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दाल से लेकर डाटा तक के तोहफों को वोटों में तब्दील करने की चुनौती

    • आईचौक
    • Updated: 01 फरवरी, 2017 06:10 PM
  • 01 फरवरी, 2017 06:10 PM
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बजट पेश भी हुआ और सीधे तौर पर ऐसी कोई घोषणा नहीं हुई जिससे चुनाव आयोग नोटिस भेज सके. क्या वाकई ऐसा है कि बजट में चुनाव वाले राज्यों के लिए कुछ भी नहीं है?

बजट को रोकने की तमाम कोशिशें नाकाम हो गयीं. यूपी के सीएम अखिलेश यादव की प्रधानमंत्री को चिट्ठी से लेकर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी तक, लेकिन कोर्ट ने साफ कह दिया कि चुनाव तो होते रहते हैं बजट पेश होने देना चाहिये.

चुनाव से तीन दिन पहले बजट को लेकर हैरानी तो चुनाव आयोग को भी हुई, लेकिन फिर कह दिया था कि सरकार ये जरूर सुनिश्चित करे कि चुनाव वाले राज्यों को लेकर कोई घोषणा न हो. बजट पेश भी हुआ और सीधे तौर पर ऐसी कोई घोषणा नहीं हुई जिससे चुनाव आयोग नोटिस भेज सके.

क्या वाकई ऐसा है कि बजट में चुनाव वाले राज्यों के लिए कुछ भी नहीं है? क्या ऐसा नहीं कि मोदी सरकार ने चुनावों को ध्यान में रख कर ही बजट में लोगों को सहूलियतें दी हैं.

वैसे वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट में एक ऐसी चीज जरूर डाल दी जिसकी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को भी तारीफ करनी पड़ी.

टैक्स छूट से कितने वोट

मध्य वर्ग हर चुनाव में बड़ा वोट बैंक होता है, जाहिर है इस बार भी होगा. तो क्या टैक्स स्लैब में बदलाव कर मोदी सरकार ने मिडिल क्लास से कनेक्ट होने की कोशिश नहीं की है?

बजट 2017 के अनुसार तीन लाख तक की आय पर अब कोई भी टैक्स नहीं देना होगा. साढ़े तीन लाख रुपये तक की आय पर भी सिर्फ 2500 रुपये टैक्स के रूप में देने होंगे. इसी तरह पांच लाख तक की आय पर 10 फीसदी की बजाय अब 5 फीसदी ही टैक्स देने होंगे. 5 लाख से अधिक की आय पर टैक्स स्लैब में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है.

बीजेपी के खासे वोटर शहरों में रहते हैं और ये मध्य वर्ग भी ज्यादातर शहरी इलाकों में बसता है. बीजेपी सरकार ने अपना काम कर दिया है, आगे का काम बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं के जिम्मे है.

ये जरूर है कि ये तबका जातिवादी जकड़नों से थोड़ा ऊपर होता है जिसके वोट समाजवादी पार्टी या बीएसपी की बजाए बीजेपी को जाते हैं. फिर तो यूपी के शहरी इलाकों के लोगों का वोट बीजेपी को पक्का मिल सकता है. लेकिन इसी शहरी तबके के सामने यूपी के सीएम अखिलेश यादव विकास का एजेंडा रख...

बजट को रोकने की तमाम कोशिशें नाकाम हो गयीं. यूपी के सीएम अखिलेश यादव की प्रधानमंत्री को चिट्ठी से लेकर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी तक, लेकिन कोर्ट ने साफ कह दिया कि चुनाव तो होते रहते हैं बजट पेश होने देना चाहिये.

चुनाव से तीन दिन पहले बजट को लेकर हैरानी तो चुनाव आयोग को भी हुई, लेकिन फिर कह दिया था कि सरकार ये जरूर सुनिश्चित करे कि चुनाव वाले राज्यों को लेकर कोई घोषणा न हो. बजट पेश भी हुआ और सीधे तौर पर ऐसी कोई घोषणा नहीं हुई जिससे चुनाव आयोग नोटिस भेज सके.

