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गिरावट यूं ही जारी रही तो क्या कोल्ड ड्रिंक के दाम पर मिलेगा पेट्रोल

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 25 जनवरी, 2016 03:35 PM
  • 25 जनवरी, 2016 03:35 PM
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इंटरनेशनल मार्केट में कच्चा तेल आज 30 डॉलर प्रति बैरल के नीचे कारोबार कर रहा है. कच्चा तेल खरीदने के लिए केन्द्र सरकार के विदेशी मुद्रा रिजर्व से खर्च में लगभग आधे की बचत हो रही है.

आज से 12 साल पहले 16 जनवरी 2003 को दिल्ली में खुदरा पेट्रोल की दर 30.33 रुपये थी. इंटरनेशनल मार्केट में तब कच्चा तेल 30 डॉलर प्रति बैरल के नीचे बिक रहा था. सोमवार को इंटरनेशनल मार्केट में कच्चा तेल 2003 के स्तर से भी नीचे चला गया लेकिन दिल्ली में खुदरा पेट्रोल की कीमत में 1 रुपये का इजाफा करके 59.99 रुपये कर दिया गया.

अब आपको एक कंफ्यूजन हो सकता है कि पेट्रोल की कीमत तो अब कच्चेु तेल का अंतर्राष्ट्री य मूल्यक ही निर्धारित करता है तो फिर इसमें गिरावट के बाद भी पेट्रोल का दाम क्यों बढ़ गए?

गौरतलब है कि मनमोहन सिंह सरकार में भ्रष्टाचार से बड़ा मुद्दा देश में बढ़ती महंगाई को करार दिया गया था. विपक्ष के साथ-साथ आम धारणा थी कि वित्त मंत्री पी चिदंबरम की इकोनॉमिक्स कॉरपोरेट जगत को मुनाफा पहुंचाने के लिए थी. वहीं सत्तारूढ़ कांग्रेस राज्य सरकारों से अपील कर रही थी कि वह पेट्रोल और डीजल पर कम टैक्स लगाकर महंगाई को काबू करे. या फिर कह लें कि केन्द्र सरकार का मानना था कि महंगाई के लिए ज्यादा जिम्मेदार राज्य सरकारें हैं क्योंकि वे पेट्रोल-डीजल की बिक्री पर ज्यादा टैक्स थोप रहीं थीं. वहीं केन्द्र सरकार का इजाफा तो इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के कारण हो रहा था.

मनमोहन सिंह के दौर में कच्चे तेल की कीमतों ने 60 डॉलर प्रति बैरल से लेकर 140 डॉलर प्रति बैरल तक की छलांग लगाई थी. कीमतों में हर छलांग पर केन्द्र सरकार पेट्रोल की कीमत बढ़ाने की मजबूरी बता रही थी और इस मजबूरी से देश में महंगाई सातवें आसमान पर पहुंच रही थी.

देश में बढ़ती महंगाई के लिए कच्चे तेल की कीमतों की जिम्मेदारी वोटरों के साथ-साथ ऊपर वाले ने भी सुन ली. बेलगाम महंगाई से खफा लोगों ने विपक्ष में बैठी बीजेपी को जनादेश दे दिया. ‘अच्छे दिन’ वाले नरेन्द्र मोदी की केन्द्र में सरकार बन गई. और इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों ने भी गोता खाना शुरू कर दिया. मानो अच्छे दिन आने के साफ संकेत मिलना शुरू हो गए थे. महंगाई के लिए कच्चे तेल...

आज से 12 साल पहले 16 जनवरी 2003 को दिल्ली में खुदरा पेट्रोल की दर 30.33 रुपये थी. इंटरनेशनल मार्केट में तब कच्चा तेल 30 डॉलर प्रति बैरल के नीचे बिक रहा था. सोमवार को इंटरनेशनल मार्केट में कच्चा तेल 2003 के स्तर से भी नीचे चला गया लेकिन दिल्ली में खुदरा पेट्रोल की कीमत में 1 रुपये का इजाफा करके 59.99 रुपये कर दिया गया.

अब आपको एक कंफ्यूजन हो सकता है कि पेट्रोल की कीमत तो अब कच्चेु तेल का अंतर्राष्ट्री य मूल्यक ही निर्धारित करता है तो फिर इसमें गिरावट के बाद भी पेट्रोल का दाम क्यों बढ़ गए?

गौरतलब है कि मनमोहन सिंह सरकार में भ्रष्टाचार से बड़ा मुद्दा देश में बढ़ती महंगाई को करार दिया गया था. विपक्ष के साथ-साथ आम धारणा थी कि वित्त मंत्री पी चिदंबरम की इकोनॉमिक्स कॉरपोरेट जगत को मुनाफा पहुंचाने के लिए थी. वहीं सत्तारूढ़ कांग्रेस राज्य सरकारों से अपील कर रही थी कि वह पेट्रोल और डीजल पर कम टैक्स लगाकर महंगाई को काबू करे. या फिर कह लें कि केन्द्र सरकार का मानना था कि महंगाई के लिए ज्यादा जिम्मेदार राज्य सरकारें हैं क्योंकि वे पेट्रोल-डीजल की बिक्री पर ज्यादा टैक्स थोप रहीं थीं. वहीं केन्द्र सरकार का इजाफा तो इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के कारण हो रहा था.

मनमोहन सिंह के दौर में कच्चे तेल की कीमतों ने 60 डॉलर प्रति बैरल से लेकर 140 डॉलर प्रति बैरल तक की छलांग लगाई थी. कीमतों में हर छलांग पर केन्द्र सरकार पेट्रोल की कीमत बढ़ाने की मजबूरी बता रही थी और इस मजबूरी से देश में महंगाई सातवें आसमान पर पहुंच रही थी.

