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ट्विटर के 'भद्रलोक' को मंत्री अनुप्रिया पटेल रास न आईं

    • अनूप मानव
    • Updated: 08 जुलाई, 2016 06:32 PM
  • 08 जुलाई, 2016 06:32 PM
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सेकुलर-क्रांतिकारी-प्रगतिशील (तथाकथित) ट्रोल गिरोह ने अनुप्रिया पटेल को फेमस कर दिया. क्‍योंकि अनुप्रिया का बैकग्राउंड है देश के बाबू साहेब वालो के जैसा नहीं है.

अनुप्रिया पटेेल जिस दिन NDA सरकार में मंत्री बनी, उसी दिन से (पहले कभी नहीं) उनके विवादित ट्वीट वायलर हो गये. और देखते-देखते वे 'दंगाई' हो गयी. उनके ट्वीट देश के जाने-माने पुरोधा लोगों ने रिट्वीट किया. अनुप्रिया उच्च वर्ण/ वर्ग की ठसक और टेक्नीकल दिव्यांगता का शिकार हो गयी.

अनुप्रिया का जो बैकग्राउंड है वो देश के बाबू साहेब वालो के जैसा नहीं है. उनके पिता सोनेलाल पटेल जो कांशीराम के साथ बसपा में काम किया था, फिर उन्होंने अपना दल की स्थापना की. जिन लोगों ने भी सोनेलालजी का राजनैतिक जीवन देखा है वे बता सकते है कि वे सामाजिक न्याय के पक्षधर थे और बौद्ध धर्म के नजदीक थे. 2009 में सोनेलाल पटेल के निधन होने के बाद उनकी पत्नी दल की अध्यक्ष बनी और अनुप्रिपा पटेल राष्ट्रीय महासचिव बनी. अनुप्रिया पटेल को पहली राजनातिक सफलता 2012 में मिली जब वे बनारस की रोहनिया विधानसभा से निर्वाचित हुयी.

अनुप्रिया पटेल और नरेंद्र मोदी

उत्तर प्रदेश में 2013 में त्रि-स्तरीय आरक्षण को लेकर एक बड़ा आन्दोलन हुआ और ये मुख्यत: दलित-पिछड़े वर्ग के युवाओं का आन्दोलन था. प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र प्रारंभिक परीक्षा- मुख्य परीक्षा से लेकर साक्षात्कार तक में आरक्षण की मांग कर रहे थे. जहाँ तक मुझे याद है इस आन्दोलन का खुला समर्थन अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने किया था. आन्दोलन के समर्थन में कई रैलियों में अनुप्रिया पटेल ने संबोधित किया था और मंडल कमीशन की सभी सिफ़ारिशो को लागू करने की मांग का समर्थन किया था. उस आन्दोलन का जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद शरद यादव, उदितराज (तब इन्डियन जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष थे), भाजपा के सांसद रमाकांत यादव ने किया था. जबकि समाजवादी पार्टी की सरकार ने केवल आन्दोलन की मांग को ख़ारिज किया बल्कि आन्दोलन को पुलिस के बल कुचल दिया. बसपा का भी रुख नकारात्मक रहा था. जब आन्दोलन का प्रतिनिधि समूह ने मायावती से समर्थन माँगा तो मायावती ने...

अनुप्रिया पटेेल जिस दिन NDA सरकार में मंत्री बनी, उसी दिन से (पहले कभी नहीं) उनके विवादित ट्वीट वायलर हो गये. और देखते-देखते वे 'दंगाई' हो गयी. उनके ट्वीट देश के जाने-माने पुरोधा लोगों ने रिट्वीट किया. अनुप्रिया उच्च वर्ण/ वर्ग की ठसक और टेक्नीकल दिव्यांगता का शिकार हो गयी.

अनुप्रिया का जो बैकग्राउंड है वो देश के बाबू साहेब वालो के जैसा नहीं है. उनके पिता सोनेलाल पटेल जो कांशीराम के साथ बसपा में काम किया था, फिर उन्होंने अपना दल की स्थापना की. जिन लोगों ने भी सोनेलालजी का राजनैतिक जीवन देखा है वे बता सकते है कि वे सामाजिक न्याय के पक्षधर थे और बौद्ध धर्म के नजदीक थे. 2009 में सोनेलाल पटेल के निधन होने के बाद उनकी पत्नी दल की अध्यक्ष बनी और अनुप्रिपा पटेल राष्ट्रीय महासचिव बनी. अनुप्रिया पटेल को पहली राजनातिक सफलता 2012 में मिली जब वे बनारस की रोहनिया विधानसभा से निर्वाचित हुयी.

