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व्यंग्यः अब शारीरिक शिक्षा और साहसिक खेलों पर होगा ध्यान

    • आशीष मिश्रा
    • Updated: 18 मार्च, 2016 04:48 PM
  • 18 मार्च, 2016 04:48 PM
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बीते दिनों लोकसभा में बच्चों की आवाज गूंजी. मुद्दा था बारहवीं गणित का कठिन पर्चा. गणित यूँ भी सिरदर्द होती है. उसके सवाल बार-बार पूछकर बच्चों को पीटने के काम आते हैं.

आमतौर पर लोकसभा चिल्लाती है, पर जब चलती है तो ख़ुशी होती है. जब अच्छे से चलती है तो यकीन नही होता. और जब मुद्दों पर बात होती है तो लगता है एक टांग पर खड़े होकर की गई तपस्या सफल हो गई. बीते दिनों लोकसभा में बच्चों की आवाज गूंजी. मुद्दा था बारहवीं गणित का कठिन पर्चा. गणित यूँ भी सिरदर्द होती है. उसके सवाल बार-बार पूछकर बच्चों को पीटने के काम आते हैं. आजकल 15+6 के चक्कर में शादियाँ टूट रही हैं. जो शादीशुदा हैं उन्हें डर लगने लगा है बीवी सत्रह का पहाड़ा न पूछ डाले. ऐसे में बोर्ड इम्तिहान में गणित का कठिन पर्चा आना अच्छा संकेत नहीं है. पर लोकसभा में इस मुद्दे पर चर्चा होते देखना सुकून दे गया. उम्मीद जगी कि आगे परीक्षार्थियों के भले के लिए कुछ तो होकर रहेगा.

फिर तस्वीर आई बिहार में बोर्ड परीक्षाओं में खुली नकल की. यकीन उस सुनी-सुनाई बात पर पुख्ता हो गया कि हिंदुस्तान में परीक्षा सिर्फ बच्चा नही पूरा घर देता है. क्योंकि सच में सारा घर परीक्षा दे रहा था. लिटरली! खिड़कियों पर लटककर. तीसरी मंजिल से चिपककर. रोशनदान पर चढ़कर. मैं स्पाइडरमैन की फ़िल्में देखकर हॉलीवुड की फिल्मों पर मुग्ध हो जाया करता था. कल मेरा भ्रम टूटा स्पाइडरमैन का कोई कमाल नहीं है. उसने तो सिर्फ बिहार में अपने घरवालों को बोर्ड की परीक्षाएं दिलाकर ये हुनर निखारा है. जाने कौन हैं वो लोग जो रॉक क्लाइम्बिंग के नाम पर गाँठ के पैसे खर्चते हैं? वही रोमाँच बिना सुरक्षा उपकरणों के खिड़की से फर्रे पहुँचाकर भी हासिल किया जा सकता है.

गणित के कठिन पर्चे और बिहार में खुली नकल से सकते में आई लोकसभा ने आनन-फानन में दोनों घटनाओं से सबक लिया. और अहम फैसला ले डाला. जिसके अनुसार गणित के पर्चे का खास ख्याल रखा जाएगा. सरकार खुद भी आगे जाकर 70-67=? जैसे कठिन सवालों का सामना नहीं करना चाहती. अभिभावकों को भी बच्चों की पढ़ाई से सीधे जोड़ा जाएगा. कम से कम सिलेबस तो रटा ही दिया जाएगा. ताकि ऐन मौके पर नोट्स से फर्रे बनाने में ज्यादा झंझट न हो. किताबी पढ़ाई के साथ शारीरिक शिक्षा और साहसिक खेलों पर भी अधिक...

आमतौर पर लोकसभा चिल्लाती है, पर जब चलती है तो ख़ुशी होती है. जब अच्छे से चलती है तो यकीन नही होता. और जब मुद्दों पर बात होती है तो लगता है एक टांग पर खड़े होकर की गई तपस्या सफल हो गई. बीते दिनों लोकसभा में बच्चों की आवाज गूंजी. मुद्दा था बारहवीं गणित का कठिन पर्चा. गणित यूँ भी सिरदर्द होती है. उसके सवाल बार-बार पूछकर बच्चों को पीटने के काम आते हैं. आजकल 15+6 के चक्कर में शादियाँ टूट रही हैं. जो शादीशुदा हैं उन्हें डर लगने लगा है बीवी सत्रह का पहाड़ा न पूछ डाले. ऐसे में बोर्ड इम्तिहान में गणित का कठिन पर्चा आना अच्छा संकेत नहीं है. पर लोकसभा में इस मुद्दे पर चर्चा होते देखना सुकून दे गया. उम्मीद जगी कि आगे परीक्षार्थियों के भले के लिए कुछ तो होकर रहेगा.

फिर तस्वीर आई बिहार में बोर्ड परीक्षाओं में खुली नकल की. यकीन उस सुनी-सुनाई बात पर पुख्ता हो गया कि हिंदुस्तान में परीक्षा सिर्फ बच्चा नही पूरा घर देता है. क्योंकि सच में सारा घर परीक्षा दे रहा था. लिटरली! खिड़कियों पर लटककर. तीसरी मंजिल से चिपककर. रोशनदान पर चढ़कर. मैं स्पाइडरमैन की फ़िल्में देखकर हॉलीवुड की फिल्मों पर मुग्ध हो जाया करता था. कल मेरा भ्रम टूटा स्पाइडरमैन का कोई कमाल नहीं है. उसने तो सिर्फ बिहार में अपने घरवालों को बोर्ड की परीक्षाएं दिलाकर ये हुनर निखारा है. जाने कौन हैं वो लोग जो रॉक क्लाइम्बिंग के नाम पर गाँठ के पैसे खर्चते हैं? वही रोमाँच बिना सुरक्षा उपकरणों के खिड़की से फर्रे पहुँचाकर भी हासिल किया जा सकता है.

गणित के कठिन पर्चे और बिहार में खुली नकल से सकते में आई लोकसभा ने आनन-फानन में दोनों घटनाओं से सबक लिया. और अहम फैसला ले डाला. जिसके अनुसार गणित के पर्चे का खास ख्याल रखा जाएगा. सरकार खुद भी आगे जाकर 70-67=? जैसे कठिन सवालों का सामना नहीं करना चाहती. अभिभावकों को भी बच्चों की पढ़ाई से सीधे जोड़ा जाएगा. कम से कम सिलेबस तो रटा ही दिया जाएगा. ताकि ऐन मौके पर नोट्स से फर्रे बनाने में ज्यादा झंझट न हो. किताबी पढ़ाई के साथ शारीरिक शिक्षा और साहसिक खेलों पर भी अधिक से अधिक ध्यान देने का प्रावधान किया गया है. शारीरिक शिक्षा वाला प्रावधान घर वालों के लिए होगा ताकि बहुमंजिला इमारतों वाले परीक्षा केंद्र मिलने पर बच्चों तक जवाब पहुँचाने से पहले सोचना न पड़े.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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