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मैथ्स से बर्बाद हुई ज़िन्दगी फिर इस GST से उलझ गयी !

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 02 जुलाई, 2017 05:39 PM
  • 02 जुलाई, 2017 05:39 PM
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GST आ गया है मगर मैं इसे नहीं समझ पा रहा हूं. शायद मुझे GST इसलिए भी नहीं समझ में आ रहा है क्योंकि मुझे मैथ्स नहीं आती. मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि GST समझने के लिए मैथ्स समझना जरूरी है.

तमाम आधी अधूरी तैयारियों और शोर-शराबे के बीच GST आ ही गया. मैगजीन, अखबार, वेबसाइटें हर जगह बस GST का बोलबाला है. GST के आने से कुछ लोग खुश हैं तो वहीं समाज का एक बड़ा वर्ग लोगों को ये बता रहा है कि ये भविष्य में जरूर लोगों की तबियत खराब करेगा. चौक से लेकर चौराहे तक, गली से लेकर मुहल्ले तक GST पर लोगों के अपने तर्क हैं. कहीं कोई डरा बैठा है तो कहीं कोई दुबका. कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है ही GST के आने के बाद लोगों के मुंह से ज्यादा बड़ी उससे जुड़ी बातें हैं.

भले ही आपको GST समझ में आ गया हो मगर आज भी इतना कुछ देखने, सुनने और पढ़ने के बावजूद मेरे लिए GST को समझना एक टेढ़ी खीर है. खैर समझ में तो ये उसे भी नहीं आया जिसने इसे बनाया है. इसको लेकर बनाने वाले का तर्क इतना ही है कि 'ये जब आयगा तो सब कुछ अच्छा हो जायगा'. अब सब कुछ कितना अच्छा होगा इसे न मैं जानता हूं और न ही वो लोग जो इसके निर्माण के सूत्रधार है. फिल्हाल ये कहा जा सकता है कि भविष्य में इसका स्वरूप भी कहीं अच्छे दिनों की तरह हो जाये, जो आ रहा है और बस आए जा रहा है.

मुझे GST समझ नहीं आया,समझ तो मुझे कभी मैथ भी न आई

मैं आपका नहीं जानता मैं अपनी बात करता हूं शायद मुझे GST इसलिए भी नहीं समझ में आ रहा है क्योंकि मुझे मैथ्स नहीं आती. मेरे लिए GST समझ में न आने का कारण शायद मैथ्स से भागना है. यूं समझ लीजिये कि आज मेरे लिए ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि मैथ से बर्बाद हुई मेरी ज़िन्दगी को फिर इस GST ने उलझा दिया है.

काश मैंने उस समय सोलह अट्ठे एक सौ चार की जगह एक सौ अट्ठाइस कह दिया होता तो आज इस मुए GST के आने के बाद मेरी इतनी दुर्गति नहीं होती. काश मैंने तब मैथ्स की नोट बुक में बिल्लू, पिंकी, डोगा, नागराज के कार्टून न बनाए होते जब मैथ्स वाले सर क्लास के अंदर प्रॉफिट एंड लॉस और सिंपल...

तमाम आधी अधूरी तैयारियों और शोर-शराबे के बीच GST आ ही गया. मैगजीन, अखबार, वेबसाइटें हर जगह बस GST का बोलबाला है. GST के आने से कुछ लोग खुश हैं तो वहीं समाज का एक बड़ा वर्ग लोगों को ये बता रहा है कि ये भविष्य में जरूर लोगों की तबियत खराब करेगा. चौक से लेकर चौराहे तक, गली से लेकर मुहल्ले तक GST पर लोगों के अपने तर्क हैं. कहीं कोई डरा बैठा है तो कहीं कोई दुबका. कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है ही GST के आने के बाद लोगों के मुंह से ज्यादा बड़ी उससे जुड़ी बातें हैं.

भले ही आपको GST समझ में आ गया हो मगर आज भी इतना कुछ देखने, सुनने और पढ़ने के बावजूद मेरे लिए GST को समझना एक टेढ़ी खीर है. खैर समझ में तो ये उसे भी नहीं आया जिसने इसे बनाया है. इसको लेकर बनाने वाले का तर्क इतना ही है कि 'ये जब आयगा तो सब कुछ अच्छा हो जायगा'. अब सब कुछ कितना अच्छा होगा इसे न मैं जानता हूं और न ही वो लोग जो इसके निर्माण के सूत्रधार है. फिल्हाल ये कहा जा सकता है कि भविष्य में इसका स्वरूप भी कहीं अच्छे दिनों की तरह हो जाये, जो आ रहा है और बस आए जा रहा है.

