• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

एक आम आदमी का सुसाइड नोट

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 23 अप्रिल, 2015 09:09 AM
  • 23 अप्रिल, 2015 09:09 AM
offline
मैं गजेंद्र सिंह की मौत से प्रेरित होकर यह सुसाइड नोट लिख रहा हूं. ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आए.

डियर सर / मैडम

समझ नहीं आ रहा? अड्रेस करूं तो किसे? इसीलिए संबोधन खाली नहीं, बल्कि खुला छोड़ दिया है. रंग और रूप भले ही ऊपर से अलग दिखता हो, पर अंदर से आप सभी एक जैसे हैं. बिलकुल ईश्वर की तरह, एक ही ईश्वर के अनेक रूपों की तरह. दरअसल, सभी को किसानों की बहुत फिक्र है - इसलिए किसी एक का नाम लिख कर मैं बाकियों का अपमान नहीं करना चाहता.

मैं गजेंद्र सिंह की मौत से प्रेरित होकर यह सुसाइड नोट लिख रहा हूं. ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आए. मैं भी मरना चाहता हूं. लेकिन मुझे उम्मीद है आप लोग मुझे बचा लेंगे. फिर शायद इस सुसाइड नोट का कोई मतलब न रह जाए.

सर, मैं बिलकुल नहीं मान रहा कि आप मुझे यूं ही मर जाने देंगे. गजेंद्र के मन में भी शायद ऐसी बात रही हो? आप से बड़ी उम्मीदें हैं सर. आपके साथी ने कहा कि अगली बार आप सीधे पेड़ पर चढ़ जाएंगे और बचा लेंगे. ऐसा नहीं है कि मुझे अब जाकर ऐसी उम्मीद बंधी है. जो आदमी बिजली के खंभे पर चढ़ने का खतरा उठा सकता हो. बिजली कट जाने पर हाई वोल्टेज के तार खुद अपने हाथों से जोड़ सकता हो - भला पेड़ पर चढ़ने में उसे मुश्किल क्यों होगी? लेकिन जंतर मंतर की घटना से थोड़ी देर के लिए कंफ्यूजन हो गया था. ऐसा तो नहीं कि आपके नए साथियों ने ये सलाह दे डाली थी कि पेड़ पर चढ़ने से पहले एक बार जनता की राय ले लेनी चाहिए? खैर, ये तो आप और आपके साथी ही जानें.

अब हर आदमी हर काम तो कर नहीं सकता, सर. जो खंभे पर चढ़ने में एक्सपर्ट हो वो पेड़ पर भी चढ़ जाएगा, जरूरी तो नहीं. और ये तो सतत अभ्यास की चीज है. इस काम में बड़ी ही चुस्ती और फुर्ती की जरूरत होती है. बस जरा सी गफलत हुई और लेने के देने पड़ सकते हैं. जंतर मंतर पर ऐसा ही हुआ शायद.

सर, मैंने फैसला किया है कि आपको किसी भी कीमत पर हाथ पर हाथ धरे बैठने नहीं दूंगा. इसलिए मैंने सुसाइड के लिए बिजली के ही खंभे पर चढ़ने का फैसला किया है. ताकि इस बार आपको पूरा मौका मिले. जो लोग आप की नीयत पर उंगली उठा रहे हैं - उन्हें आप अपने एक्शन से जवाब दें. मेरी ये दिली...

डियर सर / मैडम

समझ नहीं आ रहा? अड्रेस करूं तो किसे? इसीलिए संबोधन खाली नहीं, बल्कि खुला छोड़ दिया है. रंग और रूप भले ही ऊपर से अलग दिखता हो, पर अंदर से आप सभी एक जैसे हैं. बिलकुल ईश्वर की तरह, एक ही ईश्वर के अनेक रूपों की तरह. दरअसल, सभी को किसानों की बहुत फिक्र है - इसलिए किसी एक का नाम लिख कर मैं बाकियों का अपमान नहीं करना चाहता.

