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भारत पर चीन का पहला हमला 'वॉटर बम' से हो सकता है

    • राहुल लाल
    • Updated: 24 जुलाई, 2017 06:39 PM
  • 24 जुलाई, 2017 06:39 PM
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चीन जल संसाधनों को हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है. अगर चीन घाघरा, गंडक और ब्रह्यपुत्र जैसी नदियों का पानी रोककर अचानक छोड़ता है तो भारत के लिए हालत बेहद खतरनाक हो जाएंगे.

वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में पानी एक महत्वपूर्ण संसाधन हो गया है, और यह संघर्ष का कारण बन सकता है. चीन ने जलसंसाधनों को भी आक्रामक विस्तारवाद का न केवल हिस्सा बना दिया है, बल्कि जल संसाधनों को भी हथियार के रुप में प्रयोग करने की तैयारी की है. इस तरह अब 'जल संसाधन' का 'जल हथियार' के रुप में प्रयोग करने की चीनी मंशा की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं.

इस समय चीन तिब्बत में विशाल जल संसाधन पर कब्जा किये हुए है और भारत में बहने वाली नदियों का स्रोत भी वही जल संसाधन है. भारत के उत्तर पूर्व में बहने वाली ब्रह्मपुत्र जलशक्ति का एक बड़ा स्रोत है और बिजली पैदा करने के लिए तथा अपने शुष्क उत्तरी क्षेत्र की तरफ बहाव मोड़ने के लिए चीन की इसपर नजर है. इस बात ने भारत में चिंता पैदा कर दी है, क्योंकि भारत एक निम्न नदी तटीय देश है. इसके अलावा, पर्यावरण क्षरण तथा पानी की घटती मात्रा भारतीय नीति निर्माताओं के समक्ष चुनौती है.

पिछले एक माह से जिस तरह भारत-चीन के बीच डोकलाम मामले को तनाव बना हुआ है, उसके बीच भारतीय देहरादून वाडिया संस्थान के वैज्ञानिकों का मानना है कि चीन के पास पानी की इतनी शक्ति है कि अगर भारत ने उसपर नजर नहीं रखी तो बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है. देहरादून वाडिया संस्थान के वैज्ञानिक संतोष राय के अनुसार अगर चीन घाघरा, गंडक और ब्रह्यपुत्र जैसी नदियों का पानी रोककर अचानक छोड़ता है तो भारत के लिए हालत बेहद खतरनाक हो जाएंगे. सीमा पर जिस तरह से विवाद चल रहा है उसके बाद हमारी सरकार और हमें इस मामले को लेकर चौकन्ना रहने की आवश्यकता है.

 ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन का बनाया हुआ सबसे बड़ा डैम

चीन जल का प्रयोग संसाधन के रुप में तो कर ही रहा है, वहीं पानी का प्रयोग जल हथियार के रुप में भी कर सकता है. वैज्ञानिकों ने कई बार ब्रह्मपुत्र के...

वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में पानी एक महत्वपूर्ण संसाधन हो गया है, और यह संघर्ष का कारण बन सकता है. चीन ने जलसंसाधनों को भी आक्रामक विस्तारवाद का न केवल हिस्सा बना दिया है, बल्कि जल संसाधनों को भी हथियार के रुप में प्रयोग करने की तैयारी की है. इस तरह अब 'जल संसाधन' का 'जल हथियार' के रुप में प्रयोग करने की चीनी मंशा की संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं.

इस समय चीन तिब्बत में विशाल जल संसाधन पर कब्जा किये हुए है और भारत में बहने वाली नदियों का स्रोत भी वही जल संसाधन है. भारत के उत्तर पूर्व में बहने वाली ब्रह्मपुत्र जलशक्ति का एक बड़ा स्रोत है और बिजली पैदा करने के लिए तथा अपने शुष्क उत्तरी क्षेत्र की तरफ बहाव मोड़ने के लिए चीन की इसपर नजर है. इस बात ने भारत में चिंता पैदा कर दी है, क्योंकि भारत एक निम्न नदी तटीय देश है. इसके अलावा, पर्यावरण क्षरण तथा पानी की घटती मात्रा भारतीय नीति निर्माताओं के समक्ष चुनौती है.

