• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
ह्यूमर

व्यंग्य: यमुना को मैला करने वाले इनाम के हकदार

    • विनीत कुमार
    • Updated: 21 सितम्बर, 2015 11:09 AM
  • 21 सितम्बर, 2015 11:09 AM
offline
इस भागदौड़ की जिंदगी में तो ऐसे ही समय नहीं मिलता. कम से कम अगरबत्ती... धूप-बत्ती वगैरह फेंकने के बहाने ही सही, मां से हाय-हेलो तो हो जाती है. मां के दर्शन भी तो हो जाते हैं. मां भी निराश नहीं होती कि बेटा खाली हाथ आ गया.

भगवान को अगरबत्ती, धूप-दीया दिखाने वालों और फिर सड़क किनारे गाड़ी पार्क कर यमुना नदी में उन बची-खुची हवन सामग्रियों को फेंकने वाले भक्तगणों जाग जाओ. वर्षों से चली आ रही हमारी प्रथा को खत्म करने की साजिश रची जा रही है. दिल्ली सरकार का फरमान आया है कि यमुना में पूजा सामग्रियों को फेंकने वालों पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. घोर कलयुग! ऐसे ही फरमानों से हर दूसरे हफ्ते मुझ जैसे भक्तों की भावनाएं आहत होती रहती हैं.

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री असिम अहमद खान की अध्यक्षता में बैठक होती है. फैसला हुआ कि जुर्माने को सख्ती से लागू किया जाएगा. यमुना के चुनिंदा नौ घाटों के पास बैरिकेड खड़े किए जाएंगे. ताकि लोग उसके नजदीक न पहुंच सकें.

क्या उन्हें नहीं मालूम कि गंगा की तरह यमुना भी हमारी मां हैं. मां से मिलने के लिए जुर्माना! इस भागदौड़ की जिंदगी में तो ऐसे ही समय नहीं मिलता. कम से कम अगरबत्ती... धूप-बत्ती वगैरह फेंकने के बहाने ही सही, मां से हाय-हेलो तो हो जाती है. मां के दर्शन भी तो हो जाते हैं. मां भी निराश नहीं होती कि बेटा खाली हाथ आ गया, केवल सैर-सपाटे के लिए. वैसे भी, अर्पण करना ही तो हमारी संस्कृति है.

घर का कूड़ा-करकट बगल वाले के मथ्थे मढ़ आइए, जब भगवान से 'डील' की बात हो जाए तो पूजा-सामग्रियों को किसी नदी में डाल आइए. यही तो 'परंपरा' है. लेकिन यहां आम आदमी की सुनता कौन है. सब पाश्चात्य संस्कृति की ओर आंख मूंद कर भाग रहे हैं.

यमुना को मैला करने वालों को पुरस्कृत किया जाए

मेरा तो मानना है कि जिन लोगों के बारे में कहा जाता है कि वे यमुना को मैला कर रहे हैं, उन्हें सम्मान मिलना चाहिए. पिछले 20-25 वर्षों में कितनी बार ऐसे लोगों के उत्साह को खत्म करने की कोशिश की गई लेकिन हमारी हिम्मत देखिए... आज भी अपनी परंपरा कायम रखे हुए हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार 1993 से अब तक 1,500 करोड़ रुपये से ज्यादा यमुना एक्शन प्लान (वाइएपी) I और II पर खर्च कर चुकी है. लेकिन मजाल कि उसका रत्ती भर असर...

भगवान को अगरबत्ती, धूप-दीया दिखाने वालों और फिर सड़क किनारे गाड़ी पार्क कर यमुना नदी में उन बची-खुची हवन सामग्रियों को फेंकने वाले भक्तगणों जाग जाओ. वर्षों से चली आ रही हमारी प्रथा को खत्म करने की साजिश रची जा रही है. दिल्ली सरकार का फरमान आया है कि यमुना में पूजा सामग्रियों को फेंकने वालों पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. घोर कलयुग! ऐसे ही फरमानों से हर दूसरे हफ्ते मुझ जैसे भक्तों की भावनाएं आहत होती रहती हैं.