मुझे GST समझ नहीं आया,समझ तो मुझे कभी मैथ भी न आई

मैं आपका नहीं जानता मैं अपनी बात करता हूं शायद मुझे GST इसलिए भी नहीं समझ में आ रहा है क्योंकि मुझे मैथ्स नहीं आती. मेरे लिए GST समझ में न आने का कारण शायद मैथ्स से भागना है. यूं समझ लीजिये कि आज मेरे लिए ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि मैथ से बर्बाद हुई मेरी ज़िन्दगी को फिर इस GST ने उलझा दिया है.

काश मैंने उस समय सोलह अट्ठे एक सौ चार की जगह एक सौ अट्ठाइस कह दिया होता तो आज इस मुए GST के आने के बाद मेरी इतनी दुर्गति नहीं होती. काश मैंने तब मैथ्स की नोट बुक में बिल्लू, पिंकी, डोगा, नागराज के कार्टून न बनाए होते जब मैथ्स वाले सर क्लास के अंदर प्रॉफिट एंड लॉस और सिंपल इंटरेस्ट, कंपाउंड इंटरेस्ट वाला चैप्टर समझा रहे थे.

बहरहाल बात कार्टून पर निकली है तो फिर इस कार्टून पर जरूर गौर करियेगा. ये कार्टून  मैंने आज ही द टाइम्स ऑफ इंडिया के दिल्ली एडिशन में देखा. ये कार्टून जग सूर्या और अजीत निनन का है. शायद मेरी ही तरह जग सूर्या और अजीत दोनों को ही मैथ्स नहीं आती और वो भी GST समझने में असमर्थ हैं. इन दोनों को भी मेरी ही तरह ये उलझन भरा और टेंशन में डालने वाला GST कितना समझ में आया उसको बताने के लिए ये कार्टून काफी है.

GSTदेख के मैं खुश भी हूँ कम से कम चिंता के इन पलों में ये मुझे एंटरटेन कर रहा है

जग सूर्या और अजीत निनन के इस ऐतिहासिक कार्टून में प्रागैतिहासिक काल के 4 लोग हैं जिनमें एक बता रहा है कि उसने आग का अविष्कार किया, दूसरा कह रहा है कि मैंने पहियों की खोज की तीसरा व्यक्ति उनकी बातों को बीच में ही काट कर कह रहा है कि ये सब आलतू-फालतू चीजें हैं जिनका कोई उपयोग नहीं है ये जो तुम लोग इस चौथे आदमी के हाथ में चीज देख रहे हो ये GST है और यही भविष्य में तुम लोगों की किस्मत बदलेगा.

बहरहाल खुशी देने के अलावा इस कार्टून ने मुझे बड़ी राहत भी दी है. ये कार्टून मुझसे चिल्ला - चिल्लाकर कह रहा है कि एक अकेले तुम ही नहीं हो जिसे GST समझ में नहीं आया. इस जालिम समाज में तुम्हारे जैसे और भी कई लोग हैं. अंत में इतना ही कि देश के सोये हुए आम आदमी के लिए GST कैसा होगा ये भविष्य बताएगा मगर वर्तमान में जो है उसको देखकर बस यही मिल रहा है कि फिल्हाल इसे न सिर्फ सक्रिय मीडिया में बल्कि पूरे सोशल मीडिया जगत में भी मनोरंजन का माध्यम मान लिया गया है.

इस पर जोक बन रहे हैं, लोग हंस रहे हैं और उसे फेसबुक से लेकर ट्विटर और व्हाट्सऐप पर शेयर कर रहे हैं और एंटरटेन हो रहे हैं. खैर एक तरह से देखा जाये तो ये भी अच्छा है. अच्छा इसलिए क्यों कि भले ही कुछ पल के लिए मगर कम से कम ये हमें कुछ समय के लिए एंटरटेन तो कर रहा है. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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