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कृपया ध्यान दें - नीतीश ने कमल में लाल रंग भरा है, भगवा नहीं!

    • आईचौक
    • Updated: 05 फरवरी, 2017 03:44 PM
  • 05 फरवरी, 2017 03:44 PM
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कमल के फूल में वो रंग नहीं भरा जो बीजेपी के सिंबल में है, बल्कि नीतीश ने लाल रंग भरा है. क्या ये कोई रेड अलर्ट है? अगर है वास्तव में ऐसा है तो आखिर किसके लिए?

पटना के पुस्तक मेले में मधुबनी पेंटर बउआ देवी ने नीतीश कुमार से बस ऑटोग्राफ का आग्रह किया था. बउआ ने कैनवास पर कुछ लकीरें खींची थी जो मिल कर कमल का फूल बना रही थीं, लेकिन उनमें कोई रंग नहीं भरा था. नीतीश ने उसमें रंग भर दिया और नीचे ऑटोग्राफ. फिर क्या था, तस्वीर वायरल हो गई.

तस्वीर के वायरल होने के साथ साथ एक बार फिर नीतीश और बीजेपी की नजदीकियों की चर्चा होने लगी. फिर क्या था बीजेपी और जेडीयू नेताओं के बयान भी आने लगे.

ध्यान देने वाली बात तो ये है कि नीतीश ने कमल के फूल में वो रंग नहीं भरा जो बीजेपी के सिंबल में है, बल्कि उन्होंने लाल रंग भरा है. क्या ये कोई रेड अलर्ट है? अगर है वास्तव में ऐसा है तो आखिर किसके लिए?

हर रंग में सियासत है!

कमल का स्केच बनाते वक्त बउआ देवी के मन में कोई बात रही हो या नहीं, रंग भरते वक्त नीतीश ने अपने मन की बात जरूर उकेर दी. नीतीश ने

कैनवास पर ऑटोग्राफ के साथ साथ कूची से सियासत के रंग चढ़ा दिये. वैसे नीतीश के पास कई ऑप्शन थे. वो चाहते तो बिना कोई रंग भरे नीचे ऑटोग्राफ दे सकते थे, जिसका कोई खास मतलब निकाला जा सकता था. वो चाहते तो फूल के अंदर भगवा रंग भर सकते थे जो बीजेपी के सिंबल में है. नीतीश ने तो अलग ही रंग भर दिया. न तो खाली छोड़ा, न ही भगवा रंग भरा - नीतीश ने तो उसे पूरा लाल ही कर दिया. कुछ ऐसे जैसे किसी की गाड़ी के आगे अचानक लाल बत्ती जल गई गई हो.

ये लाल रंग...

फर्ज कीजिए नीतीश कमल के फूल को खाली छोड़ सिर्फ ऑटोग्राफ दे दिया होता तो उसका एक खास मतलब होता. तब कयास लगाए जाते कि नीतीश ने फिर से बीजेपी के साथ की बात पर मुहर लगा दी, लेकिन खाली स्थान भी छोड दिया. खाली स्थान का मतलब अब भी तमाम तरह की गुंजाइश बची और बनी हुई है.

फर्ज...

पटना के पुस्तक मेले में मधुबनी पेंटर बउआ देवी ने नीतीश कुमार से बस ऑटोग्राफ का आग्रह किया था. बउआ ने कैनवास पर कुछ लकीरें खींची थी जो मिल कर कमल का फूल बना रही थीं, लेकिन उनमें कोई रंग नहीं भरा था. नीतीश ने उसमें रंग भर दिया और नीचे ऑटोग्राफ. फिर क्या था, तस्वीर वायरल हो गई.

तस्वीर के वायरल होने के साथ साथ एक बार फिर नीतीश और बीजेपी की नजदीकियों की चर्चा होने लगी. फिर क्या था बीजेपी और जेडीयू नेताओं के बयान भी आने लगे.

ध्यान देने वाली बात तो ये है कि नीतीश ने कमल के फूल में वो रंग नहीं भरा जो बीजेपी के सिंबल में है, बल्कि उन्होंने लाल रंग भरा है. क्या ये कोई रेड अलर्ट है? अगर है वास्तव में ऐसा है तो आखिर किसके लिए?

हर रंग में सियासत है!

कमल का स्केच बनाते वक्त बउआ देवी के मन में कोई बात रही हो या नहीं, रंग भरते वक्त नीतीश ने अपने मन की बात जरूर उकेर दी. नीतीश ने

कैनवास पर ऑटोग्राफ के साथ साथ कूची से सियासत के रंग चढ़ा दिये. वैसे नीतीश के पास कई ऑप्शन थे. वो चाहते तो बिना कोई रंग भरे नीचे ऑटोग्राफ दे सकते थे, जिसका कोई खास मतलब निकाला जा सकता था. वो चाहते तो फूल के अंदर भगवा रंग भर सकते थे जो बीजेपी के सिंबल में है. नीतीश ने तो अलग ही रंग भर दिया. न तो खाली छोड़ा, न ही भगवा रंग भरा - नीतीश ने तो उसे पूरा लाल ही कर दिया. कुछ ऐसे जैसे किसी की गाड़ी के आगे अचानक लाल बत्ती जल गई गई हो.

ये लाल रंग...