मैं गजेंद्र सिंह की मौत से प्रेरित होकर यह सुसाइड नोट लिख रहा हूं. ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आए. मैं भी मरना चाहता हूं. लेकिन मुझे उम्मीद है आप लोग मुझे बचा लेंगे. फिर शायद इस सुसाइड नोट का कोई मतलब न रह जाए.

सर, मैं बिलकुल नहीं मान रहा कि आप मुझे यूं ही मर जाने देंगे. गजेंद्र के मन में भी शायद ऐसी बात रही हो? आप से बड़ी उम्मीदें हैं सर. आपके साथी ने कहा कि अगली बार आप सीधे पेड़ पर चढ़ जाएंगे और बचा लेंगे. ऐसा नहीं है कि मुझे अब जाकर ऐसी उम्मीद बंधी है. जो आदमी बिजली के खंभे पर चढ़ने का खतरा उठा सकता हो. बिजली कट जाने पर हाई वोल्टेज के तार खुद अपने हाथों से जोड़ सकता हो - भला पेड़ पर चढ़ने में उसे मुश्किल क्यों होगी? लेकिन जंतर मंतर की घटना से थोड़ी देर के लिए कंफ्यूजन हो गया था. ऐसा तो नहीं कि आपके नए साथियों ने ये सलाह दे डाली थी कि पेड़ पर चढ़ने से पहले एक बार जनता की राय ले लेनी चाहिए? खैर, ये तो आप और आपके साथी ही जानें.

अब हर आदमी हर काम तो कर नहीं सकता, सर. जो खंभे पर चढ़ने में एक्सपर्ट हो वो पेड़ पर भी चढ़ जाएगा, जरूरी तो नहीं. और ये तो सतत अभ्यास की चीज है. इस काम में बड़ी ही चुस्ती और फुर्ती की जरूरत होती है. बस जरा सी गफलत हुई और लेने के देने पड़ सकते हैं. जंतर मंतर पर ऐसा ही हुआ शायद.

सर, मैंने फैसला किया है कि आपको किसी भी कीमत पर हाथ पर हाथ धरे बैठने नहीं दूंगा. इसलिए मैंने सुसाइड के लिए बिजली के ही खंभे पर चढ़ने का फैसला किया है. ताकि इस बार आपको पूरा मौका मिले. जो लोग आप की नीयत पर उंगली उठा रहे हैं - उन्हें आप अपने एक्शन से जवाब दें. मेरी ये दिली ख्वाहिश है सर.

कम से कम इसके लिए आपको किसी इलेक्ट्रिशियन का इंतजार तो नहीं करना पड़ेगा. जिस तरह गजेंद्र के केस में आप दिल्ली पुलिस की राह देखते रहे. एक बाद समझ में नहीं आई. आप दिल्ली पुलिस की राह क्यों देखते रहे? आखिर पुलिस टाइम पर पहुंचती कब है? लेकिन उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए सर. एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब दिल्ली पुलिस आपके अंडर में होगी - और फिर कोई भी किसान सुसाइड नहीं कर पाएगा. जब तक कोई सुसाइड के सपने देख रहा होगा, पुलिस उसे सलाखों के पीछे पहुंचा चुकी होगी. फिर तो पुलिस का काम भी आसान हो जाएगा. उसे किसी की जेब में हेरोइन की पुड़िया और जमीन से निकला जंग लगा पिस्तौल बरामद करने की जहमत नहीं उठानी पड़ेगी. हो सकता है उस पुड़िया में हेरोइन की जगह गेहूं के कुछ दाने रखने पड़े.

