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अरुणाचल के बाद मणिपुर संकट की वजह बीजेपी है या खुद कांग्रेस?

    • आईचौक
    • Updated: 15 मार्च, 2016 06:54 PM
  • 15 मार्च, 2016 06:54 PM
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ये चर्चा अब आम है कि मणिपुर में भी बीजेपी वैसा ही दांव चल रही है जैसा उसने अरुणाचल में आजमाया.

अरुणाचल विधानसभा के चुनाव 2014 में लोक सभा के साथ हुए थे - और मणिपुर में अगले साल यानी यूपी और पंजाब के साथ होने हैं. दोनों राज्यों में चुनावी तारीख में भले ही बड़ा फासला हो - मगर सियासी माहौल एक जैसा हो गया है.

ये चर्चा अब आम है कि मणिपुर में भी बीजेपी वैसा ही दांव चल रही है जैसा उसने अरुणाचल में आजमाया. अगर मणिपुर में भी अरुणाचल जैसे तख्तापलट के आसार नजर आ रहे हैं तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है बीजेपी या खुद कांग्रेस?

अलर्ट आलाकमान

अरुणाचल प्रदेश के बागी विधायकों की शिकायत रही कि उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की काफी कोशिशें कीं - लेकिन दोनों ने उनकी बात को नजरअंदाज कर दिया. नतीजा ये हुआ कि नबाम तुकी की सरकार गिर गई और राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.

मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और फिर केंद्र के हरकत में आने पर सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति संबंधी अपना फैसला वापस लिया - और फिर बड़े ही नाटकीय घटनाक्रम में कांग्रेस के बागी कालिखो पुल ने नये मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. हालांकि, कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि पूरे प्रकरण की समीक्षा पर सुनवाई अभी पूरी नहीं हुई है. कोर्ट की इस टिप्पणी से तो स्पष्ट है कि नई सरकार के सामने औचित्य के सवाल खत्म नहीं हुए!

इस पूरे प्रकरण में जो बात साफ साफ नजर आई वो थी - राज्यपाल की भूमिका. शुरू से ही राज्यपाल ने कांग्रेस के बागी विधायकों को एंटरटेन किया और जब नई सरकार बनाने की नौबत आई तो भी उन्होंने सिर्फ कालिखो पुल के दावे को ही तरजीह दी.

मणिपुर के मामले में कांग्रेस आलाकमान अलर्ट रहा. सोनिया ने न सिर्फ विधायकों से अपील की बल्कि उनकी बात पर गौर किये जाने का भी भरोसा दिलाया है. सोनिया ने समय रहते सीएम ओकरम इबोबी सिंह और डिप्टी सीएम जो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी हैं को तत्काल तलब भी कर लिया है.

बीजेपी का रोल

शपथ लेने के बाद भी कालिखो पुल ने कांग्रेस आलाकमान को अरुणाचल की पूरी घटना के...

अरुणाचल विधानसभा के चुनाव 2014 में लोक सभा के साथ हुए थे - और मणिपुर में अगले साल यानी यूपी और पंजाब के साथ होने हैं. दोनों राज्यों में चुनावी तारीख में भले ही बड़ा फासला हो - मगर सियासी माहौल एक जैसा हो गया है.

ये चर्चा अब आम है कि मणिपुर में भी बीजेपी वैसा ही दांव चल रही है जैसा उसने अरुणाचल में आजमाया. अगर मणिपुर में भी अरुणाचल जैसे तख्तापलट के आसार नजर आ रहे हैं तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है बीजेपी या खुद कांग्रेस?

अलर्ट आलाकमान

अरुणाचल प्रदेश के बागी विधायकों की शिकायत रही कि उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की काफी कोशिशें कीं - लेकिन दोनों ने उनकी बात को नजरअंदाज कर दिया. नतीजा ये हुआ कि नबाम तुकी की सरकार गिर गई और राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.

मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और फिर केंद्र के हरकत में आने पर सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति संबंधी अपना फैसला वापस लिया - और फिर बड़े ही नाटकीय घटनाक्रम में कांग्रेस के बागी कालिखो पुल ने नये मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. हालांकि, कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि पूरे प्रकरण की समीक्षा पर सुनवाई अभी पूरी नहीं हुई है. कोर्ट की इस टिप्पणी से तो स्पष्ट है कि नई सरकार के सामने औचित्य के सवाल खत्म नहीं हुए!

इस पूरे प्रकरण में जो बात साफ साफ नजर आई वो थी - राज्यपाल की भूमिका. शुरू से ही राज्यपाल ने कांग्रेस के बागी विधायकों को एंटरटेन किया और जब नई सरकार बनाने की नौबत आई तो भी उन्होंने सिर्फ कालिखो पुल के दावे को ही तरजीह दी.

मणिपुर के मामले में कांग्रेस आलाकमान अलर्ट रहा. सोनिया ने न सिर्फ विधायकों से अपील की बल्कि उनकी बात पर गौर किये जाने का भी भरोसा दिलाया है. सोनिया ने समय रहते सीएम ओकरम इबोबी सिंह और डिप्टी सीएम जो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी हैं को तत्काल तलब भी कर लिया है.

बीजेपी का रोल

शपथ लेने के बाद भी कालिखो पुल ने कांग्रेस आलाकमान को अरुणाचल की पूरी घटना के लिए जिम्मेदार बताया. पुल ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने के लिए कई बार कोशिश की गई लेकिन उन्हें मुलाकात का वक्त ही नहीं दिया गया. पुल ने कहा कि कांग्रेस विधायकों ने पार्टी आलाकमान से नेतृत्व परिवर्तन की गुजारिश जरूर की लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया जो कांग्रेस पार्टी के खिलाफ हो. पुल ने दावा किया कि उनकी सरकार कांग्रेस की सरकार है जिसे बाहर से बीजेपी और दो निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल है.

हफ्ते भर बाद ही केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजु ने एक कार्यक्रम में बड़ा रहस्योद्घाटन किया. रिजिजु ने बताया कि उन्हें अरुणाचल प्रदेश के सीएम का ऑफर मिला था लेकिन उन्हें ठुकरा दिया.

रिजिजु ने इस बारे में विस्तार से बताया, "मुख्यमंत्री कालिखो पुल ने मुझे पद की पेशकश की थी लेकिन मैंने इंकार कर दिया. वो चाहते थे कि नई सरकार का नेतृत्व करूं लेकिन इस वक्त मैं नहीं आना चाहता हूं क्योंकि मुझे राज्य के लोगों ने संसद में प्रतिनिधित्व करने का जनादेश दिया है और मैं अपना काम कर रहा हूं."

अब रिजिजु की बात से तो यही लगता है कि कालिखो पुल सरकार बीजेपी की कठपुतली सरकार है. जो कालिको खुद की सरकार को कांग्रेस का बता रहे हैं वो भला किस हैसियत से बीजेपी के रिजिजु को सीएम की कुर्सी ऑफर कर रहे थे. मणिपुर में भी राज्य बीजेपी अध्यक्ष उन कांग्रेसी विधायकों की सूची पेश करने के दावे कर रहे हैं जो पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल होना चाहते हैं.

रिजिजु और कालिखो के बयान तो यही बताते हैं कि अरुणाचल के लिए अगर बीजेपी जिम्मेदार है तो कांग्रेस भी कम कसूरवार नहीं है. जहां तक बीजेपी के रोल की बात है तो उसने तो वही रास्ता अख्तियार किया है जो कांग्रेस बरसों पहले से दिखाती रही है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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