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अब खुले में निवृत्त होने वालों की आने वाली है शामत!

    • विनीत कुमार
    • Updated: 25 दिसम्बर, 2015 07:42 PM
  • 25 दिसम्बर, 2015 07:42 PM
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पिछले साल स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत हुई. बड़े पैमाने पर इसे लेकर बात हो रही है. अब उम्मीद की जानी चाहिए कि स्मार्ट सिटी न सही शौच के मामले में कम से कम हम 'स्मार्ट' तो बन ही जाएंगे.

ये है तो अजीब. लेकिन जरा सोचिए... खुले में शौच करने वालों पर नजर रखने के लिए सरकार ने अगर कुछ अधिकारियों की नियु्क्ति कर दी तो. अब खुले में जाने वाले 'फ्रेश' होने के लिए पूरी तन्‍मयता से 'समाधि' लगाएं और इतने में कोई अधिकारी धमक आए! नहीं...नहीं..फिलहाल सरकार की ऐसी कोई योजना नहीं है. लेकिन हरियाणा के सिरसा जिले के डबवाली से प्रखंड विकास और पंचायत अधिकारी (BDPO) सतिंदर सिवच ने एक मजेदार आईडिया तो सरकार को दे ही दिया है.

सुबह सुबह निकल पड़ते हैं सतिंदर

सरकार ने संतिदर को इस काम के लिए नियुक्त नहीं किया है. लेकिन लगता है कि प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान को उन्होंने ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया है. वे हर सुबह तड़के उठकर गांव में निकल जाते हैं. उनकी नजरें उन लोगों को खोजती हैं जो खुले में शौच कर रहे होते हैं. फिर क्या, आव देखा न ताव...'घटनास्थल' पर तत्काल धमकने से भी गुरेज नहीं करते. इसके बाद खुले में शौच करने से होने वाले नुकसान और बीमारियों को समझाने का दौर चल पड़ता है. अब भला उस 'आपातकाल' स्थिति में कौन मना करेगा! इस तरह से लोगों को टोकना संतिदर की आदत में शुमार हो गया है.

सतिंदर अकेले इस काम में नहीं लगे हैं. उन्होंने ग्राम स्तर पर बकायदा ऐसी समितियां भी गठित कर ली हैं जो लोगों से इस पर बात करते हैं. अब रोज-रोज की टोका-टोकी कौन सहे. कई लोग उनकी बातों से प्रभावित हो रहे हैं. वैसे, आपको यहां पढ़ते हुए भले ही लग रहा हो कि घर में शौचालय बनवाने के लिए लोगों को समझाना कौन सा बड़ा काम है. लेकिन साहब, यह बात उन लोगों से पूछिएगा जो शौच के लिए शुरू से बाहर जाने में ही भरोसा करते आए हैं. कई लोग मिल जाएंगे जो इंडियन शीट को देखकर वैसे ही आतंकित हो जाते हैं..जैसे हम और आप में से कुछ लोग वेस्टर्न शीट देखकर!

एक खबर तो इसी हफ्ते बिहार से भी आई है. सीतामढ़ी जिले के डुमरा क्षेत्र के पंचायतों ने एक समिति बनाई है. जो भी लोग गांव के खेत व सड़क किनारे शौच करते देखे जायेंगे, इस समिति के लोग सीटी बजा कर लोगों...

ये है तो अजीब. लेकिन जरा सोचिए... खुले में शौच करने वालों पर नजर रखने के लिए सरकार ने अगर कुछ अधिकारियों की नियु्क्ति कर दी तो. अब खुले में जाने वाले 'फ्रेश' होने के लिए पूरी तन्‍मयता से 'समाधि' लगाएं और इतने में कोई अधिकारी धमक आए! नहीं...नहीं..फिलहाल सरकार की ऐसी कोई योजना नहीं है. लेकिन हरियाणा के सिरसा जिले के डबवाली से प्रखंड विकास और पंचायत अधिकारी (BDPO) सतिंदर सिवच ने एक मजेदार आईडिया तो सरकार को दे ही दिया है.

सुबह सुबह निकल पड़ते हैं सतिंदर

सरकार ने संतिदर को इस काम के लिए नियुक्त नहीं किया है. लेकिन लगता है कि प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान को उन्होंने ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया है. वे हर सुबह तड़के उठकर गांव में निकल जाते हैं. उनकी नजरें उन लोगों को खोजती हैं जो खुले में शौच कर रहे होते हैं. फिर क्या, आव देखा न ताव...'घटनास्थल' पर तत्काल धमकने से भी गुरेज नहीं करते. इसके बाद खुले में शौच करने से होने वाले नुकसान और बीमारियों को समझाने का दौर चल पड़ता है. अब भला उस 'आपातकाल' स्थिति में कौन मना करेगा! इस तरह से लोगों को टोकना संतिदर की आदत में शुमार हो गया है.