पिछले एक माह से जिस तरह भारत-चीन के बीच डोकलाम मामले को तनाव बना हुआ है, उसके बीच भारतीय देहरादून वाडिया संस्थान के वैज्ञानिकों का मानना है कि चीन के पास पानी की इतनी शक्ति है कि अगर भारत ने उसपर नजर नहीं रखी तो बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है. देहरादून वाडिया संस्थान के वैज्ञानिक संतोष राय के अनुसार अगर चीन घाघरा, गंडक और ब्रह्यपुत्र जैसी नदियों का पानी रोककर अचानक छोड़ता है तो भारत के लिए हालत बेहद खतरनाक हो जाएंगे. सीमा पर जिस तरह से विवाद चल रहा है उसके बाद हमारी सरकार और हमें इस मामले को लेकर चौकन्ना रहने की आवश्यकता है.

 ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन का बनाया हुआ सबसे बड़ा डैम

चीन जल का प्रयोग संसाधन के रुप में तो कर ही रहा है, वहीं पानी का प्रयोग जल हथियार के रुप में भी कर सकता है. वैज्ञानिकों ने कई बार ब्रह्मपुत्र के जल बहाव में कई वर्ष पुराने पानी को पाया है, जो बांध का जमा हुआ पानी होता है. इससे चीन के खतरनाक इरादों को समझा जा सकता है. वैज्ञानिकों के अनुसार चीन पानी रोककर छोड़ता है तो असम बंगाल बांगलादेश और मेघालय को डुबा सकता है.

पानी पर जोर देने वाले देश चीन के पास प्रति व्यक्ति पानी की हिस्सेदारी केवल 2093 क्यूबिक मीटर है तथा 2013 में चीन के जल संसाधन मंत्रालय ने घोषणा कर दी कि विगत 60 सालों में 23,000 नदियां देश से लुप्त हो चुकी हैं. चूंकि ज्यादातर जल संसाधनों पर चीन का कब्जा है और भारत निम्न नदी तटीय देश है. ऐसे में पानी पर चीन के वर्चस्व हासिल करने से भारत बहुत लाभप्रद स्थिति में रहेगा. इस आलेख का ध्यान मूलत: चीन के जल वर्चस्ववादी नीति पर केन्द्रित है, और इससे भारत प्रत्यक्षत: प्रभावित होता है. भारत की सबसे बड़ी चिंता है कि भारत आखिर किस तरह चीन के साथ वार्ता करके एक दीर्घावधि हल प्राप्त कर सकता है.

भारत और चीन दोनों की बढ़ती जनसंख्या के लिए संसाधनों एवं बुनियादी वस्तुओं की बढ़ती मांग से संभावना व्यक्त की जाती है कि पानी की मांग भी बढ़ेगी. चीन का किसी भी जल समझौते में प्रवेश करने से लगातार इंकार ने भारत के साथ द्विपक्षीय संबंध को लेकर अहम टकराहट को बल दिया है. दुनिया के कुछ शुष्क क्षेत्रों के साथ एक आर्थिक शक्तिगृह के रुप में चीन भी एक प्यासा देश है. 1.3 अरब जनसंख्या के साथ चीन दुनिया का सबसे आबादी वाला देश है. चीन में अप्रत्याशित रुप में प्रदूषित नदियों की संख्या में वृद्धि हो रही है, ऐसे में चीन के लिए पानी बेहद महत्वपूर्ण संसाधन है.

ज्यादातर नदियों का उद्गम तिब्बत से होने के कारण इस पर चीन का एकाधिकार है

तिब्बत के द्वारा जल संसाधनों पर चीनी बढ़त

तिब्बत का क्षेत्रफल लगभग 470,000 वर्ग किमी है और इस पर चीन ने 1950 में ही कब्जा जमा लिया था. तिब्बत का यह पठार सही मायने में पानी का विशाल भंडार है और उपमहाद्वीप में ज्यादातर नदियों का उद्गमस्थल भी है. विशेषज्ञों के अनुसार चीन के पास जितना पानी है उससे 40,000 गुना पानी तिब्बत के पास है. ज्यादातर नदियों का उद्गम तिब्बत से होने के कारण इस पर चीन का एकाधिकार है, ये नदियां निम्न तटीय देशों से होकर बहती हैं और आने वाले वर्षों में भारत, बांग्लादेश तथा म्यांमार जैसे देशों की कठिनाइयां बढ़ सकती हैं. चीन ने दुर्भाग्यवश अपने इन पढ़ोसियों की चिंताओं की अवहेलना की है. भारत तिब्बत से निकलने वाली नदियों पर बहुत हद तक निर्भर है, जिनका कुल बहाव प्रतिवर्ष 627 क्यूबिक किलोमीटर है और जो भारत के कुल नदी जल संसाधन का 34 प्रतिशत है.

