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हार्दिक पटेल की केजरीवाल से तुलना नहीं हो सकती

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 27 अगस्त, 2015 08:31 PM
  • 27 अगस्त, 2015 08:31 PM
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केजरीवाल की मुहिम एक बड़े कॉज के लिए रही, जबकि हार्दिक का आंदोलन एक जाति विशेष के लिए आरक्षण की मांग कर रहा है.

क्या हार्दिक पटेल की अरविंद केजरीवाल से तुलना ठीक है? अगर नहीं तो फिर किससे तुलना ठीक की जा सकती है? लालू प्रसाद, राम विलास पासवान या जीतन राम मांझी से. या फिर, गुजरे जमाने के नेताओं महेंद्र सिंह टिकैत और सुभाष घीसिंग या फिर जाट नेता किरोड़ीमल बैंसला से?

मोदी के लिए चुनौती?

हार्दिक की सभाओं में जुट रही भीड़ को देखते हुए मोदी के लिए चुनौती मानी जा रही है. पटेल समुदाय के नेताओं से मोदी को पहले भी कड़ी चुनौती मिली है. मोदी के सीनियर केशूभाई पटेल ने चुनावों से पहले पटेल समुदाय के भरोसे दबाव बनाने की कोशिश भी की थी. केशूभाई ने पटेल नेताओं की रैली भी बुलाई थी लेकिन शो फ्लॉप रहा. पटेल नेताओं की हर चुनौती बौनी साबित हुई - और तमाम आरोपों, एसआईटी और सीबीआई जांच और पड़तालों के बावजूद मोदी जीतते चले गए.

लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. मोदी दिल्ली पहुंच गए हैं और उनके नाम पर शासन चला रही आनंदी बेन पटेल के होते हुए ये आंदोलन काफी आगे निकल चुका है. आनंदी बेन ने आरक्षण की मांग को ये कहते हुए नामंजूर कर दिया है कि फिलहाल वो व्यावहारिक नहीं है. लेकिन हार्दिक को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता उनका कहना है कि उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो बीजेपी को अगले चुनाव में नतीजे भुगतने पड़ेंगे.

किसके लिए आरक्षण

हार्दिक जिसके लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं उन्हें गुजरात के सबसे अमीर कारोबारियों और किसानों में शुमार किया जाता है. राज्य के हीरा कारोबार पर पटेलों का एक तरह से कब्जा है जो राजनीतिक रूप से भी ताकतवर हैं. गुजरात और भारत से बाहर देखें तो अमेरिका में करीब दो लाख और ब्रिटेन में ढाई लाख पटेल हैं - और उनकी समृद्धि पर सवाल उठाने का कोई मतलब नहीं बनता.

लेकिन हार्दिक का कहना है कि सभी पटेल रईस नहीं हैं. महज 10 फीसदी ऐसे हो सकते हैं. इसीलिए हार्दिक आरक्षण की मांग दूसरी छोर से उठाते हैं. हार्दिक तर्क देते हैं कि पटेल समुदाय के छात्र को एमबीबीएस में दाखिले के लिए 90 फीसदी मार्क्स चाहिए, जबकि एससी,...

क्या हार्दिक पटेल की अरविंद केजरीवाल से तुलना ठीक है? अगर नहीं तो फिर किससे तुलना ठीक की जा सकती है? लालू प्रसाद, राम विलास पासवान या जीतन राम मांझी से. या फिर, गुजरे जमाने के नेताओं महेंद्र सिंह टिकैत और सुभाष घीसिंग या फिर जाट नेता किरोड़ीमल बैंसला से?

मोदी के लिए चुनौती?

हार्दिक की सभाओं में जुट रही भीड़ को देखते हुए मोदी के लिए चुनौती मानी जा रही है. पटेल समुदाय के नेताओं से मोदी को पहले भी कड़ी चुनौती मिली है. मोदी के सीनियर केशूभाई पटेल ने चुनावों से पहले पटेल समुदाय के भरोसे दबाव बनाने की कोशिश भी की थी. केशूभाई ने पटेल नेताओं की रैली भी बुलाई थी लेकिन शो फ्लॉप रहा. पटेल नेताओं की हर चुनौती बौनी साबित हुई - और तमाम आरोपों, एसआईटी और सीबीआई जांच और पड़तालों के बावजूद मोदी जीतते चले गए.

लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. मोदी दिल्ली पहुंच गए हैं और उनके नाम पर शासन चला रही आनंदी बेन पटेल के होते हुए ये आंदोलन काफी आगे निकल चुका है. आनंदी बेन ने आरक्षण की मांग को ये कहते हुए नामंजूर कर दिया है कि फिलहाल वो व्यावहारिक नहीं है. लेकिन हार्दिक को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता उनका कहना है कि उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो बीजेपी को अगले चुनाव में नतीजे भुगतने पड़ेंगे.

