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अमिताभ तो केबीसी को बस 'ढो' ही रहे हैं

    • मिहिर रंजन
    • Updated: 18 अक्टूबर, 2017 05:07 PM
  • 18 अक्टूबर, 2017 05:07 PM
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एक वो दौर था जब रामायण और महाभारत के बाद पहली बार देश ने किसी एक टीवी शो का शिद्दत से इंतजार किया. उसके टेलीकास्ट के दौरान सड़कें खाली थीं और सभी घरों में सिर्फ अमिताभ और केबीसी के सेट पर हो रहे सवाल जवाब की आवाजें गूंज रही होती थी.

धन्यवाद अनामिका मैडम,  

केबीसी-9 की पहली करोड़पति बनकर शो में कुछ 'जान' डालने के लिए. अमिताभ तो बस शो को 'ढो' ही रहे हैं. हो सकता है मेरी इस बात से आप इत्तेफाक नहीं रखते हों. आखिर सवाल महानायक अमिताभ बच्चन और उन्हें पुनर्जन्म दिलाने वाले शो केबीसी का जो है. लेकिन ऐसा मैं यूं ही नहीं कह रहा हूं. बल्कि ऐसा कहने के पीछे कुछ तर्क हैं. कुछ अनुभव है.

केबीसी में एंट्री आसान नहीं

सीन-1

साल 2011

एक दिन मेरे फोन की घंटी बजती है. फोन केबीसी से था.. अमिताभ के शो में जाने से पहले, पहले राउंड की स्क्रीनिंग के लिए मुझसे तीन सवाल पूछे जाने थे. मैं तैयार था.

पहला सवाल आया-

हज का संबंध किस धर्म से है? चार ऑप्शन दिए गए.

दूसरा सवाल आया-

पिट्यूटरी ग्लैंड शरीर के किस हिस्से में होती है? इसके लिए भी चार ऑप्शन दिए गए.

मैने दोनों ही सवालों के जवाब सही दिए थे. अगला यानी तीसरे सही सवाल का जवाब मुझे हॉट सीट पर बैठने के एक स्टेप करीब ले जा सकता था. लेकिन तीसरा सवाल नहीं बल्कि एटम बम मेरे कानों पर गिरा.

तीसरा सवाल था-

साल 2009 में सीबीएफसी ने कुल कितनी फिल्मों को रिलीज के लिए सर्टिफिकेट दिया? जवाब में मुझे ऑप्शन नहीं मिले.

मुझे फोन के की-बोर्ड पर नंबर दबाकर जवाब देना था.. मैं फेल हो गया. खुद को हारा हुआ योद्धा मान लिया. मान लिया कि केबीसी के सवालों के जवाब देना इतना आसान नहीं है.. इसमें जाने के लिए किस्मत से कहीं ज्यादा ज्ञान की जरुरत होती है.. तुर्रम खान टाइम के ही लोग ही अमिताभ के सामने जा पाते होंगे.

शुरुआत थी सुपरहिट.

सीन-2-

फ्लैशबैक साल 2000

रामायण और महाभारत के बाद पहली बार देश ने किसी एक टीवी शो का शिद्दत से इंतजार किया. उसके टेलीकास्ट के दौरान सड़कें खाली थीं और सभी घरों में सिर्फ अमिताभ और केबीसी के सेट पर हो रहे सवाल...

धन्यवाद अनामिका मैडम,  

केबीसी-9 की पहली करोड़पति बनकर शो में कुछ 'जान' डालने के लिए. अमिताभ तो बस शो को 'ढो' ही रहे हैं. हो सकता है मेरी इस बात से आप इत्तेफाक नहीं रखते हों. आखिर सवाल महानायक अमिताभ बच्चन और उन्हें पुनर्जन्म दिलाने वाले शो केबीसी का जो है. लेकिन ऐसा मैं यूं ही नहीं कह रहा हूं. बल्कि ऐसा कहने के पीछे कुछ तर्क हैं. कुछ अनुभव है.

