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फिल्म बनाने के लिये किस किस को खुश करें...

    • सिद्धार्थ हुसैन
    • Updated: 09 फरवरी, 2017 08:26 PM
  • 09 फरवरी, 2017 08:26 PM
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अगर कोर्ट को ही ये तय करना था तो सेंसर बोर्ड की तो कोई कीमत ही नहीं. तो सेंसर बोर्ड को बंद करिये जनाब और कोर्ट में ही एक सेंसर कोर्ट खोल लीजिये और लिख दीजिये सेंसर बोर्ड नहीं अब सेंसर कोर्ट करेगा फैसले.

आखिरकार अक्षय कुमार की जॉली एलएलबी-2, चार कट के साथ 10 फरवरी को रिलीज़ के लिये तैयार है. लेकिन सवाल ये है कि किसने दिये ये कट ? तो जवाब है मुंबई हाई कोर्ट ने. फिर सवाल उभरता है सेंसर बोर्ड ने कट दिये थे या नहीं ? तो जवाब है सेंसर बोर्ड ने फिल्म को पास कर दिया था और जो कट, कोर्ट ने लगाये वो सेंसर सर्टिफ़िकेट मिलने के बाद के हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर कोर्ट को ही ये तय करना था तो सेंसर बोर्ड की तो कोई कीमत ही नहीं. तो जवाब आता है, सेंसर बोर्ड को बंद करिये जनाब और कोर्ट में ही एक सेंसर कोर्ट खोल लीजिये और लिख दीजिये "सेंसर बोर्ड नहीं अब सेंसर कोर्ट करेगा फैसले".

क्योंकि कोई ना कोई किसी ना किसी बात से खफा हो जाता है और उसे अपना प्रोफ़ेशन या धर्म संकट में दिखने लगता है, जिसका खामियाज़ा फिल्म बनाने वालों को भुगतना पडता है. लेकिन फिर एक और सवाल जन्म लेता है, जब शाहिद कपूर-आलिया भट्ट की फिल्म "उड़ता पंजाब" रिलीज होनेवाली थी तब सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी ने उस फिल्म को 94 कट दिये थे, फिर निर्माता कोर्ट में गये और आखिरकार उड़ता पंजाब 13 कट के बाद रिलीज़ हुई. ऐसे में सवाल ये भी खड़ा होता है कि कभी कोर्ट तो कभी बोर्ड, आखिर किसी एक की जवाबदेही क्यों नहीं हो सकती ?

मजे की बात ये है कि 2013 में लेखक निर्देशक सुभाष कपूर की जॉली एलएलबी का पहला पार्ट जब रिलीज हुआ, तब भी कुछ वकीलों को आपत्ति हुई थी और तब भी पीआइएल डाली गयी थी, कि फिल्म में कोर्ट की तौहीन दिखायी गयी है. लेकिन तब कोर्ट ने तमाम दलीलों को खारिज कर दिया था और सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस लोधा ने अपने फ़ैसले में लिखा था "if you don't like it don't watch". चार साल बाद जॉली एलएलबी 2 इतनी खुश किस्मत नहीं रही, फिल्म की टीम को  चार कट से समझौता करना पड़ा, क्योंकि अगर कोर्ट में दलील देते तो वक्त...

आखिरकार अक्षय कुमार की जॉली एलएलबी-2, चार कट के साथ 10 फरवरी को रिलीज़ के लिये तैयार है. लेकिन सवाल ये है कि किसने दिये ये कट ? तो जवाब है मुंबई हाई कोर्ट ने. फिर सवाल उभरता है सेंसर बोर्ड ने कट दिये थे या नहीं ? तो जवाब है सेंसर बोर्ड ने फिल्म को पास कर दिया था और जो कट, कोर्ट ने लगाये वो सेंसर सर्टिफ़िकेट मिलने के बाद के हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर कोर्ट को ही ये तय करना था तो सेंसर बोर्ड की तो कोई कीमत ही नहीं. तो जवाब आता है, सेंसर बोर्ड को बंद करिये जनाब और कोर्ट में ही एक सेंसर कोर्ट खोल लीजिये और लिख दीजिये "सेंसर बोर्ड नहीं अब सेंसर कोर्ट करेगा फैसले".