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री असिम अहमद खान की अध्यक्षता में बैठक होती है. फैसला हुआ कि जुर्माने को सख्ती से लागू किया जाएगा. यमुना के चुनिंदा नौ घाटों के पास बैरिकेड खड़े किए जाएंगे. ताकि लोग उसके नजदीक न पहुंच सकें.

क्या उन्हें नहीं मालूम कि गंगा की तरह यमुना भी हमारी मां हैं. मां से मिलने के लिए जुर्माना! इस भागदौड़ की जिंदगी में तो ऐसे ही समय नहीं मिलता. कम से कम अगरबत्ती... धूप-बत्ती वगैरह फेंकने के बहाने ही सही, मां से हाय-हेलो तो हो जाती है. मां के दर्शन भी तो हो जाते हैं. मां भी निराश नहीं होती कि बेटा खाली हाथ आ गया, केवल सैर-सपाटे के लिए. वैसे भी, अर्पण करना ही तो हमारी संस्कृति है.

घर का कूड़ा-करकट बगल वाले के मथ्थे मढ़ आइए, जब भगवान से 'डील' की बात हो जाए तो पूजा-सामग्रियों को किसी नदी में डाल आइए. यही तो 'परंपरा' है. लेकिन यहां आम आदमी की सुनता कौन है. सब पाश्चात्य संस्कृति की ओर आंख मूंद कर भाग रहे हैं.

यमुना को मैला करने वालों को पुरस्कृत किया जाए

मेरा तो मानना है कि जिन लोगों के बारे में कहा जाता है कि वे यमुना को मैला कर रहे हैं, उन्हें सम्मान मिलना चाहिए. पिछले 20-25 वर्षों में कितनी बार ऐसे लोगों के उत्साह को खत्म करने की कोशिश की गई लेकिन हमारी हिम्मत देखिए... आज भी अपनी परंपरा कायम रखे हुए हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार 1993 से अब तक 1,500 करोड़ रुपये से ज्यादा यमुना एक्शन प्लान (वाइएपी) I और II पर खर्च कर चुकी है. लेकिन मजाल कि उसका रत्ती भर असर भी दुनिया वालों को दिख जाए.

सलाम उन लोगों को भी जिन्होंने अब भी यमुना में आस्था बनाए रखी है और जिसे दुनिया गंदगी कहती है, वहां डुबकी लगाकर इसका परिचय भी देते हैं. यमुना में गंदगी कितनी भी हो... हम जैसे लोगों को विश्वास है कि इसमें और हवन-सामग्री डालने से ही कृपा हमारे घर आएगी. हम तो वैसे लोग हैं कि अगर भगवान की मूर्ति भी पुरानी हो जाए तो बाहर रख आते हैं, लेकिन ध्यान यह भी रहता है कि जहां मूर्ति रखें वह जगह साफ हो. फिर चाहे मूर्तियों को रखते-रखते वह जगह भले ही बदरंग रूप क्यों न ले ले. घर चमकना चाहिए. तभी तो लक्ष्मी आएंगी, गणेशजी आएंगे.

खैर, एक बात ध्यान से सुनो भक्तगणों... सरकार कुछ भी कर ले... कितना भी जुर्माना लगा दे. हमें नहीं सुधरना. अरे... अरे गलती हो गई सुधरना नहीं... बदलना. तो डिसाइड रहा, हम नहीं बदलेंगे. यमुना हो... गंगा हो या कोई और नदी. दुर्गा पूजा के बाद प्लास्टर ऑफ पेरिस वाली चमकती हुई मां की मूर्ति हम अपनी पुरानी 'परंपरा' के अनुसार ही विसर्जित करेंगे. पूजा की सभी सामग्रियां वहीं फेंकेंगे. आखिर मां तो मां होती हैं. इतना सम्मान तो उन्हें देना ही चाहिए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    टमाटर को गायब कर छुट्टी पर भेज देना बर्गर किंग का ग्राहकों को धोखा है!
  • offline
    फेसबुक और PubG से न घर बसा और न ज़िंदगी गुलज़ार हुई, दोष हमारा है
  • offline
    टमाटर को हमेशा हल्के में लिया, अब जो है सामने वो बेवफाओं से उसका इंतकाम है!
  • offline
    अंबानी ने दोस्त को 1500 करोड़ का घर दे दिया, अपने साथी पहनने को शर्ट तक नहीं देते
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