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व्यंग्य: डिप्लोमेट बनो और जमकर रेप के 'मजे' लो

    • चंदन कुमार
    • Updated: 10 सितम्बर, 2015 07:27 PM
  • 10 सितम्बर, 2015 07:27 PM
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मैं अपने बच्चों को आशीर्वाद दूंगा - पढ़ो-लिखो, डिप्लोमेट बनो और जमकर रेप के मजे लो... कोई तुम्हारा कुछ भी बिगाड़ नहीं पाएगा. रेप के आरोपी सऊदी डिप्लोमेट का अभी तक हम कुछ बिगाड़ पाए क्या!

पढ़ो-लिखो. तरक्की करो. खूब नाम कमाओ... बड़े-बुजुर्ग हमारे यहां यही आशीर्वाद देते हैं. शर्तिया कह सकता हूं, दूसरे देशों में भी यही कहते होंगे - भाषा अलग हो सकती है. लेकिन क्या यह जरूरी है कि बड़े-बुजुर्ग की हर बात आंख मूंद कर मान ही ली जाए? नहीं न! तो मैं भी नहीं मान रहा हूं. मैं अपने बच्चों और उनके बच्चों और अगर जिंदा रहा तो उनके भी बच्चों को आशीर्वाद दूंगा - पढ़ो-लिखो, डिप्लोमेट बनो और जमकर रेप के मजे लो... कोई तुम्हारा कुछ भी बिगाड़ नहीं पाएगा. रेप के आरोपी सऊदी डिप्लोमेट का अभी तक हम कुछ बिगाड़ पाए क्या!!!

नेता-अभिनेता-अफसर-क्रिकेटर सब फुद्दू, डिप्लोमेसी में असली 'मजा'
आप कितने भी बड़े नेता हों, अधिकारी हों, एक्टर हों या क्रिकेटर. सब धरे के धरे रह जाएंगे. नेता हों या अधिकारी - घूस लीजिए, करप्शन में पकड़े जाइए - बच नहीं सकते. देर से ही सही, जेल जाना तय है. खान हों या दत्त - हिरण मारें हों या मारने के लिए बंदूक रखे हों, सजा तय है. एक क्षण को क्रिकेट स्टार,  दूसरे में जेल. इसलिए तय है - ये सब पुराने हो गए. आने वाली पीढ़ी को लीक से हटकर आशीर्वाद देना है - डिप्लोमेट बनो. ससुरी जब तक विएना कन्वेंशन है, मजाल है हमरे लल्ला को कोई छू भी पाए. अमेरिका भी नहीं!

54 साल पुराना विएना कन्वेंशन
1961 में विएना कन्वेंशन के दौरान डिप्लोमेटिक इम्युनिटी शब्द और इसकी शर्तों को पहली बार फ्रेम किया गया. इसके तहत राजनयिकों को जिस देश में वो रह रहे होते हैं, उसके कानूनों के तहत सजा से छूट मिली होती है. यह आपातकाल और दो देशों के रिश्ते में आई खटास के मद्देनजर राजनयिकों को भयमुक्त होकर काम करने के लिए था. इसे कोई देश चाहे तो हटा भी सकता है यदि कोई राजनयिक गंभीर अपराध में लिप्त पाया जाता है. लेकिन आज तक किसी देश ने ऐसा किया हो, इसका उदाहरण नहीं है.

अपराध कितना भी बड़ा हो, राजनयिक के देश से अनुमति जरूरी
लो भैया! अब आपका मातरे-वतन कभी ये चाहेगा कि उसका लल्ला, विदेशी धरती पर उसकी...

पढ़ो-लिखो. तरक्की करो. खूब नाम कमाओ... बड़े-बुजुर्ग हमारे यहां यही आशीर्वाद देते हैं. शर्तिया कह सकता हूं, दूसरे देशों में भी यही कहते होंगे - भाषा अलग हो सकती है. लेकिन क्या यह जरूरी है कि बड़े-बुजुर्ग की हर बात आंख मूंद कर मान ही ली जाए? नहीं न! तो मैं भी नहीं मान रहा हूं. मैं अपने बच्चों और उनके बच्चों और अगर जिंदा रहा तो उनके भी बच्चों को आशीर्वाद दूंगा - पढ़ो-लिखो, डिप्लोमेट बनो और जमकर रेप के मजे लो... कोई तुम्हारा कुछ भी बिगाड़ नहीं पाएगा. रेप के आरोपी सऊदी डिप्लोमेट का अभी तक हम कुछ बिगाड़ पाए क्या!!!