अनुप्रिया पटेल और नरेंद्र मोदी

उत्तर प्रदेश में 2013 में त्रि-स्तरीय आरक्षण को लेकर एक बड़ा आन्दोलन हुआ और ये मुख्यत: दलित-पिछड़े वर्ग के युवाओं का आन्दोलन था. प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र प्रारंभिक परीक्षा- मुख्य परीक्षा से लेकर साक्षात्कार तक में आरक्षण की मांग कर रहे थे. जहाँ तक मुझे याद है इस आन्दोलन का खुला समर्थन अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने किया था. आन्दोलन के समर्थन में कई रैलियों में अनुप्रिया पटेल ने संबोधित किया था और मंडल कमीशन की सभी सिफ़ारिशो को लागू करने की मांग का समर्थन किया था. उस आन्दोलन का जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद शरद यादव, उदितराज (तब इन्डियन जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष थे), भाजपा के सांसद रमाकांत यादव ने किया था. जबकि समाजवादी पार्टी की सरकार ने केवल आन्दोलन की मांग को ख़ारिज किया बल्कि आन्दोलन को पुलिस के बल कुचल दिया. बसपा का भी रुख नकारात्मक रहा था. जब आन्दोलन का प्रतिनिधि समूह ने मायावती से समर्थन माँगा तो मायावती ने कांफ्रेस करके गरीब सवर्णों को आरक्षण की बात कर डाली और त्रि-स्तरीय आरक्षण की मांग को ख़ारिज कर दिया.

जहाँ तक अनुप्रिया पटेल के राजनैतिक जीवन का सवाल है तो उन्हें कभी भी साम्प्रदायिकता या हिंदुत्व की राजनीति करते नहीं देखा गया. 2014 में उनका भाजपा के साथ राजनैतिक तालमेल हुआ और उनकी पार्टी को दो लोकसभा में जीत मिली. ये अपना दल अभी तक की सबसे बड़ी राजनैतिक सफलता है. भाजपा ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को देखते हुये नितीश कुमार की उत्तर प्रदेश में बढती दखल को रोकने के लिये और कुर्मी वोट को साधने के लिये अनुप्रिया पटेल को केन्द्रीय मंत्री बना दिया. भाजपा में कद्दावर कुर्मी नेता और केन्द्रीय मंत्री संतोष गंगवार और ओमप्रकाश सिंह को दर-किनार करके अनुप्रिया पटेल पर दांव लगाया है.

लेकिन अनुप्रिया का केन्द्रीय मंत्री बनना देश के भद्रलोक को रास नहीं आया और नकली ट्विटर हैंडल से किये गये ट्वीट को वायरल किया और अनुप्रिया पटेल को ट्रोल किया गया. खबर है कि रवि शुक्ला अनुप्रिया पटेल के ऑफिस में आईटी सेल का काम देखता था लेकिन 1 साल पहले उनको निकाल दिया गया था और ये सारे ट्वीट रवि शुक्ला ने अनुप्रिया पटेल के नाम से किये है. अभी तक भाजपा समर्थक जिन्हें भद्रलोक (तथाकथित लिबरल-सेकुलर-प्रगतिशील) ने भक्त की संज्ञा दी है उन पर ट्रोल करने के आरोप लगाये जाते थे और आरोप लगाने वाले भद्रलोक वर्ग वाले होते थे.

इस बार अनुप्रिया को ट्रोल करने वाले यही भद्रलोक वाले थे. ये भी हो सकता है कि भद्रलोक को अनुप्रिया की पिछली राजनैतिक यात्रा के बारे में पता नहीं चल सका हो, और चूंकि उनके नकली ट्विटर हँडल पर कई सारे केन्द्रीय मंत्रियों के बधाई वाले ट्विटर ट्वीट की इसलिए भी अनुप्रिया उनके निशाने पर आ गयी. हालांकि अनुप्रिया पटेल ने पुलिस में अपने नाम से नकली ट्विटर अकाउंट होने की शिकायत की है और मीडिया को ये बताया है कि उनका अभी तक ट्विटर में अकाउंट ही नहीं था. अब ये जांच होने के बाद ये पता चलेगा कि मामला क्या था लेकिन अनुप्रिया पटेल के ट्विटर प्रकरण से ये जाहिर हो गया कि ट्विटर में ट्रोल करने के दो गिरोह है और बिना जाने-समझे भद्रलोक वाले भी समय-समय पर ट्रोल गिरोह का रूप अख्तियार कर लेते है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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