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हमारी बहू एल्कोहॉलिक है !

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 17 दिसम्बर, 2016 12:46 PM
  • 17 दिसम्बर, 2016 12:46 PM
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सोशल मीडियाई युग में जहां सभी सच का ढिंढोरा पीटते हैं और फेसबुक पर एक वायरल पोस्ट कोई भी अफवाह फैलाने के लिए काफी है, वहां अगर एकदम सच्चे मैट्रिमोनियल विज्ञापन दिए जाएं और एक एल्कोहॉलिक बहू की डिमांड हो तो क्या होगा?

आज के सोशल मीडियाई युग में सबकुछ एडवांस और फास्ट हो गया है. लोगों में ट्रुथ और डेयर का ऐसा चस्का चढ़ा है कि देखिए तो हर तरफ सच्चाई के नारे, स्ट्रॉन्ग वुमन, स्ट्रॉन्ग मेन, न्यू एज सोसाइटी की बातें चल रही हैं. हालांकि, एडवर्टिजमेंट्स में अभी भी पुराना तरीका ही आजमाया जाता है. जरा सोचिए अगर आज के समय और नई पीढ़ी के हिसाब से एकदम सच्चे मेट्रिमोनियल एड्स बनाए जाएं तो क्या होगा? शायद कुछ ऐसा होगा नमूना..

ये भी पढ़ें- नोटबंदी और मोदी पर फिट बैठते हैं संतों के ये दोहे...

वधू चाहिए-

सुंदर (थोड़ी कम भी चलेगी), सुशील (बड़ों के सामने गालियां ना दे), संस्कारी (संस्कार के साथ कार भी लाए) कन्या चाहिए. दिन में तीन सिगरेट से ज्यादा ना पीती हो (मार्लबोरो पीने वाली को अहम समझा जाएगा. कृपया क्लासिक पीने वाली लड़कियां आवेदन ना दें). मैगी के अलावा भी कुछ बनाना जानती हो, रोज शराब पीने की आदत ना हो (कभी कभार पार्टियों में चल जाएगा), पढ़ी-लिखी (शर्माजी की बहू से अंग्रेजी में लड़कर जीत जाए), ब्वॉयफ्रेंड्स को आसानी से छोड़कर आ जाए. एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में विश्वास ना रखती हो. हमारी बहू एल्कोहॉलिक तो हो, लेकिन एडिक्टिव ना हो. पति के साथ बड़ी पार्टियों में जाकर नाक ना कटाए. विस्की और हाईक्लास दारू ही पिए. लेकिन टल्‍ली होकर बवाल ना मचाए. कितनी भी चढ़ी हो हैंगओवर उतारने के तरीके जानती हो. घर में स्वादिश्त चखना भी बनाना जानती हो.

बहू के साथ घर का एक ड्राइवर और नौकर भेजने वाले परिवारों को प्राथमिकता दी जाएगी.

आज के सोशल मीडियाई युग में सबकुछ एडवांस और फास्ट हो गया है. लोगों में ट्रुथ और डेयर का ऐसा चस्का चढ़ा है कि देखिए तो हर तरफ सच्चाई के नारे, स्ट्रॉन्ग वुमन, स्ट्रॉन्ग मेन, न्यू एज सोसाइटी की बातें चल रही हैं. हालांकि, एडवर्टिजमेंट्स में अभी भी पुराना तरीका ही आजमाया जाता है. जरा सोचिए अगर आज के समय और नई पीढ़ी के हिसाब से एकदम सच्चे मेट्रिमोनियल एड्स बनाए जाएं तो क्या होगा? शायद कुछ ऐसा होगा नमूना..

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वधू चाहिए-

सुंदर (थोड़ी कम भी चलेगी), सुशील (बड़ों के सामने गालियां ना दे), संस्कारी (संस्कार के साथ कार भी लाए) कन्या चाहिए. दिन में तीन सिगरेट से ज्यादा ना पीती हो (मार्लबोरो पीने वाली को अहम समझा जाएगा. कृपया क्लासिक पीने वाली लड़कियां आवेदन ना दें). मैगी के अलावा भी कुछ बनाना जानती हो, रोज शराब पीने की आदत ना हो (कभी कभार पार्टियों में चल जाएगा), पढ़ी-लिखी (शर्माजी की बहू से अंग्रेजी में लड़कर जीत जाए), ब्वॉयफ्रेंड्स को आसानी से छोड़कर आ जाए. एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में विश्वास ना रखती हो. हमारी बहू एल्कोहॉलिक तो हो, लेकिन एडिक्टिव ना हो. पति के साथ बड़ी पार्टियों में जाकर नाक ना कटाए. विस्की और हाईक्लास दारू ही पिए. लेकिन टल्‍ली होकर बवाल ना मचाए. कितनी भी चढ़ी हो हैंगओवर उतारने के तरीके जानती हो. घर में स्वादिश्त चखना भी बनाना जानती हो.