क्या वाकई ऐसा है कि बजट में चुनाव वाले राज्यों के लिए कुछ भी नहीं है? क्या ऐसा नहीं कि मोदी सरकार ने चुनावों को ध्यान में रख कर ही बजट में लोगों को सहूलियतें दी हैं.

वैसे वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट में एक ऐसी चीज जरूर डाल दी जिसकी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को भी तारीफ करनी पड़ी.

टैक्स छूट से कितने वोट

मध्य वर्ग हर चुनाव में बड़ा वोट बैंक होता है, जाहिर है इस बार भी होगा. तो क्या टैक्स स्लैब में बदलाव कर मोदी सरकार ने मिडिल क्लास से कनेक्ट होने की कोशिश नहीं की है?

बजट 2017 के अनुसार तीन लाख तक की आय पर अब कोई भी टैक्स नहीं देना होगा. साढ़े तीन लाख रुपये तक की आय पर भी सिर्फ 2500 रुपये टैक्स के रूप में देने होंगे. इसी तरह पांच लाख तक की आय पर 10 फीसदी की बजाय अब 5 फीसदी ही टैक्स देने होंगे. 5 लाख से अधिक की आय पर टैक्स स्लैब में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है.

बीजेपी के खासे वोटर शहरों में रहते हैं और ये मध्य वर्ग भी ज्यादातर शहरी इलाकों में बसता है. बीजेपी सरकार ने अपना काम कर दिया है, आगे का काम बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं के जिम्मे है.

ये जरूर है कि ये तबका जातिवादी जकड़नों से थोड़ा ऊपर होता है जिसके वोट समाजवादी पार्टी या बीएसपी की बजाए बीजेपी को जाते हैं. फिर तो यूपी के शहरी इलाकों के लोगों का वोट बीजेपी को पक्का मिल सकता है. लेकिन इसी शहरी तबके के सामने यूपी के सीएम अखिलेश यादव विकास का एजेंडा रख कर वोट मांग रहे हैं. ऐसे में मोदी बनाम अखिलेश के विकास के एजेंडे के हिसाब से वोटिंग तय होगी.

जेटली ने बढ़ाई बीजेपी नेताओं की चुनौती

ये सही है कि यूपी में बीजेपी को इसका फायदा मिल सकता है और कुछ हद तक गोवा और उत्तराखंड में भी, लेकिन पंजाब और मणिपुर में कितना लाभ मिलेगा कहना मुश्किल है.

किसान वोट किसके खाते में

समाजवादी पार्टी से गठबंधन से पहले यूपी में कांग्रेस का पूरा जोर किसानों पर ही रहा. राहुल गांधी ने तो किसानों पर केंद्रित पूरी एक यात्रा ही कर डाली और हर खाट सभा में किसानों से मांग पत्र भरवाये - वादा रहा कि सत्ता में आने के 100 दिन के अंदर किसानों के कर्ज माफ कर दिये जाएंगे. अब स्थिति बदल चुकी है इसलिए वादा भी संशोधित होना तय है. जहां तक किसानों के वोटों का सवाल है तो पंजाब में तो किसानों के ही ज्यादा वोट हैं. यूपी में बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में कर्जमाफी तो नहीं लेकिन किसानों के लोन पर ब्याज कम करने का वादा जरूर किया है.

रही बात बजट की तो इस बार केंद्र सरकार ने किसान कर्ज पर ब्‍याज में कटौती के साथ ही किसानों को लोन के लिए दस लाख करोड़ रुपये की बात कही है. साथ ही, बजट में किसानों की आय बढ़ाने पर भी जोर है.

