• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
इकोनॉमी

फेल हो गया 118 शहरों का म्युनिसिपल सिस्टम!

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 27 अक्टूबर, 2015 08:51 PM
  • 27 अक्टूबर, 2015 08:51 PM
offline
केन्द्र सरकार का सरकारी और प्राइवेट कंपनियों के लिए गंगा सफाई अभियान में बिजनेस मॉडल के प्रस्ताव से साफ है कि देश के 118 शहरों का म्युनिसिपल सिस्टम पूरी तरह से फेल हो चुका है.

देश में स्वच्छ भारत अभियान तो चल ही रहा है और साथ में गंगा सफाई अभियान. मौजूदा केन्द्र सरकार इन दोनों अभियानों को सफल करना चाहती है, लिहाजा एक बड़ा मंत्री और बड़ा बजट इस काम के लिए लगाया गया है. इस अभियान के तहत शहरों के सीवेज प्रणाली को दुरुस्त करना है ताकि सीवेज की गंदगी गंगा और अन्य नदियों में न उड़ेल दी जाए. अभी तक की सरकारें अपने सिविक अथॉरिटीज और म्युनिसिपल डिपार्टमेंट से यह काम करा रही थी और लगभग 4000 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी हैं लेकिन दोनों शहर और नदी की हालत जस की तस बनी हुई है. लिहाजा, मौजूदा केन्द्र सरकार ने नई पहल की शुरुआत करते हुए गंगा किनारे बसे 118 शहरों में सीवेज नेटवर्क बनाने और ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए सरकारी और प्राइवेट कंपनियों से गुहार लगाई है.

केन्द्र सरकार की पहल के मुताबिक इन 118 शहरों में से सरकारी और निजी कंपनियां अपने पसंद के मुताबिक चुनाव कर सकती है. इस काम में आने वाली कंपनियों को सीवेज नेटवर्क बनाने और ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के बाद 15 साल तक इसे ऑपरेट करना होगा. इस काम के लिए कंपनियां जो भी निवेश करेंगी उसके एवज में सरकार उन्हें वार्षिक भुगतान करेगी. यही नहीं इस काम को करके कंपनियां अलग से मुनाफा भी कमा सकती हैं क्योंकि सरकार उन्हें ट्रीटेड वॉटर को इंडस्ट्रियल और एग्रीकल्चरल इस्तेमाल के लिए बेचने की भी मंजूरी देगी.

इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने गंगा सफाई के लिए प्रवासी भारतीयों, विकसित देशों और प्राइवेट कंपनियों को अपने सीएसआर फंड से करने की गुहार लगाई थी, लेकिन उम्मीद के मुताबिक नतीजा नहीं मिला. लिहाजा अब केन्द्र सरकार को उम्मीद है कि निवेश पर वार्षिक भुगतान और मुनाफे के लिए पानी बेचने का प्रस्ताव कंपनियों को बिल्ट-ऑपरेट-ट्रांसफर स्कीम के तहत इस काम को करने के लिए लुभाने में सफल होगा.

केन्द्र सरकार की मौजूदा पहल गंगा सफाई परियोजना की पुरानी कोशिशों से अलग है. जहां शुरुआत में 1986 गंगा एक्शन प्लान फेज प्रथम और 1995 में गंगा एक्शन प्लान फेज द्वितीय में केन्द्र सरकार ने शहरों को...

देश में स्वच्छ भारत अभियान तो चल ही रहा है और साथ में गंगा सफाई अभियान. मौजूदा केन्द्र सरकार इन दोनों अभियानों को सफल करना चाहती है, लिहाजा एक बड़ा मंत्री और बड़ा बजट इस काम के लिए लगाया गया है. इस अभियान के तहत शहरों के सीवेज प्रणाली को दुरुस्त करना है ताकि सीवेज की गंदगी गंगा और अन्य नदियों में न उड़ेल दी जाए. अभी तक की सरकारें अपने सिविक अथॉरिटीज और म्युनिसिपल डिपार्टमेंट से यह काम करा रही थी और लगभग 4000 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी हैं लेकिन दोनों शहर और नदी की हालत जस की तस बनी हुई है. लिहाजा, मौजूदा केन्द्र सरकार ने नई पहल की शुरुआत करते हुए गंगा किनारे बसे 118 शहरों में सीवेज नेटवर्क बनाने और ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए सरकारी और प्राइवेट कंपनियों से गुहार लगाई है.

केन्द्र सरकार की पहल के मुताबिक इन 118 शहरों में से सरकारी और निजी कंपनियां अपने पसंद के मुताबिक चुनाव कर सकती है. इस काम में आने वाली कंपनियों को सीवेज नेटवर्क बनाने और ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के बाद 15 साल तक इसे ऑपरेट करना होगा. इस काम के लिए कंपनियां जो भी निवेश करेंगी उसके एवज में सरकार उन्हें वार्षिक भुगतान करेगी. यही नहीं इस काम को करके कंपनियां अलग से मुनाफा भी कमा सकती हैं क्योंकि सरकार उन्हें ट्रीटेड वॉटर को इंडस्ट्रियल और एग्रीकल्चरल इस्तेमाल के लिए बेचने की भी मंजूरी देगी.

इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने गंगा सफाई के लिए प्रवासी भारतीयों, विकसित देशों और प्राइवेट कंपनियों को अपने सीएसआर फंड से करने की गुहार लगाई थी, लेकिन उम्मीद के मुताबिक नतीजा नहीं मिला. लिहाजा अब केन्द्र सरकार को उम्मीद है कि निवेश पर वार्षिक भुगतान और मुनाफे के लिए पानी बेचने का प्रस्ताव कंपनियों को बिल्ट-ऑपरेट-ट्रांसफर स्कीम के तहत इस काम को करने के लिए लुभाने में सफल होगा.

केन्द्र सरकार की मौजूदा पहल गंगा सफाई परियोजना की पुरानी कोशिशों से अलग है. जहां शुरुआत में 1986 गंगा एक्शन प्लान फेज प्रथम और 1995 में गंगा एक्शन प्लान फेज द्वितीय में केन्द्र सरकार ने शहरों को आधार बनाकर म्युनिसिपल संस्थाओं को फंड ट्रांसफर कर सीवेज नेटवर्क बनाने और ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की कोशिश की थी वहीं 2009 में नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी के जरिए गंगा को बचाने के लिए एक सम्यक प्रयास किया था. लेकिन इन सभी कोशिशों में गंगा तो साफ हुई नहीं अलबत्ता करोंडों रुपये का फंड जरूर बह गया.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    Union Budget 2024: बजट में रक्षा क्षेत्र के साथ हुआ न्याय
  • offline
    Online Gaming Industry: सब धान बाईस पसेरी समझकर 28% GST लगा दिया!
  • offline
    कॉफी से अच्छी तो चाय निकली, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग दोनों से एडजस्ट कर लिया!
  • offline
    राहुल का 51 मिनट का भाषण, 51 घंटे से पहले ही अडानी ने लगाई छलांग; 1 दिन में मस्क से दोगुना कमाया
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