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पतंजलि नहीं, यह है इंडियन ड्रैगन

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 29 दिसम्बर, 2015 05:43 PM
  • 29 दिसम्बर, 2015 05:43 PM
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भारतीय बाजार पर चीनी कंपनियों के हमले की तर्ज पर ही कंज्यूमर गुड्स मार्केट पर पतंजलि आयुर्वेद का हमला हुआ है. बाबा रामदेव की यह कंपनी इसी तरह बढ़ती रही तो वह दिन दूर नहीं कि पतंजलि का कारोबार आसमान छूने लगे..

भारतीय बाजार पर दोतरफा हमला हुआ है. एक तरफ चीनी ड्रैगन की आग देश के कंज्यूमर मार्केट को झुलसा रही है तो दूसरी तरफ एक घरेलू ड्रैगन तेजी से बाजार को निगल रहा है. जी हां, घरेलू ड्रैगन इसलिए कि योग गुरू बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद अपने कारोबार को हर साल दोगुना करने में महारत पा चुकी है. पतंजलि ने 2012 में 450 करोड़ रुपये का कारोबार किया था और 2015 में 2500 करोड़ रुपये का सेल्स टार्गेट पूरा किया. अब 2016 के लिए पतंजलि ने 5000 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखकर देश की कई बड़ी कंपनियों के पैर तले जमीन खिसकाने की तैयारी कर ली है.

अंग्रेजी दवाओं के विरोध में अपना आयुर्वेदिक दवाओं का कारोबार शुरू करने के बाद पतंजलि आयुर्वेद आज 800 से ज्यादा प्रोडक्ट बेच रहा है. इसमें दवाओं के साथ-साथ किचेन से लेकर बाथरूम तक के कई प्रोडक्ट शामिल हैं. अब चाहे वह मैगी विवाद के बाद बाजार में लांच हुआ पतंजलि आटा नूडल हो या फिर सफेद टूथपेस्ट से सफेद दांत के भ्रम को तोड़ने के लिए पतंजलि का भूरा दंत कांति टूथपेस्ट, बाबा रामदेव के ज्यादातर प्रोडक्ट्स बाजार में मौजूद पॉपुलर ब्रांड के लिए बड़ी चुनौती बन चुकी हैं. जहां चीनी कंपनियां सस्ती दरों पर बाजार में अपना प्रोडक्ट देकर एक बड़े हिस्से पर अपना अधिपत्य जमा चुकी हैं वहीं पतंजलि के प्रोडक्ट सस्ते के साथ-साथ मेक इन इंडिया, स्वदेशी और हर्बल प्रोडक्ट के नाम पर ग्राहकों को लुभा रही हैं.

दरअसल पतंजलि की विरोधी कंपनियों का मानना है कि बाबा रामदेव से ब्रांड पतंजलि को अच्छी पब्लिसिटी मिल रही है और इसके लिए पतंजलि को कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ता. जबकि बाकी कंपनियों को अपने वार्षिक सेल का लगभग 20-30 फीसदी डायरेक्ट एडवर्टाइजिंग पर खर्च करना पड़ा है. इस बचत के चलते पतंजलि अपने प्रोडक्ट को बाजार में सस्ते दाम पर बेचने में सफल हो रहा है. वहीं हाल ही में पतंजलि का किशोर बियानी के फ्यूचर ग्रुप से हुए करार के चलते अब पतंजलि के प्रोडक्ट बिग बाजार और फूड बाजार जैसे बड़े स्टोर में मिल रहे हैं. महज इस करार से कंपनी को उम्मीद है कि...

भारतीय बाजार पर दोतरफा हमला हुआ है. एक तरफ चीनी ड्रैगन की आग देश के कंज्यूमर मार्केट को झुलसा रही है तो दूसरी तरफ एक घरेलू ड्रैगन तेजी से बाजार को निगल रहा है. जी हां, घरेलू ड्रैगन इसलिए कि योग गुरू बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद अपने कारोबार को हर साल दोगुना करने में महारत पा चुकी है. पतंजलि ने 2012 में 450 करोड़ रुपये का कारोबार किया था और 2015 में 2500 करोड़ रुपये का सेल्स टार्गेट पूरा किया. अब 2016 के लिए पतंजलि ने 5000 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखकर देश की कई बड़ी कंपनियों के पैर तले जमीन खिसकाने की तैयारी कर ली है.

