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क्या विजय रुपानी बन पायेंगे गुजरात के अगले नरेंद्र मोदी!

    • गोपी मनियार
    • Updated: 07 अगस्त, 2016 10:24 AM
  • 07 अगस्त, 2016 10:24 AM
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विजय रुपानी को गुजरात की कमान उन हालातों में सौंपी गई है, जब राज्य में बीजेपी के सामने कई चुनौतियां हैं. पाटीदार आंदोलन और दलितों की नाराजगी सबके सामने हैं.rn2001 में नरेन्द्र मोदी जब मुख्यमंत्री बने थे, उस वक्त भी पार्टी के सामने कुछ ऐसे ही हालात थे...

आनंदीबेन पटेल के बाद गुजरात की जिम्मेदारी अब विजय रुपानी के कंधो पर है. विजय रुपानी को सर्वसम्मति से विधायक दल का नेता चुना गया. ठीक इसी तरह 2001 में नरेन्द्र मोदी को तब के मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को हटाकर गुजरात की कमान सौंपी गई थी. उस समय भी बीजेपी के हालात आज की तरह थे.

इसलिए सवाल है कि जिस प्रकार नरेन्द्र मोदी ने तब पूरी भारतीय जनता पार्टी को एकजुट किया था क्या उसी तरहा विजय रुपानी भी पार्टी के संकट मोचन बन पाएंगे?

ये भी पढ़ें: मोदी कैबिनेट में गुजरात के दो पाटीदारों की एंट्री के मायने

नरेन्द्र मोदी ओर विजय रुपानी के राजनैतिक करियर को देखा जाये तो दोनो ही पहेली बार राजकोट-2 विधान सभा सीट से उपचुनाव के जरिए विधायक बने थे. नरेन्द्र मोदी को तब विधान सभा चुनाव से कुछ ही महीनों पूर्व गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया था. जैसे इस बार आनंदीबेन पटेल को विधानसभा चुनाव के डेढ साल पहले हटाकर रुपानी को कमान सौंपी गई है.

 विजय रुपानी के सामने कई चुनौतियां हैं...

विजय रुपानी को गुजरात की कमान उन परिस्थीतीओं में सौंपी गई है, जब पाटीदार आरक्षण आंदोलन के जरिये बीजेपी का सब से बडा वोटबेंक खुद उससे नाराज चल रहा है. वहीं, दलित कांड के बाद दलितों ने भी बीजेपी के सामने अपना गुस्सा जाहिर कर दिया है. 2001 में नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे उस वक्त भी कुछ ऐसे ही हालात थे.

आनंदीबेन पटेल के बाद गुजरात की जिम्मेदारी अब विजय रुपानी के कंधो पर है. विजय रुपानी को सर्वसम्मति से विधायक दल का नेता चुना गया. ठीक इसी तरह 2001 में नरेन्द्र मोदी को तब के मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को हटाकर गुजरात की कमान सौंपी गई थी. उस समय भी बीजेपी के हालात आज की तरह थे.

इसलिए सवाल है कि जिस प्रकार नरेन्द्र मोदी ने तब पूरी भारतीय जनता पार्टी को एकजुट किया था क्या उसी तरहा विजय रुपानी भी पार्टी के संकट मोचन बन पाएंगे?

ये भी पढ़ें: मोदी कैबिनेट में गुजरात के दो पाटीदारों की एंट्री के मायने

नरेन्द्र मोदी ओर विजय रुपानी के राजनैतिक करियर को देखा जाये तो दोनो ही पहेली बार राजकोट-2 विधान सभा सीट से उपचुनाव के जरिए विधायक बने थे. नरेन्द्र मोदी को तब विधान सभा चुनाव से कुछ ही महीनों पूर्व गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया था. जैसे इस बार आनंदीबेन पटेल को विधानसभा चुनाव के डेढ साल पहले हटाकर रुपानी को कमान सौंपी गई है.

 विजय रुपानी के सामने कई चुनौतियां हैं...

विजय रुपानी को गुजरात की कमान उन परिस्थीतीओं में सौंपी गई है, जब पाटीदार आरक्षण आंदोलन के जरिये बीजेपी का सब से बडा वोटबेंक खुद उससे नाराज चल रहा है. वहीं, दलित कांड के बाद दलितों ने भी बीजेपी के सामने अपना गुस्सा जाहिर कर दिया है. 2001 में नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे उस वक्त भी कुछ ऐसे ही हालात थे.

2001 में भूकंप आया था और फिर 2002 में गुजरात में दंगे हुए. इसलिए एक प्रकार से देखा जाए तो नरेन्द्र मोदी को 2002 के चुनाव के लिए उतना ही समय मिला था जितना वक्त अभी 2017 के चुनाव में बाकी है.

नरेंद्र मोदी ने जहां 2002 के चुनाव में अपनी हिन्दुवादी छवी के जरिए दंगो के बाद चुनाव जीता था. वहीं विजय रुपानी को भी पाटीदार आंदोलन ओर दलित कांड से बीजेपी को उबारना है. हालांकि विजय रुपानी ने अभी अपनी रणनीति साफ नही की है.

ये भी पढ़ें:‘विकसित’ गुजरात की जड़ों में है धार्मिक कट्टरता और जातिवाद

लेकिन जानकारों की मानें तो नरेन्द्र मोदी जहां बीजेपी में लोकप्रिय नेता के तौर पर उभरे थे, वैसे ही विजय रुपानी वैश्य होते हुए भी सौराष्ट्र में दूसरे सामाज के लोगों के साथ अच्छे राजनैतिक रिश्तों के लिये जाने जाते है. ऐसे में पाटीदारों से बातचीत ओर नाराज दलितो को मनाने की उनकी अपनी एक रणनीति जरूर रहेगी.

संगठन में भी विजय रुपानी की नरेन्द्र मोदी की तरहा अच्छी पकड़ है. विजय रुपानी बतौर प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए बीजेपी में सभी नेताओ को एक साथ जोड़े रखने में सफल रहे हैं. अगर मुख्यमंत्री विजय रुपानी ओर डिप्टी सीएम नितिन पटेल ने आपसी सूझ बूझ के साथ अच्छा काम किया तो वाकई गुजरात बीजेपी के लिये 2017 के विधानसभा चुनाव अच्छे दिन ला सकता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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