अब बजट की ये बात यूपी और पंजाब के किसानों तक कितना पहुंच पाती है या बीजेपी नेता कितना समझा पाते हैं वोट मिलने की संभावना इसी बात पर निर्भर करेगी.

सूट बूट नहीं गरीबों की सरकार

बजट के जरिये मोदी सरकार ने ये मैसेज देने की कोशिश की है कि वो अमीरों की नहीं बल्कि गरीबों की सरकार है.

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी केंद्र की मोदी सरकार को अब तक 'सूटबूट की सरकार' बताते रहे हैं, लेकिन बजट में घोषणाओं के जरिय ये संदेश देने की कोशिश की गई है कि मोदी सरकार गरीबों की सरकार है और अमीरों के खिलाफ है.

पांच लाख तक की आय वालों को छूट देने से होने वाले राजस्व के नुकसान की भरपाई अब उच्च आय वर्ग को करनी होगी. अब 50 लाख से 1 करोड़ के बीच सालाना आय वालों को 10 पर्सेंट सरचार्ज भी देना होगा. जबकि 1 करोड़ से ज्यादा कमाने वालों पर ये सरचार्ज 15 फीसदी हो जाएगा.

सियासत में स्वच्छता अभियान!

राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे पर नकेल कस कर भी मोदी सरकार ने काला धन के खिलाफ सरकार का इरादा जाहिर करने की कोशिश की है. वित्त मंत्री के बजट भाषण पर गौर करने पर पता चला कि सरकार को सबसे ज्यादा फिक्र नोटबंदी को लेकर बनी हुई है. जेटली ने अपने बजट भाषण में कई बार नोटबंदी का जिक्र किया. हर तरीके से जेटली ने यही समझाने की कोशिश की कि नोटबंदी के तात्कलिक फायदे तो हैं ही, दीर्घकालिक नतीजे भी बेहतर होंगे.

1. बजट 2017 में घोषणा की गई है कि अब कोई राजनीतिक पार्टी किसी एक स्रोत से बतौर चंदा 2000 रुपये से ज़्यादा कैश नहीं ले पाएगी. रकम ज्यादा होने पर सिर्फ डिजिटल पेमेंट या चेक का विकल्प होगा. पहले इसकी सीमा 20 हजार रुपये थी. हालांकि, स्रोत की कोई सीमा नहीं है जिसका फायदा आसानी से उठाया जा सकता है.

2. राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए रिजर्व बैंक चुनाव बॉन्ड जारी कर सकता है जिसे डिजिटल पेमेंट या चेक से खरीदा जा सकता है.

3. सबसे खास बात ये कि सभी राजनीतिक दलों को इनकम टैक्स ऐक्ट के तहत समय पर रिटर्न भरना अनिवार्य होगा.

जेटली के बजट में यही एक ऐसा पहलू है जिसका राहुल गांधी ने समर्थन किया है. राहुल गांधी ने कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग में भ्रष्टाचार दूर करने के किसी भी कदम को हमारा समर्थन रहेगा.

प्रधानमंत्री मोदी ने इससे राजनीतिक बदलाव की उम्मीद जताते हुए बजट पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा, "दाल के दाम से लेकर डाटा की स्पीड तक, रेलवे के आधुनिकीकरण से लेकर सरल इकॉनमी बनाने की दिशा में, शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक, उद्यमी से लेकर उद्योग तक हर किसी के सपने के साकार करने का ठोस कदम बजट में उठाया गया."

मोदी ने वित्त मंत्री की पीठ ठोक कर बीजेपी के बाकी नेताओं की मुसीबत बढ़ा दी है. अब बीजेपी नेताओं के सामने सबसे बड़ी यही चुनौती है कि मोदी की ये बातें लोगों को कैसे समझायें कि वो बीजेपी को वोट दे दें.

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पार्टी फंडिंग और टैक्‍स पेयर के लिए सबसे बड़ी घोषणा

बजट का ट्विटर पर ये मजाकिया विश्‍लेषण...

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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