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जमीनी लहर अगर वोटों में तब्दील हुई तो बीजेपी की बल्ले बल्ले

    • कुमार अभिषेक
    • Updated: 09 मार्च, 2017 10:06 PM
  • 09 मार्च, 2017 10:06 PM
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जमीन पर मोदी का जादू बरकरार दिखा, जिस निचले और गरीब तबके ने 2014 में मोदी लहर में बदलाव या आजमाने के लिए मोदी का साथ दिया था वो वोटर फिलहाल मोदी पर भरोसा करता दिखा,

चाहे वो हर्दोई हो, कौशांबी हो, इटावा या बस्ती हो या फिर भदोही, वोटर की एक लंबी खामोशी महसूस हुई, ज्यादातर वोटर चुप रहे , लेकिन कुरेदने पर अगर मुंह खोला है तो ज्यादातर लोगो के मुंह से कहीं कमल निकला तो कहीं बीजेपी लेकिन मोदी शब्द याद दिलाते ही एक रहस्यमी मुस्कान दौड़ जाती.

शहरी मुसलमान अगर बोला तो जय अखिलेश बोला लेकिन उन मुसलमानों का ये दर्द जरूर दिखा कि काश ठाकुर और ब्राह्मण भी साथ आते तो दो तिहाई पाते.

बहनजी के चाहने वालों को ये कहते जरूर सुना कि आप सर्वे करते रहिये जिन्न तो हमारा ही निकलेगा.

अखिलेश और राहुल के वाराणसी के रोड शो मे जुटी भीड़ को अगर रिजल्ट का पैमाना माना जाए और पीएम मोदी के रोड शो से इसकी तुलना कर अगर नतीजे निकाले तो बीजेपी और पीएम मोदी के लिए 11मार्च की सुबह बिहार चुनाव की याद दिला सकता है लेकिन जमीनी हकीकत इससे इतर है.

मोदी पर भरोसा करते दिखे वोटर

जमीन पर मोदी का जादू बरकरार दिखा, जिस निचले और गरीब तबके ने 2014 में मोदी लहर में बदलाव या आजमाने के लिए मोदी का साथ दिया था वो वोटर फिलहाल मोदी पर भरोसा करता दिखा, पूरे चुनाव मे एक ही ऐसा मुद्दा था जिसपर मायावती अखिलेश और राहुल एक साथ दिखे वो था नोटबंदी, जिस नोटबंदी को मुद्दा बनाकर अखिलेश और राहुल पीएम  मोदी पर पूरे चुनाव मे घूम घूमकर निशाना साधते रहे वही नोटबंदी पीएम मोदी को गरीबों और निचले तबके में मसीहा का दर्जा देता रहा.

सुदूर इलाकों में अखिलेश के एक्सप्रेस वे और मेट्रो पर पीएम मोदी की उज्ज्वला योजना ज्यादा भारी दिखी, हां अखिलेश को लेकर मतदाताओं मे कोई निजी नाराजगी नहीं थी.. लेकिन ज्यादातर लोग फिलहाल मोदी की बातो पर भरोसा जताते नजर आए.. मुसलमान बहुल इलाकों में अखिलेश यादव के लिए खासा समर्थन दिखा लेकिन गांव और कस्बों में रहने वाले...

चाहे वो हर्दोई हो, कौशांबी हो, इटावा या बस्ती हो या फिर भदोही, वोटर की एक लंबी खामोशी महसूस हुई, ज्यादातर वोटर चुप रहे , लेकिन कुरेदने पर अगर मुंह खोला है तो ज्यादातर लोगो के मुंह से कहीं कमल निकला तो कहीं बीजेपी लेकिन मोदी शब्द याद दिलाते ही एक रहस्यमी मुस्कान दौड़ जाती.

शहरी मुसलमान अगर बोला तो जय अखिलेश बोला लेकिन उन मुसलमानों का ये दर्द जरूर दिखा कि काश ठाकुर और ब्राह्मण भी साथ आते तो दो तिहाई पाते.

बहनजी के चाहने वालों को ये कहते जरूर सुना कि आप सर्वे करते रहिये जिन्न तो हमारा ही निकलेगा.

अखिलेश और राहुल के वाराणसी के रोड शो मे जुटी भीड़ को अगर रिजल्ट का पैमाना माना जाए और पीएम मोदी के रोड शो से इसकी तुलना कर अगर नतीजे निकाले तो बीजेपी और पीएम मोदी के लिए 11मार्च की सुबह बिहार चुनाव की याद दिला सकता है लेकिन जमीनी हकीकत इससे इतर है.

मोदी पर भरोसा करते दिखे वोटर

जमीन पर मोदी का जादू बरकरार दिखा, जिस निचले और गरीब तबके ने 2014 में मोदी लहर में बदलाव या आजमाने के लिए मोदी का साथ दिया था वो वोटर फिलहाल मोदी पर भरोसा करता दिखा, पूरे चुनाव मे एक ही ऐसा मुद्दा था जिसपर मायावती अखिलेश और राहुल एक साथ दिखे वो था नोटबंदी, जिस नोटबंदी को मुद्दा बनाकर अखिलेश और राहुल पीएम  मोदी पर पूरे चुनाव मे घूम घूमकर निशाना साधते रहे वही नोटबंदी पीएम मोदी को गरीबों और निचले तबके में मसीहा का दर्जा देता रहा.