क्योंकि कोई ना कोई किसी ना किसी बात से खफा हो जाता है और उसे अपना प्रोफ़ेशन या धर्म संकट में दिखने लगता है, जिसका खामियाज़ा फिल्म बनाने वालों को भुगतना पडता है. लेकिन फिर एक और सवाल जन्म लेता है, जब शाहिद कपूर-आलिया भट्ट की फिल्म "उड़ता पंजाब" रिलीज होनेवाली थी तब सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी ने उस फिल्म को 94 कट दिये थे, फिर निर्माता कोर्ट में गये और आखिरकार उड़ता पंजाब 13 कट के बाद रिलीज़ हुई. ऐसे में सवाल ये भी खड़ा होता है कि कभी कोर्ट तो कभी बोर्ड, आखिर किसी एक की जवाबदेही क्यों नहीं हो सकती ?

मजे की बात ये है कि 2013 में लेखक निर्देशक सुभाष कपूर की जॉली एलएलबी का पहला पार्ट जब रिलीज हुआ, तब भी कुछ वकीलों को आपत्ति हुई थी और तब भी पीआइएल डाली गयी थी, कि फिल्म में कोर्ट की तौहीन दिखायी गयी है. लेकिन तब कोर्ट ने तमाम दलीलों को खारिज कर दिया था और सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस लोधा ने अपने फ़ैसले में लिखा था "if you don't like it don't watch". चार साल बाद जॉली एलएलबी 2 इतनी खुश किस्मत नहीं रही, फिल्म की टीम को  चार कट से समझौता करना पड़ा, क्योंकि अगर कोर्ट में दलील देते तो वक्त लग जाता और 10 फरवरी की रिलीज़ पर रोक लगने का मतलब भारी नुकसान होता.

दिलचस्प बात ये है कि चार कट एक ही सीन के हैं, जहां फिल्म का मुख्य किरदार जज से गुज़ारिश करता है कि फैसला उसके पक्ष में हो और ये बोलते हुए वो जज की टेबल के पास खड़ा हो जाता है और अपने मुवक्किल को सलाह देता है जज पर जूता फेकंने के लिये, ये सब बेहद मजाकिया अंदाज में होता है और संजीदा बात को जब मज़ाकिया अंदाज में कहा जाये तो उसे ही व्यंग कहते हैं.

लेकिन ऐसा लगता है कि व्यंग समझने की सलाहियत खत्म सी होती जा रही है. कोर्ट के फ़ैसलों पर तो कुछ नहीं कह सकते लेकिन ये काबिल लोग जो हर छोटी-छोटी बात पर पीआइएल डाल देते हैं, इनके पास बहुत वक्त होता है, सारी संस्कृति की ज़िम्मेदारी ये खुद की समझते हैं और इनके दुश्मन हैं फिल्म बनानेवाले.

हाल ही में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर एक करारा थप्पड़ पड़ा था, जब एक पॉलिटिकल पार्टी ने जयपुर में निर्देशक संजय भंसाली पर हमला किया था और आधार था कि वो अपनी फिल्म "पद्मावती" में इतिहास के साथ खिलवाड़ कर सकते हैं और लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी, ये कौन सी भावना है और कौन से संस्कार जिसमें हिंसा का रास्ता इख़्तियार करना पडता है और हिंसा करने वाले, खुद समाज में क्या दे रहे हैं ये इनमें से किसी ने नहीं सोचा होगा. दरअसल अपने व्यक्तिगत फायदे को समाज के नाम पर मढ़ना, खुदगर्ज़ सोच रखनेवालों के लिये आसान होता है. तभी तो अत्याचार और अपमान के बावजूद संजय भंसाली की टीम को समझौता करना पड़ा क्योंकि वो लाचार थे, फिल्म बंद होने का मतलब करोड़ों का नुकसान और इसलिये फिल्म इंडस्ट्री आज है सॉफ्ट टारगेट.

ऐसे हालात देखकर खुशी इस बात की होती है कि अच्छा है, कि आसिफ़, महबूब खान, गुरू दत्त और राज कपूर जैसे लोग अपनी मर्ज़ी की फिल्में बनाकर जा चुके हैं, वरना आज के जमाने में के आसिफ़ क्या "मुग़ल-ए-आजम" बना सकते थे, क्योंकि इतिहास में ना तो जोधा का किरदार माना जाता है और न ही अनारकली का, ना जाने किस किस पर केस होते, निर्देशक के आसिफ़ तो फंसते ही आपत्ति करनेवाले ये लोग मधुबाला को भी न छोड़ते "आपने कैसे निभाया अनारकली का किरदार???" .

खैर समझौतों के साथ जॉली एलएलबी 2 भी रीलीज़ हो रही है और समझौते के तराजू में और ना जाने कितनी फिल्मों को उतरना होगा. क्या सही है और क्या गलत ये तो पता नहीं, लेकिन ये तय है कि कला और कलाकार दोनों की स्थिति खतरे में है, समाज के नाम पर संस्कृति के नाम पर.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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