नेता-अभिनेता-अफसर-क्रिकेटर सब फुद्दू, डिप्लोमेसी में असली 'मजा'
आप कितने भी बड़े नेता हों, अधिकारी हों, एक्टर हों या क्रिकेटर. सब धरे के धरे रह जाएंगे. नेता हों या अधिकारी - घूस लीजिए, करप्शन में पकड़े जाइए - बच नहीं सकते. देर से ही सही, जेल जाना तय है. खान हों या दत्त - हिरण मारें हों या मारने के लिए बंदूक रखे हों, सजा तय है. एक क्षण को क्रिकेट स्टार,  दूसरे में जेल. इसलिए तय है - ये सब पुराने हो गए. आने वाली पीढ़ी को लीक से हटकर आशीर्वाद देना है - डिप्लोमेट बनो. ससुरी जब तक विएना कन्वेंशन है, मजाल है हमरे लल्ला को कोई छू भी पाए. अमेरिका भी नहीं!

54 साल पुराना विएना कन्वेंशन
1961 में विएना कन्वेंशन के दौरान डिप्लोमेटिक इम्युनिटी शब्द और इसकी शर्तों को पहली बार फ्रेम किया गया. इसके तहत राजनयिकों को जिस देश में वो रह रहे होते हैं, उसके कानूनों के तहत सजा से छूट मिली होती है. यह आपातकाल और दो देशों के रिश्ते में आई खटास के मद्देनजर राजनयिकों को भयमुक्त होकर काम करने के लिए था. इसे कोई देश चाहे तो हटा भी सकता है यदि कोई राजनयिक गंभीर अपराध में लिप्त पाया जाता है. लेकिन आज तक किसी देश ने ऐसा किया हो, इसका उदाहरण नहीं है.

अपराध कितना भी बड़ा हो, राजनयिक के देश से अनुमति जरूरी
लो भैया! अब आपका मातरे-वतन कभी ये चाहेगा कि उसका लल्ला, विदेशी धरती पर उसकी एकमात्र 'इज्जत' लुट जाए? नहीं न. मतलब आप अगर डिप्लोमेट बन गए तो तितर मारिए या हिरण, घूस लीजिए या किसी को बेच ही खाइए, मर्डर कीजिए या रेप कीजिए - आपका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा. बिगाड़ने की सोचेगा भी तो सौ लफड़े - पहले उसे अपने देश में डिप्लोमेटिक इम्युनिटी को खत्म करना होगा - इसके बाद डिप्लोमेट के देश से उसकी इम्युनिटी को खत्म करने की अनुमति लेनी होगी - काहे देगा भाई वो! तो समझ गए न, डिप्लोमेट बनने के 'मजे'.

दिल्ली से सटे गुड़गांव में दो नेपाली लड़कियों के साथ महीनों तक रेप, धमकी और जबरन घर में कैद रखने का केस पुलिस के पास पहुंचा. गुड़गांव पुलिस दनदनाते हुए स्पॉट पर पहुंची और दोनों लड़कियां आजाद. आप भले पुलिस का शुक्रिया अदा कर रहे हों पर मैं तो 54 साल पुराने विएना कन्वेंशन का शुक्रगुजार हूं, जिसने मेरी आंखें खोल दीं. छोटों को आशीर्वाद कैसे दिया जाए, इसको लेकर मेरे नजरिये को ही बदल दिया. कारण - आरोप जिस पर था वो भारत में रह रहा एक डिप्लोमेट है और जब पुलिस उसे अरेस्ट करने पहुंची तो वह सऊदी अरब इम्बेसी में था - ऐसी जगह, जहां पुलिस और कानून के 'लंबे हाथ' बौने हो जाते हैं.

...तो जनाब! आप गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, विदेश सचिवों के बीच होने वाले न्यूज ड्रामे का मजा लीजिए... मैं इसमें फंसने वाला नहीं. मैं तो आने वाली पीढ़ियों के 'मजे' लेने वाला मंत्र सीख चूका हूं - आशीर्वाद मंत्र - डिप्लोमेट बनो आशीर्वाद मंत्र.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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