तिब्बत से निकलने वाली नदियां भारत के लिए महत्वपूर्ण तो हैं ही, बांग्लादेश के लिए भी अहम हैं. यद्यपि भारत और बांगलादेश के बीच जल साझेदारी की संधि है, जो बहुत हद तक पानी के मुद्दे को लेकर बनती असहमति को दूर करने की गुंजाइश बनाती है, लेकिन ऐसी ही संधि भारत और चीन के बीच नहीं है.

अरुणाचल प्रदेश के जल संसाधन पर भी चीन की नजर

अरुणाचल प्रदेश के सम्पूर्ण क्षेत्र पर अपना दावा ठोंकने के पीछे चीन की मंशा सिर्फ क्षेत्रीय दावे वाली नहीं है, बल्कि ठीक तिब्बत की तरह अरुणाचल प्रदेश में जल संसाधन के लगभग 200 मिलियन क्यूसेक पर चीन की नजर है. इस दौर में पानी सबसे महत्वपूर्ण संसाधनों में से एक है और पानी का प्रयोग सिर्फ नौवहन के लिए नहीं है, बल्कि कृषि और उद्योग के लिए भी है. भारत और चीन दोनों में विकसित होती अर्थव्यवस्था में पानी बेहद प्रमुख संसाधन है. भले ही चीन की तुलना में भारत के पास ज्यादा कृषि योग्य भूमि है, मगर भारत के पास जल संसाधन की बेहद कमी है और यहां प्रवाहित होने वाली ज्यादतर नदियों का उद्गम चीन का तिब्बती क्षेत्र है. चीन के 137.1 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि के मुकाबले भारत के पास 160.5 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि है और समझा जाता है कि पानी कृषि के लिए एक अहम मुद्दा है.

बड़े बांधों द्वारा चीनी जल वर्चस्व के प्रयास

चीन विश्व का सबसे ताबड़तोड़ बांध निर्माता है और विश्व में सबसे ज्यादा बांध चीन में ही हैं. चीन में कमोबेश 50 हजार से ज्यादा बड़े बांध हैं. चीन अंतर्राष्ट्रीय नदियों पर बांध निर्माण करने का एकपक्षीय कदम उठा रहा है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है. चीन पहले ही ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों पर 10 बांध बना चुका है तथा 3 बांध निर्माणाधीन हैं. इसी क्षेत्र में चीन 7 और बांध बनाने पर विचार कर रहा है, तथा 8 और बांध प्रस्तावित हैं. इसमें 'झंग्मु' नामक 510 मेगावाट वाली विद्युत परियोजना वाले बांध का निर्माण भारत और चीन के बीच और टकराव को जन्म दे सकता है. अपने शुष्क उत्तरी क्षेत्र में जल प्रवाह के लिए ब्रह्मपुत्र नदी से लगभग अस्तित्वहीन हो चुकी पीली नदी की तरफ मोड़ने वाली चीन की योजना भी कई आशंकाएं पैदा करती है.

चीन के उत्तरी क्षेत्र में अधिकतम जनसंख्या है तथा पानी का संकट भी सबसे ज्यादा यहीं है. ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध निर्माण से न सिर्फ भारत के लिए संघर्ष बढ़ेगा, बल्कि भारत को भी पर्यावरण की बड़ी क्षति के रुप में कीमत चुकानी पड़ेगी. भारत के लिए ब्रह्मपुत्र से पानी का निम्न प्रवाह कृषि उत्पादकता के संदर्भ में गंभीर परिणामों को जन्म देगा. इससे बाढ़ आ सकती है तथा पर्यावरणीय आपदाएं पैदा हो सकती हैं. इसका संयुक्त परिणाम जैव विविधता की क्षति, सिकुड़ते जंगल, जनजीवन के लिए आवास की समस्या के रुप में आ सकता है. यह कहने की जरुरत नहीं कि इन्हीं परिणामों में से एक परिणाम बड़े पैमाने पर लोगों के पलायन के रुप में भी हो सकता है.

