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कॉल ड्रॉप का कुछ नहीं हो सकता

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 14 दिसम्बर, 2015 06:43 PM
  • 14 दिसम्बर, 2015 06:43 PM
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मोबाइल कंपनियां उपभोक्ता बनाने की रेस लगभग पूरी कर चुकी है, वहीं तेज इंटरनेट सुविधा से लैस 4जी उनका फोकस एऱिया है. ऐसे में उम्मीद है कि कॉल की सुविधा दे रहा 2जी कनेक्शन इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव ऐसी घटिया सुविधा मुहैया कराता रहेगा.

कॉल ड्रॉप की समस्या का कुछ नहीं किया जा सकता. मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या देश में 100 करोड़ का आंकड़ा छूने जा रही है वहीं उपभोक्ताओं को घटिया सर्विस और खराब टेक्नोलॉजी से निजात मिलती नहीं दिखाई दे रही है. ऐसा तब जब केन्द्र सरकार समेत टेलिकॉम रेग्युलेटर मोबाइल कंपनियों के पीछे हाथ धोकर पड़ी हैं.

1 जनवरी से टेलिकॉम रेग्युलेटर द्वारा मोबाइल ऑपरेटर पर लगाई पेनाल्टी लागू होने जा रही है. इसके मुताबिक 1 जनवरी 2016 से प्रत्येक मोबाइल उपभोक्ता को 1 रुपये प्रति कॉल ड्रॉप की दर से प्रति दिन 3 कॉल ड्रॉप तक मुआवजा देना होगा. इसके साथ ही कंपनियों को कॉल ड्रॉप होने के 4 घंटे के अंदर इसकी सूचना मैसेज के जरिए उपभोक्ता को भी देनी होगी. मोबाइल कंपनियां फिलहाल इस जुर्माने को अदा करने के लिए तैयार नहीं है और केन्द्र सरकार और ट्राई के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील कर चुकी हैं.

मोबाइल कंपनियों का आरोप है कि इन कॉल ड्रॉप के लिए केन्द्र सरकार जिम्मेदार है क्योंकि उसे सरकार की तरफ से पर्याप्त मात्रा में स्पेक्ट्रम नहीं दिया गया है. उनकी दलील है कि वे मात्र 12-15 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम पर काम कर रहे हैं जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर औसतन 45-50 मेगाहर्ट्ज पर काम हो रहा है.

वहीं केन्द्र सरकार का दावा है कि उसने पिछले एक साल के दौरान ही 470 मेगाहर्ट्ज के नए स्पेक्ट्रम जारी किए हैं. इसके बावजूद मोबाइल कंपनियों ने अपने इंफ्रास्ट्रक्चर पर पर्याप्त निवेश नहीं किया और और नए उपभोक्ताओं को लगातार जोड़ते रहे, जिसके चलते कॉल ड्रॉप की यह समस्या खड़ी हुई है.

मोबाइल कंपनियों के दिए आंकड़ों के मुताबिक 2015 में उपभोक्ताओं की संख्या 97 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी, जबकि 2010 में यह आंकड़ा महज 57 करोड़ था. वहीं इन कंपनियों को प्रति ग्राहक कमाई एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में सबसे कम है. भारत की मोबाइल कंपनियां जहां प्रति ग्राहक औसत 3 डॉलर रेवेन्यू पर काम कर रही हैं वहीं चीन में यह 9 डॉलर, ऑस्ट्रेलिया और जापान में 41 डॉलर से अधिक है.

लिहाजा, इन आंकड़ों से साफ है...

कॉल ड्रॉप की समस्या का कुछ नहीं किया जा सकता. मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या देश में 100 करोड़ का आंकड़ा छूने जा रही है वहीं उपभोक्ताओं को घटिया सर्विस और खराब टेक्नोलॉजी से निजात मिलती नहीं दिखाई दे रही है. ऐसा तब जब केन्द्र सरकार समेत टेलिकॉम रेग्युलेटर मोबाइल कंपनियों के पीछे हाथ धोकर पड़ी हैं.