बहू के साथ घर का एक ड्राइवर और नौकर भेजने वाले परिवारों को प्राथमिकता दी जाएगी.

 आखिर ये क्यों सोचा जाता है कि लड़कियां अगर शराब पी रही हैं तो वो गलत ही होगा.

हाल ही में एक कोरा (quora) पोस्ट पर नजर पड़ी. यूजर ने सवाल किया था कि भारत में कितनी महिलाएं शराब का सेवन करती हैं? जवाब देने वाले ने भी कहा कि मेट्रो में करीब 80%, 2 टियर शहरों में 40-45% और छोटे शहरों में 5%. सवाल और जवाब दोनों ही बड़े दिलचस्प हैं. लेकिन इसपर एक और सवाल ने ध्यान आकर्षित किया कि आखिर कितनी महिलाएं शराब पीती हैं, इसकी जानकारी चाहिए क्यों?

सवाल एकदम सही है. आखिर ये क्यों सोचा जाता है कि लड़कियां अगर शराब पी रही हैं तो वो गलत ही होगा. उसका चरित्र खराब ही होगा. वो अगर धुंआ उड़ा रही है तो कैरेक्टरलेस और अगर अगरबत्ती जला रही है तो संस्कारी. चाय के ठेले पर अगर कोई लड़की सिगरेट पीती दिख जाए तो जनाव उसे नजरों से ही मंजिल तक पहुंचाया जाता है. जब तक आंखों से ओझल ना हो जाए तब तक लोग निहारते रहते हैं जैसे कोई अजूबा हो.

अगर कोई लड़की काम के कारण लेट आए तो जनाब समझ जाइए कि लड़कों के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है. शराब पीती दिख जाए तो सभ्य लोग उसपर कमेंट कर वहां से हट जाते हैं.

आदिकाल से ये प्रथा चली आ रही है कि हिंदुस्तान में संस्कारी बहू के चर्चे होते हैं और अगर बहू ने कुछ भी गलत काम कर दिया तो उसके घर-बार, पड़ोस, परिजन और दोस्तों तक को दोष दे दिया जाता है. जमाना तो बदला, लेकिन संस्कारी बहू की परिभाषा को सोशल मीडिया पर अपडेट करना शायद आलादर्जा भूल गया. तभी तो देखिए आज भी महिलाओं के शराब पीने, छोटे कपड़े पहनने, घर देर से आने, लड़कों से बात करने, पार्टी करने, अपने तरीके से जीने को कैरेक्टर से जोड़कर देखा जाता है. जो लोग अपने बेटों के लिए संस्कारी बहुएं ढूंढते हैं क्या उन्होंने कभी पूछा की बेटे पार्टियों में क्या करते हैं? क्या पार्टियों में अपनी पत्नियों को पिलाना और कूल दिखाना अब स्टेटस सिम्बल नहीं समझा जाता?

अगर कैरेक्टरलेस ही शराब पीने की परिभाषा है तो फिर लड़के भी उतने ही कैरेक्टरलेस हैं.

निर्भया कांड को 4 साल होने वाले हैं और ऐसे दर्जे के लोगों की भी कमी नहीं है जो ये कहते हों कि रात के 10.30 बजे लड़के के साथ क्यों गई थी. जीन्स की जगह सूट पहना होता तो? क्या ये सब बातें उस लड़की की आत्मा को ठेस नहीं पहुंचाती होंगी?

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ऐसा नहीं है कि लड़कियों का शराब पीना मैं सही मानती हूं, लेकिन उतना ही गलत लड़कों का पीना भी है. हां, अगर कोई पी रहा है तो उसे कैरेक्टरलेस मान लेना भी गलत है. सोसाइटी फॉर्वर्ड हो गई है. विदेशों में यही कल्चर है, लेकिन वहां किसी भी लड़की को पीने के लिए कैरेक्टरलेस नहीं माना जाता तो फिर भारत में ऐसा क्यों. भारत में इसे एक अपवाद माना जाता है चलिए ठीक है, लेकिन फिर सभ्य समाज उन लड़कों को क्या कहेगा जो हुड़दंग मचाते हैं और शराब पीकर काफी कुछ गलत कर जाते हैं. कुल मिलाकर इसे सही ना समझें, लेकिन इसे अपवाद भी ना बनाएं. शराब पीना या ना पीना कैरेक्टर की निशानी नहीं है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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