चीन विश्व का सबसे बड़ा बांध निर्माता है

ऐसे में भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह चीन को इस बात के लिए राजी करे कि वह ब्रह्मपुत्र पर प्रस्तावित बांध निर्माण को आगे नहीं बढ़ाए. ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध निर्माण के मुद्दे पर सौदेबाजी की तलाश में चीन अक्साई चीन तथा अरुणाचल के मुद्दे पर रियायत देने के लिए भारत को मजबूर कर सकता है. वस्तुत: चीन यथार्थ राजनीति पर आगे बढ़ रहा है और इस कारण वह भारत के साथ किसी भी तरह के बराबरी वाले समाधान को लेकर रुचि नहीं दिखा रहा है, क्योंकि तिब्बत में दस बड़े जल विभाजक पर चीन का कब्जा है और इस क्षेत्र में जल संसाधनों पर इसका नियंत्रण है. इसलिए भारत को न सिर्फ मुखर होना होगा, बल्कि बांग्लादेश की चिंता को लेकर भी चीन को उसी तरह ज्यादा पारदर्शी तथा तार्किक तरीके से प्रभावित करना होगा.

भारत के लिए समाधान का रास्ता क्या??

अंतत: सवाल उठता है कि भारत आखिर चीन द्वारा पैदा की हुई इस हालत से कैसे निपटेगा? भारत को इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा कि तिब्बत से निकलने वाले जल संसाधनों पर चीन का नियंत्रण है. ऐसे में भारत को तिब्बत को लेकर अपनी नीति पर फिर से विचार करना होगा, उसे नया आकार देना होगा. चीन की नीतियों के सवाल पर भारत को चीन के अन्य जल संपदा संबंधित पढ़ोसी देशों को भी शामिल करना होगा. इसके साथ ही पर्यावरण की निरंतरता के संबंध में एक वैश्विक जागरुकता लानी होगी एवं भारत और बांग्लादेश दोनों देशों द्वारा पानी के वास्तविक उपयोग के लिए आवाज उठानी पड़ेगी. भारत को इस मामले में पानी जैसे आम संसाधनों के इस्तेमाल को लेकर भी वैश्विक स्तर पर जागरूकता लानी होगी तथा इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदायों के बीच दबाव बनना होगा कि तिब्बत का जल संसाधन सिर्फ चीन के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व समुदाय के लिए है.

चीन बिना किसी अन्य देश के हस्तक्षेप के जल संसाधनों के एक पक्षीय इस्तेमाल के अधिकार को सुरक्षित रखता है, इसीलिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि चीन को बहुपक्षीय वार्ता के लिए वैश्विक दबाव डाला जाए. बहुपक्षीय समायोजन ही चीन पर समझौते को स्वीकार करने का दबाव बना सकता है, जिससे इनमें शामिल सभी देशों को लाभ होगा तथा इससे पर्यावरण को भी नुकसान होने से बचाया जा सकेगा.

साथ ही चीन भारत से समझौतों के अनुसार अपने बांधों की स्थिति, उसमें जल संग्रहण की रियल टाइम सूचनाएं भी समुचित रुप में साझा नहीं कर रहा है. इसके लिए आवश्यक है कि हम लोग अपने उपग्रहों के द्वारा चीन के बांधों एवं उसके जल संग्रहण की सूक्ष्म सूचनाएं रखें. इससे हम चीन के किसी भी घृणित जल हथियार के प्रयोग के बारे में पूर्व बचाव की उत्कृष्ट रणनीति एवं बचाव कर सकेंगे. प्राकृतिक भूस्खलन से भी कई बार जलभराव हो जाता है, लेकिन इसके लिए भी चीन कोई सूचना नहीं देता है. उदाहरण के लिए चीन ने 2012 में इसी प्रकार के एक घटना में भारत का पासी घाट डूब गया था और हजारों लोग मर गए थे.

इसलिए भारत के तरफ से मजबूत पूर्व तैयारी और उपग्रहों से पूर्व सूचना तंत्र अपरिहार्य हो गया है. ऐसे में बहुपक्षीय नीतियों को बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय जल संसाधन के गैर-नौवहन उपयोग कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन का एक मापदंड की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है. उदाहरण के लिए अनुच्छेद-11 बताता है कि दोनों देशों के लिए अंतर्राष्ट्रीय जल संसाधनों के इस्तेमाल के संदर्भ में सूचनाओं की साझेदारी आवश्यक है, जबकि अनुच्छेद 21 और 23 प्रदूषण की रोकथाम और समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा की व्याख्या करते हैं. इस तरह यह भारत और चीन दोनों के लिए अहम है कि दोनों देश जलीय आंकड़ों को साझा करने के लिए संस्थागत तथा बहुपक्षीय स्तर पर एक अर्थपूर्ण बातचीत शुरु करें, ताकि इससे जल संसाधनों की स्थायी तथा परस्पर इस्तेमाल सुनिश्चित हो सके एवं टकराहट की आशंका न्यूनतम हो सके.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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