किसके लिए आरक्षण

हार्दिक जिसके लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं उन्हें गुजरात के सबसे अमीर कारोबारियों और किसानों में शुमार किया जाता है. राज्य के हीरा कारोबार पर पटेलों का एक तरह से कब्जा है जो राजनीतिक रूप से भी ताकतवर हैं. गुजरात और भारत से बाहर देखें तो अमेरिका में करीब दो लाख और ब्रिटेन में ढाई लाख पटेल हैं - और उनकी समृद्धि पर सवाल उठाने का कोई मतलब नहीं बनता.

लेकिन हार्दिक का कहना है कि सभी पटेल रईस नहीं हैं. महज 10 फीसदी ऐसे हो सकते हैं. इसीलिए हार्दिक आरक्षण की मांग दूसरी छोर से उठाते हैं. हार्दिक तर्क देते हैं कि पटेल समुदाय के छात्र को एमबीबीएस में दाखिले के लिए 90 फीसदी मार्क्स चाहिए, जबकि एससी, एसटी या ओबीसी छात्रों को उसके आधे अंकों पर ही एडमिशन मिल जाता है. यही बात लोगों को अपील कर रही है.

हार्दिक के पीछे कौन?

क्या हार्दिक पटेल अपने बूते ही इतना बड़ा आंदोलन खड़ा कर पा रहे हैं? या हार्दिक के आंदोलन के पीछे वे लोग हैं जिन्हें मोदी को चुनौती देने के लिए एक मजबूत कंधे की अरसे से तलाश रही है?

ऐसी बातें अरविंद केजरीवाल के आंदोलन को लेकर भी हुई थीं. कभी उन्हें किसी पार्टी की बी टीम बताया गया तो कभी किसी संगठन का प्लान बी करार दिया गया.

पहले ये थ्योरी खोजी गई कि जिस तरह केजरीवाल हालात की उपज रहे, उसी तरह हार्दिक ने एक वैक्युम देखा और उसे भुनाने में जुट गए. फिर चर्चा चल पड़ी कि हार्दिक के पीछे मोदी के विरोधियों - यानी हाशिये पर पहुंच गए पटेल नेताओं या फिर विपक्षी पार्टी कांग्रेस का हाथ भी हो सकता है.

इनमें सबसे चौंकाने वाली थ्योरी ये है कि इसे आरएसएस का एक्सपेरिमेंट माना जा रहा है. चर्चा है कि आरएसएस आरक्षण को नए सिरे से परिभाषित करने के लिए एक मजबूत आधार तैयार करना चाहता है. एक ऐसा आधार जहां जातिवाद से ऊपर उठ कर आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात हो. एक चर्चा और भी है जिसमें विश्व हिंदू परिषद के नेता प्रवीण तोगड़िया का नाम उछाला जा रहा है. हालांकि, अभी ये तर्क फिलहाल दमदार नहीं लगता कि आंदोलन को तोगड़िया की वापसी के लिए जमीन तैयार की जा रही है.

क्या केजरीवाल जैसे हैं हार्दिक

क्या हार्दिक पटेल और केजरीवाल की तुलना की जा सकती है? अगर तुलना की जाए तो किस बात को लेकर? हार्दिक की सभा में भीड़ को लेकर? उनकी वाकपटुता को लेकर? उनकी ऊर्जा, अनुभव या मुद्दे को लेकर.

हार्दिक का कहना है कि उन्हें अपनी मांगों को लेकर हिंसा से भी परहेज नहीं है. हार्दिक का कहना है कि वो गांधी और सरदार के पटेल के सिद्धांतों में यकीन जरूर रखते हैं कि जरूरत पड़ने पर वो चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों से की तरह हिंसा का रास्ता भी अख्तियार कर सकते हैं. अव्वल तो केजरीवाल का आंदोलन किसी ऐसी मांग से नहीं जुड़ा था जो किसी जाति, समुदाय या धर्म विशेष की सीमाओं में बंधा हो. केजरीवाल के आंदोलन में कभी हिंसा की बात नहीं हुई, बल्कि, बार बार मंच से हर कीमत पर शांति बनाए रखने की अपील होती रही.

केजरीवाल का आंदोलन उस कॉज के लिए था जो आम जनमानस से जुड़ा है. केजरीवाल के समर्थन में रामलीला मैदान में जुटने वाली भीड़ किसी जाति या धर्म विशेष की सीमाओं से परे रही.

केजरीवाल की मुहिम एक बड़े कॉज के लिए रही, जबकि हार्दिक का आंदोलन एक जाति विशेष के लिए आरक्षण की मांग कर रहा है. ऐसे में हार्दिक, केजरीवाल के कद के आगे शायद ही कहीं टिक पाएं.

और एक ट्वीट

हार्दिक के आंदोलन पर वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता का एक ट्वीट काफी मौजूं हो जाता है -

[हार्दिक पटेल जैसी फिल्में हम पहले भी देख चुके हैं - महेंद्र सिंह टिकैत, सुभाष घीसिंग, कर्नल बैंसला. सभी ने मिल कर शुरुआत ऐसे ही की और फिर सौदा कर लिया]

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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