तरप्रदेश चुनाव का है. उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी को अपनी कुर्सी बचानी है तो बहुजन समाजवादी पार्टी और बीजेपी पूरी ताकत के साथ मैदान में डटे हैं. कांग्रेस भी राहुल गांधी के खाट पर चर्चा कार्यक्रम के तहत अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है. लेकिन यहां हम बात कर रहे हैं बिहार के महागठंबधन की. जनता दल यू और राष्ट्रीय लोक दल ने जयंत सिंह को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस की तरफ से शीला दीक्षित मुख्यमंत्री की उम्मीदवार है तो लालू प्रसाद यादव समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव को तमाम पारिवारिक विवादों के बावजूद दोबारा मुख्यमंत्री बनाने के लिए कमर कस रहे हैं.

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लेकिन सबसे अहम बात बिहार चुनाव में महागठबंधन के रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर भी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए रणनीति बनाने में लगे हैं. बिहार में जनता दल यू के चाणक्य रहे प्रशांत किशोर ने न सिर्फ जनता दल यू का बल्कि आरजेडी और कांग्रेस स्ट्रेटजी बनाने में सहयोग किया था लेकिन उत्तर प्रदेश में वो केवल कांग्रेस के ही रणनीतिकार हैं.

पर सवाल है नीतीश कुमार हो या फिर कांग्रेस, उनके निशाने पर सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ही रहेंगे, जिसका समर्थन लालू प्रसाद यादव कर रहें है. हां इतना जरूर है कि इन दलों का मुख्य निशाना बीजेपी पर होगा. पर कहीं न कहीं इन महागठबंधन के दलों का तीर भी एक दूसरे पर चलना तय है. लेकिन कहा जाता है कि राजनीति और प्यार में सब जायज है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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