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व्यंग्य: तो ऐसे मिला था केजरीवाल को झाडू चुनाव चिह्न

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 15 जुलाई, 2015 02:35 PM
  • 15 जुलाई, 2015 02:35 PM
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'आप' को झाडू कैसे मिला? आम लोगों को ये बात अब तक शायद ही पता हो. कुछ आरटीआई कार्यकर्ताओं ने ये जानने की कोशिश भी की थी, मगर नाकाम रहे.

'आप' को झाडू कैसे मिला? आम लोगों को ये बात अब तक शायद ही पता हो. कुछ आरटीआई कार्यकर्ताओं ने ये जानने की कोशिश भी की थी, मगर नाकाम रहे.

असल में मायावती के ही 'एनओसी' पर केजरीवाल को झाडू चुनाव चिह्न मिल पाया था. अरसा पहले कांशीराम ने बहुजन समाज से जुड़े तमाम प्रतीकों को बुक करा लिया था. ऐसे में उनकी मर्जी के बगैर किसी भी ऐसी पार्टी को वे चुनाव चिह्न अलॉट नहीं हो सकते जिनका वास्ता बहुजन समाज से रहा हो.

पार्टी सिंबल के तौर पर झाडू की रिक्वेस्ट के साथ केजरीवाल ने तर्क दिया कि चूंकि आम आदमी का दायरा बहुजन समाज से ज्यादा है इसलिए उन्हें इसे अलॉट करने से कोई नहीं रोक सकता. ये वो दौर रहा जब देश में केजरीवाल की देश में तूती बोलती थी - और उसी के बूते उन्होंने चुनाव आयोग को भी अपने प्रभाव में ले लिया.

खैर, चुनाव आयोग इस बात पर राजी हुआ कि कांशीराम की ओर से कोई अगर नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट दे दे, तो उन्हें सिंबल रिलीज किया जा सकता है. काफी अनुनय विनय के बाद मायावती एनओसी देने को राजी हुईं और केजरीवाल को सिंबल मिल पाया.

अब मायावती का इरादा बदल गया है. मायावती चाहती हैं कि झाडू केजरीवाल से वापस लेकर चुनाव आयोग उन्हें पार्टी सिंबल के तौर पर दे दे. इसके लिए मायावती ने अर्जी भी डाल रखी है.

लोक सभा चुनाव में यूपी से एक भी सीट नहीं मिलना उनके लिए सबसे बड़ा सदमा रहा. तब से लेकर अब तक मायावती हार की वजह तलाशती रही हैं. इस दौरान उन्हें कई बाबाओं और तांत्रिकों ने उन्हें तरह तरह की सलाह दी. इन्हीं में से एक की सलाह उन्हें भा गई.

एक तांत्रिक ने बताया कि बीएसपी का चुनाव चिह्न हाथी ही हार का कारण है. अब तक उन्हें सफलता इसलिए मिलती रही क्योंकि उनकी कुंडली में एक मजबूत ग्रह की महादशा खत्म हो चुकी है.

तांत्रिक के अलावा एक रिसर्च स्कॉलर ने भी मायावती को समझा दिया है कि हाथी तो गरीबों के लिए बस दूर से देखने की चीज रहा है. उस पर सवारी तो जमींदार और सामंतवादी ही करते रहे हैं. फिर हाथी बहुजन समाज का सिंबल कैसे हो सकता...

'आप' को झाडू कैसे मिला? आम लोगों को ये बात अब तक शायद ही पता हो. कुछ आरटीआई कार्यकर्ताओं ने ये जानने की कोशिश भी की थी, मगर नाकाम रहे.

असल में मायावती के ही 'एनओसी' पर केजरीवाल को झाडू चुनाव चिह्न मिल पाया था. अरसा पहले कांशीराम ने बहुजन समाज से जुड़े तमाम प्रतीकों को बुक करा लिया था. ऐसे में उनकी मर्जी के बगैर किसी भी ऐसी पार्टी को वे चुनाव चिह्न अलॉट नहीं हो सकते जिनका वास्ता बहुजन समाज से रहा हो.