सतिंदर अकेले इस काम में नहीं लगे हैं. उन्होंने ग्राम स्तर पर बकायदा ऐसी समितियां भी गठित कर ली हैं जो लोगों से इस पर बात करते हैं. अब रोज-रोज की टोका-टोकी कौन सहे. कई लोग उनकी बातों से प्रभावित हो रहे हैं. वैसे, आपको यहां पढ़ते हुए भले ही लग रहा हो कि घर में शौचालय बनवाने के लिए लोगों को समझाना कौन सा बड़ा काम है. लेकिन साहब, यह बात उन लोगों से पूछिएगा जो शौच के लिए शुरू से बाहर जाने में ही भरोसा करते आए हैं. कई लोग मिल जाएंगे जो इंडियन शीट को देखकर वैसे ही आतंकित हो जाते हैं..जैसे हम और आप में से कुछ लोग वेस्टर्न शीट देखकर!

एक खबर तो इसी हफ्ते बिहार से भी आई है. सीतामढ़ी जिले के डुमरा क्षेत्र के पंचायतों ने एक समिति बनाई है. जो भी लोग गांव के खेत व सड़क किनारे शौच करते देखे जायेंगे, इस समिति के लोग सीटी बजा कर लोगों को यह संकेत देंगे कि देखो फलां व्यक्ति गंदगी कर रहा है. इसी साल अगस्त में पश्चिम बंगाल का नदिया जिला देश का पहला ऐसा जिला बन गया जहां खुले में शौच करने की 'प्रथा' खत्म हो गई है. देखिए, इस देश में कितनी नायाब चीजें हो रही हैं. और हम बेकार भारत-पाकिस्तान के रिश्तों पर बहस करते रहते हैं.

शौच 'संस्कार'

बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान कहते हैं, 'दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं. विनर और लूजर. और जिंदगी हर लूजर को विनर बनने का एक मौका जरूर देती है.' दुनिया का पता नहीं लेकिन मेरा मानना है कि भारत में तो तीन तरह के लोग होते हैं. एक जो खुले में शौच जाते हैं, दूसरे जो इंडियन शीट का इस्तेमाल करते हैं और तीसरे जो कमोड पर बैठते हैं. खान-पान से लेकर रहन-सहन को लेकर जो अंतर हमारे समाज में दिखता है. उसे अंतर को आप 'शौच संस्कार' में भी समझ सकते हैं.

वैसे, शौच-शौच पढ़कर अगर आप नाक सिकोड़ने लगे हैं तो जरा ठहरिए. इसकी भी अपनी महिमा है. इसी साल मई में पश्चिम बंगाल में एक शादी-शादी जोड़े में खटपट इतनी बढ़ी की मामला तलाक तक जा पहुंचा. खटपट इस बात पर कि पति ने पत्नी पर शक करना शुरू कर दिया. मसलन पत्नी देर से क्यों घर लौटती है. दिन में दो बार क्यों जाती है. मामला कोर्ट तक पहुंचा और समस्या का हल निकला 'शौचालय'. घर में शौचालय की दीवारों को खड़ा कर उन्होंने अपने रिश्ते के बीच खड़ी दीवार को गिरा दी. अहमदाबाद में तो लोगों को सार्वजनिक शौचालय इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से रुपये देने की घोषणा की गई.

पंजाब से एक दूसरी तस्वीर भी आई. प्रशासन ने वहां संगरूर और होशियारपुर में शौचालय बनाने के लिए टीचरों की ड्यूटी लगा दी. हमारे टीचर वैसे तो ऑलराउंडर होते हैं. जनगणना से लेकर पल्स पोलियो टीकाकरण और चुनाव तक कराते आए हैं. लेकिन ये क्या शौचालय का निर्माण! बस टीचर यूनियन भड़क गया. नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 2 अक्टूबर को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की. बड़े पैमाने पर इसे लेकर बात हो रही है. अब उम्मीद की जानी चाहिए कि स्मार्ट सिटी न सही शौच के मामले में कम से कम हम 'स्मार्ट' तो बन ही जाएंगे.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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