1 जनवरी से टेलिकॉम रेग्युलेटर द्वारा मोबाइल ऑपरेटर पर लगाई पेनाल्टी लागू होने जा रही है. इसके मुताबिक 1 जनवरी 2016 से प्रत्येक मोबाइल उपभोक्ता को 1 रुपये प्रति कॉल ड्रॉप की दर से प्रति दिन 3 कॉल ड्रॉप तक मुआवजा देना होगा. इसके साथ ही कंपनियों को कॉल ड्रॉप होने के 4 घंटे के अंदर इसकी सूचना मैसेज के जरिए उपभोक्ता को भी देनी होगी. मोबाइल कंपनियां फिलहाल इस जुर्माने को अदा करने के लिए तैयार नहीं है और केन्द्र सरकार और ट्राई के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील कर चुकी हैं.

मोबाइल कंपनियों का आरोप है कि इन कॉल ड्रॉप के लिए केन्द्र सरकार जिम्मेदार है क्योंकि उसे सरकार की तरफ से पर्याप्त मात्रा में स्पेक्ट्रम नहीं दिया गया है. उनकी दलील है कि वे मात्र 12-15 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम पर काम कर रहे हैं जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर औसतन 45-50 मेगाहर्ट्ज पर काम हो रहा है.

वहीं केन्द्र सरकार का दावा है कि उसने पिछले एक साल के दौरान ही 470 मेगाहर्ट्ज के नए स्पेक्ट्रम जारी किए हैं. इसके बावजूद मोबाइल कंपनियों ने अपने इंफ्रास्ट्रक्चर पर पर्याप्त निवेश नहीं किया और और नए उपभोक्ताओं को लगातार जोड़ते रहे, जिसके चलते कॉल ड्रॉप की यह समस्या खड़ी हुई है.

मोबाइल कंपनियों के दिए आंकड़ों के मुताबिक 2015 में उपभोक्ताओं की संख्या 97 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी, जबकि 2010 में यह आंकड़ा महज 57 करोड़ था. वहीं इन कंपनियों को प्रति ग्राहक कमाई एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में सबसे कम है. भारत की मोबाइल कंपनियां जहां प्रति ग्राहक औसत 3 डॉलर रेवेन्यू पर काम कर रही हैं वहीं चीन में यह 9 डॉलर, ऑस्ट्रेलिया और जापान में 41 डॉलर से अधिक है.

लिहाजा, इन आंकड़ों से साफ है कि देश में मोबाइल फोन की सुविधा उपभोक्ताओं की संख्या के मुताबिक अपने चरम पर पहुंच चुकी है. इसमे अब कोई खास इजाफा नहीं होना है. वहीं कॉल ड्रॉप किसी एक कंपनी की समस्या न होकर सभी कंपनियों की मजबूरी बन चुकी है. इसे स्पेक्ट्रम की नजर से देखा जाए तो देश की मोबाइल इंडस्ट्री 2जी और 3जी से ऊपर निकलकर 4जी में प्रवेश कर रही है. 4जी टेक्नोलॉजी के लिए दो दिग्गज कंपनियां एयरटेल और रिलायंस अगले कुछ साल में एक लाख करोड़ के आसपास का निवेश करने जा रहे हैं. ऐसे में किसी कंपनी से पुरानी टेक्नोलॉजी (2जी और 3जी) में इंफ्रास्ट्रक्चरल निवेश की कितनी उम्मीद रखनी चाहिए. वह भी तब जब मोबाइल कंपनियों के लिए उपभोक्ताओं के कॉल रेवेन्यू की हालत विश्व में सबसे खराब है और नई टेक्नोलॉजी में इंटरनेट और डेटा उनका नया रेवेन्यू मॉडल है, तो कॉल ड्राप को स्वीकर कर नजरअंदाज कर देने ही ठीक है. क्योंकि इस कॉल ड्रॉप का कोई कुछ नहीं करेगा.

 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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