पार्टी सिंबल के तौर पर झाडू की रिक्वेस्ट के साथ केजरीवाल ने तर्क दिया कि चूंकि आम आदमी का दायरा बहुजन समाज से ज्यादा है इसलिए उन्हें इसे अलॉट करने से कोई नहीं रोक सकता. ये वो दौर रहा जब देश में केजरीवाल की देश में तूती बोलती थी - और उसी के बूते उन्होंने चुनाव आयोग को भी अपने प्रभाव में ले लिया.

खैर, चुनाव आयोग इस बात पर राजी हुआ कि कांशीराम की ओर से कोई अगर नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट दे दे, तो उन्हें सिंबल रिलीज किया जा सकता है. काफी अनुनय विनय के बाद मायावती एनओसी देने को राजी हुईं और केजरीवाल को सिंबल मिल पाया.

अब मायावती का इरादा बदल गया है. मायावती चाहती हैं कि झाडू केजरीवाल से वापस लेकर चुनाव आयोग उन्हें पार्टी सिंबल के तौर पर दे दे. इसके लिए मायावती ने अर्जी भी डाल रखी है.

लोक सभा चुनाव में यूपी से एक भी सीट नहीं मिलना उनके लिए सबसे बड़ा सदमा रहा. तब से लेकर अब तक मायावती हार की वजह तलाशती रही हैं. इस दौरान उन्हें कई बाबाओं और तांत्रिकों ने उन्हें तरह तरह की सलाह दी. इन्हीं में से एक की सलाह उन्हें भा गई.

एक तांत्रिक ने बताया कि बीएसपी का चुनाव चिह्न हाथी ही हार का कारण है. अब तक उन्हें सफलता इसलिए मिलती रही क्योंकि उनकी कुंडली में एक मजबूत ग्रह की महादशा खत्म हो चुकी है.

तांत्रिक के अलावा एक रिसर्च स्कॉलर ने भी मायावती को समझा दिया है कि हाथी तो गरीबों के लिए बस दूर से देखने की चीज रहा है. उस पर सवारी तो जमींदार और सामंतवादी ही करते रहे हैं. फिर हाथी बहुजन समाज का सिंबल कैसे हो सकता है.

"आपने कभी हाथी की सवारी की है?"

रिसर्च स्कॉलर के इस सवाल का जवाब तो मायावती के पास भी न था. मायावती ने तो कभी हाथी की सवारी की सोची भी नहीं.

इतना सब सुनने के बाद मायावती को एक और बात समझ में आई कि चुनाव आयोग पार्कों में बने हाथियों को ढंकने का फरमान भले ही जारी कर दे, झाडू के मामले में ऐसा कर ही नहीं सकता. चुनावों के दौरान भी आयोग झाडू के सार्वजनिक स्थानों पर दिखने पर रोक नहीं लगा सकता. फिर तो गंदगी इतनी फैल जाएगी कि आयोग के लिए ऐसा रिस्क लेना मुश्किल होगा.

फिर मायावती ने केजरीवाल को गियर में लेना शुरू कर दिया. केजरीवाल पर मायावती ने आरोप लगाया कि उन्होंने झाडू उनसे लेकर सांप्रदायिक ताकतों को हैंडओवर कर दिया है. मायावती का आशय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान से है. मायावती का आरोप है कि दिल्ली में भी मोदी और केजरीवाल मिल कर फ्रेंडली मैच खेल रहे हैं - क्योंकि विवादों के चलते दोनों को फायदा है. दोनों सरकारों को गवर्नेंस से कोई मतलब नहीं है - और दिल्ली की जंग के नाम पर लोगों का ध्यान असल मुद्दों से यूं ही दूर हो जा रहा है.

मायावती ने केजरीवाल को साफ कर दिया है कि झाडू सरेंडर कर अब वो बीएसपी के लिए एनओसी जारी करें - अन्यथा वो प्रशांत भूषण के जरिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट तो नहीं, लेकिन प्रशांत भूषण के नाम का केजरीवाल पर ज्यादा असर होगा. मायावती ये बखूबी समझती हैं.

केजरीवाल क्या करें फिलहाल उन्हें समझ में नहीं आ रहा है. चर्चा है कि जल्द ही वो इस मसले पर एक रेफरेंडम की तैयारी कर रहे हैं. आखिरी फैसला उसके बाद ही होने की संभावना है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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