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कॉल ड्रॉप की कमजोर नींव पर कैसे बनेगी 4G इमारत

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 24 अगस्त, 2015 08:08 PM
  • 24 अगस्त, 2015 08:08 PM
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देश में टेलिकॉम कंपनियां 4जी सेवा लाने की जल्दबाजी में हैं. एयरटेल ने तो इसे लांच भी कर दिया है. इन कंपनियों को यह समझ लेना चाहिए कि मोबाइल टेक्नोलॉजी की नींव 2जी और 3जी नेटवर्क पर धरी है, जो कई मामलों में खस्ता हालत में है. बिना इन सेवाओं को दोषमुक्त किए 4जी सेवा शुरू करना कंपनियों के लिए भले ही शुरुआती फायदे का सौदा है, लेकिन यह कंज्यूमर के लिए बुरा स्वप्न होने जा रहा है.

देश का टेलिकॉम सेक्टर 4जी श्रेणी में कदम रख चुका है. प्रमुख टेलिकॉम ऑपरेटर देशभर में 4जी सुविधा मुहैया कराने की मुहिम में जोर शोर से लगे हुए हैं. एक मिनट में पूरी फिल्म करें डाउनलोड जैसे प्रचारों से 4जी प्लान का डंका पीटा जा रहा है. हालांकि इस 4जी के चक्कर में टेलिकॉम ऑपरेटर यह भूल रहे हैं कि उनका प्रमुख काम देश में वॉयस कॉल सुविधा उपलब्ध कराना है. लिहाजा, 4जी नेटवर्क के भारी-भरकम डेटा प्लान को बेचने से ज्यादा प्राथमिकता इन कंपनियों को यह सुनिश्चित करने पर देना होगा कि देश में मोबाइल की लाइफलाइन 2जी और 3जी नेटवर्क है और इस नेटवर्क की शिकायतों को दूर किए बिना आगे बढ़ने में बड़े खतरे मौजूद हैं.

मोबाइल यूजर को नंबर पोर्टेबिलिटी की सुविधा मिली हुई है. लिहाजा 2जी और 3जी सुविधा में संतुष्टी नहीं मिलने पर वह अपना टेलिकॉम ऑपरेटर बदल सकता है. लेकिन मोबाइल नेटवर्क की समस्या न होने की गारंटी आपको कोई भी ऑपरेटर नहीं दे रहा है लिहाजा पोर्टेबिलिटी के बाद भी आप की समस्या जस की तस बनी रहती है. ट्राई के आंकलन के मुताबिक मार्च 2015 को पूरे हुए वित्त वर्ष के दौरान 2जी नेटवर्क में कॉल ड्रॉप की समस्या दोगुनी हुई है तो वहीं 3जी पर कॉल ड्रॉप मामले में 65 फीसदी की बढ़त देखने को मिली है. इसलिए यह जरूरी है कि देश में मोबाइल टेक्नॉलजी की 4जी सीढ़ी चढ़ने से पहले कंपनियां 2जी और 3जी उपभोक्ताओं को क्वॉलिटी सर्विस सुनिश्चित करने के लिए इन चार बातों का ध्यान रखें.

1. कॉल ड्रॉप (कॉल के बीच में फोन कट जाना) देश में बड़ी समस्या बन कर उभर रही है और टेलिकॉम कंपनियां और केन्द्र सरकार इस मुद्दे पर एक-दूसरे की खामियां निकाल रहे हैं. इस तरह खामियां निकालने से उपभोक्ताओं का कोई फायदा नहीं होगा, लिहाजा दोनों की कोशिश जल्द से जल्द देश में ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने की होनी चाहिए जिससे इस समस्या से छुटकारा मिल सके.

2. टेलिकॉम कंपनियों का आरोप रहा है कि उन्हें पर्याप्त मात्रा में स्पेक्ट्रम और एयरवेव नहीं मिलते जिसके चलते वह सभी उपभोक्ताओं को क्वालिटी की...

देश का टेलिकॉम सेक्टर 4जी श्रेणी में कदम रख चुका है. प्रमुख टेलिकॉम ऑपरेटर देशभर में 4जी सुविधा मुहैया कराने की मुहिम में जोर शोर से लगे हुए हैं. एक मिनट में पूरी फिल्म करें डाउनलोड जैसे प्रचारों से 4जी प्लान का डंका पीटा जा रहा है. हालांकि इस 4जी के चक्कर में टेलिकॉम ऑपरेटर यह भूल रहे हैं कि उनका प्रमुख काम देश में वॉयस कॉल सुविधा उपलब्ध कराना है. लिहाजा, 4जी नेटवर्क के भारी-भरकम डेटा प्लान को बेचने से ज्यादा प्राथमिकता इन कंपनियों को यह सुनिश्चित करने पर देना होगा कि देश में मोबाइल की लाइफलाइन 2जी और 3जी नेटवर्क है और इस नेटवर्क की शिकायतों को दूर किए बिना आगे बढ़ने में बड़े खतरे मौजूद हैं.