सुदूर इलाकों में अखिलेश के एक्सप्रेस वे और मेट्रो पर पीएम मोदी की उज्ज्वला योजना ज्यादा भारी दिखी, हां अखिलेश को लेकर मतदाताओं मे कोई निजी नाराजगी नहीं थी.. लेकिन ज्यादातर लोग फिलहाल मोदी की बातो पर भरोसा जताते नजर आए.. मुसलमान बहुल इलाकों में अखिलेश यादव के लिए खासा समर्थन दिखा लेकिन गांव और कस्बों में रहने वाले मुसलमानों मे मायावती का समर्थन था मगर ये लोग मोदी को रोकने वालों का साथ देने की बात खुलेआम करते नजर आए.

कौशांबी के चयल विधासभा के एक कस्बे मे सड़क के किनारे केशव मौर्य के हेलीकाप्टर को देखने के लिए भीड़ जुटी थी मैंने पास के किराना और उसके बगल की चाय दुकान का रुख किया वहां मौजूद दो लोग ने कहा यहां तो बहनजी का ही जलवा चलेगा लेकिन वहां खड़े करीब दर्जन भर लोग चुप थे, वो लोग इन लोगों बातो पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे थे जब मैंने कुरेदा तो कुछ कहने लगे सब अपनी इच्छा से देंगे, मैंने कहा आपका धंधा तो नोटबंदी ने चौपट कर दिया फिर क्या था सभी बोल पड़े.

एक ने कहा प्रधानमंत्री मोदी को नोटबंदी का बड़ा फायदा होगा, हमारा क्या हम तो मिट्टी तेल की लाइन मे खड़े होने के आदी है परेशानी उन्हे है जिन्होने पैसे को न जाने कितने जगहो पर छुपा कर रखा था.. पिछड़ी जाति के इस गांव के लोगो ने कहा कि पिछली बार हमारे गांव ने 70 फीसदी वोट बहनजी को दिया था इस चुनाव मे इतना ही वोट कमल को जाएगा.

बनारस के गढ़वा घाट के गंगा किनारे हमेें 10 लोगों की एक जमात दिखी पूछने पर पता लगा ये लोग मिर्ज़ापुर से किसी कार्यक्रम में आए थे, ये लोग दलित मे पासवान बिरादरी से थे पहले तो राजनीति पर बोलने को तैयार नहीं थे लेकिन जब बहनजी को वोट देने की बात कही तो बोलने लगे इसबार तो भईया गांव मे कमल का जोर है.

बस्ती मे इंटर कॉलेज मे वोट कर वापस जाते एक झुंड को मैंने उनके भेष-भूषा देखकर रोका तो उसमे मौजूद एक ने कहा हमने फूल को वोट किया है तो मैं नाम भी पूछ लिया, उसने कहा हम सोनकर हैं.

अलग अलग जगहों पर हमें दलित वोटों मे सेंध दिखी तो यादव छोड़कर ज्यादातर पिछड़ी जातियां बीजेपी के साथ नज़र आ रही हैं..

मायावती ने भले ही दलित मुस्लिम गठबंधन को पुख्ता करने के लिए करीब 100 टिकट बांटे हो लेकिन जाटव छोड़ दूसरे दलित इस कदम से खुश नहीं दिखे वहीं कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन मुसलमानों को बहुत भाया ऐसे में ज्यादातर मुसलमानों ने बसपा पर वहीं भरोसा जताया जहां सपा लड़ाई से बाहर दिखी.

करीब ढाई दशक बाद ये माहौल दिखा है जब उत्तर प्रदेश में ठाकुर और ब्राह्मण एक साथ वोट कर रहे हैं और ठाकुरों का बीजेपी की तरफ खिसकना समाजवादी पार्टी को सीधा नुकसान है.

रही सही कसर यादव परिवार के विवाद ने पूरी कर दी है, जिस जसवंत नगर सीट पर शिवपाल यादव नामांकन के बाद झांकने नहीं आते थे वहां मतदान के दिन शिवपाल बूथ दर बूथ खाक छानते फिरे कि कही भीतरघात न हो जाए तो वही एटा, मैनपूरी और इटावा मे अखिलेश और रामगोपाल, शिवपाल के भीतरघात से जूझते नजर आए.

बुंदेलखंड और पूर्वांचल में यादव बिरादरी हर हाल में अखिलेश के साथ खड़ी दिखी हैं लेकिन उन्हे कांग्रेस को 100 से अधिक टिकट देना नहीं भाया है, हालांकि इनके वोट इस गठबंधन बंधन को थोक मे जरूर मिले लेकिन गथबंधन अपने वोट बैंक को लेकर जूझता नजर आया.

मोदी के रोड शो ने आखिरी चरण में अपनी छाप छोड़ी है और बीजेपी जहां सबसे कमजोर थी वहां शानदार नतीजे दे सकती है. फिर भी ये कहा जा सकता है कि जमीन पर खासकर गरीब पिछड़ी और वंचित तबके में मोदी का असर साफ दिखा और अगर ये वोटों में तब्दील हुआ तो बीजेपी की बल्ले बल्ले होगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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