अंग्रेजी दवाओं के विरोध में अपना आयुर्वेदिक दवाओं का कारोबार शुरू करने के बाद पतंजलि आयुर्वेद आज 800 से ज्यादा प्रोडक्ट बेच रहा है. इसमें दवाओं के साथ-साथ किचेन से लेकर बाथरूम तक के कई प्रोडक्ट शामिल हैं. अब चाहे वह मैगी विवाद के बाद बाजार में लांच हुआ पतंजलि आटा नूडल हो या फिर सफेद टूथपेस्ट से सफेद दांत के भ्रम को तोड़ने के लिए पतंजलि का भूरा दंत कांति टूथपेस्ट, बाबा रामदेव के ज्यादातर प्रोडक्ट्स बाजार में मौजूद पॉपुलर ब्रांड के लिए बड़ी चुनौती बन चुकी हैं. जहां चीनी कंपनियां सस्ती दरों पर बाजार में अपना प्रोडक्ट देकर एक बड़े हिस्से पर अपना अधिपत्य जमा चुकी हैं वहीं पतंजलि के प्रोडक्ट सस्ते के साथ-साथ मेक इन इंडिया, स्वदेशी और हर्बल प्रोडक्ट के नाम पर ग्राहकों को लुभा रही हैं.

दरअसल पतंजलि की विरोधी कंपनियों का मानना है कि बाबा रामदेव से ब्रांड पतंजलि को अच्छी पब्लिसिटी मिल रही है और इसके लिए पतंजलि को कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ता. जबकि बाकी कंपनियों को अपने वार्षिक सेल का लगभग 20-30 फीसदी डायरेक्ट एडवर्टाइजिंग पर खर्च करना पड़ा है. इस बचत के चलते पतंजलि अपने प्रोडक्ट को बाजार में सस्ते दाम पर बेचने में सफल हो रहा है. वहीं हाल ही में पतंजलि का किशोर बियानी के फ्यूचर ग्रुप से हुए करार के चलते अब पतंजलि के प्रोडक्ट बिग बाजार और फूड बाजार जैसे बड़े स्टोर में मिल रहे हैं. महज इस करार से कंपनी को उम्मीद है कि वह अपनी सेल को 1000 करोड़ रुपये बढ़ा सकती है. वहीं कुछ इसी तरह का करार कर बाबा रामदेव ने पतंजली प्रोडक्ट को देश के रिलायंस स्टोर की शेल्फ पर भी पहुंचा दिया है.

इसके साथ ही पतंजली ने अपना अगला टार्गेट अमेजन इंडिया को बनाया है और माना जा रहा है कि जल्द वह अमेजन की मदद से अपना प्रोडक्ट देश के दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों में पहुंचाने लगेगी. गौरतलब है कि पतंजलि अभी तक अपने निजी डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क में काम कर रहा है. देशभर में पतंजली के लगभग 5000 रीटेल स्टोर हैं जहां उसके प्रोडक्ट बिक रहे हैं. अगले वित्त वर्ष में पतंजली देश के प्रमुख शहरों में बिग बाजार और रिलायंस स्टोर की तर्ज पर अपना मेगा स्टोर खोलने की योजना पर भी काम कर रहा है जिससे उसकी पूरी की पूरी प्रोडक्ट लाइन को एक छत के नीचे शेल्फ स्पेस मिल सके. एक तरफ बाजार का बड़ा तबका पहले से चीन की कंपनियों की पकड़ में है वहीं पतंजलि जैसी स्वदेशी कंपनी भी ड्रैगन की तरह उनके कारोबार पर कब्जा जमा रही है. अब देखना यह है कि भारत की अन्य कंपनियां इस दोहरे वार से बचने के लिए क्या रास्ता निकालती है?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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