• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
ह्यूमर

एवरी बडी लव्स अ गुड बाढ़ !

    • मंजीत ठाकुर
    • Updated: 23 अगस्त, 2017 02:15 PM
  • 23 अगस्त, 2017 02:15 PM
offline
संकट असल में पानी का नहीं, संवेदनशीलता का है. राज्य सरकारें और केंद्र एक पटरी पर चलते ही नहीं.

गुड्डू भैया पूरे ताव में थे. अपने छप्पर पर खड़े होकर जितना लाउडस्पीकर हुआ जा सकता था उतना होकर कृष्ण कल्पित की सूक्तिय़ों को चीखकर गा रहे थेः

स्वप्न है शराब!

जहालत के विरुद्ध

गरीबी के विरुद्ध

शोषण के विरुद्ध

अन्याय के विरुद्ध

मुक्ति का स्वप्न है शराब!

भाई गुड्डू आपने शराब को मुक्ति का स्वप्न बता दिया? गुड्डू ने इशारा किया कि 'इनकिलास जिंदाबाघ' कहने के लिए फूस की छत से मुफीद जगह कोई नहीं.

गुड्डू आम आदमी थे और उनकी छत ही उनका मंच थी. हालांकि उनकी छत उनकी मजबूरी भी थी क्योंकि नीचे बाढ़ के पानी ने गजब का समां बांध रखा था और उनके घर का हर बरतन मछली हो चला था.

गुड्डू भैया तो महज नुमाइंदे हैं, जो यह सब झेल रहे हैं, वरना गुजरात, असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा समेत देश के 26 राज्य और केंद्रशासित क्षेत्र बाढ़-बारिश की चपेट में हैं और 508 जानें जा चुकी हैं, देश की 2.8 लाख हेक्टेयर फसली जमीन बाढ़ से आई आपदा की चपेट में है और 63 लाख से ज्यादा घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं. सबसे ज्यादा जान-माल का नुक्सान इस बार गुजरात को उठाना पड़ा, जहां 200 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है.

गुजरात में बाढ़ से करीब 200 लोग मारे गए

ऐसा कैसे कह सकते हैं भिया? गुड्डू ने जांघ पर जोर से तलहत्थी मारते हुए कहाः अपनी क्या औकात रे ठाकुर. इ तो कैग कह रहा है. मेरा मन खिन्न हो गया. आदमी हर काम के लिए सरकार को दोषी क्यों ठहराता है? क्यों गुड्डू भिया, सरकार ने बाढ़ की सूचना देने के लिए टेलीमीट्री स्टेशन नहीं बनाए हैं?

बोतल में बची आखिरी बूंद को बोतल उल्टा करने के बाद...

गुड्डू भैया पूरे ताव में थे. अपने छप्पर पर खड़े होकर जितना लाउडस्पीकर हुआ जा सकता था उतना होकर कृष्ण कल्पित की सूक्तिय़ों को चीखकर गा रहे थेः

स्वप्न है शराब!

जहालत के विरुद्ध

गरीबी के विरुद्ध

शोषण के विरुद्ध

अन्याय के विरुद्ध

मुक्ति का स्वप्न है शराब!

भाई गुड्डू आपने शराब को मुक्ति का स्वप्न बता दिया? गुड्डू ने इशारा किया कि 'इनकिलास जिंदाबाघ' कहने के लिए फूस की छत से मुफीद जगह कोई नहीं.

गुड्डू आम आदमी थे और उनकी छत ही उनका मंच थी. हालांकि उनकी छत उनकी मजबूरी भी थी क्योंकि नीचे बाढ़ के पानी ने गजब का समां बांध रखा था और उनके घर का हर बरतन मछली हो चला था.

गुड्डू भैया तो महज नुमाइंदे हैं, जो यह सब झेल रहे हैं, वरना गुजरात, असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा समेत देश के 26 राज्य और केंद्रशासित क्षेत्र बाढ़-बारिश की चपेट में हैं और 508 जानें जा चुकी हैं, देश की 2.8 लाख हेक्टेयर फसली जमीन बाढ़ से आई आपदा की चपेट में है और 63 लाख से ज्यादा घर क्षतिग्रस्त हो गए हैं. सबसे ज्यादा जान-माल का नुक्सान इस बार गुजरात को उठाना पड़ा, जहां 200 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है.

गुजरात में बाढ़ से करीब 200 लोग मारे गए

ऐसा कैसे कह सकते हैं भिया? गुड्डू ने जांघ पर जोर से तलहत्थी मारते हुए कहाः अपनी क्या औकात रे ठाकुर. इ तो कैग कह रहा है. मेरा मन खिन्न हो गया. आदमी हर काम के लिए सरकार को दोषी क्यों ठहराता है? क्यों गुड्डू भिया, सरकार ने बाढ़ की सूचना देने के लिए टेलीमीट्री स्टेशन नहीं बनाए हैं?

बोतल में बची आखिरी बूंद को बोतल उल्टा करने के बाद उसे जीभ से हिलकोर कर चाटते हुए गुड्डू बोलेः बनाया क्यों नहीं है ठाकुर...बनाया तो है. लेकिन करीब 60 फीसदी स्टेशन काम ही नहीं कर रहे हैं. बारहवीं पंचवर्षीय योजना में 219 टेलीमीट्री स्टेशन लगाए जाने का लक्ष्य था. 2016 तक सिर्फ 56 स्टेशन ही लगाए गए. कुल 375 टेलीमीट्री स्टेशनों में से 222 ठप पड़े हैं, तो रियल टाइम डेटा के लिए एक ही जगह बचती हैः भगवान इंद्र का दफ्तर.