केबीसी में एंट्री आसान नहीं

सीन-1

साल 2011

एक दिन मेरे फोन की घंटी बजती है. फोन केबीसी से था.. अमिताभ के शो में जाने से पहले, पहले राउंड की स्क्रीनिंग के लिए मुझसे तीन सवाल पूछे जाने थे. मैं तैयार था.

पहला सवाल आया-

हज का संबंध किस धर्म से है? चार ऑप्शन दिए गए.

दूसरा सवाल आया-

पिट्यूटरी ग्लैंड शरीर के किस हिस्से में होती है? इसके लिए भी चार ऑप्शन दिए गए.

मैने दोनों ही सवालों के जवाब सही दिए थे. अगला यानी तीसरे सही सवाल का जवाब मुझे हॉट सीट पर बैठने के एक स्टेप करीब ले जा सकता था. लेकिन तीसरा सवाल नहीं बल्कि एटम बम मेरे कानों पर गिरा.

तीसरा सवाल था-

साल 2009 में सीबीएफसी ने कुल कितनी फिल्मों को रिलीज के लिए सर्टिफिकेट दिया? जवाब में मुझे ऑप्शन नहीं मिले.

मुझे फोन के की-बोर्ड पर नंबर दबाकर जवाब देना था.. मैं फेल हो गया. खुद को हारा हुआ योद्धा मान लिया. मान लिया कि केबीसी के सवालों के जवाब देना इतना आसान नहीं है.. इसमें जाने के लिए किस्मत से कहीं ज्यादा ज्ञान की जरुरत होती है.. तुर्रम खान टाइम के ही लोग ही अमिताभ के सामने जा पाते होंगे.

शुरुआत थी सुपरहिट.

सीन-2-

फ्लैशबैक साल 2000

रामायण और महाभारत के बाद पहली बार देश ने किसी एक टीवी शो का शिद्दत से इंतजार किया. उसके टेलीकास्ट के दौरान सड़कें खाली थीं और सभी घरों में सिर्फ अमिताभ और केबीसी के सेट पर हो रहे सवाल जवाब की आवाज गूंज रही होती थी. छोटे पर्दे पर अमिताभ बच्चन नए कालजयी अवतार में प्रकट हो चुके थे. केबीसी दस्तक दे चुका था. सब कुछ नया था. साथ में पब्लिक कनेक्ट था. एक करोड़ रुपये जीतने का मौका था. हर कोई करोड़पति बनना चाहता था. अपनी किस्मत आजमाना चाहता था. हॉट सीट पर बैठने के लिए लोगों ने ना जाने कितने एसएमएस किए. लेकिन वहां बैठकर अमिताभ के साथ गेम खेलने और कंप्यूटर जी से जवाब लॉक कराने का मौका बहुत कम ही लोगों को मिला. फिर हर्षवर्धन नवाथे जैसे कंटेस्टेंट जब एक करोड़ रुपये जीत कर ले गए तो लगा कि सिर्फ किस्मत नहीं बल्कि ज्ञान की जरुरत होती है.. अमिताभ के शो में पहुंचने और करोड़पति बनने के लिए.

सीन-3

साल 2017

लेकिन इस साल अब तक केबीसी में जो कुछ भी देखा.. वो सालों पुरानी इस धारणा को धराशायी करने के लिए काफी था. औसत से भी कम दर्जे के ज्ञान वाले कंटेस्टेंट की फौज को अमिताभ के सामने देखने के बाद हर बार अचरज होता था. आखिर जिसका बौद्धिक स्तर इतना कम हो वो अमिताभ के शो तक कैसे पहुंच सकता है? कैसे वो शुरुआती दौर की स्क्रीनिंग को पास कर सकता है?