फर्ज कीजिए नीतीश कमल के फूल को खाली छोड़ सिर्फ ऑटोग्राफ दे दिया होता तो उसका एक खास मतलब होता. तब कयास लगाए जाते कि नीतीश ने फिर से बीजेपी के साथ की बात पर मुहर लगा दी, लेकिन खाली स्थान भी छोड दिया. खाली स्थान का मतलब अब भी तमाम तरह की गुंजाइश बची और बनी हुई है.

फर्ज कीजिए नीतीश कमल के फूल में भगवा रंग भर देते तो उसका अलग मतलब हो सकता था. माना जाता कि नीतीश अब भगवा रंग में रंगने लगे हैं या फिर नीतीश को भगवा भाने लगा है, इत्यादि.

नीतीश की गुगली

असल में नीतीश जब भी कुछ कहते या करते हैं उसमें वो अटकलों के लिए पूरा स्पेस भी छोड़ देते हैं. एक ही तीर से वो पुराने दोस्त बीजेपी को फिलर भी भेज देते हैं और महागठबंधन की सरकार में मजबूत हिस्सेदार लालू प्रसाद को भी संजीदगी भरी गंभीर चेतावनी जारी कर देते हैं.

2014 के लोक सभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी से चिढ़ के साथ साथ नीतीश के बीजेपी से दूरी बनाने के एक बड़ी वजह मुस्लिम वोट बैंक था. अब नीतीश को लगता होगा कि तमाम कोशिशों के बावजूद वो मुस्लिम वोटों पर ममता की तरह पकड़ नहीं बना पाये हैं. वस्तुस्थिति तो यही है कि बिहार में मुस्लिम समुदाय अब भी लालू प्रसाद के एम-वाय समीकरण से अलग नहीं हो पाया है.

पटना में सत्ता के गलियारों के साथ साथ दूर दराज के इलाकों में भी एक चर्चा ये भी है कि नीतीश के साथ साथ उनके समर्थकों का मन भी मौजूदा महागठबंधन से ऊबने लगा है. महागठबंधन एक सियासी मजबूरी के चलते बना था और ये तब तक कायम रहेगा जब तक दोनों पक्षों का हित पूरा होता रहे. किसी एक का भी पूरा हुआ तो वो टूट कर अलग होने में तनिक भी देर नहीं लगाएगा. इस हिसाब से देखें तो नीतीश का काम तो पूरा हो चुका है. वो मोदी को शिकस्त देकर चुनाव जीत चुके हैं. लालू के हिसाब से देखें तो उनके बेटे उप मुख्यमंत्री और मंत्री जरूर बन चुके हैं, लेकिन ये सफर तब तक अधूरा है जब तक लालू तेजस्वी को सीएम नहीं बना लेते.

कुछ मामलों में नीतीश के मुकाबले लालू का पक्ष उतना मजबूत नहीं है. नीतीश चाहें तो लालू से रिश्ता तोड़ कर बीजेपी का सपोर्ट लेकर सरकार चला सकते हैं, लेकिन लालू के पास ऐसा विकल्प नहीं है. लालू को बीजेपी का समर्थन मिलने से रहा और कांग्रेस से काम चलने वाला नहीं. बीजेपी लालू को तभी समर्थन देगी जब उसे नीतीश की सरकार गिरानी हो, लेकिन इतनी बड़ी राजनीतिक भूल तो उसे नहीं ही करनी चाहिये.

जो ना समझे वो...

नीतीश कुमार ने मोदी सरकार का सपोर्ट तो जीएसटी पर भी किया था और सर्जिकल स्ट्राइक पर भी, लेकिन ज्यादा शोर मचा नोटबंदी पर उनके समर्थन को लेकर. तब लालू से लेकर महागठबंधन में सहयोगी कांग्रेस तक के कान खड़े हो गये. रही सही कसर मकर संक्रांति पर सुशील मोदी ने दही-चूड़ा खाने के बाद 'दिल का रिश्ता' बता कर पूरी कर दी.

उससे पहले पटना एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार ने बॉडी लैंग्वेज से जो संकेत दिये वो भी गौर करने लायक था. बहुत कुछ न सही और शिष्टाचारवश ही सही, पर इतना तो लगा ही कि एक दूसरे को पटखनी देने का मकसद तो पूरा हो चुका - अब आगे दुश्मनी निभाना सियासत की सेहत के लिए भी अच्छा नहीं है. ब्लैक मनी पर सफाई में अमित शाह ने साफ कर ही दिया था कि चुनावी बातें जुमला होती हैं. लगता है नीतीश के लिए 'डीएनए में खोट' वाली बात भी अब जुमले जितना ही मायने रखने लगी हो.

वैसे तो नीतीश के प्रिय कवि कबीर और रहीम हैं, लेकिन इस बार ये जगह धूमिल को मिलती दिख रही है. धूमिल के मोचीराम की तरह कमल का स्केच भी उन्हें एक महज एक फूल की आकृति दिखी होगी जिसमें उन्होंने एक रंग भर दिया. अब कमल की आकृति में लाल रंग उसे गुलाब बना दे या कुछ और ये तो समझने की बात है. संभव है वैलेंटाइन डे से पहले वो कमल की आकृति में लाल गुलाब का फूल बन गया हो जो बीजेपी के लिए तोहफा और लालू प्रसाद के लिए रेड सिग्नल हो. अपने अपने हिसाब से समझने की बात है, वैसे भी सियासत में प्रतीकों को ऐसे ही समझना पड़ता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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