मैं अभी बहस खत्म करने के मूड में नहीं था. मैंने कहा गुड्डू भिया, तो क्या बाढ़ खत्म करने के लिए कोई उपाय नहीं किया गया है? गुड्डू मेरी तरफ मुड़कर चुप हो गए. दो मिनट तक के नाटकीय सिनेमाई साइलेंस के बाद फूटेः शराब छोड़ दी तुमने कमाल है ठाकुर/ मगर ये हाथ में क्या लाल-लाल है ठाकुर.

मेरे मुंह से वाह निकलने ही वाला था कि उन्होंने हाथ से रोक दिया. मेरे लिए वाह न करो, जाकर राहत इंदौरी के लिए वाह करो. उन्हीं का है. मैं चुप.

देखो, संकट असल में पानी का नहीं, संवेदनशीलता का है. राज्य सरकारें और केंद्र एक पटरी पर चलते ही नहीं. अगस्त से लेकर सितंबर 2011 तक 20 दिनों में छत्तीसगढ़ और ओडिशा में भारी बारिश से महानदी का जलस्तर बढऩे की चेतावनी केंद्रीय जल आयोग ने कई बार जारी की थी लेकिन बांध के अफसरों ने ध्यान नहीं दिया और सितंबर में भारी बाढ़ आ गई, जिससे ओडिशा के 13 जिले प्रभावित हुए और दो हजार करोड़ रु. का आर्थिक नुकसान हुआ.

2014 में यही कहानी फिर दोहराई गई. नतीजा भी वही रहाः महानदी बेसिन में बाढ़ आ गई. जून 2013 में उत्तराखंड में अलकनंदा में बाढ़ की कोई पूर्वसूचना नहीं दी गई. मार्च 2016 तक 4,862 बड़े बांधों में से मात्र 349 (7%) के लिए ही इमरजेंसी ऐक्शन प्लान/डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान तैयार किया गया. इनमें से भी 231 (5%) में ही ऑपरेटिंग मैनुअल तैयार किया गया. उत्तर प्रदेश के 115 में से सिर्फ 2, मध्य प्रदेश के 898 में 2, महाराष्ट्र के 1,693 में से 181 जबकि ओडिशा, राजस्थान, तेलंगाना, त्रिपुरा, हरियाणा ने कोई इमरजेंसी ऐक्शन प्लान बनाया ही नहीं. 17 राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों में से सिर्फ दो ने मॉनसून के पहले और बाद में बांधों का पूरी तरह निरीक्षण कराया जबकि 12 राज्यों में किसी तरह का कोई निरीक्षण नहीं हुआ.

12 राज्यों में किसी तरह का कोई निरीक्षण नहीं हुआ

मेरा मन दुखी हो गया. तो क्या बाढ़ से बचा नहीं जा सकता? देखो, बाढ़ कत्तई नुकसानदेह नहीं. खेतों के लिए तो फायदेमंद है. लेकिन तब, जब जान-माल सुरक्षित बना लिया जाए. फिर भी, जानलेवा बाढ़ से बचने के उपायों में कई अड़ंगे हैं, जैसे बांध सुरक्षा विधेयक 2010 से लटका हुआ है. राष्ट्रीय जल नीति के अलावा महकमे बहुत बन गए हैं, जैसे केंद्र सरकार के अधीन-केंद्रीय जल आयोग, गंगा फ्लड कंट्रोल मिशन (1972), ब्रह्मपुत्र बोर्ड (1980), राष्ट्रीय बाढ़ आयोग (1976), टास्क फोर्स (2004) नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी और राज्यों में स्टेट टेक्निकल एडवाइजरी कमेटी, राज्य बाढ़ नियंत्रण बोर्ड आदि, फिर भी बाढ़ का पानी हर साल सिर चढ़कर बोलता है.

गुड्डू भैया इस बीच फूस की छत से उतर गए थे. और मेरी नाव पर आकर चढ़ गएः ठाकुर, पत्रकार आदमी हो, थोड़ी-थोड़ी पिया करो. सुनो कल्पित की ही बात, खासकर तेरे लिए,

देवदास कैसे बनता देवदास

अगर शराब न होती.

तब पारो का क्या होता

क्या होता चंद्रमुखी का क्या होता

रेलगाडी की तरह थरथराती आत्मा का?

बाढ़ उतर जाए, तो अगले हफ्ते आना. काले चने की घुघनी (छोले) के साथ हंडिया पीने की कला सिखाऊंगा. चलो, एक पटियाला बना दो अभी.

ये भी पढ़ें-

महसूस कीजिए क्‍या होता है आपदाओं का पहाड़ टूटना

बाढ़ के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाय, प्रकृति या खुद हमें?

भगवान हर साल बहा ले जाता है हमारे $10 अरब


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    टमाटर को गायब कर छुट्टी पर भेज देना बर्गर किंग का ग्राहकों को धोखा है!
  • offline
    फेसबुक और PubG से न घर बसा और न ज़िंदगी गुलज़ार हुई, दोष हमारा है
  • offline
    टमाटर को हमेशा हल्के में लिया, अब जो है सामने वो बेवफाओं से उसका इंतकाम है!
  • offline
    अंबानी ने दोस्त को 1500 करोड़ का घर दे दिया, अपने साथी पहनने को शर्ट तक नहीं देते
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