आपने एक करोड़ जीतकर शो में जान डाल दी

उदाहरण के लिए 13 सितंबर का खेल देखिए.. अमिताभ के सामने हॉट सीट पर रेखा देवी बैठी हैं.. और अमिताभ उनसे सवाल करते हैं कि देश का झंडा किस आकार का है.. महिला कनफ्यूज हो जाती है. उन्हें नहीं पता है कि देश का झंडा कैसा होता है. मैं हैरान हूं कि आखिर जिस महिला को देश के झंडे का शेप नहीं मालूम वो यहां तक पहुंची कैसे होगी. उसके अगले सवाल ने तो मेरा माथा और चकरा दिया. अगला सवाल था कौन से गेम में चार लोग मिलकर खेलते हैं. उसका सही जवाब लूडो था. वही लूडो जो घर-घर में खेला जाता है. लेकिन रेखा देवी को उसका जवाब भी एक बार मे नहीं मालूम था. लेकिन बावजूद उसके वो तुक्का लगाती हैं और उनके एक के बाद एक जवाब सही बैठते चले जाते हैं.

एक बार में मुझे लगा जैसे वो किस्मत की धनी थी जो यहां तक पहुंच गई.. लेकिन मैं शायद गलत था. रेखा के बाद अनीता और उनके जैसे कई और कंटेस्टेंट को देखकर दिल बस भारी होता रहा और अमिताभ पर तरस आता रहा.. आखिर कैसे कैसे कंटेस्टेंट से उनका पाला पड़ रहा है. 

कहां हो रहा है असली खेल-

तो सवाल उठता है कि आखिर वो इस हॉट सीट पर पहुंचे कैसे? क्योंकि केबीसी में एंट्री पाना हिमालय पर चढ़ने से कम नहीं है. ऐसे में उंगली चैनल पर उठेगी कि क्या उसने सेलेक्शन प्रोसेस बदल लिया है? या फिर सरकारी तुष्टिकरण की तरह अपने दर्शकों को इलाके के हिसाब से तुष्टिकरण कर रहा है? या फिर इलाके हिसाब से टीआरपी बढ़ाने का ये खेल है? 

क्या इस बार का शो नीरस है

केबीसी हर बार अपने साथ कुछ नया लेकर आता है. चाहे उसकी टैगलाइन- कोई सवाल छोटा नहीं होता, ज्ञान ही आपको आपका हक दिलाता है. या फिर गेम के फॉर्मेट में थोडा बहुत बदलाव हो.. हर बार उसकी चर्चा हुई है और उसने लोगों का ध्यान अपनी तरह खींचा है. लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं दिखता. शो में ऐसा कुछ यूनिक नहीं है जो लोगों को अपने से बांध कर रखे.. वो तो बस अमिताभ है जिनकी संवाद अदायगी से लेकर कंटेस्टेंट से कनेक्ट करने का तरीका लोगों को थोड़ी देर के लिए रोक लेता है. नहीं तो 10-10 हजार रुपये जीतने वाले सूरमाओं का खेल देखने में किसे दिलचस्पी होगी. 

क्या है सुपरहिट होने का फंडा

नौ सीजन में केबीसी के कितने कंटेस्टेट याद है आपको.. याद करेंगे तो करोड़पति विजेताओं के अलावा कोई नाम शायद ही याद आए. चाहे वो हर्षवर्धन नवाथे हो या फिर राहत तसलीम, पहली बार पांच करोड़ जीतने वाले सुशील कुमार हो या सन्मीत कौर या फिर सार्थक और अचिंत्य बंधु. इस खेल में जो जीता वही सिंकदर बना. यानी साफ है कि शो को चर्चा में लाना है, उसे इंटरेस्टिंग बनाना है तो गेम अच्छा खेलना होगा.. और इसके लिए चाहिए अच्छे खिलाड़ी. लेकिन इस बार जिस तरह के कंटेस्टेंट सामने आए हैं उनमें इसी बात की कमी है..

ऐसे में ये कहना बेमानी नहीं होगा कि ये तो अमिताभ हैं जो शो को ढो रहे हैं नहीं तो बाकी कई सारे गेम शो की तरह इसका भी मर्सिया पढ़ा जा चुका होता.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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