मोबाइल यूजर को नंबर पोर्टेबिलिटी की सुविधा मिली हुई है. लिहाजा 2जी और 3जी सुविधा में संतुष्टी नहीं मिलने पर वह अपना टेलिकॉम ऑपरेटर बदल सकता है. लेकिन मोबाइल नेटवर्क की समस्या न होने की गारंटी आपको कोई भी ऑपरेटर नहीं दे रहा है लिहाजा पोर्टेबिलिटी के बाद भी आप की समस्या जस की तस बनी रहती है. ट्राई के आंकलन के मुताबिक मार्च 2015 को पूरे हुए वित्त वर्ष के दौरान 2जी नेटवर्क में कॉल ड्रॉप की समस्या दोगुनी हुई है तो वहीं 3जी पर कॉल ड्रॉप मामले में 65 फीसदी की बढ़त देखने को मिली है. इसलिए यह जरूरी है कि देश में मोबाइल टेक्नॉलजी की 4जी सीढ़ी चढ़ने से पहले कंपनियां 2जी और 3जी उपभोक्ताओं को क्वॉलिटी सर्विस सुनिश्चित करने के लिए इन चार बातों का ध्यान रखें.

1. कॉल ड्रॉप (कॉल के बीच में फोन कट जाना) देश में बड़ी समस्या बन कर उभर रही है और टेलिकॉम कंपनियां और केन्द्र सरकार इस मुद्दे पर एक-दूसरे की खामियां निकाल रहे हैं. इस तरह खामियां निकालने से उपभोक्ताओं का कोई फायदा नहीं होगा, लिहाजा दोनों की कोशिश जल्द से जल्द देश में ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने की होनी चाहिए जिससे इस समस्या से छुटकारा मिल सके.

2. टेलिकॉम कंपनियों का आरोप रहा है कि उन्हें पर्याप्त मात्रा में स्पेक्ट्रम और एयरवेव नहीं मिलते जिसके चलते वह सभी उपभोक्ताओं को क्वालिटी की सुविधा नहीं उपलब्ध करा पा रहे हैं. हालांकि, केन्द्र सरकार का आरोप है कि मोबाइल कंपनियां टावर निर्माण जैसे इंफ्रास्ट्रक्चरल काम में होने वाले भारी लागत से बचने की कोशिश में रहती हैं लिहाजा वह उपयुक्त जगहों पर नए टावर लगाने के काम को टालती हैं.

3. टेलिकॉम कंपनियां मानती हैं कि देश में बड़ी संख्या में मोबाइल टावर का निर्माण किया जाना है. मोबाइल ऑपरेटर एसोसिएशन का मानना है कि पिछले 6-7 महीनों में कंपनियों ने देशभर में लगभग 70,000 नए टावर का निर्माण किया है. लेकिन कॉल ड्रॉप समस्या पर पूरी तरह से काबू पाने के लिए अगले 2 सालों में एक लाख और नए टॉवर लगाने की जरूरत है. गौरतलब है कि टावर लगाने और उसके रखरखाव पर पूरा खर्च मोबाइल ऑपरेटर को करना पड़ता है और यह कंपनियों के लिए वार्षिक स्तर पर सबसे बड़ा खर्च भी होता है.

4. केन्द्र सरकार लंबे समय से देश में भूमि अधिग्रहण के लिए कानून पास कराने की कोशिशों में लगा हुआ है. मोबाइल कंपनियों की समस्या का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश में टावर निर्माण के लिए किसी तरह के कानून उपलब्ध नहीं हैं. जिसके चलते देशभर में ज्यादातर आर्मी के अधिकार क्षेत्रों में टावर की गंभीर समस्या है जिसके चलते आम यूजर को नेटवर्क में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. लिहाजा, देश में बेहतर कनेक्टिविटी के लिए केन्द्र सरकार को सरकारी बिल्डिंग और आर्मी के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में टावर निर्माण की मंजूरी देने के लिए नीति बनानी होगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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