देश में बढ़ती महंगाई के लिए कच्चे तेल की कीमतों की जिम्मेदारी वोटरों के साथ-साथ ऊपर वाले ने भी सुन ली. बेलगाम महंगाई से खफा लोगों ने विपक्ष में बैठी बीजेपी को जनादेश दे दिया. ‘अच्छे दिन’ वाले नरेन्द्र मोदी की केन्द्र में सरकार बन गई. और इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों ने भी गोता खाना शुरू कर दिया. मानो अच्छे दिन आने के साफ संकेत मिलना शुरू हो गए थे. महंगाई के लिए कच्चे तेल की भूमिका आज कठघरे से बाहर है. इंटरनेशनल मार्केट में कच्चा तेल आज 30 डॉलर प्रति बैरल के नीचे कारोबार कर रहा है. कच्चा तेल खरीदने के लिए केन्द्र सरकार के विदेशी मुद्रा रिजर्व से खर्च में लगभग आधे की बचत हो रही है.

अब ऐसा भी नहीं है कि देश में पेट्रोल और डीजल की कीमत में कटौती नहीं हुई है. थोड़ी कटौती तो जरूर हुई है लेकिन इससे पहले की यह कटौती अच्छे दिनों का उदघोष करने लायक होती इस पर लगाम लगा दिया गया है. अब यह लगाम चीन की तरह भी नहीं लगाई गई है. गौरतलब है कि चीन ने मौजूदा गिरावट को देखते हुए खुदरा पेट्रोल-डीजल का दाम निर्धारित करने के लिए कच्चे तेल की कीमत को ही फिक्स करके 40 डॉलर प्रति बैरल कर दिया है. अब क्यों न कच्चा तेल 10 डॉलर प्रति बैरल की दर पर पहुंच जाए, पेट्रोल की कीमतों में अच्छे दिन चीन में नहीं आएंगे.

विडंबना देखिए, जब कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के चलते पेट्रोल-डीजल का दाम बढ़ाया जाता था तब केन्द्र सरकार राज्यों से पेट्रोल-डीजल पर वैट और अन्य टैक्स कम करने की अपील करती थी. आज जब कच्चे तेल की कीमतें गर्त में जाने को तैयार है, तो केन्द्र सरकार अपनी अहम जिम्मेदारियों का हवाला देते हुए अधिक राजस्व बटोर रही है. विदेशी मुद्रा में बचत का बोनस तो पहले से ही उसके पास मौजूद है. ऐसे में अब भला राज्य सरकारें अपनी अहम जिम्मेदारियों को निभाने के लिए इस मौके का फायदा क्यों न उठाएं. वैसे भी जीएसटी को टाला जा चुका है और वह लागू भी हो गया होता तो पेट्रोल-डीजल पर टैक्स का अधिकार तो राज्य सरकारों के पास ही रहता.

ज्ञात हो जब कच्चा तेल 120 से 130 डॉलर प्रति बैरल की दर पर था तो दिल्ली में पेट्रोल लगभग 80 रुपये लीटर बिक रहा था. आज कच्चा तेल 30 डॉलर के नीचे है और वैश्विक स्तर पर कई जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में कच्चा तेल 20 डॉलर प्रति बैरल के स्तर के भी नीचे लुढ़क सकता है. इतनी बड़ी गिरावट भी कोई नई बात नहीं है. इससे पहले भी कच्चे तेल की कीमतें अर्श से फर्श का सफर कई बार तय कर चुकी हैं. मौजूदा गिरावट से पहले कच्चा तेल जून 2008 में अपने उच्चतम स्तर 145 डॉलर के ऊपर कारोबार कर रहा था. नवंबर 2001 में यह कीमत लगभग 26 डॉलर पर थी और दिसंबर 1998 में कच्चे तेल की कीमत लगभग 16 डॉलर प्रति बैरल पर थी. ऐसे में यह मानना कि एक बार फिर कच्चे तेल की कीमत 20 डॉलर प्रति बैरल के नीचे जा सकती है को अतिश्योक्ति नहीं माना जा सकता.

लिहाजा, कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का रुख यूं ही जारी रहा तो 20 डॉलर प्रति बैरल का स्तर ज्यादा दूर नहीं हैं. जानकारों का मानना है कि कच्चे तेल के दूसरे बड़े उत्पादक ईरान पर से अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हटने के बाद इतना साफ है कि वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की सप्लाई में 10-15 फीसदी का इजाफा होना तय है. वहीं पुख्ता होती सप्लाई के सामने चीन में छाई सुस्ती से ग्लोबल डिमांड में लगातार गिरावट ही दर्ज हो रही है. लिहाजा डिमांड और सप्लाई के इस मिसमैच का दबाव कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ना तय है और आने वाले दिनों में 20 डॉलर प्रति बैरल कच्चे तेल का स्तर एक बार देखने को मिल सकता है.

ऐसे में अब यह देश की सरकार को तय करना होगा कि क्या वह इस गिरावट का सीधा फायदा पेट्रोल और डीजल के उपभोक्ताओं को पहुंचाएगी. कहीं चीन की तरह हमारी सरकार भी कच्चे तेल की कीमतों में इस बड़ी गिरावट के बावजूद हमारे लिए पेट्रोल-डीजल की कीमत निर्धारित करने के लिए 40-50 डॉलर प्रति बैरल का रेट फिक्स न कर दे. लेकिन इतना साफ है कि अगर यह फायदा सरकारी खजाने को भरने की जगह सीधे उपभोक्ताओं को दिया गया तो दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल और एक लीटर कोक-पेप्सी एक ही दाम में बिकेगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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