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पोर्न कल्चर को बढ़ावा देने वाला खुद हुआ इसका शिकार!

    • चंदन कुमार
    • Updated: 14 अक्टूबर, 2015 07:08 PM
  • 14 अक्टूबर, 2015 07:08 PM
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महिला शरीर को बेडरूम और बाथरूम से निकाल कर स्टेटस सिंबल बनाने वाले प्लेबॉय मैगजीन में अब न्यूड तस्वीरें नहीं मिलेंगी.

The major civilizing force in the world is not religion, it is sex.

यह कहना है ह्यूज हेफनर का. इनका न सही, प्लेबॉय का नाम तो जरूर ही सुना होगा. वही प्लेबॉय, जिसने महिला शरीर को बेडरूम और बाथरूम से निकाल कर स्टेटस सिंबल बनाया - खुले रूप से - लुगदी साहित्य की तरह चोरी-छिपे नहीं. अफसोस यह स्टेटस सिंबल अब फिर से लुप्त होने जा रहा है, कम से कम प्लेबॉय के लिए तो जरूर ही. मैगजीन के मैनेजमेंट ने न्यूड फोटो छापने से तौबा करने का फैसला किया है.  

1953 के दिसंबर में प्लेबॉय जब अपने पहले एडिशन के साथ मार्केट में आया तो इसके कवर पर थी मर्लिन मूनरो. अंदर इन्हीं की सेंटर-फोल्ड न्यूड तस्वीर भी थी - लाल रंग की वेल्वेट पर लेटी हुईं. लोग ह्यूज हेफनर की कला के कायल हो गए. तब मैगजीन की कीमत थी 50 सेंट्स और यह स्टॉल में चोरी-छिपे नहीं बल्कि फ्रंट रो में रख कर बेची जा रही थी. हेफनर ने साबित कर दिया कि नग्नता को कला के साथ बेची जाए तो उसे बाजार का साथ जरूर मिलेगा.

कभी जवाहरलाल नेहरू से लेकर मोहम्मद अली, फिदेल कास्त्रो और स्टीव जॉब्स का इंटरव्यू तक छापने वाली इस मैगजीन ने ENTERTAINMENT FOR MEN वाली इमेज से बाहर निकलने का फैसला किया है. 70 से 80 के दशक में हर महीने 70 लाख कॉपी बेचने वाली प्लेबॉय अब महज 8 लाख कॉपियां बेच पा रही है. कभी एक साल में 6500 करोड़ रुपये का बिजनेस करने वाली मैगजीन ने पिछले कुछ वर्षों में मुनाफे का मुंह तक नहीं देखा है. ऐसे में कुछ बड़े कदम उठाने की जरूरत थी, जो न्यूड तस्वीरों से तौबा करने के रूप में सामने आई.   

प्लेबॉय मैनेजमेंट के इस फैसले के पीछे दो कयास लगाए जा रहे हैं. एक जो काफी हद तक सच भी जान पड़ता है वो यह है कि भले ही न्यूड तस्वीरों का एक बड़ा बाजार 50 से लेकर 90 के दशक तक प्लेबॉय के लिए उपलब्ध था और इसके एडिशन का इंतजार किया जाता था. लेकिन इंटरनेट पर सहज सुलभ और फ्री पोर्न ने उस बाजार को धराशाही कर दिया. जाहिर है प्लेबॉय उसका सबसे पहला शिकार बना. और अब तो...

The major civilizing force in the world is not religion, it is sex.

यह कहना है ह्यूज हेफनर का. इनका न सही, प्लेबॉय का नाम तो जरूर ही सुना होगा. वही प्लेबॉय, जिसने महिला शरीर को बेडरूम और बाथरूम से निकाल कर स्टेटस सिंबल बनाया - खुले रूप से - लुगदी साहित्य की तरह चोरी-छिपे नहीं. अफसोस यह स्टेटस सिंबल अब फिर से लुप्त होने जा रहा है, कम से कम प्लेबॉय के लिए तो जरूर ही. मैगजीन के मैनेजमेंट ने न्यूड फोटो छापने से तौबा करने का फैसला किया है.  

1953 के दिसंबर में प्लेबॉय जब अपने पहले एडिशन के साथ मार्केट में आया तो इसके कवर पर थी मर्लिन मूनरो. अंदर इन्हीं की सेंटर-फोल्ड न्यूड तस्वीर भी थी - लाल रंग की वेल्वेट पर लेटी हुईं. लोग ह्यूज हेफनर की कला के कायल हो गए. तब मैगजीन की कीमत थी 50 सेंट्स और यह स्टॉल में चोरी-छिपे नहीं बल्कि फ्रंट रो में रख कर बेची जा रही थी. हेफनर ने साबित कर दिया कि नग्नता को कला के साथ बेची जाए तो उसे बाजार का साथ जरूर मिलेगा.

कभी जवाहरलाल नेहरू से लेकर मोहम्मद अली, फिदेल कास्त्रो और स्टीव जॉब्स का इंटरव्यू तक छापने वाली इस मैगजीन ने ENTERTAINMENT FOR MEN वाली इमेज से बाहर निकलने का फैसला किया है. 70 से 80 के दशक में हर महीने 70 लाख कॉपी बेचने वाली प्लेबॉय अब महज 8 लाख कॉपियां बेच पा रही है. कभी एक साल में 6500 करोड़ रुपये का बिजनेस करने वाली मैगजीन ने पिछले कुछ वर्षों में मुनाफे का मुंह तक नहीं देखा है. ऐसे में कुछ बड़े कदम उठाने की जरूरत थी, जो न्यूड तस्वीरों से तौबा करने के रूप में सामने आई.   

प्लेबॉय मैनेजमेंट के इस फैसले के पीछे दो कयास लगाए जा रहे हैं. एक जो काफी हद तक सच भी जान पड़ता है वो यह है कि भले ही न्यूड तस्वीरों का एक बड़ा बाजार 50 से लेकर 90 के दशक तक प्लेबॉय के लिए उपलब्ध था और इसके एडिशन का इंतजार किया जाता था. लेकिन इंटरनेट पर सहज सुलभ और फ्री पोर्न ने उस बाजार को धराशाही कर दिया. जाहिर है प्लेबॉय उसका सबसे पहला शिकार बना. और अब तो मिट्टी ही पलीद कर दी. दूसरा कारण इसके मैनेजमेंट में बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है. वर्तमान में भारतीय मूल के सुहैल रिजवी की कंपनी रिजवी ट्रैवर्स का प्लेबॉय में 60 फीसदी शेयर है, जबकि ह्यूज हेफनर का मात्र 30 फीसदी. मालिकाना हक खोने से एडिटोरियल फैसले भी खोने पड़ते हैं, इस मामले में शायद कुछ ऐसा ही हुआ हो.

कारण जो भी है, प्लेबॉय प्रिंट के प्रशंसकों के लिए यह खबर अच्छी नहीं है. इंटरनेट पर भले ही पोर्न पसरा हुआ है, पर हॉलीवुड की लीडिंग एक्ट्रेस और मॉडलों को हेफनर की 'नजर' से देखने का सुख जाता रहेगा. ओह!!!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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