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सनी लियोनी की फिल्म विद राष्ट्र गान !

    • नरेंद्र सैनी
    • Updated: 30 नवम्बर, 2016 02:58 PM
  • 30 नवम्बर, 2016 02:58 PM
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सुप्रीम कोर्ट का आज आदेश आ गया है कि सिनेमाघरों में कोई भी फिल्म दिखाए जाने से पहले वहां मौजूद दर्शकों को राष्ट्र गान का सम्मान करना होगा, यानी राष्ट्र गान बजने पर खड़ा होना होगा.

यह दौर फैसलों का है. कभी भी कोई भी फैसला आ जाता है. कभी सरकार फैसला ले लेती है और कभी कोर्ट फैसला ले लेता है. फैसले भी ऐसे मामलों में जो बहुत गैर-जरूरी लगते हैं और जरूरी मामलों पर फैसले अटके नजर आ जाते हैं. जैसे सुप्रीम कोर्ट या किसी अन्य कोर्ट ने नोटबंदी पर कोई फैसला न लेकर सिनेमाघरों में राष्ट्र गान बजाए जाने पर फैसला ले लिया है.

सुप्रीम कोर्ट का आज आदेश आ गया है कि सिनेमाघरों में कोई भी फिल्म दिखाए जाने से पहले वहां मौजूद दर्शकों को राष्ट्र गान का सम्मान करना होगा, यानी राष्ट्र गान बजने पर खड़ा होना होगा. कोर्ट का इस फैसले पर दिया गया तर्क अहम है. आजकल लोग नहीं जानते हैं कि राष्ट्र गान कैसे गाया जाता है और लोगों को सिखाया जाना जरूरी है. हमें राष्ट्र गान का सम्मान करना ही होगा.

ये भी पढ़ें- भारत को नहीं चाहिए ऐसे बेतुके नियम

 अगर हॉल पर सनी लियोनी की कोई फिल्म लगी है, ऐसे में दर्शकों के मानस को किस तरह देशभक्ति पूर्ण बनाया जा सकेगा 

जज ने फैसला तो सुना दिया है लेकिन मनोरंजन से पहले देश भक्ति का जज्बा पैदा करना कितना तर्कसंगत है. अब इस बात को यूं भी समझा जा सकता है कि अगर हॉल पर मस्ती या सनी लियोनी की कोई फिल्म लगी है, ऐसे में वहां मौजूद दर्शकों के मानस को किस तरह देशभक्ति पूर्ण बनाया जा सकेगा या यह देशभक्ति की भावना उस दर्शक पर कितना गहरा असर करेगी ? क्या सिर्फ सिनेमाघर ही वे ठिकाना हैं जिनके जरिये देशभक्ति पैदा की जा सकती है ? क्या हमारी बुनियादी शिक्षा या परवरिश इतनी कमजोर हो चुकी है कि हम अपनी भावी पीढ़ी को राष्ट्र गान का सम्मान करना तक नही सिखा पा रहे हैं ? या सिनेमाघरों को सामाजिक...

यह दौर फैसलों का है. कभी भी कोई भी फैसला आ जाता है. कभी सरकार फैसला ले लेती है और कभी कोर्ट फैसला ले लेता है. फैसले भी ऐसे मामलों में जो बहुत गैर-जरूरी लगते हैं और जरूरी मामलों पर फैसले अटके नजर आ जाते हैं. जैसे सुप्रीम कोर्ट या किसी अन्य कोर्ट ने नोटबंदी पर कोई फैसला न लेकर सिनेमाघरों में राष्ट्र गान बजाए जाने पर फैसला ले लिया है.

सुप्रीम कोर्ट का आज आदेश आ गया है कि सिनेमाघरों में कोई भी फिल्म दिखाए जाने से पहले वहां मौजूद दर्शकों को राष्ट्र गान का सम्मान करना होगा, यानी राष्ट्र गान बजने पर खड़ा होना होगा. कोर्ट का इस फैसले पर दिया गया तर्क अहम है. आजकल लोग नहीं जानते हैं कि राष्ट्र गान कैसे गाया जाता है और लोगों को सिखाया जाना जरूरी है. हमें राष्ट्र गान का सम्मान करना ही होगा.

ये भी पढ़ें- भारत को नहीं चाहिए ऐसे बेतुके नियम

 अगर हॉल पर सनी लियोनी की कोई फिल्म लगी है, ऐसे में दर्शकों के मानस को किस तरह देशभक्ति पूर्ण बनाया जा सकेगा 

जज ने फैसला तो सुना दिया है लेकिन मनोरंजन से पहले देश भक्ति का जज्बा पैदा करना कितना तर्कसंगत है. अब इस बात को यूं भी समझा जा सकता है कि अगर हॉल पर मस्ती या सनी लियोनी की कोई फिल्म लगी है, ऐसे में वहां मौजूद दर्शकों के मानस को किस तरह देशभक्ति पूर्ण बनाया जा सकेगा या यह देशभक्ति की भावना उस दर्शक पर कितना गहरा असर करेगी ? क्या सिर्फ सिनेमाघर ही वे ठिकाना हैं जिनके जरिये देशभक्ति पैदा की जा सकती है ? क्या हमारी बुनियादी शिक्षा या परवरिश इतनी कमजोर हो चुकी है कि हम अपनी भावी पीढ़ी को राष्ट्र गान का सम्मान करना तक नही सिखा पा रहे हैं ? या सिनेमाघरों को सामाजिक क्रांति का ठिकाना मान लिया गया ? या हमने यह मान लिया है कि सिनेमा ही अब समाज सुधार करेंगे, हो सकता है कल को यह आदेश जारी हो जाए कि सिर्फ फ्लां तरह की फिल्में ही बनेंगी.

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वैसे भी कोर्ट को कोई भी फरमान जारी करने से पहले इस समस्या की जड़ तक में जाना चाहिए था. क्या वाकई मौज-मस्ती के माहौल में राष्ट्र गान बजाकर उसका सम्मान किया जा रहा है ? यहां यह सवाल अहम हो जाता है क्योंकि राष्ट्र गान का सम्मान और देश भक्ति का जज्बा ऐसी चीज है जो हर किसी में होता है और हर किसी की कोशिश इसको कायम रखने की होती है. इसे जबरन किसी में पिरोया नहीं जा सकता है. जिस तरह से पिछले दिनों राष्ट्र गान के समय कई दिव्यांगों के खड़े न होने पर हंगामा हुआ था और कई सीमाएं लांघी गई थी, उसे देखते हुए क्या आने वाले समय में इस फैसले की वजह से सिनेमाघरों में कई तरह के हंगामे देखने को नहीं मिल सकते हैं, यह भी सोचने वाली बात है.

वैसे सोशल मीडिया ने इस फैसले का तिया-पांचा करना शुरू कर दिया है. कोई कह रहा है कि राष्ट्र गान को सिनेमाघरों की बजाए एटीएम पर बजाया जाना चाहिए... मर्जी हो न हो सबको खड़ा रहना पड़ेगा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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