लेकिन सर, अगर बुरा न मानें तो एक बात पूछ सकता हूं? भगवान न करे गजेंद्र की जगह आपका कोई करीबी ऐसा कर रहा होता तो भी क्या आप पुलिस का यूं ही इंतजार करते? हमने देखा आपके एक साथी सवाल पूछने पर मीडिया को नसीहत दे रहे थे. क्या पेड़ पर उनका कोई करीबी चढ़ा होता तो भी वो ऐसा ही करते? बुरा मत मानिएगा सर. अगर बुरा मान कर नाराज हो गए तो हमें कौन बताएगा कि सरकार हमारी जमीन किसे देने के लिए हमसे लेना चाहती है. सर हमने तो आपको करीबियों से भी करीबी समझा था. आखिर आप हमें अपना करीबी क्यों नहीं समझते सर. मैं आपकी बातों की बात नहीं कर रहा. क्या तीन सीटें कम पड़ गईं इसकी तकलीफ है आपको? क्योंकि अपनी ओर से और तो कोई कमी नहीं दिखती हमें?

और आप सर,

आपने तो कहा था कहा कि आप किसानों के साथ हैं. मुझे लगा दौसा में आपसे भेंट जरूर होगी. आप गजेंद्र के अंतिम संस्कार में जरूर मिलेंगे - आपकी बातों से तो ऐसा ही लगा था. अचानक पता चला कि आप तो चार धाम यात्रा पर निकल गए. क्या आप छुट्टियों से छुट्टी लेकर हमसे मिलने आए थे. अब ऐसा मत कीजिएगा सर कि फिर से छुट्टियां बढ़ा लीजिएगा. वरना ये लोग हमारी जमीन, हमारा इंटरनेट सब बड़े लोगों को दे देंगे - और अब तो हमारे पास एस्केप वेलॉसिटी का ऑप्शन भी नहीं बचा. अरे सर फिर कौन समझाएगा कि ओबामा की तारीफ के क्या मायने हैं. हम तो सीधे सादे लोग ठहरे. आपही से पता चला कि ओबामा ने गोर्बाचोव की भी तारीफ की थी - और सोवियत संघ रूस में सिमट गया. और ये सूट-बूट वालों की सरकार है. बड़े लोगों की सरकार है. बस इतना काफी नहीं है सर. आप जल्द लौट आइएगा. प्लीज.

अब आपसे क्या कहें सर,

वैसे बड़ा अच्छा लगा जब आपने कहा, "गजेंद्र की मौत से पूरा देश दुखी है. हम बहुत निराश." फिर आप बोले, 'मेहनतकश किसान को किसी भी समय ये नहीं सोचना चाहिए कि वो अकेला है.' नहीं तो हम तो यही समझ रहे थे कि पूरी दिल्ली तमाशबीन है. शायद उन्होंने मौत को इतने करीब से कभी देखा नहीं. इसीलिए गौर फरमा रहे थे. अब तो पूरा डिटेल - और पल पल का आंखों देखा हाल है उनके पास. आपसे तो सबसे ज्यादा उम्मीदें हैं सर. अगर धरती पर हम बेहाथ भी हो गए तो आप मंगल पर जमीन दिला देंगे - लेकिन हमे मरने नहीं देंगे.

गजेंद्र तो अमर हो गया सर. और कुछ भले न हो कम से कम आम आदमी की मौत को तो उसने लाइव दिखा ही दिया, वरना हम तो फोटो और उसका ट्रीटमेंट देख देख कर थक चुके थे. पहली बार देखा कि एक किसान की मौत कैसे होती है. और पहली ही बार मंच पर मौजूद एक मैडम का ट्वीट पढ़ा - जब मैडम ने डॉक्टरों से पहले ही गजेंद्र की शहादत की घोषणा कर दी. लेकिन आप सभी से मेरा वादा है - मैं उसकी शहादत को यूं ही जाया नहीं होने दूंगा. उसके सपने को पूरा करने के लिए मैं भी सरेआम डंके की चोट पर सुसाइड करूंगा.

बस दिन, तारीख और वक्त तय करना है. और इसे भी आप ही तय करेंगे. आप ही हमारे भगवान हैं सर - और भगवान के अलावा आखिर किसकी हैसियत है जो मेरी मौत की तारीख तय कर दे. बस इसे सहेज कर रखिएगा, वरना फर्जी सुसाइड नोट बनाने में वक्त ही कितना लगता है.

आप सभी का एक आम आदमी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